Tuesday, December 3, 2013

What To Show - What To Hide - How To Say ? Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 3rd December 2013

क्या दिखाएं, क्या छुपाएं, कैसे कहें?

परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे


अखबार की खबर है कि अमिताभ बच्चन अपने पिता श्री हरिवंशराय बच्चन के जीवन पर आधारित बायोपिक में उनकी भूमिका करना चाहते हैं। ज्ञातव्य है कि श्री हरिवंशराय की आत्मकथा चार खंडों में प्रकाशित हुई है। इसे साहित्य में बड़ी ईमानदारी से लिखी आत्मकथा माना जाता है। विशेषज्ञों की राय है कि वे अपनी आत्मकथा के लिए अपने काव्य से भी अधिक जाने जाएंगे। अनेक दशकों बाद भी साहित्य में उनका स्थान 'क्या भूलूं, क्या याद करूं', 'नीड़ का निर्माण फिर' और 'प्रवास की डायरी' के लिए याद किया जाएगा। 
 
Source: What To Show - What To Hide - How To Say ? Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 3rd December 2013 

इन महत्वपूर्ण पुस्तकों में अनेक प्रसंग ऐसे हैं जिन पर अनेक स्वतंत्र फिल्में गढ़ी जा सकती हैं। मसलन कर्कल प्रसंग पर किशोरवय की महान फिल्म बन सकती है। उनके जीवन के श्यामा प्रसंग पर एक कवि के मन की यात्रा पर स्वतंत्र फिल्म बन सकती है। इसी तरह तेजी बच्चन से उनकी प्रेम कहानी भी कम रोचक नहीं है। महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि क्या अमिताभ बच्चन सचमुच यह चाहते हैं कि हरिवंश राय बच्चन की साफगोई परदे पर जस की तस प्रस्तुत हो या वे इस फिल्म को केवल प्रशंसा गीत के रूप में गढ़े जाने के पक्ष में हैं? हरिवंशजी में लिखने का जो साहस था क्या वह अमिताभ बच्चन में परदे पर प्रस्तुत करने का है? क्या अमिताभ बच्चन कभी हरिवंशजी की तरह पूरी साफगोई से अपनी आत्मकथा लिख पाएंगे? यह संभव नहीं लगता। बात महज लेखकीय प्रतिभा की नहीं, वरन साफगोई की है।

अमिताभ बच्चन ने अपनी विराट सितारा हैसियत बहुत लंबे संघर्ष और अनुशासन से प्राप्त की है। परंतु यह हैसियत ही उन्हें कुछ व्यक्तिगत मामलों में कमजोर बनाती है। यह स्वाभाविक भी है कि मनुष्य उम्रभर की कमाई किसी एक साफगोई वाले क्षण के लिए समाप्त नहीं कर पाता। कोई भी पुत्र अपने पिता के जीवन के गोपनीय क्षणों को सार्वजनिक रूप से उजागर नहीं कर सकता। साफगोई एक विलक्षण आदर्श है और जीवन में दुनियादारी का निर्वाह एक अलग बात है। यह भी गौरतलब है कि हरिवंशराय बच्चन का विकास महात्मा गांधी के प्रभाव कालखंड में हुआ है। वह कालखंड सभी क्षेत्रों में प्रतिभा के आणविक विस्फोट का कालखंड था। साफगोई और साहस उस कालखंड के केंद्रीय भाव थे। परंतु अमिताभ बच्चन का संघर्ष और विकास अन्य काल खंड में हुआ है जिसे मोटे तौर पर इंदिरा का कालखंड कह सकते हैं। अमिताभ बच्चन के पास विलक्षण अभिनय प्रतिभा है परंतु लेखन प्रतिभा और अभिनय प्रतिभा में अंतर है। लेखन की गंभीर शर्त उजागर होने की है और अभिनय में जो आप अपने जीवन में नहीं हैं, वह दिखाने का क्षेत्र है। एक में उजागर होना अनिवार्य शर्त है। दूसरे में स्वयं को छुपाकर महज पात्र की भावना का प्रस्तुतीकरण अनिवार्य माना जाता है। दरअसल हरिवंशजी और अमिताभ दो अलग-अलग व्यक्ति हैं। उनके कालखंड तथा जीवन मूल्य अलग-अलग हैं। गुरुदत्त और किशोर कुमार की बायोपिक बनाए जाने की चर्चा हम लंबे समय से सुन रहे हैं। परंतु अभी तक कोई ठोस काम नहीं हुआ है। अत: हम अमिताभ बच्चन की बायोपिक की कल्पना किस तरह कर सकते हैं। दरअसल, इस खेल में प्राय: मनुष्य की लोकप्रिय छवि ही बायोपिक में प्रस्तुत की जाती है। जैसे 'मेरा नाम जोकर' राजकपूर की लोकप्रिय छवि का प्रस्तुतीकरण थी, जबकि असल राजकपूर कहीं अधिक रोचक व्यक्ति थे।

सुर्खियां भी हैं कि परेश रावल नरेंद्र मोदी की बायोपिक करेंगे। इंकार नहीं किया जा सकता कि अगर इस तरह की बायोपिक बनती है तो वह मात्र छवि को प्रस्तुत करेगी। मनुष्य तब भी उजागर नहीं होगा और यह बात केवल मोदी तक ही सीमित नहीं है। दरअसल प्राय: आत्मकथाएं काल्पनिक होती हैं। मनुष्य अवचेतन की कंदरा में बहुत गहरा अंधकार होता है और चंद मुलाकातों या साक्षात्कारों के जुगनू जैसे मध्यम प्रकाश से उस गहन सघन अंधकार को तोड़ा नहीं जा सकता।


एक्स्ट्रा शॉट...

राजकपूर 'आवारा' में अपने किरदार के लिए 'चार्ली चैपलिन ऑफ इंडियन सिनेमा' कहे जाने लगे थे।

 

































Source: What To Show - What To Hide - How To Say ? Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 3rd December 2013

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