Saturday, February 15, 2014

Whatever You Do, You Have to Be Best - Motivation Management Funda - N Raghuraman - 15th February 2014

आप जो भी करें, उसमें सर्वश्रेष्ठ होना ही होगा


मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन



उस समय उनकी उम्र 10 साल थी। कक्षा चौथी में थे। रिपोर्ट कार्ड मिला तो पांच विषयों में 'ए' मिला था और एक में 'बी'। मां ने रिपोर्ट कार्ड देखने के बाद कहा, 'हमारे परिवार में कोई भी 'बी' हासिल नहीं कर सकता। अगली बार रिपोर्ट कार्ड में मुझे यह नहीं दिखना चाहिए। आपको अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना होगा।'

उसके बाद उन्हें कभी किसी विषय में 'बी' नहीं मिला। उन्हें यह भी अहसास हुआ कि जब प्रयास श्रेष्ठ होते हैं तो सफलता निश्चित होती है। उनके माता-पिता ने उन्हें बताया कि जिंदगी में कभी कोई शॉर्टकट नहीं होता। परफेक्शन के लिए संघर्ष करना ही पड़ता है। 

Source: Whatever You Do, You Have to Be Best - Motivation Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 15th February 2014

Gunday Review - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 15th February 2014

अनेक सतहों पर प्रवाहित फिल्म


परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे 


आदित्य चोपड़ा और अली अब्बास जफर की फिल्म 'गुंडे' अनेक स्तर पर काम करती है और सतह के नीचे बहती लहरें अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। सबसे ऊपरी सतह पर ये दो विस्थापित मित्रों की कहानी है जिन्हें हालात के कारण रोटी छीनकर खाने की आदत पड़ जाती है। इन दोनों पात्रों का बचपन 'स्लमडॉग मिलियनेयर' की याद दिलाता है जिसमें जिंदगी की निर्मम पाठशाला में तपकर दो इस्पाती नौजवान सामने आते हैं। पुलिस अफसर इरफान खान इन दोनों अभिन्न मित्रों के बीच एक लड़की के माध्यम से फूट डालता है ताकि वे एक-दूसरे के दुश्मन हो जाएं। दोस्त, दुश्मन और दुश्मन दोस्त पर अनेक फिल्में बनी हैं और सारे षड्यंत्र के बाद भी उनकी दोस्ती कायम रहती है। 

Source: Gundey Review - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 15th February 2014 

Friday, February 7, 2014

Natural Born Artist - Parineeti Chopra - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 7th February 2014

एक स्वाभाविक कलाकार का उदय


परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे



परिणीति चोपड़ा और सिद्धार्थ मल्होत्रा अभिनीत 'हंसी तो फंसी' का प्रदर्शन होने जा रहा है और अभी तक केवल इतनी जानकारी प्राप्त है कि यह आदि से अंत तक परिणीति की फिल्म है। उसकी भूमिका एक सनकी वैज्ञानिक की है और पागल की भूमिका करने के तौर-तरीके निश्चित है। क्योंकि पागल को केंद्र में रखकर देश-विदेश में अनेक फिल्में बनी हैं। अर्थात मैडनेस को परदे पर प्रस्तुत करने की एक मेथड बन चुकी है। परंतु सनकीपन और उस पर वैज्ञानिक होना कुछ नया अनुभव हो सकता है। 
Source: Natural Born Artist - Parineeti Chopra - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 7th February 2014

Thursday, February 6, 2014

Speed Up Your Life By Information Technology - Management Funda - N Raghuraman - 6th February 2014

इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी से जिंदगी को दें नई रफ्तार

 

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन


पहली कहानी : 


भारत में हर साल 10 लाख लोगों को कैंसर होता है। आईसीआईसीआई जैसी निजी इंश्योरेंस कंपनियों के मुताबिक कैंसर के कारण लिए गए तमाम मेडिक्लेम के दावों में बीते एक साल में 33 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। इस आंकड़े का सबसे अच्छा पहलू यह है कि कई लोगों ने कैंसर से लड़ाई में जीत हासिल की। कैंसर की सबसे बड़ी वजह तंबाकू है, लेकिन जो लोग तंबाकू का सेवन करते हैं वे कैंसर की हाई रिस्क वाली श्रेणी में आते हैं। उनको अक्सर मालूम नहीं होता कि कैंसर उनके शरीर में बढ़ता रहता है और अचानक से सामने आ जाता है।

