Saturday, October 5, 2013

अच्छी प्लानिंग हो तो बच सकते हैं मंदी से - मैनेजमेंट फंडा - एन रघुरामन - 5th October 2013


एक तरफ देश में त्योहारों का सिलसिला शुरू हो चुका है तो दूसरी तरफ अमेरिका में व्हाइट हाउस ने सोमवार देर रात सरकारी एजेंसियों को शटडाउन की तैयारी करने का फरमान सुना दिया। इससे पहले सरकार के स्पेंडिंग बिल पर रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टियों के बीच कांग्रेस में सहमति नहीं बन पाई। इसके लिए सोमवार आधी रात तक का समय कांग्रेस के पास था। अमेरिका जैसा बड़ा उपभोक्ता और खर्च करने वाला देश अपने दरवाजे बंद कर रहा हो तो कोई क्या कर सकता है? या तो चुपचाप बैठा रहे या फिर खुद को बदले, समय की जरूरतों के अनुसार ढाले। भारतीय उद्यमी ऐसी चीजों से ज्यादा परेशान नहीं होते। चाहे कैसी भी मंदी का माहौल हो, वे इससे बचने का तरीका ढूंढ़ लेते हैं। वे अपनी रणनीति बदलते हैं, खुद को बदलते हैं और नई शुरुआत करते हैं। आईटी कंपनियों में स्टाफ को इस तरह की ट्रेनिंग दी जाती है, लेकिन छोटे व्यवसायी भी अपना बिजनेस बढ़ाने के लिए हरसंभव तरीके अपनाने में पीछे नहीं हैं। 
 
 Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 5th October 2013
इसका एक उदाहरण देखिए। वेडिंग हॉल मालिक रात को उसे डॉर्मेटरी के रूप में चला रहे हैं, प्ले स्कूल में कभी-कभार बच्चों की बर्थ-डे पार्टी भी आयोजित हो जाती है तो देश के कई हिस्सों में पार्टी हॉल कॉपरेरेट सेमिनार की भी मेजबानी कर रहे हैं। इनके मालिक समाज की बदलती जीवनशैली के अनुरूप अपनी जगह का इस तरह के आयोजनों के लिए जरूरी मेकओवर कराने में पीछे नहीं हैं। आयोजक इसके जरिये खर्च करना चाहते हैं तो प्रॉपर्टी के मालिक अपनी कमाई बढ़ाना चाहते हैं। इन शुरुआतों से सितारा होटलों में कॉपरेरेट मीटिंग, घरों में सगाई की पार्टियां और स्कूल के प्लेग्राउंड में छोटी-मोटी पार्टियों का आयोजन बीते जमाने की बात बनकर रह गया है।

शुक्रवार को खत्म हुए श्राद्ध के दौरान ताज ग्रुप जैसे बड़े होटलों में भी शादी की रस्मों का आयोजन हो रहा था। होटल के सभी कर्मचारियों को इसमें भाग लेना अनिवार्य था। होटल के प्रबंधन द्वारा सभी विभागों के मुखिया को इसके प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई थी। बजट और समय की कमी के चलते हर परिवार इस तरह का आयोजन घर के बाहर करना चाहता है। इससे नए आयोजन स्थलों के लिए मौके बढ़ रहे हैं। इसमें खर्च भी कम आता है। सामान्य आयोजनों के मुकाबले एक तिहाई राशि में ही काम चल जाता है। दूसरा फायदा यह है कि मेजबान को कोई चिंता नहीं रहती। समारोह के आयोजन का सारा दारोमदार आयोजक के सिर होता है।

प्ले स्कूल दोपहर तीन बजे के बाद खाली होते हैं और आराम से वहां बर्थ-डे पार्टियां आयोजित हो जाती हैं। स्कूल भी शाम छह बजे के बाद बंद हो जाते हैं और उनके मैदान में डिनर पार्टियों का आयोजन संभव है जिनमें 500 लोग तक शामिल हो सकते हैं। ऐसे आयोजनों के लिए जरूरी सुविधाएं भी इन स्कूलों में मौजूद होती हैं।

Halls reservation.com वेबसाइट पर चेन्नई महानगर के ऐसे जगहों की पूरी लिस्ट मौजूद है जहां कुछ घंटों के अंदर भोजन, गिफ्ट और ऐसे आयोजनों के लिए जरूरी अन्य सुविधाएं जुटाई जा सकती हैं। आप किसी भी चीज के बारे में पूछें, इवेंट मैनेजर ना नहीं करता। आपको केवल थोड़े ज्यादा पैसे खर्च करने होंगे। लोगों ने शादियों के लिए सितारा होटलों को चुनना शुरू किया तो वेडिंग हॉल मालिक अपनी जगह का इस्तेमाल प्रदर्शनी और सेमिनारों के लिए करने लगे। हरियाणा के अंबाला में शगुन बैंकेट हॉल पहले शादियों के लिए मशहूर था, लेकिन अब वहां भी ऐसे आयोजन हो रहे हैं। वेडिंग हॉल मालिकों का एक ही लक्ष्य है, जगह खाली नहीं रहनी चाहिए। उसका उपयोग होते रहना चाहिए। शादियां वैसे भी साल में बमुश्किल सौ दिन होती हैं, बाकी 265 दिनों में कमाई के लिए वे इस तरह के तरीके अपना रहे हैं।


फंडा यह है कि..

यदि आप सही तरीके से योजना बनाएं और उसे अमल में लाएं तो आपका बिजनेस मंदी की मार से बचा रह सकता है।

















Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 5th October 2013

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