Thursday, October 31, 2013

Wiseman Judges Truth Before Taking Decisions - Management Funda - N Raghuraman - 31st October 2013

बुद्धिमान फैसला लेने से पहले सच देखते हैं..

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन



चेन्नई की साउथ इंडिया पेट्रो केमिकल्स में ह्यूमन रिसोर्स डायरेक्टर हैं आर. नारायणन। उन्हें ऐसे व्यक्ति के तौर पर जाना जाता है जो कभी बकवास नहीं करते। यहां तक कि उनसे उनकी सेकेट्ररी अगर दीपावली के मौके पर घर में दिए जलाने के लिए दो घंटे की छुट्टी मांगे तो वे नहीं देते। लोग उन्हें नियम-कायदों का सख्ती से पालन करने वाले के तौर पर जानते हैं। और जब किसी कर्मचारी की जरूरत का मामला हो तो वे उसकी मदद के लिए एक महान व्यक्ति के तौर पर भी सामने आते हैं। वे मैनेजमेंट के सबसे विश्वासपात्र व्यक्ति हैं। और पिछले आठ साल से इस पद पर हैं।नारायणन की सेक्रेटरी का नाम कल्पना है। सात महीने की गर्भवती है। इसके बावजूद वे उसे हर पांच मिनट में कोई न कोई फाइल लेकर आने के लिए आवाज देते हैं। 

Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 31st October 2013

Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 31st October 2013

 






































































Source: Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 31st October 2013

Wednesday, October 30, 2013

New Generations Maturity Depends On Their Upbringing - Management Funda - N Raghuraman - 30th October 2013

परवरिश पर निर्भर है नई पीढ़ी की मैच्योरिटी

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन 


सुरेश कृष्णन मुंबई के सामाजिक कार्यकर्ता हैं। एक बार जब वे मंदिर से बाहर निकल रहे थे तो उन्हें उनके घर में काम करने वाली पूर्व नौकरानी मिल गई। बोली, ‘मालिक क्या आपने मुझे पहचाना?’ सुरेश ने जवाब दिया, ‘हां निर्मला! कैसी हो? बच्चे कैसे हैं?’ दो साल पहले तक निर्मला उनके घर काम करती थी। लेकिन जब नगर निगम में काम करने वाले उसके पति की मौत हो गई तो उसने काम छोड़ दिया। सुरेश का सवाल सुनकर निर्मला ने हाथ जोड़ लिए। कहने लगी, ‘मालिक मुझे अब तक मेरे पति की मौत का मुआवजा नहीं मिला। लेकिन मुझे आपसे अपनी बेटी रेवती के लिए मदद चाहिए। उसने 10वीं की बोर्ड परीक्षा में 700 में से 675 नंबर लाए हैं। अब वह 11वीं कक्षा में एडमिशन लेना चाहती है। डॉक्टर बनना चाहती है। आप अगर उसे आगे की कक्षा में किसी अच्छे प्राइवेट स्कूल में एडमिशन दिलाने में मदद करें तो बड़ी मेहरबानी होगी।’ उसने बताया कि सभी स्कूल रेवती को लेने के लिए तैयार हैं, लेकिन प्राइवेट स्कूल की फीस भरना उसके बस में नहीं। निर्मला आगे बता रही थी, ‘मैं पांच घरों में काम करके किसी तरह अपनी रसोई चलाती हूं।

Source: New Generations Maturity Depends On Their Upbringing - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 30th October 2013    

Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 30th October 2013









































































Source: Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 30th October 2013

Tuesday, October 29, 2013

Good Thoughts Always Wins Over Bad Thoughts - Management Funda - N Raghuraman - 29th October 2013

अच्छे और बुरे के घालमेल में अच्छाई ही जीतती है 

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन


इसी पितृपक्ष की बात है। मैं अपने बुजुर्ग अंकल और आंटी को वाराणसी से बेंगलुरू छोड़कर मुंबई लौट रहा था। मेरे साथ गंगा जल का एक पात्र भी था। लेकिन उसे मुंबई तक लाने में मुझे जो परेशानी हुई वह बेहद भयावह थी। मुझे हर एयरपोर्ट पर इसके बारे में सुरक्षा अधिकारियों को सफाई देनी पड़ी। बेंगलुरू से मुंबई के लिए निकलते वक्त एयरपोर्ट पर देखा कि वहां धार्मिक महत्व की चीजों की बड़ी दुकान है। इनमें चंदन से बनी कई चीजें भी हैं। अगरबत्ती भी। तीन सौ अगरबत्तियों का एक पैकेट 225 रुपए में मिल रहा था। 
 
 Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 29th October 2013

Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 29th October 2013






































































Source: Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 29th October 2013

Monday, October 28, 2013

Grow Vegetables to Keep Yourself Healthy - Management Funda - N Raghuraman - 28th October 2013

स्वस्थ रहना है तो आप जो खाना चाहते हैं, उसे उगाए

मैनेजमेंट फंडा - एन .  रघुरामन

बाजार में बिक रही सब्जियां दिखने में कितनी ही अच्छी क्यों न हो, सभी ताजा नहीं होतीं। उनमें से सभी स्वास्थ्यकर भी नहीं होती। यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेस (यूएएस) के विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों का दावा है कि बाजार में उपलब्ध तकरीबन आधी हरी और ताजा सब्जियां घटिया होती हैं। इन सब्जियां के लिए ज्यादातर गंदा पानी इस्तेमाल होता है, इसलिए उनमें साल्मोनेला और बैक्टीरिया भी हो सकते हैं। यह एक गंभीर बीमारी के तौर पर विकसित हो सकते हैं। ऐसे में भारी-भरकम खर्च करने के बाद कोई दावे के साथ यह नहीं कह सकता कि सब्जी अच्छी है। हर शहर में कई तरह के मेले और प्रदर्शनियां आयोजित होती है। लेकिन हममें से किसी ने भी कभी यह नहीं सुना होगा कि किसी प्रदर्शनी में हमें बाजार से इन जहरीले सब्जियों को खरीदने से रोकने में मदद की हो। 
 
Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 28th October 2013

Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 28th October 2013

 





































































Source: Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 28th October 2013

Saturday, October 26, 2013

Hire Specialists To Get Desired Results - Management Funda - N Raghuraman - 26th October 2013

नतीजे उम्मीद से ज्यादा चाहिए तो विशेषज्ञों की भर्ती करें

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन 

 

