Saturday, November 30, 2013

Either Find A Way or Make One - Management Funda - N Raghuraman - 30th November 2013

रास्ता या तो ढूंढ लीजिए या बना दीजिए 

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन 



उनकी लंबाई छह फीट के करीब है। देखने में सुंदर, सुशिक्षित और अपने पेशे में सम्मानित। वह सिर्फ डॉक्टर और सर्जन नहीं हैं बल्कि ऑर्थोपेडिक सर्जरी की फील्ड में सर्वश्रेष्ठ लोगों में गिने जाते हैं। लोग उन्हें दिखाने के लिए, उनसे सलाह लेने के लिए महीनों तक इंतजार करते हैं। खासकर अगर कंधे से जुड़ी कोई समस्या हो तो। या फिर किसी दुर्घटना में कमर के ऊपर कोई दिक्कत आ गई हो तो। अमेरिका में वे उन डॉक्टरों में शामिल हैं, जिनकी सबसे ज्यादा पूछ-परख है। लेकिन उनके जीवन में 2009 में एक बड़ी परेशानी आई। उनकी रीढ़ की हड्डी में कहीं खून की थैली बन जाने का पता चला। इस बीमारी को कैवरनस हेमैन्जिओमा कहते हैं। ऑपरेशन के जरिए रीढ़ की हड्डी से खून की थैली को हटाया जा सकता था। लेकिन डर था। उनके डॉक्टर दोस्त ने बताया कि ऑपरेशन के दौरान या बाद में उन्हें लकवा मार सकता है। इसलिए उन लोगों ने ऑपरेशन न करने का तय किया। तब तक जब तक कि इस समस्या से उन्हें कोई खास दिक्कत न हो। जिंदगी चलती रही। ग्यारह महीने निकल गए। फिर एक दिन अचानक जब वे ऑपरेशन थिएटर की ओर जा रहे थे, उनके रीढ़ की हड्डी में मौजूद खून की थैली फट गई। उन्हें तुरंत ऑपरेशन के लिए ले जाना पड़ा। सितंबर 2010 की बात है यह। उनका ऑपरेशन हुआ और उनके कमर के नीचे के हिस्से में लकवा मार गया।

स्रोत: Either Find A Way or Make One - Management Funda By N Raghuraman - dainik bhaskar 30th November 2013 

"Patience Stone" And Women Consideration - Parde Ke - Peeche - Jaiprakash Chouksey - 30th November 2013

'पेशन्स स्टोन' और स्त्री विमर्श 

परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे 


अफगानिस्तान में जन्मे इक्यावन वर्षीय अतिक राहिमी की फिल्म 'द पेशेन्स स्टोन' संभवत: गोवा में चल रहे महोत्सव की श्रेष्ठ फिल्म है, जो उनके स्वयं के ही लिखे फ्रेंच उपन्यास पर आधारित है और शायद विश्व में पहली बार एक फिल्मकार ने अपने ही उपन्यास पर फिल्म बनाई है। रूसी आक्रमण के समय 1984 में अतिक राहिमी फ्रांस चले गए थे और सोरबार्न विश्वविद्यालय में उन्होंने पढ़ाई की। इसके पहले उन्होंने अपने ही उपन्यास 'अर्थ एंड एशेज' पर बनी फिल्म के लिए 25 अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीते हैं। 

स्रोत:  "Patience Stone" And Women Consideration - Parde Ke Peeche By  Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 30th November 2013

Friday, November 29, 2013

Keep Doing Something New So That You Are Talked About - Management Funda - N Raghuraman - 29th Novemebr 2013

कुछ नया करते रहिए, ताकि आपकी चर्चा हो

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन


सोचिए, आप इंटरनेट पर बैठे हैं। मेल चैक कर रहे हैं, तभी कंप्यूटर स्क्रीन पर एक पॉप विंडो खुलती है। शादी-समारोह का निमंत्रण पत्र आपके सामने होता है। आप इसे पढ़ते हैं। तभी आपके लिए दो विकल्प पेश हो जाते हैं । एक में पूछा जाता है कि आप समारोह में शामिल हो रहे हैं तो क्लिक करें। दूसरे में कहा जाता है समारोह में शामिल नहीं हो रहे हैं तो क्लिक करें। आप दूसरे विकल्प को चुनते हैं तो तुरंत एक अन्य संदेश आपके सामने होता है। इसमें लिखा होता है, 'हम कामना करते हैं कि आप इस समारोह में शामिल हो पाएं।' आपने पहला विकल्प चुना तो आप दूसरे पेज पर पहुंच जाएंगे। यहां आपसे आपका ईमेल एड्रेस फिर से दर्ज करने का आग्रह किया जाएगा। जैसे ही आप ईमेल एड्रेस दर्ज करते हैं, तो आपसे वेडिंग कोड (एक तरह का पासवर्ड) पूछा जाएगा। समारोह में शरीक होने वाले सभी अतिथियों को यह वेडिंग कोड याद रखना अनिवार्य किया गया है, तभी आप समारोह स्थल में अंदर जा सकेंगे। अगर आप वेडिंग कोड भूल गए हैं तो आपको याद दिलाने के लिए ऑनलाइन मदद मिल जाएगी। वेडिंग कोड डालते ही आपकी एंट्री दर्ज हो जाएगी। 

स्रोत : Keep Doing Something New So That You Are Talked About - Management Funda By N.  Raghuraman - Dainik Bhaskar 29th Novemebr 2013

Tigmanshu Dhulia Can Be Recognized By Commercial Masks Too - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 29th November 2013

तिग्मांशु को व्यावसायिक मुखौटों के साथ भी पहचाना जा सकता है 

परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे

 
तिग्मांशु धूलिया की 'पान सिंह तोमर' को भूलना संभव नहीं परंतु 'बुलेट राजा' में वे चंबल से दूर भीतरी उत्तरप्रदेश पहुंच गए हैं, जहां का मतदाता भारत के भाग्यविधाता को चुनने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। चंबल जैसी ताकतें उत्तरप्रदेश में हर कालखंड में सक्रिय रही हैं। 'बुलेट राजा' का ऊपरी स्वरूप एक सामान्य एक्शन व्यावसायिक फिल्म का ही है। इस तरह की फिल्मों के लिए डायरेक्टर खोजने में मेहनत करनी पड़ती है। ऐसे भी किसी भी सितारे की फिल्म में डायरेक्टर ढूंढ़े नहीं मिलता, परंतु यह माध्यम ही कुछ ऐसा है कि सितारा न निगलते बनता है, न उगलते बनता है। 
 
स्रोत : Tigmanshu Dhulia Can Be Recognized By Commercial Masks Too - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 29th November 2013

Thursday, November 28, 2013

Obstacles Can't Stop You, If You Have A Winning Habit - Management Funda - N Raghuraman - 28th November 2013

जीतने की आदत है तो बाधाएं रोक नहीं सकतीं

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन 


उसे पहली बार भारत के राष्ट्रपति ने नेशनल अवॉर्ड दिया। कुछ समय ही बीता कि दूसरी बार उन्हीं राष्ट्रपति के हाथ से अगले नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित होने का मौका मिल गया। उसे उसकी नई खोज के लिए अवॉर्ड मिले थे। इसके बाद राष्ट्रपति बदले लेकिन नेशनल अवॉर्ड लेने की उसकी आदत नहीं बदली। अगले महीने यानी दिसंबर में उसे चौथा नेशनल अवॉर्ड मिलने वाला है। तकनीक और इससे जुड़े उपकरण आए दिन तो सस्ते नहीं होते, लेकिन बेंगलुरू के आरएस हिरेमथ के लिए यह बाएं हाथ का काम है। वे गरीबों के लिए लगातार नए और सस्ते उपकरण विकसित कर रहे हैं। उनका ताजा आविष्कार है- सौर ऊर्जा से चलने वाली कान की मशीन का चार्जर। इसके लिए उन्हें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से चौथा नेशनल अवॉर्ड मिलने वाला है। 

स्रोत : Obstacles Can't Stop You, If You Have A Winning Habit - Management Funda - N Raghuraman - दैनिक भास्कर 28th November 2013  

Deepika Padukone - A Fun Frolic Actress - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 28th November 2013

