If you are looking forward to do something for society, then you should have a big heart, such is the inspiring and motivating story of Ratanamma, who was married 25 years ago but had no children. She adopted her sister's daughter and started taking good care of her, but her world came crashing down when she learned that the little girl suffers from Type - I Diabetes. She could feel the pain of not only her daughter but also other people who suffered from diabetes. She decided to help the people in what ever capacity that she could, this was the new beginning for Ratanamma.
Today Ratanamma, is a well known entity in surrounding villages of Ramnagar District in Karnataka which is 45 Km's away. She is considered no less than a doctor as she doesn't hold any medical degree and how could she, as she has not even completed her 8th grade. Her husband is an auto-rickshaw driver, but still villagers wait for her eagerly. She adorns her white apron and visits the villagers thrice a week along with her diabetes and blood pressure testing kit.
Credits: Transliteration done by Appoorv Saxena from the column Management Funda by N Raghuraman which appears in Dainik Bhaskar
Credits: Transliteration done by Appoorv Saxena from the column Management Funda by N Raghuraman which appears in Dainik Bhaskar
She advises people to change their lifestyle, also advises them what to eat and what not to eat, if she finds that the case is critical she sends the patient to the nearest hospital. She realized the magnitude of the disease related to diabetes when she saw her daughter taking the insulin to keep the diabetic levels at normal.
At very same time she came in contact with an NGO called Jansenjeevani. The NGO provides training to those people who wants to bring awareness among the people who are suffering from diabetes. During the training the volunteers are trained in areas like how to measure or check blood pressure or check the level of diabetes. Later the patients are also advised by the volunteers, as what to do or what to eat in situations like this. If the case is critical then the patient is referred to the hospital. Ratanamma is doing all this, besides many other volunteers and creating awareness about diabetes.
Volunteers advise patients where the related resources are available, and what kind of help is available to them. This very inspiring and motivating project started by "Jansanjeevani" is called "Madhur-Sanjeevani". The patients suffering from acute levels of diabetes are also helped with Insulin. The NGO has trained their volunteers in the same way as China's Barefoot Doctor Scheme.
At the rural level in China, these services are provided at Community Health Centers for better health services, the reason to name it bare foot is because the trained Rural Health Worker visits the needy for check ups from one place to another on bare foot.
Here at Jansanjeevani, like Ratanamma has been able to inspire and motivate a team of 16 volunteers, who in four months have covered about 1000 people who are living villages near Bengaluru, the volunteers are free to charge a nominal fee in return for their services but as for Ratanamma she offers her service free of cost. Not only this every Sunday she attends regularly the training sessions at Jansanjeevani. She also delivers lectures to the new volunteers and learns a new experience every time, this is her routine.
What an Inspirational and Motivational story of an ordinary human being, who against all odds stood up to do something meaningful in life. But to be able to this one should have a big heart. Isn't it?
