बॉक्स ऑफिस, चुनाव और परिवार
परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे
इम्तियाज अली के छोटे भाई आरिफ अली की फिल्म "लेकर हम दीवाना दिल' प्रदर्शित हो रही है जिसके निर्माता सैफ अली खान है गोयाकि उनकी पत्नी करीना कपूर खान भी निर्माता ही हैं और फिल्म का नायक युवा अरमान जैन है जो राजकपूर की बेटी रीया तथा मनोज जैन का पुत्र है। अरमान और आरिफ परिवारवाद नहीं अपने दमखम पर चलेंगे।
फिल्म में परिवारवाद की भावना है परंतु राजनीति में परिवारवाद को कुछ दलों ने एक गाली में बदल दिया है, जबकि परिवार ही मध्यम वर्ग की रीढ़ की हड्डी रहा है और वैदिक संस्कृत ने अपने उदात स्वभाव के अनुरूप पूरे विश्व को ही एक कुटुंब के रूप में परिभाषित किया था परंतु दुर्भाग्यवश बौने लोगों द्वारा इस संस्कृति की संकीर्ण परिभाषा की गई है, जो इसके राजनीति से जुड़ने के कारण हुई है।
Source: Box Office, Election and Family - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 4th July 2014
अगर धर्म और राजनीति अलग रहते तो संभवत: किसी वोट बैंक के मिथ के कारण किसी तरह की संकीर्णता इसमें प्रविष्ट नहीं हो पाती। आज त्रिशूल, कमंडल इत्यादि कर मुक्त किए गए हैं और वैदिक विराट विचार को अनदेखा कर दिया गया है।
परिवार सारी सभ्यताओं के विकास का मूल यूनिट रहा है परंतु आर्थिक असमानता अन्याय ने लाभ लोभ के लिए पलायन अनिवार्य कर दिया और मूल यूनिट संकुचित होकर अपने संस्कार देने की ताकत को खो चुका है। हमारे विचार-संसार में भी विरोधाभास हैं परंतु उनकी सही परिभाषा से इसे बचाया जा सकता था। मसलन गीता में कर्म करो और फल की चिंता नहीं करने के साथ भाग्यवादी बात भी कर दी गई है कि सारा जीवन, मृत्यु सब कुछ पहले ही तय है तो फिर कर्म का उपदेश क्यों दिया गया है।
मनुष्य की सारी पटकथा जन्म में मृत्यु तक पहले ही तय है। इस विरोधाभास को इस तरह बचाया जा सकता था कि फल की चिंता नहीं करना ही पूर्व निर्धारित पटकथा की बात है और कर्म ही सभी प्रश्नों का उत्तर है। भाग्यवाद की पटकथा को फल तक सीमित रखें, चलता केवल कर्म है। इसी तरह वैदिक सूत्र कि विश्व ही एक परिवार है का विरोध इस तरह है कि महाभारत परिवार के टूटने की ही कथा है परंतु महाभारत को कम से कम शब्दों में कहना हो तो यह कहानी स्वयं और अन्य की है कि विविध रिश्तों के कच्चे मीठे अनुभवों से गुजरने की प्रक्रिया स्वयं को जानने का माध्यम है और इसी ज्ञान से अन्य के साथ संघर्ष समाप्त हो जाता है।
आज भी जनजातियों में परिवार का अर्थ उनका पूरा गांव होता है। वे परिवार को केवल खून का रिश्ता नहीं मानते वरन् वह भौगोलिक टुकड़ा परिवार है जहां वे जीते मरते हैं। उनका इतिहास उनके भूगोल से जुड़ा है। मध्यम वर्ग के जीवन में परिवार का बहुत महत्व है और इसी वर्ग का टुच्चापन परिवार की परिभाषा को संकुचित करता है। श्रेष्ठी वर्ग में परिवार व्यवसाय की सीमाओं में परिभाषित होता है परंतु यही व्यावसायिकता मध्यम वर्ग में वीभत्स रूप से सामने आती है जब आय के आधार पर किसी सदस्य का आदर कम आय वाले से बड़ा बना दिया जाता है।
परिवार की परिभाषाओं में विविधता है, मसलन अमेरिका में मेडिकल इंश्योरेंस की तानाशाही और फतवे के कारण एक डॉक्टर दूसरे डॉक्टर के खिलाफ गवाही नहीं देता और कॉन्सपिरेसी ऑफ सायलेंस का हिस्सा बन जाता है। यह कितना अजीब है कि परिवार की महिमा गायन करते हुए इसे आलोचना का शिकार भी किया जा रहा है। पृथ्वीराज के तीनों पुत्रों ने घोर संघर्ष करके स्थान बनाया और अगली पीढ़ी में भी समर्थ ऋषिकपूर ही लंबी पारी खेल रहा है।
निर्मम बॉक्स ऑफिस के नियम कोई लिहाज नहीं करते, धर्मेंद्र पुत्र सनी सफल रहे अपने दम-खम पर जिसके अभाव में उनका छोटा भाई बॉबी देवल नहीं चला। इसी तरह राजनीति में चुनाव ही फैसला करता है। परिवारवाद को गाली बनाए जाने का कोई अर्थ नहीं है क्योंकि परिवार की भावना और संस्कार के विलोप करने के कारण ही भ्रष्टाचार से नहीं लड़ पा रहे हैं क्योंकि बच्चे के पहले स्कूल परिवार नहीं रहा है और स्कूल परिवार से दूर परिवार नहीं बन पाए।
Source: Box Office, Election and Family - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 4th July 2014
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