दीपिका पादुकोण दीवानी मस्तानी नायिका 

परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे 


इस वर्ष दीपिका पादुकोण ने तीन सफल फिल्मों में न केवल अभिनय किया है वरन् इन तीनों फिल्मों में उसकी भूमिकाएं केंद्रीय है। प्राय: फिल्में नायक को केंद्र में रखकर बनाई जाती है और नायिकाएं गीत गाने और दो चार प्रेम दृश्य करने के लिए ली जाती हैं परन्तु दीपिका पादुकोण की ये जवानी है दीवानी, चेन्नई एक्सप्रेस और रामलीला में नायिकाएं महज सजावट की चीजें नहीं हैं वरन् उनका अपना व्यक्तित्व है और नायकों के समानांतर महत्व उन्हें मिला है। यह एक ऐसी महत्वपूर्ण चीज है जिसका भूतपूर्व शिखर महिला सितारा जैसे कटरीना कैफ या करीना कपूर मुकाबला नहीं कर सकतीं। वे अपनी फिल्म में कमोबेश सजावट के रूप में ही सामने आई थी। दीपिका ने अब नया मानदंड स्थापित कर दिया है। 

स्रोत: Deepika Padukone - A Fun Frolic Actress - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 28th November 2013 

Wednesday, November 27, 2013

You Will Have To Pay Heavy Price For Excessive Pampering - Management Funda - N Raghuraman - 27th November 2013

ज्यादा प्यार-दुलार की भी कीमत चुकानी पड़ती है

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन 


समीर 10वीं कक्षा का छात्र है। कोलकाता के बड़े स्कूल में पढ़ता है। अपने परिवार में अकेली संतान और परिवार के हर सदस्य का लाड़ला। उसकी हर ख्वाहिश पूरी हो जाती है। समीर को पिज्जा और बर्गर अच्छे लगते हैं और उसके माता-पिता ने कभी उसे मना नहीं किया। हालात ये हैं कि लंच टाइम की घंटी बजते ही पड़ोस के फूड ज्वाइंट समीर के लिए गरमा-गर्म पिज्जा सप्लाई कर देते हैं। लेकिन चार साल में क्या हुआ? नियमित परीक्षण के दौरान पता चला कि समीर के लिवर में काफी चर्बी जमा हो गई है। ज्यादा फास्ट फूड खाने के कारण उसको यह परेशानी हुई। वह बीमारी के उस चरण में पहुंच चुका है, जहां से लौटना संभव नहीं है। क्या सिर्फ समीर की यह हालत है? नहीं। डायबिटीज अवेयरनेस एंड यू (डीएवाई) नामक संस्था की ओर से एक अध्ययन कराया गया। इसके मुताबिक कोलकाता के कई बच्चे कमजोर लिवर के शिकार हो चुके हैं। उनमें सामान्य से 15 साल पहले ही डायबिटीज जैसी बीमारी होने की भी आशंका है। यही नहीं 12 से 16 साल की उम्र के 12-15 फीसदी बच्चों के लिवर में खतरनाक स्तर तक चर्बी जमा है। इससे उनकी जान को खतरा हो सकता है। 

स्रोत:  You Will Have To Pay Heavy Price For Excessive Pampering - Management Funda By  N Raghuraman - Dainik Bhaskar  27th November 2013

Serial "24" Has Reached Upto The Intestines - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 27th November 2013

अंतडिय़ों तक पहुंचा '24' सीरियल 

 परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे


हर शुक्रवार-शनिवार रात 10 बजे कलर्स पर अनिल कपूर के सीरियल '24' का प्रसारण होता है। एक सफल अमेरिकन सीरियल का हिंदुस्तानी संस्करण बड़ी निष्ठा से बनाया गया है। यह अगर महज एक स्पाई थ्रिलर होता तो शायद दर्शक को इस तरह नहीं बांध पाता। उसके हर क्षण में तनाव एवं मानवीय संवेदना भरी है। अपनी भावना की तीव्रता से सीरियल दर्शक की अंतडिय़ों तक जा पहुंचता है। दर्शक पात्रों के डर को महसूस करता है। उसके तनाव को जीता है। इस आत्मीय तादात्म्य को बनाने के लिए निर्देशक ने मानवीय मनोविज्ञान का सहारा लिया है। मसलन, अनिल कपूर की पत्नी और बेटी को एक संकट से बचाया जा चुका है। परंतु उन्हें सुरक्षित रखने के लिए जिस एजेंट को अनिल ने भेजा है, वह कभी उससे गहरा प्यार करती थी। लेकिन अनिल उसकी योग्यता मात्र का कायल था। बहरहाल, पत्नी यह सब जानती है। वह एजेंट से व्यक्तिगत सवाल पूछना शुरू करती है। जबकि एजेंट को उसे इंटेरोगेट करना है। इस उल्टे इंटेरोगेशन से एजेंट आहत हो जाती है। अपना काम अपने सहायक को सौंपती है। इस भावना के द्वंद्व का परिणाम यह होता है कि योग्य एजेंट के जाते ही अनिल की पत्नी फिर संकट में पड़ जाती है। उसकी जान पर बन आती है। सारे सीरियल में इसी तरह के भीतरी द्वंद्व को बाहरी घटनाओं से बखूबी जोड़ा गया और दोहरे द्वंद्व की धार से दर्शक अप्रभावित नहीं रह पाता। 

स्रोत:  Serial "24" Has Reached Upto The Intestines - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - dainik bhaskar 27th November 2013 

Tuesday, November 26, 2013

If Relations Between Past and Future Are Good Then Present Will Be Better - Management Funda - N Raghuraman - 26th November 2013

अतीत और भविष्य के संबंध अच्छे हों तो वर्तमान बेहतर होगा 

 मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन


पुणे के तंबात समुदाय से ताल्लुक रखते हैं बालचंद्र काडू। तांबे के बर्तन बनाते हैं। शहर के कस्बा पेठ इलाके में उनकी वर्कशॉप है। वे अपने समुदाय की सातवीं पीढ़ी हैं। करीब 400 साल पहले यह समुदाय पुणे और आस-पास के इलाके में आकर बसा था। पहले यह पेशवा शासकों के लिए हथियार वगैरह बनाता था। अब तांबे के बर्तन, कलाकृतियां बनाकर जीविका चला रहा है। एक साल पहले की बात है। बालचंद्र अपनी वर्कशॉप में तांबे की थाली बना रहे थे। उन्होंने उसे हर तरफ से देखा। सब कुछ ठीक पाकर उन्हें अपने काम पर संतुष्टि और खुशी हुई। लेकिन दुख के दो कारण भी थे। पहला यह कि 14 घंटे आग के सामने बैठकर बनाई शानदार कलाकृति के सिर्फ दो-तीन सौ रुपए ही मिलने थे। दूसरा, उनके बच्चे ने इस काम में हाथ बंटाने से साफ इनकार कर दिया था। उनके लड़के ने ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट में करिअर चुना है। यह कहानी सिर्फ बालचंद्र की है, ऐसा नहीं है। पूरे तंबात समुदाय में ऐसे ही किस्से हैं। नई पीढ़ी अपना परंपरागत काम छोड़कर वह करिअर चुन रही है जहां ज्यादा पैसे मिलें। 
 
स्रोत : If Relations Between Past and Future Are Good Then Present Will Be Better - Management Funda By N Raghuraman - दैनिक भास्कर 26th November 2013   

Paul Schrader : Shahrukh A Control Freak ? - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 26th November 2013

पॉल श्रेडर: शाहरुख नियंत्रण फ्रीक? 

परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे 


ओपन के लिए निखिल तनेजा को दिए साक्षात्कार में अमेरिका के प्रसिद्ध पटकथा लेखक पॉल श्र्रेडर ने बताया कि उनकी लिखी 'एक्स्ट्रीम सिटी' में लिओनार्डो डी केप्रियो और शाहरुख खान के काम करने की बात थी। बर्लिन में दोनों सितारों ने साथ बैठकर पटकथा सुनी और पसंद की थी। परंतु बात आगे नहीं जा पाई। पॉल श्रेडर का खयाल है कि शाहरुख खान ने जब यह महसूस किया कि इस अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट पर उनका पूरा नियंत्रण संभव नहीं है तो उन्होंने इसके लिए कोई प्रयास नहीं किया। शाहरुख खान के लिए प्रोजेक्ट पर 'पूरा नियंत्रण' उनका हो यह जरूरी है। जबकि अंतरराष्ट्रीय फिल्म में निर्देशक का नियंत्रण होता है। यह भी संभव है कि दोनों सितारों को लगा कि दूसरा पहल करे तो वे आगे बढ़ेंगे। उन्होंने यह भी बताया कि शाहरुख खान की रजामंदी के इंतजार वाले दिनों में वे सलमान खान से मिले थे तथा 'एक्स्ट्रीम सिटी' उसके साथ करना भी चाहते थे परंतु भारत में सितारों के अपने अंहकार हैं। लेखकों को लगा कि सलमान के साथ काम करने पर शाहरुख बुरा मान जाएंगे। 

स्रोत: Paul Schrader : Shahrukh A Control Freak ? - Parde Ke Peeche By  Jaiprakash Chouksey - दैनिक भास्कर 26th November 2013 

Monday, November 25, 2013

Our Times is Still Not Finished - Management Funda - N Raghuraman - 25th November 2013

हमारा जमाना अभी खत्म नहीं हुआ...