Source: Speed Up Your Life By Information Technology - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 6th February 2014

Sherlock Holmes And Byomkesh Bakshi - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 6th February 2014

शरलक होम्स और व्योमकेश बख्शी


परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे


निर्माता आदित्य चोपड़ा और निर्देशक दिवाकर सरकार डिटेक्टिव व्योमकेश बख्शी नामक फिल्म बनाने जा रहे हैं जिसमें सुशांत सिंह राजपूत नायक हैं और संभवत: बंगाली बाला स्वास्तिका मुखर्जी नायिका होंगी। व्योमकेश बख्शी बंगाल के शरलक होम्स हैं। देवकीनंदन खत्री के चंद्रकांता और भूतनाथ के अरसे पहले डॉ. ऑर्थर कानन डॉयल में काल्पनिक पात्र शरलक होम्स की रचना की और स्वयं को मॉडल बनाकर होम्स के मित्र एवं सामान्य बुद्धि के डॉ. वॉटसन का चरित्र गढ़ा। 
 
Source: Sherlock Holmes And Byomkesh Bakshi  - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 6th February 2014

Wednesday, February 5, 2014

For Better Results Go To The Bottom of The Issue - Management Funda - N Raghuraman - 5th February 2014

बेहतर नतीजे के लिए मसले की तह तक जाएं



मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन


पहली कहानी: 

 
आदमखोर बाघ या तेंदुआ के बारे में सुनकर ही इंसान कांप जाता है। लेकिन इंसान के सामने इससे भी बड़ी समस्या कर्नाटक में हाथी खड़ी कर रहे हैं। बाघ या तेंदुआ आम तौर पर इंसानों की बस्तियों में नहीं जाते। लेकिन हाथियों के साथ ऐसा नहीं है। वे इंसानों के दोस्त होते हैं और कभी उनके लिए परेशानी भी बन जाते हैं। मैसूर और कुर्ग जिलों के बीच बने नागरहोल नेशनल पार्क के लिए फॉरेस्ट अफसर भी इसी परेशानी से जूझ रहे हैं। इस नेशनल पार्क के बाघ-तेंदुओं ने पिछले चार साल में एक-दो मौकों पर ही इंसानों को हानि पहुंचाई है। लेकिन हाथी छह लोगों को मार चुके हैं। 28 लोगों को घायल भी कर चुके हैं। 
 
Source: For Better Results Go To The Bottom of The Issue - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 5th February 2014

Broken Relationships And Illusion of Their Treatment - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 5th February 2014

टूटते रिश्तों के इलाज का भ्रम


परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे



अब तो यह शोध का विषय है कि पश्चिम में किस विषय पर शोध नहीं हो रहा है। जानकारियों के फैलते दायरे अब सीमाहीन हो गए हैं। विज्ञान द्वारा जन्मी 'गटर गंगा' में तो जानकारियों की बाढ़ क्षण प्रति क्षण बढ़ती जा रही है। ताजा शोध यह है कि जिन दंपतियों के जीवन में किसी कारण दरार आ गई है, उनको सलाह दी गई है कि महीने में पांच रोमांटिक फिल्मों को देखने अथवा उनके बारे में बातचीत करने से दरार भर जाती है। टूटती शादियों के विशेषज्ञों से मिलने से बेहतर है कि रोमांटिक फिल्में देखी जाए और उन पर बातचीत की जाए। दरअसल इस सलाह के पीछे कारण यह है कि दंपति अधिक समय साथ गुजारे तो टूटते हुए रिश्ते की राख के नीचे छुपी प्रेम की चिंगारी विवाह के तंदूर को फिर दहका सकती है। यह भी संभव है कि यथार्थ जीवन की कड़वाहट से रूमानी फिल्म का वातावरण आपका ध्यान हटा सकता है। परदे पर नायक नायिका के अंतरंगता का प्रस्तुतीकरण टूटते रिश्ता को सहारा दे सकता है। यह भी संभव है कि पति-पत्नी फिल्म देखते समय सो जाए। नींद शरीर ही नहीं आत्मा का थकान ही है। यह शोध तीन वर्षों के अध्ययन के बाद सामने आया है। फिल्म देखते समय दर्शक का आत्मीय तादात्म्य पात्रों के साथ बन जाता है और यही बात एक दवा के रूप में इस्तेमाल की जा सकती है। गोयाकि अब फिल्म एक थेरेपी है और मन में समाये शून्य को समाप्त कर सकती है।

