Friday, December 20, 2013

Changing Formats of Circus - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 20th December 2013

सर्कस का बदला हुआ स्वरूप

परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे 


हमारे यहां लंबे समय तक सर्कस मनोरंजन करते रहे हैं। प्राय: सर्कस किसी शहर में अपना विराट तंबू लगाकर महीना दो महीना शहर में करतब दिखाते थे, फिर किसी अन्य शहर की ओर कूच करते थे। सर्कस में मनुष्य और जानवर मिलकर तमाशा करते थे। इस समय भारत में शायद ही कोई सर्कस बचा हो। मनोंरजन के नित नए विकसित होते तमाशों ने सर्कस को अव्यावहारिक बना दिया। जानवरों पर अत्याचार नहीं होने के लिए शक्तिशाली संस्थाएं गठित हो गई और सर्कस असंभव हो गया। राजकपूर ने सर्कस की पृष्ठभूमि पर अपनी आत्म-कथात्मक 'मेरा नाम जोकर' रची और कुछ हास्य फिल्मों में भी सर्कस के प्रसंग आए। राकेश रोशन की 'कृष' में सर्कस के तंबू में आग लगने पर नायक बच्चों को बचाता है। 

Source: Changing Formats of Circus - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 20th December 2013

टिनू आनंद की 'दुनिया मेरी जेब में' के कुछ पात्र सर्कस में काम करने वाले थे। बंगाल के निर्देशक द्वारा अंग्रेजी भाषा में बनी अमिताभ बच्चन अभिनीत 'लास्ट लिअर' में एक बंद सर्कस के जानवर और कलाकार शहर छोड़कर जंगल की ओर जाते दिखाए गए हैं। यह फिल्म उत्पल दत्त के नाटक 'आखरी शाहजहां से प्रेरित थी। सच्चाई तो यह है कि हेनरी डेन्कर के उपन्यास 'द डायरेक्टर' में यह विषय अपनी पूरी सघनता से उभरा है। बहरहाल आदित्य चोपड़ा की फिल्म 'धूम तीन' की पृष्ठभूमि भी सर्कस है और सर्कस के मालिक जैकी श्रॉफ की हत्या के बदले की कहानी इस फिल्म का आधार है। यह कॉलम धूम के बारे में नहीं वरन सर्कस के बारे में है। मनोरंजन के लोप हो गए एक अंग के बारे में है। अमेरिका में सर्कस की लोकप्रियता के कारण पी.टी. बरमन नामक व्यक्ति ने सीमेंट और लोहे का एक स्थायी तंबू बनाया था जहां हर मौसम में सर्कस का शो लंबे समय तक चलता रहा है। यह बरनम महोदय भी अत्यंत मजेदार वयक्ति थे। उन्होंने एक बार एक मूर्ति जमीन में गाढ़ी और फिर खुदाई आयोजित करके मूर्ति को खोजा और एक विस्मयकारी शो गढ़ा। सारी उम्र वे प्रचार माध्यमों की सहायता से नए शो गढ़ते थे। उन्हें अपने जमाने का सबसे बड़ा शो मैन कहा जाता था। उन्होंने प्रचार माध्यमों से प्रार्थना कि उनके जीवन काल में ही वे अपनी मृत्यु के बाद का प्रकाशित लेख पढऩा चाहते हैं। अत: एक नियत दिन ऐसा ही किया गया। अपनी आदरांजलियां पढऩे के कुछ दिन बाद उनकी मृत्यु हुई और यथार्थ मृत्यु के बाद कुछ भी प्रकाशित नहीं हुआ। प्रचार माध्यम निर्मम होते हैं।

सर्कस अपने आप में एक पूरा संसार होता था जहां अनेकों लोग और जानवर एक वयवस्था के तहत साथ-साथ रहते थे। सर्कस संसार में अनुशासन होता था और सारे कलाकार रोज गहन अभ्यास किया करते थे। सर्कस संसार के सारे प्राणी साथ भोजन करते थे। शारीरिक रूप से कमतरी के शिकार लोगों को भी सर्कस में नौकरी मिल जाती थीं। जोकर के साथ प्राय: दो बौने लोग होते थे। पिंजड़े में बंद जानवरों को भी भोजन देने का एक विभाग होता था। अमेरिका में टार्जन फिल्में बहुत बार बनाई गई हैं और प्राय: टार्जन को जंगल से लाकर सर्कस में शो कराने का दृश्य क्लाइमैक्स होता था तथा 'किंगकांग' श्रृंखला में भी यही हुआ है। जब 1933 में पहली बार एक वनमानुस की पटकथा बनी तब निर्माता के आग्रह पर उसमें प्रेम कहानी जोडऩे की बात पर सहायक निर्देशक ने कहा कि इस विराट वनमानुस को उस अमेरिकन लड़की से प्यार होता है जो अपने दल के साथ जंगल गई थी। इस तरह किंगकांग श्रृंखला एक अत्यंत मार्मिक प्रेम-कथा के रूप में सामने आई। आज सर्कस के लोप होने पर उसका स्मरण हो रहा है क्योंकि अलग-अलग रुचियों, रंगों और जातियों के मनुष्य तथा जानवर साथ-साथ रहने का आदर्श बहुत महान है। यह परिवार के आदर्श के समान है। आज राजनैतिक क्षेत्र के सर्कस में आपसी फूट और दुश्मनी है। खेल वही है, दर्शक वही हैं परन्तु देश ही सर्कस का विराट तम्बू हो गया है। 





 

 

 

 

 

 

 

 

 





Source: Changing Formats of Circus - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 20th December 2013  

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