चेन्नई में त्यागराज नगर या टी. नगर भीड़भाड़ वाला इलाका है। इंस्पेक्टर रामा दुरई जानते हैं कि नीला शर्ट पहना व्यक्ति उठाईगिरा है। किसी की भी बेशकीमती वस्तु उड़ा सकता है। वह मोबाइल पर संदिग्ध का हुलिया सादी वर्दी में तैनात पुलिसकर्मियों को देते हैं। ताकि दूरी रखते हुए उसका पीछा किया जा सकें। जैसे ही संदिग्ध अपने मिशन में सफल होता है, तीन मिनट के भीतर पकड़ा जाता है। पुलिस उसे और उसके शिकार को भीड़ से अलग ले जाकर कानूनी कार्यवाही शुरू कर देती है। एक ओर शिकायत दर्ज हो रही है। वहीं दूसरी ओर रामा दुरई एक ट्रैफिक पुलिस कॉन्स्टेबल को निर्देश दे रहे हैं। उपनगर के भीड़भाड़ वाले रंगनाथन स्ट्रीट पर एक परिवार हो-हल्ला कर रहा है। उसे शांत किया जाए। 
 Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 26th October 2013

Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 26th October 2013





























































Source: Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 26th October 2013

Friday, October 25, 2013

Your Passion Leads You to Path of Success - Management Funda - N Raghuraman - 25th October 2013

जुनून ही लेकर जाता है सफलता के रास्ते पर 

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन

उसने 1993 में बेलगाम के पॉलीटेक्निक कॉलेज में पढ़ाई बीच में छोड़ी और कम्प्यूटर सीखा। उस समय कम्प्यूटर कोर्स की फीस 23 हजार रुपए थी। नाइट शिफ्ट में ऑटो रिक्शा चलाया। सुबह क्लास अटेंड की। कम्प्यूटर कोर्स करने के बाद भी उसे नौकरी नहीं मिल रही थी। ऐसे में उसने प्रोसॉफ्ट नाम से खुद का व्यापार शुरू किया। वर्ष 2000 में सलीम लंदुर ने एक कम्प्यूटर के साथ छोटा-सा दफ्तर शुरू किया। किराया था-1500 रुपए।

लोगों ने ज्यादा तवज्जो नहीं दी। लेकिन हाई-एंड सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट को लेकर सलीम जुनूनी था। कुछ ही समय में वह रिटेल विक्रेताओं और जान-पहचान वालों के लिए सॉफ्टवेयर बनाने लगा। धीरे-धीरे पहचान भी बनी। पहला बड़ा काम दिया कर्नाटक के स्वास्थ्य विभाग ने। एक जिले के स्वास्थ्य हालात का विश्लेषण करना था। वर्ष 2009 में इलाके में एक जौहरी की हत्या हुई थी। बेंगलुरू के तत्कालीन कमिश्नर राघवेंद्र औरडकर जानते थे कि यदि उन्होंने उस इलाके से हुए फोन कॉल्स की जानकारी जुटा ली तो वे हत्यारे तक पहुंच सकते हैं। लेकिन फोन नंबर लाखों में थे। आंकड़ों के अंबार से काम की जानकारी निकालना टेढ़ी खीर थी। उन्हें एक आईटी पेशेवर चाहिए था, जो जांच में गति लाने के लिए कुछ चुनिंदा नंबर निकालकर दे सके। विप्रो और इन्फोसिस जैसी बड़ी आईटी कंपनियों के लिए यह काफी छोटा काम था। उनके लिए इन्वेस्टमेंट के मुकाबले रिटर्न भी ज्यादा नहीं था। पुलिस के कुछ सूत्रों के जरिए कमिश्नर लंदुर तक पहुंचे।

उन्हें सीडीआर सॉफ्टवेयर बनाने को कहा। वे कॉल डिटेल रिकॉर्ड का एनालिसिस करने के लिए सिस्टम चाहते थे। ऐसा सिस्टम जो बातचीत के तरीके, गतिविधियां, भौगोलिक स्थिति का विश्लेषण करने के साथ ही सोशल नेटवर्किग साइट्स से भी जुड़ा हो, ताकि संदिग्धों के नाम और टेलीफोन नंबरों का पता लग सके। सलीम ने काफी कम समय में यह सॉफ्टवेयर बनाकर तैयार कर दिया। इसकी मदद से जौहरी के हत्यारे पकड़े गए। उसके बाद से अब तक पुलिस इस सॉफ्टवेयर से कई जटिल मामले भी सुलझा चुकी है। उसके सॉफ्टवेयर ने ही 2008 में हुबली में बम ब्लास्ट के पेंडिंग केस को भी सुलझाया। सलीम रातोंरात डीजीपी, फोरेंसिक लैबोरेटरी और अन्य जांच एजेंसियों की नजर में चढ़ गया। उन्होंने उससे अपनी जरूरत के मुताबिक सॉफ्टवेयर बनवाना शुरू किया। चार वर्षो के सतत रिसर्च एंड डेवलपमेंट की बदौलत आज उसके सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर्नाटक के अलावा बिहार, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और गुजरात की पुलिस भी कर रही है। प्रोसॉफ्ट सी5 सीडीआर एनालाइजर का 4.0 वर्जन आ चुका है। यह सॉफ्टवेयर अरबों जानकारियों का विश्लेषण कुछ ही सेकंड में कर लेता है। कॉल्स की जानकारी के साथ ही मोबाइल की टॉवर लोकेशन भी बताता है। इससे संदिग्धों का मूवमेंट भी पता चलता है। पहले सिर्फ कुछ ही पुलिस अधिकारी जांच के लिए सीडीआर का इस्तेमाल करते थे। आज स्थिति बदल गई है। ज्यादातर पुलिसकर्मी हत्यारों को ढूंढने के लिए इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे उन्हें संदिग्धों का डिजिटल फुटप्रिंट मिलता है। हर टॉवर से होने वाले लाखों फोन कॉल्स में से संदिग्ध तक पहुंचने में मदद मिलती है।

फंडा यह है कि..

यदि आपमें किसी खास क्षेत्र को लेकर जुनून है तो उसे आखिर तक कायम रखें। देखेंगे कि आप सफलता के रास्ते पर चल पड़े हैं। लेकिन ध्यान रहे कि सिर्फ जुनून ही आपको शिखर पर लेकर जा सकता है।

















Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 25th October 2013

Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 25th October 2013

 









































































 Source: Parde Ke Peeche By - Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 25th October 2013

Thursday, October 24, 2013

What's your Strategy to Counter the Competitive Crowd ? - Management Funda - N Raghuraman - 24th October 2013

प्रतिस्पर्धियों की भीड़ में आपकी रणनीति क्या है?