Source: Broken Relationships And  Illusion of Their Treatment - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 5th February 2014

Tuesday, February 4, 2014

Inability Or Circumstances Cannot Be A Hurdle To Success - Motivation Management Funda - N Raghuraman - 4th February 2014

सफलता में बाधा नहीं बन सकते अक्षमता या हालात


मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन



अक्षमता की कहानी: 

मध्यप्रदेश के दमोह में रहने वाली सृष्टि तिवारी की आंखों में बचपन से मोतियाबिंद है। उसके 11 ऑपरेशन हो चुके हैं। लेकिन हालात में सुधार नहीं हुआ। उल्टा समय के साथ-साथ स्थिति और बिगड़ गई। आज उसकी आंखों में सिर्फ पांच फीसदी ही दृश्यता बची है। यानी वह 95 फीसदी दृष्टिहीन हो चुकी है। लेकिन उसने अपनी इस अक्षमता को कभी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। पढ़ाई में शुरू से ही अव्वल रही। कई स्कॉलरशिप व सर्टिफिकेट उसके नाम हो चुके हैं। सृष्टि के मामा और नाना-नानी ने पढ़ाई की तरफ उसके रुझान को नोटिस किया। उसकी हर कदम पर मदद की। उन्होंने उसका आत्मविश्वास बढ़ाया। परीक्षाओं में सहयोग किया। पढ़ाई-लिखाई में जो परेशानियां पेश आईं उनका मुकाबला करना सिखाया। उनसे निकलने का रास्ता दिखाया। कक्षा पांचवीं के बाद से ही वह अपने नाना-नानी वीरेंद्र और सुनीता गंगेले व मामा वीके गंगेले के साथ रह रही है। सृष्टि को बे्रल लिपि भी आती है। इसी की मदद से वह स्कूल में अपने नोट्स तैयार करती है। सृष्टि के मामा ने उसे एक लो-विजन डिवाइस लाकर दी है। ताकि वह किताब-कॉपियों में लिखे हुए को पढ़ सके। लेकिन इसके जरिए भी वह एक घंटे से ज्यादा पढ़ नहीं पाती थी। तब उसके मामा, नाना या नानी उसे नोट्स पढ़कर सुनाते हैं। तब तक जब तक कि उसे पाठ याद न हो जाए। इस तरह उसने रोज चार-पांच घंटे पढ़ाई की। बोर्ड परीक्षाओं की तैयारी की। फिर एक लेखक की मदद से बोर्ड परीक्षा में बैठी। नतीजा ये कि 2013 की एमपीबोर्ड परीक्षा में वह प्रदेश में चौथे स्थान पर रही। 
Source: Inability Or Circumstances Cannot Be A Hurdle To Success - Motivation Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 4th February 2014 

Do Cinestars Think About Death ? Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 4th February 2014

क्या सितारे मृत्यु का विचार करते हैं?


परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे



हॉलीवुड सितारे डस्टिन हॉफमैन की मृत्यु का समाचार सुनकर शाहरुख खान के मुंह से यह निकला कि इतना महान सितारा कैसे मर सकता है। इस तरह की बात टेलीविजन समाचार में देखी। सच है कि शाहरुख खान को सदमा पहुंचा है और दुनिया भर के सिनेमा प्रेमियों को दु:ख हुआ है परंतु वाक्य विन्यास कुछ ऐसा है कि सुपर सितारा कैसे मर सकता है?

