बहुत तेजी से फैलता है अच्छाई का वायरस
मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन
वह उस दिन काम से देर से घर लौटी थी। अमेरिका के ह्यूस्टन में स्थित उसके घर पर पिता अकेले थे। वे लंबे समय बाद भारत से बेटी के पास आए थे। बेटी के देर से आने से परेशान पिता ने उसके आते ही सवाल दागने शुरू कर दिए। देर से क्यों आई? उसने बताया कि वह ऑफिस से मोची की दुकान पर चली गई थी। अपने जूते ठीक कराने, इसलिए देरी हो गई। पिता को पता था कि अमेरिकी सड़कों पर मोची मिलना बेहद मुश्किल है। वे यह भी जानते थे कि अमेरिकी अपने टूटे-फूटे सामान को सुधरवाने के बजाय कचरे में फेंकना ज्यादा पसंद करते हैं, क्योंकि उन्हें चीजें सुधरवाने के बजाय नई खरीदना सस्ता पड़ता है। उन्होंने बेटी से पूछा कि उसने जूते सुधरवाने में कितने पैसे खर्च किए? और मोची की दुकान आखिर है कहां? बेटी ने बताया कि घर से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर मोची की दुकान है। मोची ने उससे जूते सुधारने के 12 डॉलर (करीब 750 रुपए) लिए। जबकि नए जूते 10 डॉलर (करीब 625 रुपए) में आ जाते हैं।
Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 30th September 2013