मैनेजमेंट फंडा - एन रघुरामन


लोग अक्सर कहते रहते हैं, 'हमारा जमाना तो खत्म हो गया। हमारा क्या है। अब तो बच्चों का है सब कुछ।' ऐसे लोग इस कहानी को पढऩे के बाद विचार बदल सकते हैं। वह अभी 100 साल के हैं। वे कहते हैं जब तक उन्हें न्याय नहीं मिल जाता और जब तक वे लोगों को जागरूक नहीं कर देते, आखिरी सांस नहीं लेंगे। न्याय मिलने की बात तो समझ आती है, लेकिन जब जागरुकता की बात करते हैं तो पूरे देश के लिए शर्मिंदगी की बात होती है। कैसे? दरअसल, वे टॉयलेट की अहमियत के बारे में ज्यादा से ज्यादा लोगों को जागरूक करना चाहते हैं। इस सिलसिले में उन्होंने एक कंपनी के खिलाफ कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका दायर कर रखी है। उन्होंने तय कर रखा है कि वे हार नहीं मानेंगे। 

Source: Our Times is Still Not Finished - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 25th November 2013

Rishi Kapoor - Wrestler To The Core - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 25th November 2013

ऋषिकपूर: मिट्टी पकड़ पहलवान 

 परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे 


कुछ समय पूर्व बीबीसी की हिन्दी वेबसाइट ने ऋषि कपूर, डिम्पल अभिनीत राज कपूर की 'बॉबी' के प्रदर्शन के चालीस वर्ष पूरे होने पर एक कार्यक्रम किया। बॉबी बनने से तीन वर्ष पूर्व 'मेरा नाम जोकर' में सोलह वर्षीय ऋषि ने नायक की किशोर अवस्था को अभिनीत किया था, जिसके लिए उसे अभिनय का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। किशोर वय के लिए कोई श्रेणी नहीं होने पर बाल कलाकार श्रेणी में पुरस्कार दिया गया। ऋषि विगत 43 वर्षो से लगातार सक्रिय हैं और सन् 91 में शाहरुख खान की पहली प्रदर्शित 'दीवाना' में नायक थे और इसके बाद भी उन्होंने 'बोल राधा बोल' की तरह कई सफल फिल्मों में काम किया। जिन चार वर्षो में उन्होंने अभिनय नही किया, उन वर्षों में उन्होंने 'आ अब लौट चलें' निर्देशित की तथा विगत दशक में चरित्र अभिनेता के रूप में विविध भूमिकाओं में सफलता प्राप्त की। कुछ समय पूर्व हबीब फैजल की 'दो दूनी चार' में वे नायक थे। दरअसल आज केवल अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर ही दो सीनियर कलाकार हैं, जिन्हें अपने मुंहमांगे दामों पर चरित्र भूमिकाएं मिल रही हैं। 'दो दूनी चार' के आदर्शवादी गणित शिक्षक ने 'अग्निपथ' के नए संस्करण में कसाई खलनायक की भूमिका की। 
 
 Source: Rishi Kapoor - Wrestler To The Core - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 25th November 2013

Sunday, November 24, 2013

For Being Gentleman Goodness Is Necessary - Management Funda - N Raghuraman - 24th November 2013

जेंटलमैन होने के लिए जरूरी है शिष्टता 

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन  

नॉर्वे के 23 वर्षीय मैग्नस कार्लसन ने इसी शुक्रवार शतरंज की विश्व चैंपियनशिप का खिताब जीत लिया। उन्होंने विश्वनाथन आनंद को हराया। जो 2007 से 2013 तक छह साल तक विश्व चैम्पियन रहे।

मैग्नस कार्लसन कम्प्यूटर्स के खिलाफ खेलने को महत्व नहीं देते। कई महान खिलाडिय़ों को लगता है कि कम्प्यूटर्स से खेलना उचित नहीं है। इसकी वजह है- कम्प्यूटर का न थकना। इस वजह से वह गलतियां नहीं करता। निरंतर रूप से प्रोसेसिंग पावर और मेमोरी का इस्तेमाल अपनी चालों में करता है, जबकि मनुष्य में दिमाग को एकाग्र रखने की सीमा होती है। उसके बाद वह थकता है। गलतियां भी करता है। यह एक आसान तरकीब है, लेकिन शतरंज में नई है। इसी रणनीति का इस्तेमाल कार्लसन ने भारतीय वर्ल्ड 
चैम्पियन के खिलाफ किया। गेम को लंबा खींचने की कोशिश की। आनंद के दिमाग को थका दिया। इससे वे गलतियां करने को मजबूर हुए। 

स्रोत:  For Being Gentleman Goodness Is Necessary - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 24th November 2013 

Saturday, November 23, 2013

Cleanliness Increases Profits In Food Business - Management Funda - N Raghuraman - 23rd November 2013

खानपान व्यवसाय में कमाई बढ़ाने का नुस्खा है बेहतर सफाई

मैनेजमेंट फंडा  - एन. रघुरामन

सर्दी का मौसम आते ही देश में स्ट्रीट फूड व्यवसाय में तेजी आ जाती है। क्योंकि इस मौसम में तीखे और मसालेदार खानपान के शौकीन सड़क किनारे लगने वाली दुकानों में जाकर इसका आनंद लेते हैं। दिल्ली की सड़कों पर मिलने वाले राज कचौरी, आलू टिक्की, मटर कुलचा और कोलकाता में तीखे स्वाद वाले पुचका और चटनी के साथ मोमो की दुकानों पर लोगों की भीड़ इसकी लोकप्रियता को खुद ही बयान करती है। इसी तरह स्ट्रीट व्यंजनों के शौकीन मुंबई की चौपाटी बीच पर जाकर पाव-भाजी, पानीपुरी और बड़ा पाव का स्वाद और चेन्नई में दाल बड़ा और अप्पम का स्वाद लेते लोगों को देखा जा सकता है। अहमदाबाद के माणेक चौक और इंदौर के राजवाड़ा, भोपाल के होशंगाबाद रोड और जयपुर के राजा पार्क और वैशाली नगर में भी इसी तरह के स्ट्रीट फूड का सर्दियों में व्यवसाय बढ़ जाता है। लोग सड़कों पर खड़े होकर गोल गप्पे या पानीपुरी, आलू टिक्की और बड़ा पाव को बड़े चाव से खाते देखे जा सकते हैं।

 Source: Cleanliness Increases Profits In Food Business - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 23rd November 2013


Mahabharat In 3 - D Animation - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 23rd November 2013

महाभारत पर एनीमेशन थ्रीडी

परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे

इस समय स्टार पर एक महाभारत दिखाई जा रही है। केबल पर बलदेवराज चोपड़ा की पुरानी महाभारत प्राय: दिखाई जाती है। जयंतीलाल गढ़ा की एनीमेशन फिल्म 'महाभारत' 24 दिसंबर को सिनेमाघरों में प्रदर्शित होगी। दरअसल, जयंतीलाल गढ़ा ने महाभारत पर बहुसितारा फिल्म की कल्पना को आधार बनाकर अपनी एनीमेशन फिल्म में भीष्म को अमिताभ बच्चन की छवि में प्रस्तुत किया है। इस पात्र के लिए आवाज भी अमिताभ बच्चन की है। इसी तरह द्रौपदी की भूमिका में विद्या बालन और अजय देवगन कर्ण हैं। यह एनिमेशन थ्रीडी में बनाया गया है।
 
Source: Mahabharat In 3 - D Animation - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 23rd November 2013

Friday, November 22, 2013

Collective Effort Can Even Move a Mountain - Management Funda - N Raghuraman - 22nd November 2013

मिल-जुलकर पहाड़ भी धकेला जा सकता है

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन 


पहली समस्या: 

पुणे को देश में शिक्षा के बड़े केंद्र के तौर पर जाना जाता है। यहां देश भर के अलग-अलग हिस्सों से बच्चे आते हैं, लेकिन इस शहर की एक अलग समस्या है। यहां बच्चे आत्महत्या बहुत करते हैं? इसके पीछे वजहें वही आम हैं। अकेलापन, परीक्षाओं का तनाव, घर का खाना न मिलने से परेशानी, ब्वॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड का एक-दूसरे में से किसी को छोड़ देना। अच्छे नंबर लाने की माता-पिता की अपेक्षाओं पर खरा न उतरना आदि-आदि। तो आखिर इस समस्या का हल क्या है? 