मैनेजमेंट फंडा - एन.  रघुरामन

आप जब भी कुछ नया करना चाहते हैं तो क्या बिल गेट्स के बारे में सोचते हैं? या फिर सिलिकॉन वैली, इन्फोसिस, स्टीव जॉब्स? और कुछ नहीं तो किसी टेक्नोसेवी दोस्त के बारे में ही? ज्यादातर लोग शायद ऐसा सोचते होंगे। लेकिन सच ये है कि उदयपुर में झील किनारे एक कुर्सी की दुकान लगाने वाले नाई और हरियाणा के अंबाला में पानी-पुरी बेचने वाले के पास भी ढेरों आइडिया होते हैं। ऐसे आइडिया जो ग्राहकों की उम्मीद के करीब होते हैं। मिसाल मौजूद हैं। उदयपुर में झील किनारे नाई की दुकान है। सिर्फ एक कुर्सी वाली दुकान। नाम है, ‘लेक व्यू सैलून।’ इस दुकान को चलाने वाला कभी खाली नहीं बैठता। चेतक सर्कल पर स्थित मयूर ब्यूटी सैलून चलाने वाला नाई शहर के बड़े पार्लरों में जाता रहता है। ताकि खुद को नई तकनीक से अपडेट करता रहे। ऐसे ही अंबाला में गैलेक्सी मॉल के पीछे तरफ श्रीराम चाट भंडार है। जब तक दुकान खुली रहती है, यहां भीड़ कम नहीं होती। इसके गोलगप्पे काफी मशहूर हैं। एक प्लेट में सात गोलगप्पे मिलते हैं। हर एक में वही मसाला। लेकिन पानी अलग-अलग। लोगों की पसंद के मुताबिक, किसी के लिए जीरे का तो किसी को पुदीने वाला। कब किसका नंबर आएगा इसकी जानकारी बोर्ड पर लगाई जाती है। उसके हिसाब से गोलगप्पे सर्व किए जाते हैं। 

Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 24th October 2013

Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 24th October 2013

 
























































Source:Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 24th October 2013

Wednesday, October 23, 2013

LocalBanya - Mumbai's very own Online Grocery Store

मुंबई का बनिया अब बन गया - लोकलबनिया

अपूर्व सक्सेना - जयपुर 

 

क्या आपने कभी मॉल में परचून का सामान (ग्रोसरी) खरीदा है ? जी हाँ ज़्यादातर लोगों ने किसी न किसी बड़े मॉल में मिलने वाले घर के खाने पीने के सामान की स्कीम्स का लाभ भी उठाया होगा पर कभी ये सोचा है की आप चाहे पचासियों सामान ले या फिर एक सामान , लाइन में खड़ा होना एक ऊंचे पाहड को पार करने के समान है। ये आपके उस गुनाह की सज़ा है जो आपको इन मन लुभावन स्कीम्स को पाने के लिए आपको इन मॉल्स तक खींच लाती है, कहना गलत नहीं होगा। ये कहना भी गलत नहीं होगा की उस समय आपके मन में कई ऐसे विचार आतें होंगे कि काश कोई डिपेंडेबल ऑनलाइन परचूनिये या किराना स्टोर होता जो आपकी ये लाइन में खड़े होने की प्रॉब्लम घर बैठे ही सॉल्व कर देता, है न ? 
 
स्रोत : www.localbanya.com
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में इन्टरनेट की सुविधा और शहरों से काफी अच्छी है और मुंबई के लोग दिनोदिन इन्टरनेट के प्रती काफी जागरूक होते जा रहे है। वैसे तो ऑनलाइन किराना स्टोर की ज़रुरत काफी समय से महसूस की जाती रही है और मुझे ये बात आपसे शेयर करते हुए बड़ी ख़ुशी हो रही है की कोई है जिसने इस आईडिया को गंभीरता से लिया और अपने ऑनलाइन किराना स्टोर को स्थापित भी कर लिया है। मैं बात कर रहा हूँ लोकलबनिया के बारे में।

लोकलबनिया मुंबई का पहला ऑनलाइन किराना स्टोर है जहां आपको आपकी ज़रुरत की सभी चीज़ें आकर्षक दामों पर घर बैठे मिलती है। आपको सभी उत्पाद डिस्काउंटेड रेट्स पर मिलतें है और साथ ही साथ फ्री होम डिलीवरी भी। चौंक गए न ? चौंकिए मत अब ऐसी सेवा मुंबई में अपने पूरे जोरो पर चल रही है। 
 

Every Coin Has Two Sides - Management Funda - N Raghuraman - 23rd October 2013

हर सिक्के के दो पहलू होते हैं

यह 1990 की बात है। मौजूदा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तब देश के वित्त मंत्री थे। आर्थिक सुधारों को लेकर अपने दृष्टिकोण के संबंध में सिंह संसद में अपना बजट भाषण दे रहे थे। उसी दिन ठाणो रेलवे स्टेशन पर छह साल का गणोश धांगड़े रेलयात्रियों की भीड़ में अपने कक्षा के अन्य साथियों से बिछड़ गया। वह अकेले गलत ट्रेन में चढ़ गया और दूसरे स्टेशन पहुंच गया। प्लेटफॉर्म पर उसने तीन दिन गुजारे। तभी एक मछुआरे और उसकी पत्नी की नजर उस पर पड़ी। वे गणोश को साथ ले गए। बाद में उस दंपती के बेटे के साथ उसने ट्रेन में भीख मांगना शुरू कर दिया। अभी भीख मांगते हुए गणोश को दूसरा दिन ही था कि एक कार ने सड़क पर उसे टक्कर मार दी। उसे सिर में गंभीर चोट लगी। कुछ लोगों ने उसे सरकारी अस्पताल पहुंचाया। चोट की वजह से उसकी याददाश्त कम हो गई। 

Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 23rd October 2013

Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 23rd October 2013










































































Source: Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 23rd October 2013

Monday, October 21, 2013

Be Sensitive to Others Feelings - Management Funda - N Raghuraman - 21st October 2013

 दूसरों के जज्बात के लिए संवेदनशील होकर देखें..

