Tuesday, April 22, 2014

Inappropriate System Derails the Purpose of Any Work - Management Funda - N Raghuraman - 22nd April 2014

अनुचित व्यवस्था नतीजों को पटरी से उतार देती है


मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन


रोजा फिल्म के हीरो अरविंद स्वामी। उन्हीं के जैसे नाम वाले एक और अरविंद स्वामी। दोनों चेन्नई की एक ही पॉश कॉलोनी में रहते हैं। लेकिन एक फर्क है। हीरो अरविंद स्वामी बड़े बंगले में रहते हैं। और दूसरे अरविंद स्वामी टीन शेड में। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि दोनों के आर्थिक हालात में काफी फर्क है। 
 
दूसरे वाले अरविंद का पेशा भी अलग है। वे प्लंबर हैं। लेकिन वे नहीं चाहते कि उनके बच्चे भी इस पेशे में आएं।उनका सपना है कि उनके दोनों बच्चे पढ़-लिखकर कोई बड़ा काम करें। इसीलिए उन्होंने दोनों का राइट टु एजुकेशन (आरटीई) से मिले रिजर्वेशन के जरिए एक बड़े स्कूल में दाखिला दिलाया। 
 
पहले साल तो वे खुश थे। लेकिन अब परेशानी में हैं। उनके बच्चों को स्कूल ने पिछले साल मुफ्त शिक्षा दी। आरटीई के तहत सभी गैरसरकारी सहायता प्राप्त निजी स्कूलों को गरीब बच्चों के लिए 25 फीसदी सीटें रिजर्व रखनी हैं। 
 
Source: Inappropriate System Derails the Purpose of Any Work - Management Funda By N Raghuraman - Bhaskar.com 22nd April 2014 
 

Monday, April 21, 2014

It's Easy to Decide When You Know Your Goals - Management Funda - N. Raghuraman - 21st April 2014

अपनी जगह पता है तो फैसला करना आसान है

 

मैनेजमेंट फंडा - एन। रघुरामन



पिछले सप्ताह गुरुवार को दिल्ली के एक पब्लिक स्कूल के 12वीं कक्षा के बच्चे को अमेरिका की सात यूनिवर्सिटियों से दाखिले का ऑफर मिला। कोलकाता के रहने वाले इस बच्चे ने सैट (स्कॉलस्टिक एप्टीट्यूड टैस्ट) में 100 फीसदी अंक हासिल किए थे। 

अमेरिका के कॉलेजों में एडमिशन के लिए यह टेस्ट लिया जाता है। अरुणव चंदा ने आठ अमेरिकी यूनिवर्सिटियों के लिए एप्लाई किया था और उसे सात से ऑफर मिला। इनमें हार्वर्ड, स्टैनफोर्ड, कोलंबिया, ड्यूक, कॉर्नेल, जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और डार्टमाउथ कॉलेज शामिल हैं। 

अरुणव को कोलंबिया और ड्यूक से प्रतिष्ठित स्कॉलरशिप भी ऑफर की गई। ड्यूक ने तो उसे कार्श इंटरनेशनल स्कॉलरशिप का ऑफर दिया, जो भारत के किसी छात्र को पहली बार मिला है। अंडरग्रेजुएट कोर्स के लिए अमेरिका में विदेशी छात्र का स्कॉलरशिप हासिल करना बेहद मुश्किल है, क्योंकि वहां की यूनिवर्सिटी ऐसे स्टूडेंट ढूंढती हैं जो सैट में सबसे ज्यादा अंक हासिल करें। 

Source: It's Easy to Decide When You Know Your Goals - Management Funda By N. Raghuraman - Bhaskar.com 21st April 2014 

Wednesday, April 16, 2014

There Are Few Gifts Which Cannot Be Bought With Money - Management Funda - N Raghuraman - 16th April 2014

कुछ उपहार ऐसे होते हैं जो पैसों से नहीं खरीदे जा सकते


मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन



उप्र के प्रतापगढ़ की रामकुमारी यादव को पता नहीं था कि उन्हें कहां जाना है। उन्हें तो बस भीतर से कोई
आवाज सुनाई दी कि घर छोड़ दो और उन्होंने यही किया। टे्रन के अनरिजव्र्ड कंपार्टमेंट में जा बैठीं। वह भी बिना टिकट। टे्रन जहां ले जा रही थी, वे भी वहीं चली जा रही थीं। कोई मंजिल नहीं थी। भूख लगने पर खाना भी उन्हें साथी यात्री दे रहे थे। एक दिन बाद ट्रेन चेन्नई पहुंची तो वे वहीं उतर गईं। 

दिलोदिमाग स्थिर नहीं था इसलिए पहचान तक भूल चुकी थीं। शहर की एक व्यस्त सड़क पर अचानक उन्हें दौरे पडऩे लगे। वे चीखने लगीं। साड़ी फाडऩे लगीं। खुशकिस्मती से उन्हें दो लड़कियों- वंदना गोपीकुमार व वैष्णवी जयकुमार ने देख लिया। दोनों मेडिकल साइकाइट्रिक सोशल वर्क की स्टूडेंट थीं। इन्होंने रामकुमारी को दिलासा दी और उन्हें अपने साथ ले लिया। 

Source: There Are Few Gifts Which Cannot Be Bought With Money - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 16th April 2014  