समाधान: 

समस्या का समाधान भी बच्चों ने ही निकाला। उन्होंने सोचा कि एक ही शहर के बच्चे एक-दूसरे की मदद करें, तो तस्वीर बदल सकती है। लिहाजा शहर में ऐसे कई समूह बन गए। मसलन- केरल समाज, मराठवाड़ा वारियर्स, खानदेश गाइज (इसमें धुले, जलगांव, नंदूरबार क्षेत्र के बच्चे है ) आदि। इन समूहों के बच्चे एक-दूसरे के खालीपन को भरने में लगे हैं, ताकि किसी को घर की याद न सताए। कोई तनाव या निराशा का शिकार न हो जाए। एक-दूसरे के बारे में जानने-समझने के लिए व्हाट्सएप ग्रुप बनाना। मिलना-जुलना। बाहर घूमने जाना। साथ में ग्रुप बनाकर पढऩा। एक-दूसरे की मदद करना। नए शहर में पेश आने वाली परेशानियों को मिलकर हल करना। ये ग्रुप अपने स्थानीय त्यौहारों को भी मिलकर मनाते हैं। लड़कियां आम तौर पर बेहद इमोशनल और संवेदनशील होती हैं। उन्हें सपोर्ट की भी ज्यादा जरूरत होती है। उनकी जरूरतों के लिहाज से भी ये ग्रुप बहुत मददगार साबित हो रहे हैं। क्योंकि इन ग्रुप्स में एक से बैकग्राउंड वाले लड़के-लड़कियां होते हैं। एक सी भाषा बोलते हैं। खान-पान के तौर-तरीके भी एक जैसे होते हैं। 

सोर्स: Collective Effort Can Even Move a Mountain - Management Funda By  N Raghuraman - दैनिक भास्कर 22nd November 2013

A Discussion About 44th Film Festival - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 22nd November 2013

44वें फिल्म समारोह की चर्चा

परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे


चेकोस्लोवाकिया के फिल्मकार जिरी मेन्जेल की 2013 में प्रदर्शित 'डॉन जुआन' से गोवा में 44वें भारतीय फिल्म समारोह का उद्घाटन हुआ। इस फिल्मकार को जीवन पर्यंत सिनेमा सेवा के लिए सम्मानित किया गया। समारोह में फिल्म की शताब्दी के अवसर पर वहीदा रहमान का भी सम्मान किया गया। सभा में मौजूद सारे लोग उनके सम्मान में उठकर खड़े हो गए। वहीदा रहमान ने कहा कि इस सम्मान के लिए उनके तमाम लेखकों, फिल्मकारों और तकनीशियनों का वह शुक्रिया अदा करना चाहतीं हैं जिनके सहयोग के बिना वे कुछ नहीं कर पातीं।

Source: A discussion About 44th Film Festival - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 22nd November 2013

Thursday, November 21, 2013

Garbage is not always a Garbage - Management Funda - N Raghuraman - 21st November 2013

कचरा कभी कचरा नहीं होता

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन


मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में एक जगह है पिपरिया। देश-विदेश में विख्यात पर्यटक केंद्र पचमढ़ी जाना हो तो पिपरिया आखिरी स्टेशन होता है। यह कहानी इसी कस्बे से जुड़ी है। आईआईटी कानपुर से पासआउट और पेशे से इंजीनियर अरविंद गुप्ता अपने एक दोस्त के साथ पिपरिया के साप्ताहिक हाट में घूम रहे थे। यह 1980 के दशक की बात है। दोनों दोस्तों में चर्चा चल रही थी आखिर इस इलाके के पिछड़ेपन के क्या कारण हैं। खासकर विज्ञान के विषय में तो यह क्षेत्र बेहद पिछड़ा ही है और भी कई कारणों पर बात हुई। इनमें से एक निकला कि पढ़ाई-लिखाई के तरीकों में नए प्रयोग नहीं किए जाते। इसी बातचीत के दौरान अरविंद के दिमाग में एक आइडिया आया कि वे कोई तरीका इजाद क्यूं नहीं कर सकते, जिससे विज्ञान की पढ़ाई आसान हो जाए, जिससे शिक्षकों को भी विज्ञान आसान तरीके से पढ़ाने का रास्ता मिल जाए। शिक्षकों-छात्रों को विज्ञान विषय पढ़ाने-पढऩे में मजा आने लगे। अरविंद तुरंत एक दुकान पर गए। वहां से कुछ सामान खरीदा और उससे खिलौने बनाने शुरू कर दिए। वे सामान्य खिलौने नहीं थे, बल्कि विज्ञान की पढ़ाई से जुड़े खिलौने थे। बेकार समझी जा चुकी चीजों से ये खिलौने बने थे। आज तीन दशक हो चुके हैं। लोग अरविंद को, जो पहले टेल्को की ट्रक निर्माण इकाई में काम करते थे, अब विज्ञान से जुड़े खिलौने बनाने वाले के तौर पर जानते हैं। सिर्फ एक खास इलाके में नहीं, अरविंद के ईजाद किए नए तरीके ने पूरी दुनिया में बच्चों के विज्ञान की शिक्षा को आसान बना दिया है। उसके बाद खुद अरविंद सोचने लगे हैं कि ये खिलौने बनाना ट्रक बनाने से ज्यादा बेहतर है। यही नहीं उन्होंने अपने बनाए इन खिलौनों को अपने दम पर देश के कोने-कोने तक पहुंचाया। क्या गांव, क्या शहर, क्या आदिवासी और क्या अन्य लोग। हर जगह। 
 
Source: Garbage is not always a Garbage - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 21st November 2013

Reversal of Roles - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 21st November 2013

भूमिकाओं के उलटफेर

परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे


सैफ अली खान ने स्वीकार किया है कि वे फिल्म निर्माण में अपने अभिनेता स्वरूप को संवारने और बचाने के लिए आए हैं। इस उद्देश्य से ही शाहरुख खान, आमिर खान और अक्षय कुमार भी निर्माण क्षेत्र में आए परंतु राजकपूर और गुरुदत्त के बारे में यह नहीं कहा जा सकता। वे मूलत: फिल्मकार थे और निर्माण में लगे समय और ऊर्जा के कारण वे अपने अभिनेता स्वरूप को अनचाहे ही हानि पहुंचाते रहे। राजकपूर का निर्देशक स्वरूप इतना विराट रहा कि अभिनेता राजकपूर का सही मूल्यांकन ही नहीं हो पाया। अन्यथा 'तीसरी कसम' के हीरामन को उच्च स्थान प्राप्त होता। गुरुदत्त तो अनिच्छुक अभिनेता थे। दिलीपकुमार द्वारा नहीं किए जाने पर उन्होंने 'प्यासा' की। 

Source: Reversal of Roles - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 21st November 2013

Wednesday, November 20, 2013

The Feeling of Loosing Is Felt Only When The Time Goes By - Management Funda - N Raghuraman - 20th November 2013

