शादी = बैंड, बाजा, बारात
परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे
ऋतिक रोशन के तलाक के बाद करिश्मा कपूर का भी तलाक हो गया है। अमीरों के तलाक से पहले मोटी रकम का आर्थिक लेन-देन होता है और यह राशि कभी उजागर नहीं की जाती। आजकल तो बड़े लोगों के घर में विवाह के पूर्व ही इस तरह का अनुबंध भी किया जाता है कि रिश्ते टूटने पर तलाक के लिए कितनी रकम देनी होगी।
जरा सोचिए कि इस तरह के रिश्तों में कितना विश्वास है कि संबंध बनने से पहले टूटने का मुआवजा तय किया जा रहा है। एक बड़े निर्माण परिवार के छोटे पुत्र का विवाह इसीलिए नहीं हुआ कि कन्या ने इस तरह के अविश्वास से भरे करारनामे पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया। विदेशों में अनेक प्रसिद्ध लोगों का दीवाला ही निकला है तलाक की कीमत चुकाने के कारण।
Source: Shaadi = Band, Baaja, Baaraat - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 3rd July 2014
जर्मनी के प्रसिद्ध टेनिस खिलाड़ी बोरिस बोर्ग को तो अपनी विम्बलडन ट्रॉफियां बेचनी पड़ीं। एलिजाबेथ टेलर को अपनी फिल्मों के मेहनताने से अधिक रकम उन आधा दर्जन तलाकों से मिली जो उन्होंने किए थे। रिचर्ड बर्टन और एलिजाबेथ टेलर ने एक बार तलाक देकर दोबारा शादी की थी परंतु वह भी टिकी नहीं। उनका रिश्ता एक जंगल की तरह रहा जिसमें दो शेर, दो राजा कैसे रह सकते थे।
मध्यम वर्ग और निम्र वर्ग इन झंझटों से मुक्त है। यह बात अलग है कि मध्यम वर्ग में जितनी कुंठाएं और वर्जनाएं हैं, उतनी निम्र आर्थिक वर्ग में नहीं हैं। जनजातियों में शादियां और तलाक बिना किसी खर्च के होते हैं।
भारत के ग्रामीण क्षेत्र में तो प्राय: किसान विवाह या मृत्युभोज के लिए ऋण लेकर अपना पूरा जीवन सूद में चुका देते थे। अनेक सामाजिक संगठनों और महान व्यक्तियों ने सदियों के प्रयास से शादियों को आडम्बरहीन करने के प्रयास किए थे और दहेज जैसी कुप्रथा से मुक्ति के प्रयास किए थे।
इस कार्य में मिली आंशिक सफलता को भी नष्ट कर दिया सूरज बडज़ात्या की फिल्म 'हम आपके हैं कौन' ने क्योंकि उसी फिल्म की अपार सफलता के बाद शादियां पांच दिन की होने लगीं। सच तो यह है कि सूरज बडज़ात्या की फिल्म एक बहाना मात्र थी, यह तो आर्थिक उदारवाद के बाद कुछ लोगों के पास बहुत धन आ गया और उन्हें उसके अभद्र प्रदर्शन के लिए मौके की तलाश थी।
कुछ संपन्न समाजों में विवाह के दलाल होते हैं जो दो समृद्ध परिवारों में रिश्ता कराते हैं और विवाह पर खर्च राशि पर उन्हें कमीशन भी मिलता है। अनेक व्यवसाय शादियों पर टिके हैं तथा इसी तथ्य पर आदित्य चोपड़ा ने 'बैंड बाजा बारात' बनाई थी।
आजकल डेस्टीनेशन वेडिंग भी होती हैं अर्थात वर-वधु पक्ष किसी तीसरे स्थान पर एकत्रित होते हैं। कई होटलों का इस तरह की शादियों के आयोजन का अच्छा-खासा अनुभव भी है। किसी अन्य की शादी उत्सव पर युवा लोगों की प्रेम कहानियां अंकुरित होती हैं।
दरअसल हम उत्सव प्रेमी लोग हैं और शादी अच्छी खासी छेड़छाड़ के अवसर देती है, चुहलबाजी के लिए यह शुभ मुहूर्त बन जाता है। आज महानगरों में अनेक विवाहित युवा यह तय करते हैं कि उन्हें बच्चे नहीं पैदा करना है और दोनों नौकरियों से लौटकर क्लब या होटलों में डिनर करते हैं अर्थात सारा आनंद चाहिए, परंतु उत्तरदायित्व से इनकार है।
इस तरह के जोड़ों को डिन्कस अर्थात डबल इनकम नो किड्स कहते हैं। उनके लिए शादी एक खत्म न होने वाला रास है। इस तरह के विचार वाले लोग यह कैसे भूल जाते हैं कि अगर उनके माता-पिता की भी यही धारणा होती तो उनका अफसाना अजन्मा रह जाता।
मेरा एक रिश्तेदार है आकाश प्रकाश, जिसने अपनी लाखों की कमाई की नौकरी केवल इसलिए छोड़ दी कि उसे अपने पुत्र और पुत्री को शिक्षित करना है और उन्हें ढालने के लिए कुछ वर्ष वह काम नहीं करेगा। वह अपने पितृ ऋण से इस तरह मुक्त हो रहा है।
शादी नामक संस्था के समाप्त होने की बात कुछ उसी अंदाज में की जा रही है जिसमें सिनेमा की मृत्यु की बात की जाती है। कुछ लोगों का व्यवसाय ही डराने और काल्पनिक हव्वे खड़े करने का है। हम प्राय: संसार समाप्त होने की भविष्यवाणियों को चटखारे लेकर बांचते हैं।
बहरहाल मैं स्वयं श्री हरिकृष्ण प्रेमी के पास उनकी कन्या के हाथ मांगने गया था तो संकोचवश बात इस तरह की कि किताबें महंगी हो गई हैं और मैं तथा उनकी पुत्री ऊषा आधी-आधी रकम देकर किताबें खरीदते रहे हैं अत: शादी करना चाहते हैं।
प्रेमी जी भीतर चले गए। यह तो मैं जानता था कि उनके घर में बंदूक नहीं है, परन्तु वे लठ तो ला ही सकते थे। वे लौटकर आए और उन्होंने कहा कि प्रति वर्ष वे एक-एक हजार रुपए हम दोनों को देंगे ताकि किताबें खरीद सकें। उन्होंने कहा कि शादी के लिए केवल प्रेम ही आवश्यक है। अगर प्रेम है तो विवाह करो अन्यथा किताबों के लिए वे हमेशा धन देते रहेंगे। प्रेम विहीन विवाह सबसे बड़ा बोझ होता है जिसे ढोते-ढोते कई लोगों की जिंदगी उजड़ जाती है।
Source: Shaadi = Band, Baaja, Baaraat - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 3rd July 2014
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