Thursday, December 19, 2013

Education Can Be Given Through Gilli - Danda - Management Funda - N Raghuraman - 19th December 2013

गिल्ली-डंडा से भी शिक्षा दी जा सकती है

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन



वह टाटा कंसल्टेंसी सर्विस में काम करता था। काम भी ऐसा कि हमेशा आंकड़ों के इर्द-गिर्द। वह चाहता तो अपने वेतन के चेक में न जाने कितने जीरो जोड़ सकता था। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। इसके बजाय उसने उन लोगों को नंबरों की शिक्षा देने का फैसला किया जो मैथमैटिक्स से डरते हैं। 2011 में आठ युवा पेशेवरों ने भारी-भरकम वेतन पैकेज को ठुकराकर जरूरतमंद बच्चों को मैथ की शिक्षा देने का फैसला किया था। पढ़ाने का जरिया बनाया गिल्ली-डंडा और क्रिकेट को। इस समूह के अगुआ थे अभिषेक चक्रवर्ती। उम्र 29 साल। 

Source: Education Can Be Given Through Gilli - Danda - Management Funda By N. Raghuraman - Dainik Bhaskar19th December 2013

जिस वक्त जॉब छोड़ा वे टाटा कंसल्टेंसी में चार्टर्ड फायनेंशियल एनालिस्ट थे। लेकिन यह नौकरी छोड़कर उन्होंने अपनी टीम के साथ पांच सरकारी स्कूलों के 200 बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया। शुरुआत झारखंड के धनबाद जिले से हुई। वहां के निरसा ब्लॉक के पांड्रा, शानपुर, पोद्दारडीह, खासनिरसा और बैजान गांवों से बच्चों को चुना गया। धनबाद पहुंचने से पहले अभिषेक व्हिजमंत्रा एजुकेशनल सॉल्यूशन्स की स्थापना कर चुके थे। इसके जरिए उन्होंने दिल्ली, मुंबई, गोवा, अहमदाबाद और राजगीर में गरीब बच्चों को शिक्षा भी दी थी। वह एक तरह का पायलट प्रोजेक्ट था। इस काम की विधिवत शुरुआत उन्होंने धनबाद से की। क्रिकेट मैच के जरिए अभिषेक और उनकी टीम बच्चों को गिनती और जोड़-घटाना सिखा रही थी। मैच में बनने वाले रनों को ही इस कवायद का आधार बनाया जाता। ऐसे ही लट्टू के जरिए रेखागणित की मुश्किलें हल की जातीं। उनका दावा है कि बच्चों को कागज पर सर्किल वगैरह बनाकर समझाने से खेल-खेल में यह सब चीजें समझाना ज्यादा आसान है।

अभिषेक और उनकी टीम 2011 में ही धनबाद के सभी 500 सरकारी स्कूल के बच्चों तक अपना प्रोजेक्ट ले जाने की योजना बना रही थी। और आगे चलकर आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चों को इसके जरिए लाभान्वित करना चाहती थी। दिसंबर 2013 में यह टीम गरीब बच्चों का ग्रेड बेहतर करने के लिए प्रयास कर रही थी। ये बच्चे थे स्कूल आ रहे थे लेकिन दूसरे स्टूडेंट्स की तुलना में ठीक-ठाक स्कोर भी नहीं कर पा रहे थे। साल 2013 में 20 नवंबर से पांच दिसंबर तक अभिषेक की टीम ने एक और काम किया। निरसा ब्लॉक के ही तीन सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को भी ट्रेनिंग दे डाली। कक्षा एक से आठवीं तक के पढ़ाई में कुछ धीमे 200 बच्चों को पढ़ाने के लिए अलग से कक्षाएं भी लगाईं। इसके बाद अब इस टीम ने पूरे साल इस तरह की अतिरिक्त कक्षाएं लगाने का फैसला किया है।

चुने गए स्कूलों में यह कवायद 20 दिसंबर से शुरू हो रही है। अभिषेक और टीम को प्रायोजक भी मिल रहे हैं। मैथोन पावर लिमिटेड ने इस टीम को मदद देना शुरू किया है। इस टीम ने जो स्टूडेंट सिलेक्ट किए हैं वे सभी कमजोर तबकों के हैं। उनके चयन के लिए टीम ने उनका टेस्ट लिया। स्कूल की रिपोर्ट देखी। टीचर्स और प्रिंसिपलों से फीडबैक भी लिया। स्कूल के शिक्षकों को भी टिप्स देने का फैसला किया ताकि वे भी पढ़ाई को आनंददायक बना सकें। अब यह टीम ई-लर्निग प्रक्रिया के तहत इन्फॉरमेशन एंड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी का भी इस्तेमाल शुरू करने जा रही है। टीम के सदस्यों ने 16 गांवों में सर्वे भी किया है। स्टूडेंट्स, टीचर्स का चयन किया है। स्कूलों की कक्षाओं को रोचक ढंग से पेंट किया गया है। दीवारों पर भी शिक्षण के सहज तरीके नजर आते हैं। अगले साल 2014 के लिए इस टीम ने लक्ष्य तय किया है कि वह निसरा ब्लॉक के ही 50 अशिक्षित लोगों को भी शिक्षित करेगी। आगामी प्रोजेक्ट को ‘कलम पकड़ो अभियान’ नाम दिया है। टीम की सफलता की सबसे बड़ी वजह क्या है? उन्होंने शिक्षा और शिक्षण को उन चीजों से जोड़ा जो आम हैं। जैसे, गिल्ली-डंडा और क्रिकेट। इन रुचिकर खेलों के जरिए शिक्षा को बोझिल से सहज बनाने का अभियान चलाया।

 

फंडा यह है कि..

अगर रचनात्मकता के साथ कोई भी काम किया जाए तो उसे सहज बनाया जा सकता है। सहज और रुचिकर होते ही काम में सफलता की दर भी बहुत ऊंची हो जाती है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 


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