वक्त निकलने पर ही होता है कुछ खोने का अहसास 

 मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन


चूहा तो बस चूहा ही है। सुनने में यह अच्छा लगता है। लेकिन अगर पता लगे कि ट्रेन के एसी कोच में बर्थ के नीचे रखे आपके बैग के आसपास एक चुहिया दो बच्चों के साथ उछल-कूद कर रही है, तो? तब शायद आपको अच्छा न लगे। उस युवक को भी अच्छा नहीं लग रहा था। और वह ट्रेन की चादर को ठोकते हुए यहां-वहां कूद रहा था। वाकया तब का है, जब मैं मध्यप्रदेश में अपने दोस्त के बेटे की शादी में हिस्सा लेने के लिए इंटरसिटी एक्सप्रेस से इंदौर से शिवपुरी जा रहा था। मैंने आसपास मौजूद सभी लोगों को शांत करने के लिए कहा, 'यह एक सामान्य चूहा ही तो है।' इस पर पास खड़ी महिला तपाक से बोली, 'आप तो ऐसे कह रहे हैं, जैसे पेड़ पर कोई कौआ बैठा हो। और ये अभी उड़ जाने वाला है।' उस महिला की बात सुनकर मैं चुप हो गया। अपनी किताब उठाई और पढऩे लगा। अचानक मुझे अपनी मां की एक बात याद आई। वे कहती हैं, 'आपको अच्छी किताब की अहमियत तब तक पता नहीं चलेगी, जब तक आप बुरी किताब नहीं पढ़ लेते। मैं समझ गया कि ज्यादातर लोगों में चूहे से डर क्यों है। शायद इसलिए क्योंकि यह जीव अक्सर जानलेवा बीमारियों का वाहक बनता है। तभी एक महिला आई और बताने लगी कि उसके पड़ोसी के घर नवजात बच्चा हुआ था। उसके पैर की अंगुलियों को चूहे ने कुतर लिया। अगले ही दिन उन लोगों को प्लेन से अपने बच्चे को दिल्ली ले जाना पड़ा। ऑपरेशन कराने के लिए। 
 
Source: The Feeling of Loosing Is Felt Only When The Time Goes By - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 20th November 2013

Veil and Explosion In A Dormant Volcano - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 20th Nov 2013

सुसुप्त ज्वालामुखी में विस्फोट और परदेदारी

परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे


संजय लीला भंसाली की 'गोलियों की रास लीला - राम लीला' के सेन्सर द्वारा पास होने के बाद भी अनेक शहरों में इसके प्रदर्शन के खिलाफ सड़कों से अदालत तक भांति-भांति की कार्रवाई हुई। सारे विरोधों का आधार धार्मिक था। फिल्म में राम के नाम के साथ लीला सहन नहीं किया गया क्योंकि हमारे आख्यानों में कृष्ण लीला का विवरण हैै परन्तु राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं और सारे आदर्श मूल्यों का प्रतीक हैं। विरोध करने वालों को ज्ञात नही कि संत तुलसीदास ने राम लीला नाटकों को प्रारंभ किया था और उनकी लिखी 'रामचरितमानस' कमतर काव्य होने के बावजूद वाल्मिकी की रामायण से अधिक लोकप्रिय है। कुछ लोगों का यह भी मत है कि तुलसीदास के संस्करण की लोकप्रियता ने ही समाज में राम लहर को निरंतर प्रवाहित रखा है। फिल्मकार का बचाव यह रहा कि राम केवल उनके नायक का नाम है और भगवान राम से इस काल्पनिक पात्र का कोई रिश्ता नहीं है। दरअसल फिल्मकार ने तो शेक्सपीयर के नाटक 'रोमियो जूलियट' से प्रेरणा ली है। यह भी एक इत्तेफाक ही है कि शेक्सपीयर और तुलसीदास दोनों ही सोलहवीं सदी के साहित्यकार हैं परन्तु उनके रचना संसार में पूर्व पश्चिम से भी अधिक अंतर है। तुलसीदास को भगवान राम के प्रति असीम भक्ति का सहारा मिला है जबकि शेक्सपीयर के काल्पनिक पात्र अपनी आंतरिक ऊर्जा से अमर हुए हैं। 
 
Source: Veil and Explosion In A Dormant Volcano - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 20th Nov 2013

Tuesday, November 19, 2013

Chase Your Dreams Like Crazy, And See The Results - Management Funda - N Raghuraman - 19th November 2013

पागल की तरह अपने सपनों का पीछा कीजिए और फिर देखिए नतीजा 

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन

 
उसकी उम्र सिर्फ 21 साल है। चेन्नई के इंजमबक्कम इलाके में स्थित सेंट जॉन्स राजकुमार इंटरनेशनल स्कूल का डायरेक्टर (ऑपरेशन) है। उसे जब आप स्कूल जाते देखेंगे तो एक अलग छवि। सख्त चेहरा। चटक ड्रेस पर कसी हुई टाई। लेकिन जब वह डिजाइन एंबेसी (डीई) की ओर जा रहा होता है तो अलग नजर आता है। बालों में पोनी टेल। हाफ जैकेट। जीन्स में सलीके से दबी हुई शर्ट। डीई एक डिजाइन व कंटेंट क्रिएशन फर्म है और वह इसका संस्थापक भी है। अगर यही लड़का बिखरे बाल और जींस के ऊपर ढीले-ढाले कुर्ते में दिख तो समझ जाएं कि वह अपने बैंड में परफॉर्म करने जा रहा है। चेन्नई स्थित उसके बैंड का नाम है, ‘द टेरेरिज्म।’ अगर ऊपर लिखी तीनों वेशभूषा में वह नजर न आए, तब? सादा फुल शर्ट, जिसकी बांहें ऊपर तक मोड़ रखी गई हों। फॉर्मल ट्राउजर और शर्ट भी खुली हुई। इस ड्रेस में वह ‘डेजर्ट सफारी’ की ओर जा रहा होता है। 
 
Source: Chase Your Dreams Like Crazy, And See The Results - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 19th November 2013

The Third Curve - Mansoor Khan's Incredible Book - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 19th November 2013








































































Source: The Third Curve - Mansoor Khan's Incredible Book - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 19th November 2013

Monday, November 18, 2013

Make A list Of 10 Things That You Wish To Do Before You DIE - Management Funda - N Raghuraman - 18th November 2013

उन 10 चीजों को लिखिए जो मरने से पहले करना चाहते हैं 

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन 


बेंगलुरू के इंदिरानगर में एक रेस्त्रां है, ‘द होल इन द वॉल कैफे।’ इसमें एक बड़ा सा सॉफ्ट बोर्ड (कम्प्यूटर स्क्रीन) लगा है। इस पर लिखा है, ‘वे 10 चीजें जो मैं मरने से पहले करना चाहता हूं।’ यानी रेस्त्रां अपने ग्राहकों को अपनी ख्वाहिशें लिखकर सार्वजनिक करने का प्रस्ताव देता है। ऐसे ही एक नोट ने मेरा ध्यान आकर्षित किया। एक गर्भवती महिला ने अपनी तस्वीर के साथ अपनी ख्वाहिश लिखी थी। उसने लिखा, ‘इससे पहले कि मैं इसे जन्म दूं (पेट की ओर से इशारा) और जीवन भर को भयभीत हो जाऊं, खूब नाश्ता करना चाहती हूं।’ दूसरे नोट ने मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट ला दी। इसमें लिखा था, ‘जवां और सुंदर मलयाली लड़का। 6.2 फीट। टूटकर प्यार की तलाश में। मेरा नंबर है...।’ मुझे आश्चर्य हुआ कि अगर लड़का इतना ही जवां और सुंदर है तो लड़कियां उसके पीछे क्यूं नहीं भागतीं। 


Source: Make A list Of 10 Things That You Wish To Do Before You DIE - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 18th November 2013

24 Years Limited To 22 Yards - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 18th November 2013




































































Source: 24 Years Limited To 22 Yards - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 18th November 2013

Saturday, November 16, 2013

KyaZoonga - Your Ticket To Life

क्याजूंगा - योर टिकट टू  लाइफ

 अपूर्व सक्सेना - जयपुर 



हाल के दिनों में क्याजूंगा ( KyaZoonga ) के बारे में आपने काफी सुना होगा या क्याजूंगा की सेवाएं भी ली होंगी, क्याजूंगा भारत की पहली और सबसे बड़ी खेल और मनोरंजन से सम्बन्धित ऑनलाइन टिकटिंग कंपनी है जहां आप अपनी पसंदीदा फ़िल्म या खेल की टिकट्स ऑनलाइन बुक करा सकतें है। 
क्याजूंगा ( KyaZoonga ) की दीवानगी की हद ये है की हाल ही में सचिन तेंदुलकर के फेयरवेल सीरीज के टिकट मैच की बिक्री के वक़्त सिर्फ एक घंटे में क्याजूंगा की साईट पर २० मिलियन से ज़यादा की हिट्स आयी जिसके चलते कुछ ही मिनटों में क्याजूंगा का सर्वर क्रैश हो गया।

स्रोत : http://www.kyazoonga.com/

A Leader Never Succumbs To Pressure From People - Management Funda - N Raghuraman - 16th November 2013

