Thursday, October 10, 2013

पारदर्शिता लाने के लिये भी उपयोगी है तकनीक - मैनेजमेंट फंडा - एन रघुरामन - 10th October 2013

पुणे के एमआईटी स्कूल ऑफ टेलीकॉम मैनेजमेंट के प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ. मिलिंद पांडे कक्षा में आते हैं। लेक्चर शुरू करने से पहले अपना मोबाइल निकालते हैं। फोन में खास तौर पर डिजाइन किया गया एंड्रॉयड एप्लीकेशन-अटेंडेंस एप है। यह एप्लीकेशन कक्षा के स्मार्ट बोर्ड से जुड़ा है। एप्लीकेशन को चालू करने के बाद डॉ. पांडे कक्षा के सभी स्टूडेंट्स से अपनी उपस्थिति दर्ज कराने को कहते हैं।

कक्षा के बच्चे एक-एक कर अपने मोबाइल फोन के जरिए ही एप्लीकेशन पर क्लिक करते हुए उपस्थिति दर्ज कराना शुरू कर देते हैं। और स्मार्ट बोर्ड पर हर क्लिक के बाद स्टूडेंट का नाम, तस्वीर, और लोकेशन (सीट) नजर आना शुरू। इस एप्लीकेशन में ऐसी व्यवस्था की गई है कि कोई भी स्टूडेंट दूसरे के मोबाइल से अपनी हाजिरी नहीं दर्ज करा सकता। स्टूडेंट के हाजिरी दर्ज कराने के बाद प्रोफेसर को उसकी पुष्टि करनी होती है। संदेह होने पर दोबारा एंट्री करवाई जाती है। महज एक मिनट के भीतर यह प्रक्रिया पूरी हो जाती है। निर्धारित समय खत्म होते ही एप्लीकेशन निष्क्रिय हो जाता है।


Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar10th October 2013


मतलब साफ है। कक्षा में हाजिरी दर्ज कराने के लिए यस सर और यस मैडम कहने के दिन अब लद रहे हैं। अब स्मार्ट क्लास का जमाना है। इस एप के परीक्षण के लिए पुणो के इस संस्थान में तीन महीने पहले ही पायलट प्रोजेक्ट शुरू हुआ है। अब स्टूडेंट कक्षा में दिए गए प्रोफेसर के लेक्चर को भी डाउनलोड कर सकते हैं। वीडियो लेक्चर के जरिए। फिर उसे वे घर पर, लाइब्रेरी में या कॉलेज की बस में, जहां चाहें वहां रिवाइज कर सकते हैं।

लाइब्रेरी से जुड़ी हुई कई अहम जानकारियां, असाइनमेंट की डेडलाइन, सबमिट किए जा चुके प्रोजेक्ट से जुड़ा डाटा भी इस एप्लीकेशन पर उपलब्ध है। वे स्टूडेंट्स भी जो किसी वजह से कक्षा में उपस्थित नहीं हुए और इस बारे में कॉलेज को पहले से सूचित कर देते हैं, वीडियो लेक्चर का लाभ ले सकते हैं। हालांकि यह उन्हें संबंधित प्रोफेसर के जरिए उन्हीं के मोबाइल से मिलता है। इस एप्लीकेशन को फिलहाल संस्थान में एमबीए टेलीकॉम (सिस्टम) के 2012-14 बैच के स्टूडेंट इस्तेमाल कर रहे हैं। भविष्य में यह संस्थान के अन्य सभी कोर्स के स्टूडेंट्स के लिए उपलब्ध हो जाएगा।


जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि एप्लीकेशन को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि इसके जरिए गड़बड़ी किए जाने की गुंजाइश बिल्कुल भी नहीं रहती। इसलिए अब कॉलेज ब्लैकलिस्टेड और डिफाल्टर स्टूडेंट्स की लिस्ट बनाने में अपना समय बर्बाद नहीं करता। स्टूडेंट्स से संबंधित हर छोटे से छोटा डिटेल इस एप के जरिए संस्थान के पास उपलब्ध रहता है। संस्थान अब इस एप्लीकेशन की सुविधा उन अभिभावकों तक भी पहुंचाने की योजना बना रहा है, जिनके मोबाइल नंबर उसके रिकॉर्ड में दर्ज हैं। ऐसा होने पर माता-पिता अपने बच्चे के पूरे अकादमिक ट्रैक रिकॉर्ड पर नजर रख सकेंगे। चूंकि ज्यादातर स्टूडेंट्स स्थानीय नहीं होते इसलिए दूर रहने वाले उनके माता-पिता बच्चों के डेली परफॉर्मेस के बारे में लगभग अंधेरे में ही रहते हैं। लेकिन एक बार यह एप्लीकेशन उनके मोबाइल पर डाउनलोड हुआ तो ऐसा नहीं होगा। बच्चों की अटेंडेंस, उन्हें मिले हुए प्रोजेक्ट, समय पर प्रोजेक्ट सबमिट किया गया या नहीं, उनको कौन सा ग्रेड मिला, आदि हर तरह की जानकारी माता-पिता को घर बैठे ही मिल जाया करेगी। यानी इस एप्लीकेशन के पूरी तरह अमल में आते ही स्टूडेंट्स, टीचर्स व पैरेंट्स के बीच पूरी पारदर्शिता आ जाएगी।


फंडा यह है कि..

सही तकनीक में इतनी ताकत होती है कि वह सफेद को सफेद और काले को काला बता सकती है। इसमें छिपाने को कुछ नहीं होता। लिहाजा, इसका इस्तेमाल पारदर्शिता लाने के लिए भी होना चाहिए।





















Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar10th October 2013

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