 मैनेजमेंट फंडा - एन रघुरामन


जगह मुंबई एयरपोर्ट, समय: सुबह 5:30 बजे। सिक्योरिटी क्लियरेंस की लाइन पर एक यात्री सुरक्षाकर्मी के सामने जोर-जोर से किसी बात पर चिल्ला रहा था। बैगेज टैग के लिए। सुरक्षाकर्मी ने जवाब दिया, ‘बैगेज टैग लगाना हमारा काम नहीं। हम सर्फ उन लोगों की मदद करते हैं जो शारीरिक रूप से सक्षम नहीं होते। आपका व्यवहार हमें उससे भी रोक देगा।’ यात्री ने जवाब, ‘यह आपकी इच्छा है।’ वह आगे बढ़ गया, लेकिन इस बहस ने उस सुरक्षाकर्मी का दिन खराब कर दिया। वह अगले यात्रियों से बड़ी रुखाई से पेश आ रहा था। मेरी बारी आई तो मैंने सबसे पहले उस जवान की सख्ती के लिए उसकी तारीफ की। फिर उससे कहा कि एक यात्री की वजह से वह अपना दिन क्यूं खराब कर रहा है। उसके चेहरे पर मुस्कान तैर गई। जगह: एयरपोर्ट का प्रतीक्षालय। यहां न्यूज पेपर के सात स्टैंड हैं। हर एक में आठ रैक हैं। सिर्फ एक में दो दिन पुराना बिजनेस अखबार पड़ा है। करीब 17 यात्री न्यूज पेपर स्टैंड के पास आते हैं। 


 Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 21st October 2013

Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 21st October 2013












































































Source: Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 21st October 2013

Saturday, October 19, 2013

SellMojo - Set Your Online Store on Facebook for Free

 सैलमोजो - अब अपना ऑनलाइन स्टोर बनाइये फेसबुक पर 

 अपूर्व सक्सेना - जयपुर 

सैलमोजो एक सोशल कॉमर्स कंपनी है जिसकी शुरुआत तीन ऐन्त्रेप्रेन्यूर्स ( 3 Entrepreneurs ) ने एक मकसद के साथ की थी और वो है ऑनलाइन शौपिंग का एक ऐसा स्टोर जिस पर आप सिर्फ ६० सेकंड में खरीदारी कर सके। 

स्रोत : www.sellmojo.com
ये एक बड़ा ही यूनिक एप्लीकेशन है जो उन छोटे व्यापारियों या मर्चेंट्स को अपनी एक छोटी ऑनलाइन स्टोर, उनके अपने फेसबुक पेज पर खोलने की आजादी देता है, जहां पर १ बिलियन से ज्यादा फेसबुक यूसर्स बिना अपने सोशल नेटवर्क को छोड़े इन ऑनलाइन स्टोर्स पर कोई भी प्रोडक्ट देख या खरीद सकतें है।

Focus on one work gives you bette results - Management Funda - N Raghuraman - 19th October 2013

एक काम पर फोकस करने से अच्छे नतीजे मिलते हैं

मैनेजमेंट फंडा - एन रघुरामन

जालंधर के एक अग्रणी प्रकाशन हाउस में अजय छाबड़ा जनरल मैनेजर (प्रोडक्शन) हैं। अजय की खासियत है, बल्कि विशेषज्ञता है कि वे टीवी देखते हुए, फोन पर बात करते हुए, मैगजीन के पन्ने पलटते हुए भी ट्वीट कर लेते हैं। हालांकि आजकल इस तरह की विशेषज्ञता और भी कई लोग रखते होंगे, लेकिन फिर भी यह काबिले गौर है। मुझे और अजय को एक बार जालंधर से अमृतसर जाना था। सुबह 10.30 बजे हम निकले। लेकिन रास्ते में अजय को अहसास हुआ कि वे अपने लैपटॉप का चार्जर और कुछ जरूरी कागजात भूल आए हैं। हालांकि वे अपनी कंपनी के सबसे सक्षम अधिकारी माने जाते हैं। लेकिन मैं साफ देख रहा था कि वे किसी विषय विशेष पर अपना फोकस खोते जा रहे हैं। वे अपने दिमाग को व्यव-स्थित नहीं रख पा रहे हैं। यही नहीं उनकी निजी जिंदगी भी प्रभावित हो रही है। कई वजह हो सकती हैं इसकी, लेकिन एक सबसे अहम है। अजय जैसे लोग आजकल कम समय में बेहतर और ज्यादा काम करने का लक्ष्य बना लेते हैं। वे अपने दिमाग को इसी तरह प्रशिक्षित करते हैं। यह काफी मुश्किल होता है। 
 
Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar - 19th October 2013

Shahid - A Document of Human Compassion - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 19th October 2013

 























































































Source: Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 19th October 2013

Friday, October 18, 2013

विशबर्ग - आज आपकी इच्छा क्या है ?

  अपूर्व सक्सेना - जयपुर
इस दुनिया में हर एक इंसान की कोई न कोई एक इच्छा ज़रूर होती है।
बिना इच्छा किये इंसान आगे ही नहीं बढ़ सकता। दुनिया में लोग कई ऐसे चाहने वाली इच्छाएं को पाने के लिए पूरी जी जान से पीछे पड जाते हैं, कुछ अपनी इच्छाओं को पा लेते और कुछ नहीं ! पर, विशबर्ग के साथ, आप वो सब कर सकतें जो आप करना या पाना चाहतें हैं, विशबर्ग एक ऐसी सोशल मीडिया साईट है जहां आप अपनी ज़िन्दगी की एहम इच्छाओं की एक विश लिस्ट तैयार कर सकतें है। 
स्रोत : www.wishberg.com
 विश्बर्ग एक वो ख़ास जगह है जहां आप अपनी विश लिस्ट दूसरों के साथ शेयर कर सकतें हैं , आपकी विश लिस्ट आपके पसंदीदा मर्चनडायस भी हो सकती है, बस अपनी विश शेयर कीजिये और आप पायेंगे की आप जैसे कई अन्य लोग भी अपनी अपनी विश को पूरा करना चाहते है . ये बहुत ही सरल, आसान और मज़े का कांसेप्ट है , विश्बर्ग पर आपके सोशल ग्राफ पर, दिए लोगो के अनुभव और उनके सोशल रिव्यूज़ के आधार पर आप अपनी विश को पूरा करने या न करने का मन बना सकतें है और इसके उलट लोग आपकी रिव्यूज़ पर भी अपने विचार प्रकट कर सकतें है.