Credits: Transliteration done by Appoorv Saxena from the column Management Funda by N Raghuraman which appears in Dainik Bhaskar
समाज के लिए कुछ करना है तो बस दिल बड़ा होना चाहिए
मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन
रतनम्मा की 25 साल पहले शादी हुई थी। कोई संतान न थी इसलिए वे बहन की बेटी को अपना मानकर उसकी देखभाल करती थीं। लेकिन जब उन्हें मालूम हुआ कि इस दुधमुंही बच्ची को टाइप-1 डायबिटीज की बीमारी है तो वे हिल गईं।
उस बच्ची की तकलीफ से उन्हें बाकी मरीजों के दर्द का भी अहसास हुआ। उन्होंने तय किया कि वे डायबिटीज के मरीजों की तकलीफ कम करने अपनी ओर से जो हो सकेगा, करेंगी। रतनम्मा के जीवन में यह नई शुरुआत थी।
आज कर्नाटक में बेंगलुरू के नजदीकी रामनगर जिले के गांवों में 48 साल की रतनम्मा किसी डॉक्टर से ज्यादा लोकप्रिय हैं। उनके पास मेडिकल की कोई डिग्री नहीं है। हो भी कैसे सकती है। उन्होंने तो आठवी कक्षा तक पढ़ाई भी पूरी नहीं की है। पति ऑटो ड्राइवर हैं। फिर भी गांव के लोग उनके आने का बेसब्री से इंतजार करते हैं। हफ्ते में तीन दिन वे सफेद एप्रिन पहनकर गांवों की ओर निकल जाती हैं। हाथ में होती है डायबिटीज और ब्लडप्रेशर टेस्टिंग किट।
Source: If You Want to do Something for Society, then you Should Have A Big Heart - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 2nd July 2014
वे संबंधित व्यक्ति को जीवनशैली में बदलाव की सलाह देती हैं। यह भी बताती हैं कि वह क्या खाए और क्या नहीं। मामला गंभीर दिखा तो तुरंत नजदीकी अस्पताल भेज देती हैं। रतनम्मा ने जब अपनी छोटी सी बच्ची को डायबिटीज की वजह से इंसुलिन पर आश्रित देखा तो उनकी आंखें खुलीं। उन्हें इस बीमारी की गंभीरता का अंदाजा हुआ।
उसी वक्त वे एक जनसंजीवनी नामक स्वयंसेवी संगठन के संपर्क में आईं। यह संगठन ऐसे लोगों को डायबिटीज से मुकाबले का प्रशिक्षण देता है, जिनके बच्चे, परिजन या नज़दीकी रिश्तेदार इस बीमारी से पीडि़त हैं। इस ट्रेनिंग के तहत लोगों को कई प्रकार की चीजें सिखाई जाती हैं। मसलन, मरीज का ब्लड प्रेशर चैक करना। उसके डायबिटीज के स्तर को जांचना।
फिर ऐसे लोगों को क्या करना चाहिए और क्या नहीं यह बताना। खान-पान कैसा हो कैसा नहीं यह समझाना। मामला गंभीर नजर आए तो उसे तुरंत अस्पताल भेजना। रतनम्मा यही सब काम कर रही हैं। उनके जैसे और भी कई वालंटियर्स जनसंजीवनी से प्रशिक्षण लेने के बाद ग्रामीण इलाकों में इसी तरह की सेवाएं दे रहे हैं। साथ ही ये लोगों को डायबिटीज से बचाव के प्रति जागरूक भी करते हैं।
पीडि़तों को ये लोग बताते हैं कि इस संबंध में कहां-किस तरह की मदद उपलब्ध है। जनसंजीवनी के इस प्रोजेक्ट का नाम है-मधुर संजीवनी। इसके तहत मरीजों को इंसुलिन भी उपलब्ध कराया जाता है। संगठन ने कार्यकर्ताओं के समूह को ठीक वैसे ही ट्रेंड किया है जैसे चीन में बेयरफुट डॉक्टर स्कीम के तहत गांवों में चुनिंदा किसानों को ट्रेंड किया गया है।
चीन में ग्रामीण स्तर पर सामुदायिक स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर करने के लिए यह योजना चलाई जा रही है। इस योजना को बेयरफुट नाम दिए जाने की भी वजह है। इसलिए क्यूंकि ट्रेंड ग्रामीण हैल्थ वर्कर अक्सर जरूरतमंद के चैकअप आदि के लिए नंगे पैर ही एक से दूसरी जगह जाते हैं।
बहरहाल जनसंजीवनी ने अब तक रतनम्मा की तरह 16 वालंटियर्स को तैयार कर लिया है। इन लोगों ने पिछले चार महीने में ही बेंगलुरू से लगे ग्रामीण अंचलों में करीब 1,000 लोगों तक अपनी पहुंच बना ली है। वालंटियर्स को इजाजत है कि वे मरीजों से थोड़ी-बहुत फीस ले सकते हैं। लेकिन रतनम्मा अपनी सेवाएं मुफ्त ही देती हैं।
यही नहीं वे हर इतवार जनसंजीवनी की ट्रेनिंग कक्षाओं को नियमित रूप से अटेंड करती हैं। वहां ट्रेनिंग के लिए आए नए लोगों को लेक्चर भी देती हैं। और हर बार कुछ नया सीखकर भी जाती हैं। अब यही उनका रूटीन है।
Source: If You Want to do Something for Society, then you Should Have A Big Heart - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 2nd July 2014
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