मानो वह अमर है। शब्द और वाक्य विन्यास से बेहतर है कि बोलने वाले की नीयत को देखें तो शाहरुख को दु:ख हुआ है परंतु इस पर भी विचार किया जा सकता है कि फिल्म दर फिल्म सैकड़ों को मारने वाला नायक संभवत: अपनी मृत्यु के विचार को अपने मन में आने ही नहीं देता, उनकी फिल्मी छवि अमर-अजर हो सकती है परंतु वे भी सामान्य मनुष्यों की तरह मरते हैं और हम सभी सामान्य आम लोग जानते है, कि मृत्यु अवश्यंभावी है परंतु मृत्यु का विचार सितारों के मन में शायद सबसे बाद में आता है क्योंकि वे अपनी विराट फिल्मी छवि को सत्य मानने लगते हैं। यक्ष के प्रश्न के उत्तर में युधिष्ठिर ने कहा था कि सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि मृत्यु को अवश्यंभावी जानकर भी कोई कभी उसका विचार नहीं करता। संभवत: मृत्यु पर लगातार सोचने का अर्थ है कि मरने के पहले किश्तों में मरते जाना। सरल सा कालातीत सत्य यह है कि केवल नेकी और अच्छाई से ही मृत्यु को जीता जा सकता है फिर आप 'मर कर भी किसी के आंसुओं में मुस्कराएंगे, जीना इसी का नाम है।' 
 
Source: Do Cinestars Think About Death ? Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 4th February 2014

Monday, February 3, 2014

A Question Cannot Be Termed As Wrong - Management Funda - N Raghuraman - 3rd February 2014

किसी सवाल को गलत नहीं कहा जा सकता


मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन


अर्जुन (नाम बदल दिया गया है क्योंकि वह विकलांग है।) को उस वक्त बहुत दिक्कत होती थी जब टीचर उसे अपने पास बुलाते। उससे कहते कि वह बाकी क्लास को संबोधित करे। उस दौरान वह अपने जूतों के फीते भी ठीक ढंग से नहीं बांध पाता था। सवाल-जवाब के पूरे सेशन में भी उसके सवालों को 'गलत' करार दे दिया जाता। उन्हें सिलेबस से बाहर का माना जाता। लेकिन कुछ टीचर थे जो उसे सवाल पूछने के लिए हमेशा प्रोत्साहित करते। वे मानते थे कि कथित 'गलत सवाल-जवाबों' से भी कई बार शानदार आइडिया मिलते हैं।
  
शायद इसीलिए फाइनल सेमेस्टर में उसने बड़ा बिजनेस आइडिया दिया। उससे टीचर ने उसके बिजनेस प्रोजेक्ट आइिया के बारे में पूछा था। उसने जवाब दिया, 'एक ऐसा जूता डिजाइन करना चाहता हूं, जिसमें फीते बांधने की जरूरत ही न पड़े।' 

Source: A Question Cannot Be Termed As Wrong - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 3rd February 2014

Sunday, February 2, 2014

Cooperation Makes A Child Hero Or A Villain - Management Funda - N Raghuraman - 2nd February 2014

सहयोग बनाता है बच्चे को नायक या खलनायक


मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन



यह कहानी दो बच्चों की है। इन बच्चों की उम्र 12 वर्ष थी। दोनों की कल्पनाओं में, इच्छाओं में निशानेबाजी तैरती थी। कुछ वक्त बाद एक अपनी जिंदगी को नायक की तरह जीने में कामयाब रहा। उसे गरीबी के बावजूद परिवार का सहयोग मिला। जबकि दूसरे के पास कोई सहयोग नहीं था। सही वक्त पर सही व्यक्ति से मुलाकात होने के बावजूद वह खलनायक बन गया। 

नायक की कहानी: 


मध्यप्रदेश के मऊ में एक गांव है हरसोला। आर्मी फायरिंग रेंज के पास रहने वाली यहां की एक लड़की वैसे तो आम लड़कियों की तरह ही थी। उसके पिता की आमदनी का जरिया आटो रिक्शा था। फायरिंग रेंज में गूंजने वाली गोलियों की तड़तड़ाहट इस लड़की को बड़ा आकर्षित करती थी। उसकी कल्पनाओं में रायफल और उससे निकलती गोलियां ही तैरा करती थी। लेकिन इस लड़की के लिए वहां तक पहुंचा आसान नहीं था। बेटी की इच्छा जानकर पिता ने उसके लिए रास्ता तैयार किया। जब वह सातवीं क्लास में थी तब उसे एक समर कैंप में हिस्सा लेने का मौका मिला। यह कैंप सेना के बच्चों की टीम के लिये आयोजित किया गया था। कैंप में लगाए अचूक निशानों ने इस लड़की को जूनियर शूटिंग टीम में पहुंचा दिया। यहां उसे अपने हुनर को निखारने के लिये एक हफ्ते की ट्रेनिंग मिली। यह कहानी है अपने जूनून को जिंदा रखने वाली निशानेबाज राजकुमारी राठौड़ की। बीते साल अगस्त में राजकुमारी को अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया। यह अवॉर्ड सिर्फ खेल नहीं, बल्कि खिलाड़ी की लीडरशिप, स्पोटर्समैन स्प्रिट और अनुशासन जैसी विशेषताओं के लिए दिया जाता है। राठौड़ मप्र की एकमात्र एकेडमी प्लेयर हैं जिन्हें यह अवॉर्ड मिला है। 