Problem Solving Is Possible - Management Funda - N Raghuraman - 18th October 2013

मौसम का पूर्वानुमान देने वालों को 29 अक्टूबर 1999 में अपना चेहरा छिपाने की जगह नहीं मिल रही थी। उस वक्त देश के पूर्वी तट पर आए तूफान को लेकर उनके सारे पूर्वानुमान गलत साबित हुए थे। करीब 12 घंटे पहले इस तूफान के बारे में बताया गया था कि हवाएं 200 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चलेंगी। लिहाजा तब की ओडिशा सरकार ने तूफान को लेकर ज्यादा गंभीरता नहीं दिखाई, क्योंकि इतनी तीव्रता के तूफान वहां आते रहते हैं। लेकिन तूफान अनुमान से कहीं अधिक भयानक निकला। इसका नतीजा ये हुआ कि 9,885 लोगों को जिंदगी से हाथ धोना पड़ा। तूफान के कारण कई जगह भारी बारिश हुई। ओडिशा के 14 तटीय जिलों में करीब 45 से 95 सेंटीमीटर तक। इससे बाढ़ की स्थिति बन गई और भारी धन हानि भी हुई। पिछले हफ्ते करीब 14 साल बाद फिर पूर्वी तट को एक और तूफान पाइलिन ने झकझोरा। लेकिन मरने वालों की तादाद महज 36 रही। हालांकि मौत कितनी भी हो, बुरी ही होती है। लेकिन इतने बड़े तूफान के बावजूद यह आंकड़ा इस बात का सबूत है कि पहले की तुलना में अब हालात सुधर गए हैं। तूफान से बचाव के लिए वर्तमान ओडिशा सरकार ने जो बंदोबस्त किया था वह काबिले तारीफ है। 
 
  Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 18th October 2013

Abhishek Kapoor's Side Goes In (Paani) Water - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 18th October 2013

 











































































Source: Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 18th October 2013

Thursday, October 17, 2013

WONOBO - A Tale of Two Brothers from Mumbai to Google Street View

वोनोबो - मुंबई के दो भाईयों के गूगल स्ट्रीट का जवाब !

 अपूर्व सक्सेना - जयपुर

ये दो भाईयों की उस जज़्बे की कहानी है जिसने गूगल जैसी कंपनी को मात दी है। सोल और साजिद मलिक ने एक ऐसी वेबसाइट डेवेलप की है जिसका नाम है वोनोबो । वोनोबो ने भारत के प्रमुख शहरों की सड़कों के असंख्य फोटोज की फोटोग्राफी कर उन फोटोज को एक श्रंखलाबद्ध तरीके से 360 डिग्री का पैनोरमिक दृश्य प्रदान किया है। ये बिलकुल कुछ उसी तरह है जैसे गूगल ने अपने गूगल स्ट्रीट व्यू के ज़रिये विश्व के कई अन्य शहरों में किया है।

स्रोत : (www.wonobo.com)

गूगल जैसी एक विश्वविख्यात कंपनी तक को भारत में इस तरह की सेवा देने में कई सरकारी विभागों से अनुमती नहीं मिल पाने के कारण, अभी तक पापड़ बेलने पड़ रहे है पर मुंबई की इस छोटी सी मैपिंग कंपनी ने कमाल कर दिखाया जिन्होंने भारत के ५४ शहरों को अपने फुटप्रिंट में रखा है, जिसका पूरा श्रेय सोल और साजिद मलिक  को जाता है जिन्होंने अपनी कंपनी जेनेसिस इंटरनेशनल जिसे उन्होंने सन १९९५ में शरू की थी, उसके ज़रिये वोनोबो की शुरुआत १५ अक्टूबर २०१३ को मुंबई में की । ये किसी भी स्टार्टअप कंपनी के लिए एक बड़े फख्र की बात है उसने गूगल जैसी कंपनी पर जीत हासिल की हो ।

जैसा की साजिद मलिक ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया को कहा कि उनकी इस सफलता का श्रेय उनकी पैरेंट कम्पनी को जाता है जिसने भारत सरकार के कई मैपिंग प्रोजेक्ट्स पर कई सालों तक काम किया है और उन्ही की मदद से वोनोबो आज अपने मुकाम पर पहुंचा है।

उन्होंने कहा " सड़कों की फोटोग्राफी करने के लिए सरकार तथा अन्य विभाग जैसे डिफेन्स मिनिस्ट्री और सर्वे ऑफ़ इंडिया ने हम पर कई नियम थोपे पर हमने बड़े ही परिश्रम कर उनकी सभी नियमों की पालना की यहाँ तक की सवेदनशील इलाकों की फोटोग्राफी भी नहीं की " .

एक और बात जो जेनेसिस के लिए फायदे का सौदा हुई और वह है उसका लोकल कम्पनी होना जिसका डाटा लोकल सर्वर्स पर ही होस्टेड है। ये कम्पनी एक सेवा प्रदाता कंपनी है जिसका मुख्य काम नैव्टेक (इलेक्ट्रॉनिक नैवीगेब्ल मैप्स के प्रदाता) नोकिया और बिंग जैसी और अन्य कम्पनीयों के लिए मैपिंग सर्विसेज मुहैया कराना है . जेनेसिस ने दुबई, मक्का और मदीना जैसे शहरों के लिए भी डिजिटल मैप्स बनाएं है.

वोनोबो स्ट्रीट व्यू की सेवाएं अभी भारत के बारह शहरों तक ही सीमित है जिनमे मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरू , चेन्नई , हैदराबाद , अहमदाबाद , सूरत , जयपुर , तटीय गोवा , कोलकाता , आगरा और पुणे शामिल है अगले कुच्छ हफ़्तों बाद भारत के अन्य ४२ शहर इस लिस्ट में जुड़ जायेंगे।

वोनोबो, भारतीय पर्यटन के साथ मिलकर उन टूरिस्ट जगहों को भी दिखाने का प्रबंध कर रहा है जो पर्यटन के हिसाब से बड़ी महत्तवपूर्ण हैं।

वोनोबो ने अपने चित्र काफी उच्च रिज़ॉल्यूशन के खींचे है पर वेबसाइट पर इसके उच्च रिज़ॉल्यूशन को थोडा कम कर दीया गया है क्यूंकि आज भी हमारे देश में इन्टरनेट की स्पीड अन्य देशों के मुकाबले बड़ी कम है। मोबाइल में इस सेवा का आनंद उठाने के लिए इसकी रिज़ॉल्यूशन को और कम रखा जाएगा " हम जल्द ही इसका मोबाइल एप्प बाज़ार में लायेंगे " ऐसा साजिद मलिक कहतें है।

It Is Important To Stay Connected With Past - Management Funda - N Raghuraman - 17th October 2013