नेता कभी जनता के दबाव में नहीं आता

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन


हर एक व्यक्ति मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम के पहले दिन के 90 मिनट और दूसरे दिन के 120 मिनट को संजोकर रखना चाहेगा। गुरुवार को कमेंट्री बॉक्स में ब्रायन लारा, शेन वार्न, राहुल द्रविड़, सौरव गांगुली, सुनील गावसकर, आमिर खान थे। एक साथ। नाइकी से खास तौर पर ‘सचिन रमेश तेंडुलकर 200वां टेस्ट’ लिखी टी-शर्ट्स तैयार करवाई गई। टॉस के लिए इस्तेमाल किए गए सोने के सिक्के पर एक ओर बीसीसीआई का लोगो था। दूसरी ओर सचिन का चेहरा। स्टेडियम की गैलरी में बैठे दर्शक प्रार्थना कर रहे थे कि सचिन 101वां शतक जरूर बनाएं। 

Source: A Leader Never Succumbs To Pressure From People - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 16th November 2013

Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 16th November 2013








































































Source: Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 16th November 2013

Friday, November 15, 2013

Snapchat - Mobile Messaging App Shies Away From $3 Billion Facebook Offer

स्नैपचैट ने फेसबुक का तीन बिलियन डॉलर का प्रस्ताव ठुकराया

चीन की टेंसेंट भी कतार में


अपूर्व सक्सेना - जयपुर



इनकी उम्र मात्र २३ साल की है और वे स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के ड्रॉपआउट छात्र है और उनकी स्टार्टअप कंपनी को सिलिकॉन वैली की कई नामी वेंचर कैपिटलिस्टिक कम्पनीयां उन्हें अपना समर्थन दे रही है।

स्नैपचैट के संस्थापक इवान स्पीगेल अगले डॉटकॉम बिलियन बॉय बनने की तैयारी में है, और फेसबुक ने तो उन्हें इसका प्रस्ताव भी दे दिया है, वो भी कोई छोटा मोटा नहीं बल्कि पूरे तीन बिलियन डॉलर का ऑफर, जिसे स्नैपचैट के संस्थापक इवान स्पीगेल ने ठुकराया दिया है।

स्रोत : http://en.wikipedia.org/wiki/File:Snapchat_logo.png
आखिर ये स्नैपचैट है क्या ?

Hunger Is The Main Reason for Rise In Crimes - Management Funda - N Raghuraman - 15th November 2013

ज्यादातर अपराध की वजह भूख है

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन


पहली कहानी: मनोज अवाले सिर्फ 35 साल का है। वह इतनी उम्र में ही सात साल नासिक जेल में काट चुका है। एक व्यक्ति की हत्या के आरोप में उसे यह सजा सुनाई गई थी। जेल में वह प्याज उगाने का काम किया करता था। सिर्फ इतना जानता था कि सजा पूरी करने के बाद जीवनयापन के लिए यह काम तो कर ही सकता है। लेकिन उसे यह पता नहीं था जेल से बाहर की दुनिया में प्याज की कीमतें आसमान छू रही हैं। उसे घर पहुंचने के बाद इसकी जानकारी मिली। काम तो कोई था नहीं। लिहाजा, अपना और परिवार का पेट भरने के लिए उसने प्याज लूटकर बेचने की योजना बनाई। शुरू में छोटी-मोटी लूट की। फिर 280 किलो प्याज की गाड़ी लूटी। अब तक किसी का ध्यान उस पर नहीं गया। क्योंकि इलाके में प्याज की फसल खूब होती है। लेकिन जब उसने 700 किलो प्याज की गाड़ी लूटी तो पकड़ा गया। अब वह फिर जेल में है। इस बार प्याज लूटने के आरोप में। 

Source: Hunger Is The Main Reason for Rise In Crimes - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 15th November 2013

Thursday, November 14, 2013

You Alone Can Fight a Big Battle - Management Funda - N Raghuraman - 14th November 2013


बड़ी लड़ाई आप अकेले भी लड़ सकते है

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन


बिना अतिरिक्त पैसे दिए नया गैस कनेक्शन कैसे लें? सवाल न जाने कितने लोगों के दिमाग में कौंधता रहता होगा। तो इसके 10 तरीके यहां बताए जा रहे हैं..
 
1. नजदीकी गैस एजेंसी पर जाइए। वहां नए कनेक्शन और उसके चार्ज के बारे में पूछताछ कीजिए। इस दौरान वॉयस या वीडियो रिकॉर्डिग के लिए (जो भी उपलब्ध हो) अपना फोन तैयार रखिए। गैस एजेंसी का कर्मचारी आपको दो सिलिंडर के कनेक्शन के लिए 10,000 रुपए बताएगा। हो सकता है इससे ज्यादा भी बताए।
 
2. आप उस कर्मचारी से फिर कहिए कि आपको सिर्फ दो सिलिंडर वाला कनेक्शन ही चाहिए। इसके अलावा और किसी चीज की जरूरत नहीं है। इसके बाद भी कर्मचारी वही कीमत बताएगा। साथ में यह वादा भी करेगा कि तीन दिन के भीतर नया कनेक्शन मिल जाएगा। कर्मचारी के साथ हुई बातचीत को रिकॉर्ड कीजिए। 
 
3. एजेंसी मैनेजर के पास जाकर दोबारा पूरी जानकारी को चेक करें। उससे हुई बातचीत को भी रिकॉर्ड करें। आप पाएंगे कि मैनेजर और कर्मचारी की ओर से बताई गई कीमत में कोई फर्क नहीं है।
 
Source: You Alone Can Fight a Big Battle - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 14th November 2013

Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 14th November 2013



















































































Source: Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 14th November 2013

Wednesday, November 13, 2013

Work Speaks Louder Than Words - Management Funda - N Raghuraman - 13th November 2013

काम शब्दों से बेहतर बोलता है

 मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन 


उसके पिता हमेशा कहते थे, ‘मैं अपने बच्चों से बेहद प्यार करता हूं। उन्हें दोस्त की तरह मानता हूं। उन्हें कोई सलाह नहीं देता। उन्हें उनका करिअर चुनने की पूरी आजादी है। जब कोई तकलीफ हो तो वो मेरे पास आते हैं। मेरे लिए मेरे बेटे की शिक्षा सबसे अहम है। लेकिन वह अगर क्रिकेट को प्राथमिकता देता है तो उसे उसी दिशा में बढ़ना चाहिए। अगर वह फेल हो जाता है तो उसे अपनी हार स्वीकार कर लेनी चाहिए।’ माता-पिता को इस तरह कहते हुए आम तौर पर नहीं सुना जाता। खासकर मिडिल क्लास परिवारों में। हम सब ऐसे ही परिवारों से आते हैं और जानते हैं कि हमारे यहां शिक्षा हर चीज से ऊपर है। क्रिकेट से भी। लेकिन पहले पैराग्राफ में जिस बेटे के पिता का जिक्र है, उन्होंने क्रिकेट को सिर्फ प्राथमिकता नहीं दी। बल्कि अपने बेटे को उसमें डूब जाने दिया। उनके बेटे ने कभी किताबों में समय खराब नहीं किया। ज्यादातर समय क्रिकेट प्रैक्टिस ही की। एक हफ्ते, महीने या साल नहीं। पूरे 30 साल क्रिकेट को दिए। साल 2004 की बात है। स्ट्रेट टाइम्स, सिंगापुर में काम करने वाले मेरे एक पत्रकार मित्र रोहित बृजनाथ उसका इंटरव्यू करके बाहर आए थे। 

Source: Work Speaks Louder Than Words - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 13th November 2013

Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 13th November 2013




















































































Source: Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar13th November 2013

Tuesday, November 12, 2013

Your Smallest Idea Can Change The Life Of The Poorest - Management Funda - N Raghuraman - 12th November 2013

छोटा सा आइडिया भी बदल सकता है गरीब की जिंदगी

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन


पहला आइडिया: पति की मदद के लिए सलीम खान की पत्नी सिलाई का काम शुरू करना चाहती थी। उसे नई सिलाई मशीन खरीदना थी, लेकिन पैसे नहीं थे। इस तरह के लोगों के लिए स्मिता और उनके पति रामकृष्णा ने 2008 में एक योजना शुरू की, ‘रंग दे।’ यह ऑनलाइन प्लेटफार्म है, जिस पर छोटा-मोटा कारोबार करने और ऐसे लोगों को कर्ज देने के इच्छुक लोगों की जानकारी होती है। ‘रंग दे’ उच्च मध्यम आय वर्ग के लोगों को अवसर देती है कि वे निम्न आय वर्ग वालों की मदद कर सकें। स्मिता और उनके पति भारत के स्वतंत्रता संग्राम से प्रेरित हैं। उन्होंने देश में गरीबी की समस्या के समाधान की तरफ सबसे पहले फोकस किया। दोनों ने सबसे पहले दूर-दराज के इलाकों से अपनी योजना के लिए फील्ड पार्टनर चुने। 

Source: Your Smallest Idea Can Change The Life Of The Poorest - Management Funda - N Raghuraman - Dainik Bhaskar 12th November 2013

Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 12th November 2013



Source: Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 12th November 2013

Monday, November 11, 2013

Is There Any One Who Wants To Live Like You - Management Funda - N Raghuraman - 11th November 2013

क्या कोई और भी आप जैसे जीना चाहता है..