Source: Cooperation Makes A Child Hero Or A Villain - Management Funda by N Raghuraman - Dainik Bhaskar 2nd February 2014

Saturday, February 1, 2014

An Idea Which Made Housewives A Business Partner - Motivation Management Funda - N Raghuraman - 1st February 2014

एक आइडिया ने हाउसवाइव्स को बनाया बिजनेस पार्टनर


मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन



अभी एक दिन पहले ही 30 जनवरी को चेन्नई में एक नया रेस्टोरेंट खुला है। इसका नाम है-पॉप अप। करीब 60 लोग उद्घाटन के दिन यहां जुटे हुए थे। रेस्टोरेंट में पेश व्यंजनों का स्वाद लेने के लिए। और कमाल की बात ये है कि इस रेस्टोरेंट में कोई भी डिश किसी पेशेवर रसोइए ने नहीं बनाई थी। न ही होटल मैनेजमेंट का कोर्स कर चुके किसी स्टूडेंट ने। 'होम शेफ गिल्ड' नाम की एक संस्था की सदस्यों ने ये डिशेस तैयार की थीं। इस संस्था की सभी सदस्य हाउसवाइव्स हैं। वे महिलाएं जिन्हें उनके घर या मोहल्ले के बाहर शायद ही कोई जानता हो। 'होम शेफ गिल्ड' बनाने का आइडिया पहली बार केपी बालाकुमार के दिमाग में आया। केपी फूड ब्लॉगर हैं। मूल आइडिया ये था कि घरेलू महिलाओं को एक कॉमन प्लेटफॉर्म मिले। जहां वे अपनी-अपनी पसंदीदा डिशेस की रेसिपी एक-दूसरे के साथ शेयर कर सकें। धीरे-धीरे यह प्लेटफॉर्म एक यूनिट की तरह काम करने लगा। यहां से बेकरी के उत्पाद तैयार किए जाने लगे। बिकने भी लगे। सभी महिला सदस्य एक-दूसरे के लिए छोटी-मोटी इवेंट का आयोजन करने लगीं। यह सिलसिला दो साल चला। 
Source: An Idea Which Made Housewives A Business Partner - Motivation Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 1st February 2014 

Ekta's Film On Azharuddin - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 1st February 2014

अजहरुद्दीन पर एकता की फिल्म


परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे



एकता कपूर ने क्रिकेट खिलाड़ी अजहरुद्दीन के जीवन पर आधारित फिल्म बनाने का निश्चय किया है और खिलाड़ी के साथ कानूनी कार्यवाही पूरी हो गई है तथा पटकथा लिखी जा रही है। एकता कपूर ने सचिन तेंदुलकर या द्रविड़ पर फिल्म नहीं बनाते हुए मोहम्मद अजहरुद्दीन का चुनाव इसलिए किया कि उसके जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव रहे हैं, उसकी तीन प्रेम कहानियां हैं, उस पर फिक्सिंग के आरोप हैं और सबसे बड़ी बात यह कि वह इतने गरीब परिवार से आया है कि टेस्ट में चयन के बाद ही वह अपने लिए क्रिकेट खेलने के जूते और बल्ला खरीद पाया। इसके पूर्व अभ्यास व रंजी ट्राफी के खेलों में वह कैनवास के साधारण जूते और मांगे हुए बल्लों से खेलता रहा था। व्यवसायिक सिनेमा के लिए नायक का गरीब घर से आकर सफलता पाना उसे आसानी से आम दर्शक के साथ जोड़ देता है। उसे शिखर पर पहुंचने के बाद अपने युवा पुत्र की मोटर साइकिल दुर्घटना में मृत्यु का दारुण दु:ख भी झेलना पड़ा है। 

Source: Ekta's Film On Azharuddin - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 1st February 2014