पहली कहानी: डॉ. कार्ल फ्रॉस्ट ख्यात इंडस्ट्रियल साइकोलॉजिस्ट और लेखक हैं। 1960 के दशक की बात है। वे नाइजीरिया के एक उपनगरीय इलाके में रहते थे, जहां उस वक्त बिजली बस आई ही थी। गांव के उस घर में एक बल्ब हुआ करता था और उसे तरक्की की निशानी समझा जाता था। रात के समय फ्रॉस्ट और उनके परिवार को खासी परेशानी होती थी। आसपास के कई परिवारों के लोग उनके घर आकर बैठ जाते थे। अचरज से यह देखने के लिए कि बल्ब आखिर जलता कैसे है? फ्रॉस्ट के मुताबिक बिजली के बल्ब ने एक और दिक्कत खड़ी कर दी थी। आदिवासी पहले रात को आग जलाकर नाचते-गाते थे। बड़े-बुजुर्ग वहां छोटों को कहानियां सुनाते थे। लेकिन बिजली आने के बाद वे बल्ब को देखते ही बैठे रहते थे। 
 Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 17th October 2013

Narrow Lanes and Highways - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 17th October 2013

 



















































Source: Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 17th October 2013

Wednesday, October 16, 2013

रोजगार देने वाले बनेंगे या उसे तलाशने वाले - मैनेजमेंट फंडा - एन रघुरामन - 16th October 2013

निजी क्षेत्र की इक्विटी कंपनी एपैक्स पार्टनर्स ने आईआईटी के चार पूर्व छात्रों की बनाई कंपनी ग्लोबल लॉजिक का 420 मिलियन डॉलर यानी 2,578 करोड़ रुपए में अधिग्रहण किया। इस तरह अपैक्स पार्टनर्स इस साल भारत में अधिग्रहण करने वाली सबसे बड़ी कंपनी बन गई। 108 बिलियन डॉलर वाले भारत के आउटसोर्सिग उद्योगों में इस कंपनी का यह दूसरा बड़ा सौदा है। दो साल पहले इसी कंपनी की मदद से आईगेट कॉर्प ने 1.2 बिलियन डॉलर में पाटनी कम्प्यूटर को खरीदा था। ग्लोबल लॉजिक के संस्थापक राजुल गर्ग, संजय सिंह, मनोज अग्रवाल और तरुण उपाध्याय हैं। इस कंपनी की प्रतिद्वंद्विता सिम्फनी टेक्नोलॉजी और परसिस्टेंट सिस्टम्स से है। ये आउटसोर्सड प्रोडक्ट डेवलपमेंट या अनुसंधान व विकास के क्षेत्र में काम कर रही है। ग्लोबल लॉजिक कंपनी तकनीक में महारत रखने वाले भारतीय उद्यमों द्वारा बनाए गए अलग तरह के हाइब्रिड बिजनेस मॉडल का एक उदाहरण है। यह कंपनी कैलिफोर्निया से काम करती है। इसके भारत, यूक्रेन और अर्जेटीना में बड़े डेवलपमेंटल सेंटर्स हैं। कंपनी 2001 में बनी। तब इसका नाम था इंडस लॉजिक। बाद में इसका नाम बदलकर ग्लोबल लॉजिक हुआ।

Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 16th October 2013

Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey -16th October 2013




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Friday, October 11, 2013

बिजनेस के विस्तार के लिए ज़रूरी है लगातार रिसर्च - मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन - 11th October 2013

टी बोर्ड ऑफ इंडिया को यह पता था कि चाय को बेहद पसंद करने वाली देश की आबादी के लिए सुबह की चाय की कीमत बढ़ने वाली है। यदि लगातार शोध नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब लोग सुबह की चाय पीना छोड़ देंगे या मॉर्निग ड्रिंक में कुछ और लेने लगेंगे। देश के हर इलाके में लोग चाय पीना पसंद करते हैं, लेकिन टी बोर्ड इस आशंका से सहमा हुआ था। यह चाय उद्योग के अस्तित्व के लिए खतरा हो सकता था। साल 2008 में उसने आईआईटी, खड़गपुर को नई तकनीकों से लैस ऐसी मशीन तैयार करने को कहा जिससे चाय उत्पादन की लागत काफी कम हो जाए। इसके लिए 3.66 करोड़ रुपए का फंड दिया। प्रोफेसर बिजॉयचंद्र घोष के नेतृत्व में आईआईटी, खड़गपुर के एग्रीकल्चर एंड फूड इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के वैज्ञानिकों की टीम ने लगातार पांच साल की मेहनत के बाद उत्पादन की एक नई मिनी सीटीसी (क्रश, टिअर एंड कर्ल) विधि तैयार की है। इस साल अगस्त में नॉर्थ बंगाल रीजनल आर एंड डी सेंटर ने टी बोर्ड के विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों और चाय उत्पादकों की मौजूदगी में इसके प्रोटोटाइप को मंजूरी दे दी। 


 Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 11th October 2013

Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 11th October 2013

 
































































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Thursday, October 10, 2013

पारदर्शिता लाने के लिये भी उपयोगी है तकनीक - मैनेजमेंट फंडा - एन रघुरामन - 10th October 2013

पुणे के एमआईटी स्कूल ऑफ टेलीकॉम मैनेजमेंट के प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ. मिलिंद पांडे कक्षा में आते हैं। लेक्चर शुरू करने से पहले अपना मोबाइल निकालते हैं। फोन में खास तौर पर डिजाइन किया गया एंड्रॉयड एप्लीकेशन-अटेंडेंस एप है। यह एप्लीकेशन कक्षा के स्मार्ट बोर्ड से जुड़ा है। एप्लीकेशन को चालू करने के बाद डॉ. पांडे कक्षा के सभी स्टूडेंट्स से अपनी उपस्थिति दर्ज कराने को कहते हैं।

कक्षा के बच्चे एक-एक कर अपने मोबाइल फोन के जरिए ही एप्लीकेशन पर क्लिक करते हुए उपस्थिति दर्ज कराना शुरू कर देते हैं। और स्मार्ट बोर्ड पर हर क्लिक के बाद स्टूडेंट का नाम, तस्वीर, और लोकेशन (सीट) नजर आना शुरू। इस एप्लीकेशन में ऐसी व्यवस्था की गई है कि कोई भी स्टूडेंट दूसरे के मोबाइल से अपनी हाजिरी नहीं दर्ज करा सकता। स्टूडेंट के हाजिरी दर्ज कराने के बाद प्रोफेसर को उसकी पुष्टि करनी होती है। संदेह होने पर दोबारा एंट्री करवाई जाती है। महज एक मिनट के भीतर यह प्रक्रिया पूरी हो जाती है। निर्धारित समय खत्म होते ही एप्लीकेशन निष्क्रिय हो जाता है।


Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar10th October 2013


Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 10th October 2013












































































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Wednesday, October 9, 2013

Economy Will Regain Its Power By Nature - Management Funda - N Raghuraman - 9th October 2013

इकॉनोमी को रफ़्तार प्रकृति से मिलेगी

मैनेजमेंट फंडा - एन रघुरामन 

 केरल और तमिलनाडु दो ऐसे राज्य हैं जहां देश में सबसे ज्यादा नारियल की खपत होती है। यहां नारियल का कचरा भी खूब होता है। कुछ जगहों पर इसे जला दिया जाता है, लेकिन इससे वातावरण में ऑक्सीजन घटने लगती है। इन दोनों राज्यों के नगरीय निकायों के लिए इसका प्रबंधन एक बड़ा मुद्दा है। अब तक नारियल की जटाओं से कोई ने कोई उत्पाद बनाने का ही इकलौता रास्ता रहा है। इससे लोग पैसे भी कमा लेते हैं, लेकिन यह समस्या के समाधान के लिए काफी नहीं है। इसे देखते हुए तमिलनाडु के त्रिची में स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एनआईटी) ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के साथ मिलकर एक रास्ता निकाला है। नारियल की जटाओं से बनने वाले जूट को सड़क निर्माण में इस्तेमाल करने का। तमिलनाडु के सात जिलों में कई सड़कें तो इसके जरिए बनाई भी जा चुकी हैं। एनआईटी के मुताबिक, नारियल के जूट से बनी सड़कें मजबूत होती हैं।

इससे नगरीय निकायों का सड़कों के रखरखाव में होने वाला खर्च भी बचता है। बड़े पैमाने पर जूट से सड़कों का निर्माण शुरू हो, इससे पहले एनआईटी त्रिची ने इसका सफल परीक्षण किया था। सड़क बनाने के लिए जूट के साथ बजरी और डामर का इस्तेमाल किया गया। परीक्षण सफल रहे तो केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने भी इस तरह की सड़कों के निर्माण की योजना को हरी झंडी देने में देर नहीं की। याद दिला दें कि इन दोनों राज्यों ने नारियल की जटाओं की तरह ही जलकुंभी की समस्या का भी बेहतर समाधान खोजा था। जलकुंभी के जरिए आजकल वहां शानदार हस्तशिल्प उत्पाद बनाए जा रहे हैं। अब पंजाब में भी जलकुंभी से हस्तशिल्प का काम शुरू हो चुका है।

Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 9th October 2013

Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 9th October 2013

 










































































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Tuesday, October 8, 2013

ज्ञान किसी भी क्षेत्र का हो, उसका स्वागत होना चाहिए - मैनेजमेंट फंडा - एन रघुरामन - 8th October 2013

मुंबई के मलाड में गरबा आयोजनों में हिस्सा लेने वालों और इसे देखने जाने वालों के बीच धर्मेश शाह की बहुत मांग है। गरबे में डांस करते हुए लड़के-लड़कियों की आंखें लगातार उनको ढूंढती रहती हैं। आपको अचरज होगा कि धर्मेश न तो पारंपरिक गरबा की ड्रेस में होते हैं न वे डांस ही करते हैं। फिर भी वे हर किसी के बीच आकर्षण का केंद्र हैं, क्योंकि वे गरबा के विशेषज्ञ हैं। वे नई उम्र के छात्र हैं और भारत के लोकनृत्यों पर शोध कर रहे हैं। उनके मुताबिक, नवरात्रि में विशेष रूप से होने वाला गरबा अपनी असल प्रकृति खो ही देता, लेकिन शुक्र मनाइए आजकल होने वाले बड़े-बड़े आयोजनों, पश्चिमी परिधान, फ्यूजन संगीत का, जिसने कुछ हद तक इसे बचाकर रखा हुआ है। धर्मेश एक उदाहरण देते हैं। 
 
Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 8th October 2013

Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 8th October 2013

















































































Source: Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 8th October 2013

Monday, October 7, 2013

अच्छे पलों को हमेशा याद रखते हैं लोग - मैनेजमेंट फंडा - एन रघुरामन - 7th October 2013

मामा मैं स्टार बक्स जाना चाहती हूं, लेकिन पवई या कहीं आसपास नहीं। मुझे तो दक्षिण मुंबई के कोलाबा स्थित स्टार बक्स जाना है। मैं चाहती हूं कि आप मुझे बांद्रा सी लिंक होते हुए और लौटते हुए नए शुरू हुए मुंबई एक्सप्रेस फ्री वे होते हुए ले चलें। त्योहार की छुट्टियों में तीन दिन के लिए घर आई मेरी भानजी का यह आग्रह था या आदेश, मैं नहीं समझ पाया। लेकिन उसकी बात का जवाब दिए बगैर मैं उसके कहे मुताबिक करता रहा। मैं हर मिनट का हिसाब रखता हूं और मुझे यह भी पता है कि स्टार बक्स का स्वाद हर जगह एक जैसा होता है, फिर भी मैंने उसकी बात मान ली। रास्ते भर वह बातें करती रही। अपने दोस्तों के बारे में जो स्कूल की लड़कियों के साथ अजीब व्यवहार करते हैं और कपड़ों के बारे में जो वह पहनना चाहती है, लेकिन मां की डांट के डर से पहन नहीं पाती। इसके अलावा उन चीजों के बारे में बोलती रही जो हमारे परंपरावादी परिवार में अच्छी नहीं समझी जाती। इस बीच वह फोटो भी क्लिक करती रही और हर पांच मिनट में अपना स्टेटस अपडेट करने लगी। 
 
 Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 7th October 2013

Parde Ke Peeche - Jai Prakash Chouksey - 7th October 2013





















 
Source: Parde Ke Peeche By Jai Prakash Chouksey - Dainik Bhaskar 7th October 2013

Saturday, October 5, 2013

अच्छी प्लानिंग हो तो बच सकते हैं मंदी से - मैनेजमेंट फंडा - एन रघुरामन - 5th October 2013