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन


सिर्फ 23 साल की हैं हॉलीवुड अभिनेत्री जेनिफर लॉरेंस। उन्हें ‘द हंगर गेम्स’ के लिए ऑस्कर अवॉर्ड मिला। इसमें वे कैटनिस एवरडीन नामक महिला की भूमिका में हैं। इसके बाद उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा कि उनके जीवन का आदर्श मैरिल स्ट्रीप हैं और वे उन्हीं की तरह जिंदगी जीना चाहती हैं। अब जो लोग मैरिल को नहीं जानते उन्हें उनके बारे में मैं कुछ बता दूं। मैरिल स्ट्रीप अमेरिका में 1949 में जन्मीं। वे 17 बार अकादमी अवॉर्ड के लिए नामांकित हो चुकी हैं और तीन बार जीत चुकी हैं। वे 27 बार ग्लोबल गोल्ड अवॉर्ड के लिए नामांकित हुईं। इनमें से आठ बार जीती भीं। उन्हें थिएटर, टीवी और फिल्मों की सबसे प्रतिभाशाली अमेरिकी अभिनेत्री माना जाता है। करिअर में सफलता के दौर में मैरिल ने बड़ा कदम उठाया। उन्होंने शादी करके हॉलीवुड छोड़ दिया। 

Source: Is There Any One Who Wants To Live Like You - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 11th November 2013

Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 11th November 2013































































Source: Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 11th November 2013

Sunday, November 10, 2013

Pick Up A Career Where You Are The Best - Management Funda - N Raghuraman - 10th November 2013

 





































































Source: Pick Up A Career Where You Are The Best - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 10th November 2013

Friday, November 8, 2013

Fly By Knight - Midnight Doorstep Delivery - Online Shopping of Different Kind

फ्लाई बाई नाइट - मिडनाइट डोरस्टेप डिलीवरी - अपने किस्म की  सबसे अनोखी ऑनलाइन शौपिंग सेवा

अपूर्व सक्सेना - जयपुर

 

अगर आपके घर रात को आपके बच्चे के डायपर ख़त्म हो गए है तो आप क्या करेंगे या फिर आपकी बीवी अपने मायके गयी हुई हो और अचानक आपको रात में भूख लग रही हो और खाना भी नहीं बनाना आता हो क्या करेंगे ? भूख के मारे सो जायेंगे या पडोसी को जगाएंगे ? ये वाकई सोचने वाली बात है। पर यदि आप मुम्बई में रहते है तो घबराने कि बात नहीं क्यूंकि आपके पास अब बहुत ही अनोखी सेवा फ्लाई बाय नाईट है जो आपकी लगभग हर ज़रुरत को पूरा कर सकती है।

स्रोत : http://www.flybyknight.in/

पिछले कुछ दस एक सालों में हमारे देश के रेहान सेहन में काफी बदलाव देखें गयें है, जिनमे हमारा काम करने का तरीका और माहौल भी शामिल है। वो ज़माना अलग था जब हमारे देश के लोग फैक्ट्री में तीन तीन शिफ्टों में काम किया करते थे , आज के वैश्वीकरण और e-Age के ज़माने में तस्वीर ही अलग है जहां रात में भी काम चलता रहता है ,BPO सेवाएं इसका जीता जागता उदहारण है। आई टी के क्षेत्र में अवसर बढ़ने से वैश्विक कॉल सेण्टर कम्पनियों ने भारत में अपने ऑफिस खोल लिए है और ऑफिशियल टाइमिंग 24x7 हो गए है। खाने पीने से सम्बंधित ऑनलाइन डिलीवरी कम्पनिया तो दिन में आपको सुविधाएं दे सकती है जैसे कि लोकल बनिया जिसके बारे में मैं आपको अपने ब्लॉग में बता ही चुका हूँ, पर ज़रुरत है एक ऐसी सेवा की जो रात में भी लोगो कि ज़रूरतों को पूरा कर सके। मार्किट की ज़रुरत को देखते हुए एक उभरती हुई इंटरप्रेन्योर, नेहा जैन ने इसे बदलने को ठाना है जिसे वे फिलहाल मुम्बई से शुरुआत कर रही है।

More Than The Contact, Dialogue Is Filled With Emotions and Humanity - Management Funda - N Raghuraman - 8th November 2013

संपर्क से ज्यादा मानवीय और भावनाओं से भरा है संवाद

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन

 
इस साल दिवाली पर मेरे घर काफी लोग आए। इतने सारे लोगों को देखकर काफी आनंद आया। खास मौकों पर आने वाले लोग मुझसे बात करना चाहते थे। जबकि जो लोग आते रहते हैं वे आंखों के इशारों से ही संदेश ले और दे रहे थे। लेकिन उनकी अंगुलियां फोन पर नाच रही थीं। शायद वे उसमें संदेश भेजने व आए संदेशों के जवाब देने में व्यस्त थे। जरा सोचिए। छोटी सी चीज (मोबाइल) जो हम सबके पास है, कितनी ताकतवर है। इसने हमें कितना बदल दिया है। इसके मार्फत अब हम एक नए चलन के अभ्यस्त हो गए हैं। ‘अकेले होकर भी सबके साथ रहने का चलन।’ तकनीक ने हमें इतना सक्षम बना दिया है कि हम कभी भी, कहीं भी, किसी से भी जुड़े रहे सकते हैं। 

Source: More Than The Contact, Dialogue Is Filled With Emotions and Humanity - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 8th November 2013

Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 8th November 2013

 



































































Source: Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 8th November 2013

Thursday, November 7, 2013

Illumine Someone's Life To Celebrate Festival Of Lights - Management Funda - N Raghuraman - 7th November 2013

किसी की जिंदगी रोशन कर मनाएं रोशनी का त्योहार

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन


फातिमा शकीरंद 16 साल की है। पूर्वी बेंगलुरू के एक पॉश कहे जाने वाले इलाके में मौजूद प्रेसिडेंसी स्कूल में पढ़ती है। वह अपने स्कूल के हमउम्र बच्चों के साथ 24 अक्टूबर को एक गरीब बस्ती में गई। वहां के सरकारी प्राइमरी स्कूल में। वहां बच्चों से बातचीत की। यह पहल स्कूल की थी और फातिमा के अलावा 20 बच्चे इसका हिस्सा बने थे। लेकिन इन बच्चों ने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि यह कार्यक्रम उन्हें अंदर तक बदल कर रख देगा। सरकारी स्कूल की इस यात्रा ने उनको अहसास कराया कि वे कितने खुशकिस्मत हैं। उन्होंने देखा कि यह स्कूल कुल जमा एक ही कमरे का था। इसमें दो अलग-अलग कक्षाओं के बच्चे आधे-आधे हिस्से में एक साथ एक ही वक्त पर बैठकर पढ़ रहे थे। खेलने के लिए एक छोटी सी जगह, जहां ठीक से उनका दौड़ना भी मुश्किल था। जब लंच टाइम हुआ तो इन बच्चों को स्कूल से करीब एक किलोमीटर दूर ले जाया गया। मिड-डे मील देने के लिए। वहां तक पहुंचने के लिए रास्ता भी कीचड़, गोबर, कचरे और गटर के पानी से भरा हुआ। 

 Source: Illumine Someone's Life To Celebrate Festival Of Lights - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 7th November 2013

Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 7th November 2013









































































 Source: Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 7th November 2013 

Wednesday, November 6, 2013

Effective Garbage Management Will Lead to Safety Of Environment - Management Funda - N Raghuraman - 6th November 2013