Life of Prem Chopra - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 16th April 2014

प्रेम चोपड़ा की पठनीय जीवनी


परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे 


राजकपूर पर उनकी पुत्री श्रीमती रितु नंदा ने किताब लिखी, विगत वर्ष राकेश रोशन की बेटी सुनयना ने उन पर किताब लिखी और अब श्रीमती राकिता नंदा ने अपने पिता प्रेम चोपड़ा पर किताब लिखी है। किसी भी फिल्म उद्योग के व्यक्ति पर उनके पुत्रों ने किताबें नहीं लिखी हैं, केवल पिता के यश और धन पर उनका अधिकार रहा है परंतु पुत्रियों के मन में माता-पिता की छवि हमेशा कायम रहती है। 
 
इन तथ्यों के बावजूद पुत्र जन्म के लिए प्रार्थनाएं होती हैं, उपवास किए जाते हैं और वंश की निरंतरता नामक भरम के लिए लाख जतन किए जाते हैं। भला हो पंडित जवाहरलाल नेहरू का जिन्होंने भारी विरोध के बावजूद एक कानून 1956 में बनाया जो पुत्रियों को भी पिता की संपत्ति में समान अधिकार देता है। 
 
इस कानून के विरोधियों ने एक ही स्वर में हजारों सालों की परम्परा की दलील दी थी। दरअसल कठिनाई यह है कि भारत में किसी भी कानून से समाज नहीं सुधरता क्योंकि समाज सुधार की प्रक्रिया दृष्टिकोण में परिवर्तन के आधार पर निर्भर करती है। 
 
Source: Life of Prem Chopra - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 16th April 2014

Tuesday, April 15, 2014

You Have To Be Serious To Make People Laugh - Management Funda - N Raghuraman - 15th April 2014

अगर आप हंसाना चाहते हैं तो इस तरफ गंभीर हो जाएं


मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन 


कई लोगों की तरह उसके पिता भी शराब पीने के आदी थे। इससे वह दुखी रहता था, लेकिन दुख किसी पर जाहिर नहीं होने देता। उसके जान-पहचान वाले जब भी मिलते वह उन्हें चुटकुले सुनाता। लोग हंसते और वह भी। महज पांच साल की उम्र से वह चुटकुले सुनाकर लोगों का हंसाने लगा था। यह विधा भी उसके भीतर एक दुर्घटना की वजह से आई। 

एक बार उसकी मां स्टेज पर गा रही थीं। गाते-गाते अचानक उनकी आवाज चली गई। सामने बैठे लोगों ने हल्ला शुरू कर दिया। उन्हें संतुष्ट करने के लिए कार्यक्रम के आयोजकों ने जबरन बच्चे को स्टेज पर धकेल दिया। उसने जैसे-तैसे गाना गया। लेकिन ज्यादा असर नहीं हुआ। सो, उसने कुछ ऐसे कारनामे शुरू कर दिए जिससे लोग हंसने लगे।

इस घटना के बाद उसकी मां की आवाज कभी वापस नहीं आ सकी। इसी बीच शराबी पिता की मौत हो गई। इससे मां की हालात इतनी खराब हो गई कि उन्हें मानसिक अस्पताल तक ले जाना पड़ता था। कुल मिलाकर उस बच्चे का पूरा बचपन इसी तरह की मुश्किलात में बीता। बाद में कॉमेडी और एक्टिंग की मार्फत उसका बहादुर चेहरा दुनिया के सामने था। 

Source: You Have To Be Serious To Make People Laugh - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 15th April 2014

Shuddhi vs Bajirao Mastani - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 15th April 2014

शुद्धि बनाम बाजीराव मस्तानी


परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे 


स समय शायद हर क्षेत्र में छाया युद्ध लड़े जा रहे हैं और खूंखार लोग चीखते-चिंघाड़ते एक दूसरे पर आक्रमण करने की मुद्रा में नृत्य कर रहे हैं, जिसे आप 'डांस ऑफ डेमोके्रसी' कह सकते हैं। फिल्म उद्योग में ऐसा ही एक छाया युद्ध करण जौहर और संजय भंसाली के बीच बताया जा रहा है और मुद्दा है 2015 की क्रिसमस की छुट्टियों में जौहर की 'शुद्धि ' और भंसाली की 'बाजीराव मस्तानी' का प्रदर्शन। 

मजे की बात यह है कि अभी इन फिल्मों की शूटिंग प्रारंभ होना तो दूर की बात कॉस्टिंग भी फाइनल नहीं है। करण के पास संभवत: दीपिका पादुकोण है तो भंसाली के पास रणवीर सिंह है तथा उन्हें उम्मीद है कि दीपिका भी आ जाएगी। ज्ञातव्य है कि ऋतिक रोशन ने 'शुद्धि' छोड़ दी है और करीना हटा दी गई हैं। यह फिल्म उद्योग में नई रीत शुरू हुई हैं कि पहले छुट्टियों वाले सप्ताह को चुन लेते हें और प्रदर्शन तिथि तय करने के बाद बैकवर्ड प्लानिंग करते हैं कि अगर 20 दिसंबर को प्रदर्शन है तो एक दिसंबर को सेंसर कराना है और एक नवंबर से डीआई कराना है। 

Source: Shuddhi vs Bajirao Mastani - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 15th April 2014