एक तरफ देश में त्योहारों का सिलसिला शुरू हो चुका है तो दूसरी तरफ अमेरिका में व्हाइट हाउस ने सोमवार देर रात सरकारी एजेंसियों को शटडाउन की तैयारी करने का फरमान सुना दिया। इससे पहले सरकार के स्पेंडिंग बिल पर रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टियों के बीच कांग्रेस में सहमति नहीं बन पाई। इसके लिए सोमवार आधी रात तक का समय कांग्रेस के पास था। अमेरिका जैसा बड़ा उपभोक्ता और खर्च करने वाला देश अपने दरवाजे बंद कर रहा हो तो कोई क्या कर सकता है? या तो चुपचाप बैठा रहे या फिर खुद को बदले, समय की जरूरतों के अनुसार ढाले। भारतीय उद्यमी ऐसी चीजों से ज्यादा परेशान नहीं होते। चाहे कैसी भी मंदी का माहौल हो, वे इससे बचने का तरीका ढूंढ़ लेते हैं। वे अपनी रणनीति बदलते हैं, खुद को बदलते हैं और नई शुरुआत करते हैं। आईटी कंपनियों में स्टाफ को इस तरह की ट्रेनिंग दी जाती है, लेकिन छोटे व्यवसायी भी अपना बिजनेस बढ़ाने के लिए हरसंभव तरीके अपनाने में पीछे नहीं हैं। 
 
 Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 5th October 2013

Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 5th October 2013

















































































Source: Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 5th October 2013

Friday, October 4, 2013

साहस से कभी-कभी मौत भी हार जाती है - मैनेजमेंट फंडा - एन रघुरामन - 4th October 2013

माफिन सिंड्रोम एक ऐसी आनुवंशिक बीमारी है जिससे पीड़ित लोग लंबे-दुबले होते हैं। उनके हाथ-पैर असामान्य रूप से लंबे होते हैं। ज्यादातर लोगों के दिल, फेफड़ों, आंखों, रीढ़ की हड्डी आदि में कई तरह की परेशानियां आ जाती हैं। बुधवार को इसी बीमारी से पीड़ित एक लड़की के बारे में मीडिया में खबर छपी कि किस तरह उसने इससे संघर्ष किया। लड़की का नाम रश्मिता गुहा है। वह पश्चिम बंगाल में कोलकाता के नजदीक बेलूर की रहने वाली है। वह जब 14 साल की थी तब इस बीमारी ने उसके दिल, फेंफड़े, आंख के रेटिना और रीढ़ की हड्डी पर प्रभाव डाला। उसकी बाईं आंख की रोशनी चली गई। दिल में एक अजीब सा उभार आ गया। रीढ़ की हड्डी टेढ़ी हो गई। इससे उसका शरीर मुड़ गया। डॉक्टरों को लगा कि अब शायद वह नहीं बचेगी। आशंका बेवजह नहीं थी। यह बीमारी पीड़ितों की उम्र एक तिहाई तक कम कर देती है। 
 
 Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 4th October 2013

Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 4th October 2013

















































































Source: Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 4th October 2013

Thursday, October 3, 2013

देने का सुख जीवन भर चलने वाली परंपरा है - मैनेजमेंट फंडा - एन रघुरामन - 3rd October 2013

मई 1969, यह गर्मियों की बात है। नागपुर में मैं अपनी मां के साथ साइकिल रिक्शा से ठेकड़ी रोड से गुजरते हुए रेलवे स्टेशन की ओर जा रहा था। खड़ी चढ़ाई वाली सड़क और उसके किनारे जूस बेचने वालों के ठेले। उन दिनों बर्फ का ठंडा पानी पांच पैसे में दिया करते थे। यह एक चलन सा हो गया था कि रिक्शे में बैठे हर युवक को उतरकर उसे पीछे से धक्का देना होता था। हम अभी प्रसिद्ध गणोश मंदिर के पास पहुंचे ही थे कि मेरी मां ने रिक्शेवाले को रुकने के लिए कह दिया। एक ठेले वाले को तीन गिलास संतरे के जूस का ऑर्डर दिया। 
 
  Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 3rd October 2013

Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 3rd October 2013

 














































































Source: Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 3rd October 2013

Wednesday, October 2, 2013

सफल लोग कभी सीखना नहीं छोड़ते - मैनेजमेंट फंडा - एन रघुरामन - 2nd October 2013

पहली कहानी: महात्मा गांधी को 1931 में राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने के लिए ब्रिटेन बुलाया गया था। वे हमेशा जैसे कपड़े पहनते थे, वैसे ही पहनकर वहां पहुंच गए। वहां मौजूद लोग सकते में पड़ गए। तरह-तरह की बातें होने लगीं। मीडिया में भी खबरें छपीं। लोगों ने भी उनकी आलोचना की। लेकिन बापू ने आत्मविश्वास नहीं खोया। प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान उनसे पत्रकारों ने उनके कपड़ों से संबंधित सवाल किए। उन्होंने जवाब दिया, ‘आप सभी लोग प्लस फोर पहनते हैं और मैं माइनस फोर पहनता हूं।’ बताते चलें कि उस जमाने में घुटने से चार इंच नीचे तक पैंट, कोट या कोटी, शर्ट और टाई पहनने का चलन था। लेकिन महात्मा गांधी घुटने से चार इंच ऊपर तक सिर्फ एक धोती पहनते थे। पत्रकारों को उनके जवाब से साफ था कि वे महज सामाजिक शिष्टाचार के लिए सिद्धांतों से समझौता नहीं कर सकते। उन्होंने यह भी संदेश दिया कि कोई उन्हें ड्रेस कोड के बारे में आदेश-निर्देश नहीं दे सकता। एक बार उन्हें लखनऊ में बुजुर्गो के लिए बनाए आश्रय स्थल के उद्घाटन के लिए बुलाया गया। 

 Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 2nd October 2013

Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 2nd October 2013

 












































































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Tuesday, October 1, 2013

रिटायरमेंट की उम्र कोई बंधन नहीं है - मैनेजमेंट फंडा - एन रघुरामन - 1st October 2013


1. दुनिया की सबसे बुजुर्ग सुपर मॉडल हैं डैफनी सेल्फ। उम्र है 85 साल। उनका मॉडलिंग का करियर करीब 70 साल का हो चुका है। वे हाल में ही ब्रिटेन के टीके मैक्स विज्ञापन अभियान में नजर आईं। लंबे घने बाल उनकी खास पहचान हैं। इस अभियान के दौरान उन्होंने अपने से बेहद कम उम्र की मॉडल्स को भी सकते में डाल दिया। सेल्फ ने अपना मॉडलिंग करियर 1950 से शुरू किया था। इस दौरान उन्होंने डॉल्स एंड गैब्बाना, नीविया, ओले जैसे ब्रांड्स के विज्ञापन किए। वोग का विज्ञापन तो उन्होंने 70 साल की उम्र में किया। वे बढ़ती उम्र में भी खुद को युवा महसूस करने वालों के लिए ‘पोस्टर चाइल्ड’ की तरह हैं। 
 
 Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 1st October 2013

Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 1st October 2013














































































Source: Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 1st October 2013