कचरे के पूर्ण प्रबंधन से पर्यावरण सुरक्षित होगा

मैनेजमेंट फंडा - एन रघुरामन

हम भारतीय अब भी कागज की रद्दी के बारे में पूरी तरह सचेत नहीं हैं। हालांकि सब जानते हैं कि कागज पेड़ों को काटने के बाद बनाया जाता है। इसके बावजूद हम कागज की बर्बादी रोकने के लिए ज्यादा जागरूक नहीं हैं। और अगर बात किसी शैक्षणिक संस्थान की हो तो वहां कुछ ज्यादा ही कागज बर्बाद होता है। कर्नाटक के मणिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के तीन स्टूडेंट-शशांक तुलस्यान, सिद्धार्थ भसीन और सुमन गर्ग भी इससे परिचित हैं। शशांक और सिद्धार्थ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन इंजीनियरिंग में और सुमन मैकेनिकल इंजीनियरिंग में चौथे साल के स्टूडेंट हैं। तीनों सिर्फ समस्या से परिचित हैं, ऐसा नहीं है। इन्होंने इसका हल निकालने की कोशिश भी की है। इन्होंने रद्दी कागज से पेपर, पेन, पेंसिल बनाना शुरू किया है। शशांक टीम के मुखिया हैं। सबसे पहले इन्होंने अपने कॉलेज कैंपस से ही रद्दी कागज इकट्ठा करना शुरू किया। शुरू-शुरू में इससे पेपर बैग और पेन स्टैंड्स वगैरह बनाए। इस शुरुआती प्रक्रिया में उन्हें लगा कि किसी खास कौशल की जरूरत नहीं है। लिहाजा उनकी टीम उत्साहित नहीं थी। 
स्रोत:  Effective Garbage Management Will Lead to Safety Of Environment - Management Funda By 

Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 6th November 2013









































































Source: Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 6th November 2013

Tuesday, November 5, 2013

Alternate Career Option - Health Inspector

कॅरिअर का बेहतरीन विकल्प हेल्थ इंस्पेक्टर 

मैनेजमेंट फंडा - एन रघुरामन 

 

हेल्थ इंस्पेक्टर के रूप में रोजगार के अवसरों की कमी नहीं है। यहां सरकारी नौकरी के रूप में केंद्र एंव राज्य सरकारों के स्वास्थ्य विभाग में कई रिक्तियां होती हैं। इसके अलावा निजी अस्पताल, बहुराष्ट्रीय कंपनियों और स्वास्थ्य से संबंधित अन्य विभागों में कंसल्टेंट, सुपरवाइजर/चीफ मैनेजर के रूप मे काम किया जा सकता है।

विज्ञान से स्नातक किया है और हेल्थ सेक्टर में कॅरिअर बनाना चाहते हैं तो हेल्थ इंस्पेक्टर का विकल्प बेहतरीन है। हेल्थ/सेनिटरी इंस्पेक्टर के रूप में आपको नियम एवं शर्ते मानते हुए स्वास्थ्य पर्यावरण के विभिन्न पहलुओं का निरीक्षण, रिपोर्ट, फील्ड वर्क और शोध करना होगा। इसके तहत मुख्य रूप से इस बात को सुनिश्चित करना होता है कि हमारे यहां के नागरिक/कंपनी स्वास्थ्य मानकों के ऊपर दृढ़ता से अमल कर रहे हैं या नहीं।

पढ़ाई

इस क्षेत्र में प्रवेश के लिए आप अपने राज्य के डायरेक्टोरेट ऑफ टेक्निकल एजुकेशन एंड इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग से मान्यता प्राप्त किसी भी संस्थान या पॉलिटेक्नीक से एक वर्ष का हेल्थ सैनिटरी इंस्पेक्टर कोर्स कर सकते हैं। बारहवीं के अंकों के आधार पर इसमें प्रवेश मिलता है (कुछ संस्थान दसवीं के बाद भी प्रवेश देते हैं)। विज्ञान विषयों के साथ बारहवीं उर्त्तीण या उच्च योग्यता युक्त डिग्रीधारी को वरीयता दी जाती है। इन कोर्सेज की अवधि 10-15 महीने की है। क्वालिफाइंग एग्जाम में मेरिट प्रवेश का आधार है। इसके अलावा कुछ संस्थान प्रवेश परीक्षा भी आयोजित करते हैं। आप इग्नू द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले न्यूट्रिशन एवं हेल्थ एजुकेशन कोर्स या नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर, नई दिल्ली द्वारा उपलब्ध कोर्सेज भी कर सकते हैं।

योग्यता

समूह में काम करने और साहसिक निर्णय लेने की काबिलियत। बेहतरीन संवाद योग्यता (लोगों को रिकमेंडेशन/सावधानियों के संबंध में इस प्रकार समझाना कि वे उन्हें स्वीकार कर लें)।

फिजिकल फिटनेस व स्टेमिना अच्छा होना चाहिए ताकि अतिरिक्त कार्य/लंबी अवधि तक काम करने के दबाव को झेला जा सके।

नौकरी के अवसर

सरकारी नौकरी के रूप में केंद्र एंव राज्य सरकारों के स्वास्थ्य विभाग में कई रिक्तियां होती हैं।

> निजी अस्पताल, बहुराष्ट्रीय कंपनियां और स्वास्थ्य से संबंधित अन्य विभागों में कंसल्टेंट, सुपरवाइजर/चीफ मैनेजर के रूप मे काम किया जा सकता है। 

> आगे चलकर आप सुपरवाइजर व मैनेजर स्तर की नौकरी कर सकते हैं।
> सैनिटरी इंस्पेक्टर कोर्स के बाद नगरपालिका, रेलवे, एयरपोर्ट, अस्पताल, होटल एवं उद्योगों के लिए काम कर सकते हैं।
> इसके अलावा हेल्थ एंड सेनिटेशन मैनेजमेंट ऑर्गनाइजेशन के साथ-साथ सेना में बतौर सैनिटरी/फूड/मलेरिया इंस्पेक्टर नियुक्त हुआ जा सकता है। 

Monday, November 4, 2013

To Help Somebody You Must Change Your Thinking - Management Funda - N Raghuraman - 4th November 2013

किसी की मदद करनी है तो पहले सोच में बदलाव लाएं 

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन


18 साल के एक छात्र को अपनी पढ़ाई की फीस भरने में मुश्किलें आ रही थीं। वह अनाथ था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि पैसे कहां से मांगे। उसने अपने एक दोस्त के साथ मिलकर कैंपस में एक म्यूजिकल कन्सर्ट आयोजित करने का फैसला किया। इससे होने वाली आमदनी से उन्होंने अपनी पढ़ाई का खर्च निकालने की योजना बनाई। दोनों किसी तरह मशहूर पियानोवादक इज्नेसी जे. पाडेरेव्स्की के पास पहुंचे। पाडेरेव्स्की के मैनेजर ने शर्त रख दी कि 2000 डॉलर की फीस मिलने पर ही वे कन्सर्ट में पियानो बजाएंगे। छात्र तैयार हो गए और कन्सर्ट को सफल बनाने के लिए दिन-रात जुट गए। कन्सर्ट का दिन आ गया, लेकिन छात्र पूरे टिकट नहीं बेच पाए। वे 1600 डॉलर ही जमा कर पाए। निराश होकर वे पाडेरेव्स्की के पास पहुंचे और उन्हें अपनी हालत के बारे में बताया। उन्होंने 1600 डॉलर की नकद राशि के साथ 400 डॉलर का चेक पाडेरेव्स्की को दिया, इस वादे के साथ कि जल्द ही उन्हें यह रकम भी मिल जाएगी। लेकिन पाडेरेव्स्की ने इससे साफ इनकार करते हुए चेक फाड़ दिया। 

Friday, November 1, 2013

Start Saying NO And Face Your Challenges - Management Funda - N Raghuraman - 1st November 2013

‘ना’ कहना छोड़ें और चुनौतियों का सामना करें

  मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन



पहली कहानी: वह केवल 13 साल की थी। उसका शारीरिक विकास इतना नहीं हुआ था कि वह फिल्मों में हीरोइन की भूमिका अदा कर पाए। लेकिन मेकअप आर्टिस्ट ने उसे ऐसा रूप दिया कि वह ‘यादों की बारात’ में लीड हीरोइन के रूप में सामने आई। उसे यह भूमिका इसलिए मिली, क्योंकि वह सकारात्मक थी। उसे जो करने को कहा जाता वह कर देती। उसने किसी काम के लिए मना नहीं किया। एक फिल्म में उसके हीरो अमिताभ बच्चन थे। इसमें उसे डायलॉग के तौर पर अमिताभ बच्चन को ‘आई लव यू’ कहना था। 

 Source: Start Saying NO And Face Your Challenges - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 1st November 2013

Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 1st Nov 2013







































































Source: Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 1st Nov 2013