Wednesday, April 16, 2014

There Are Few Gifts Which Cannot Be Bought With Money - Management Funda - N Raghuraman - 16th April 2014

कुछ उपहार ऐसे होते हैं जो पैसों से नहीं खरीदे जा सकते


मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन



उप्र के प्रतापगढ़ की रामकुमारी यादव को पता नहीं था कि उन्हें कहां जाना है। उन्हें तो बस भीतर से कोई
आवाज सुनाई दी कि घर छोड़ दो और उन्होंने यही किया। टे्रन के अनरिजव्र्ड कंपार्टमेंट में जा बैठीं। वह भी बिना टिकट। टे्रन जहां ले जा रही थी, वे भी वहीं चली जा रही थीं। कोई मंजिल नहीं थी। भूख लगने पर खाना भी उन्हें साथी यात्री दे रहे थे। एक दिन बाद ट्रेन चेन्नई पहुंची तो वे वहीं उतर गईं। 

दिलोदिमाग स्थिर नहीं था इसलिए पहचान तक भूल चुकी थीं। शहर की एक व्यस्त सड़क पर अचानक उन्हें दौरे पडऩे लगे। वे चीखने लगीं। साड़ी फाडऩे लगीं। खुशकिस्मती से उन्हें दो लड़कियों- वंदना गोपीकुमार व वैष्णवी जयकुमार ने देख लिया। दोनों मेडिकल साइकाइट्रिक सोशल वर्क की स्टूडेंट थीं। इन्होंने रामकुमारी को दिलासा दी और उन्हें अपने साथ ले लिया। 

Source: There Are Few Gifts Which Cannot Be Bought With Money - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 16th April 2014  


दोनों लड़कियों ने शहर के कई ठिकानों के दरवाजे खटखटाए। लेकिन दिमागी तौर पर अस्थिर महिला को रखने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ। इसलिए उन्होंने खुद ही उनके लिए ठिकाना बना दिया। अपने घर के पास ही एक किराए का मकान लिया और उसमें रामकुमारी को ठहरा दिया। यह 1993 की बात है। धीरे-धीरे उनकी हालत में सुधार आने लगा और लोग दिमागी रूप से अस्थिर कुछ और महिलाओं को यहां लाने लगे।


वंदना और वैष्णवी ने इस ठिकाने का नाम भी रख दिया, 'द बनयान।' यानी बरगद का पेड़। उनके माता-पिता ने भी सहयोग किया। वे यहां ऑफिस असिस्टेंट, रसोइए और हेल्पर, जिस किसी भी रूप में जरूरत होती, काम करते। उस वक्त भी तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता ही थीं। उन तक भी इस प्रयास की खबर पहुंची। उन्होंने तुरंत अपनी ओर से इस आश्रय स्थल के लिए जमीन उपलब्ध करा दी।

टाटा के चेयरमैन रतन टाटा ने उस जमीन पर बिल्डिंग बनवा दी। आठ साल में 'द बनयान' की छांव के नीचे दिमागी तौर पर अस्थिर करीब 400 महिलाओं को आसरा मिलने लगा। इस बीच रामकुमारी की हालत में काफी सुधर गई। वे जब पूरी तरह ठीक हो गईं तो वंदना और वैष्णवी ने उन्हें प्रतापगढ़ वापस छोड़ आने का फैसला किया।

दोनों रामकुमारी के साथ प्रतापगढ़ पहुंचीं। वहां कई दिनों तक उनका घर ढूंढा। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। वे चेन्नई जाने के लिए ट्रेन पकडऩे रेलवे स्टेशन जा ही रहीं थीं कि रास्ते में एक साइकिल वाले ने रामकुमारी को देख लिया। उन्हें देखते ही ऐसे चिल्लाया जैसे भूत देख लिया हो।

फिर जब उसे रामकुमारी के होने का भरोसा हो गया तो उसने सवाल किया, 'क्या तुम बेला की मां हो?' बेला! रामकुमारी की सबसे बड़ी संतान। जब उन्होंने घर छोड़ा था तो महज 13 साल की थी। साइकिल वाला उन्हें लेकर रामकुमारी के घर पहुंचा।

रामकुमारी के घर वालों ने उन्हें मृत मान लिया था, लेकिन वह सबकी आंखों के सामने खड़ी थीं। उन्हें सामने देख उनके पति संतोष की तो बोलती ही बंद थी। दो बच्चे-राकेश और सपना ने मां को देखा तो दौड़कर उससे लिपट गए। उस वक्त पूरे घर में सजावट थी।

लेकिन क्यों? यह न किसी ने पूछा, न जवाब मिला। फिर तभी, सामने से बेला आती दिखी। दुल्हन के लिबास में। आज उसकी शादी जो थी। इस मौके पर मां को सामने देख उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था। इससे बेहतर उपहार के बारे में वह शायद सोच भी नहीं सकती थी। पिछले 20 साल में वंदना और वैष्णवी अपने संगठन के जरिए करीब 1,066 लोगों को उनके परिवारों से मिला चुकी हैं।  


फंडा यह है कि...

क्या आपने कभी किसी को ऐसा गिफ्ट दिया है जो पैसों से न खरीदा गया हो? नहीं किया। तो एक बार कोशिश जरूर कीजिए। 



There Are Few Gifts Which Cannot Be Bought With Money - Management Funda - N Raghuraman - 16th April 2014


































Source: There Are Few Gifts Which Cannot Be Bought With Money - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 16th April 2014  

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