Tuesday, December 10, 2013

Get To The Bottom Of Pyramid, You Will Find The Numbers There - Management Funda - N Raghuraman - 10th December 2013

पिरामिड की बॉटम लाइन तक जाएं, नंबर वहीं मिलेंगे 

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन


साल 2010 में राम परमार पटना रेलवे स्टेशन पर रिक्शा चलाता था। एक सवारी से 10 रुपए के भाड़े के लिए जिरह कर रहा था। जब बात बन गई तो उसकी सवारी ने जेब से मोबाइल फोन निकाला। पत्नी को बताया कि दोपहर के खाने में वह देर से घर पहुंच पाएगा। ये दोनों पात्र याद दिला रहे हैं कि तीन साल पहले तक देश की आधी आबादी के पास ही मोबाइल था। राम परमार जैसे लोग इससे दूर थे। ये वे लोग थे जो मोबाइल का खर्च उठाने में सक्षम नहीं थे। इस फर्क को उसी वक्त चार लोगों ने समझ लिया। इनके नाम हैं राजेश अग्रवाल, सुमित अरोरा, राहुल शर्मा और विकास जैन। ये माइक्रोमैक्स मोबाइल कंपनी में साझेदार हैं। राजेश सबसे बड़े हैं। वे कंपनी का फाइनेंस डिपार्टमेंट देखते हैं। हमेशा क्लास में टॉपर रहे सुमित कंपनी के चीफ टेक्नोलॉजी अफसर हैं। राहुल नए आइडिया और उस पर काम करते हुए जोखिम आदि के मामलों को देखते हैं, जबकि विकास कंपनी के लिए साझेदारी और समझौतों से जुड़ा काम करते हैं। 

Source:  Get To The Bottom Of Pyramid, You Will Find The Numbers There - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 10th December 2013


माइक्रोमैक्स की स्थापना 1991 में हो गई थी। लेकिन उसने 2008 से मोबाइल फोन बनाना शुरू किए। दो साल के भीतर यानी 2010 तक यह कंपनी मोबाइल बाजार में तीसरी सबसे बड़ी कंपनी बन गई। तब नोकिया की बाजार में 62 फीसदी हिस्सेदारी थी। सैमसंग की आठ और माइक्रोमैक्स की छह फीसदी। माइक्रोमैक्स की रफ्तार धीरे-धीरे तेज होती गई। 2010 के अंत तक यह कंपनी हर महीने करीब सात से 10 लाख मोबाइल फोन बेचने लगी। कंपनी का अनुमान था कि यह सालाना लगभग 15,000 करोड़ रुपए के मोबाइल हैंडसैट बेच रही है। बिक्री बढऩे की वजह भी थी। कंपनी के मोबाइल हैंडसैट्स देखने में आकर्षक थे। रेंज काफी बड़ी थी। उनकी कीमतें भी कम थीं। देश के ग्रामीण इलाकों में भी इसके फोन हाथों-हाथ बिके। यहां से मोबाइल बाजार में माइक्रोमैक्स दूसरी कंपनियों के लिए चिंता बनने लगी। उसे अब सक्षम प्रतिद्वंद्वी समझा जाने लगा।

बहरहाल, इस सफलता ने कंपनी को दो चीजें सिखाईं। पहली- अगर लोगों को ऐसी चीज दी जाए जो उन्हें रोजमर्रा के काम में मदद दे तो वे उसे जरूर खरीदेंगे। दूसरी- लोगों की जरूरत समझने के लिए पिरामिड की बॉटम लाइन तक जाना जरूरी है। वहां से जो जरूरतें समझ आएं उनके हिसाब से अपने प्रोडक्ट को डिजाइन करना चाहिए। अब 2013 की बात। देश के मोबाइल मार्केट में माइक्रोमैक्स दूसरी सबसे बड़ी कंपनी है। बाजार में इसकी हिस्सेदारी 22.7 फीसदी हो चुकी है। बाजार में पहले नंबर पर काबिज है सैमसंग। फिलहाल इसकी हिस्सेदारी है 31.9 फीसदी। यानी पहले नंबर से माइक्रोमैक्स सिर्फ 9.2 फीसदी दूर है। संभवत: एक-दो साल में माइक्रोमैक्स नंबर एक पर आ जाए। इस कंपनी के लोगों के पास बांहें चढ़ाने की और भी वजहें हैं। एक यह कि ये लोग ग्राहक की जरूरत पर लगातार पैनी निगाह रख रहे हैं। और अगली ये कि अपने उत्पादन और आपूर्ति को भी उसी के हिसाब से कायम रखे हुए हैं।

माइक्रोमैक्स जैसी ही कहानी आम आदमी पार्टी (आप) की है। सिर्फ एक साल हुए हैं इस पार्टी का गठन हुए। कई राजनीतिक पंडित कह रहे थे कि लोग इस पार्टी के प्रत्याशियों पर अपने वोट बर्बाद नहीं करेंगे, लेकिन दिल्ली में हुआ क्या? हम सबने देखा। आप को दिल्ली में 28 सीटें मिलीं।

उसे 29.5 फीसदी वोट मिले। कैसे हुआ यह? दरअसल आप ने वही तरीका आजमाया जो माइक्रोमैक्स ने अपनाया है। पिरामिड की बॉटम लाइन तक पहुंची यह पार्टी। लोगों की जरूरत को नजदीक से समझा। उसके हिसाब से ही खुद को ढाला और पेश किया। 

फंडा यह है कि...

अगर आप ऐसे बिजनेस में हैं, जो ज्यादा लोगों को अपील करता है तो आपको भी पिरामिड की बॉटम लाइन तक पहुंचना होगा। 

 
































Source:  Get To The Bottom Of Pyramid, You Will Find The Numbers There - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 10th December 2013

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