सफलता में बाधा नहीं बन सकते अक्षमता या हालात
मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन
अक्षमता की कहानी:
मध्यप्रदेश के दमोह में रहने वाली सृष्टि तिवारी की आंखों में बचपन से मोतियाबिंद है। उसके 11 ऑपरेशन हो चुके हैं। लेकिन हालात में सुधार नहीं हुआ। उल्टा समय के साथ-साथ स्थिति और बिगड़ गई। आज उसकी आंखों में सिर्फ पांच फीसदी ही दृश्यता बची है। यानी वह 95 फीसदी दृष्टिहीन हो चुकी है। लेकिन उसने अपनी इस अक्षमता को कभी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। पढ़ाई में शुरू से ही अव्वल रही। कई स्कॉलरशिप व सर्टिफिकेट उसके नाम हो चुके हैं। सृष्टि के मामा और नाना-नानी ने पढ़ाई की तरफ उसके रुझान को नोटिस किया। उसकी हर कदम पर मदद की। उन्होंने उसका आत्मविश्वास बढ़ाया। परीक्षाओं में सहयोग किया। पढ़ाई-लिखाई में जो परेशानियां पेश आईं उनका मुकाबला करना सिखाया। उनसे निकलने का रास्ता दिखाया। कक्षा पांचवीं के बाद से ही वह अपने नाना-नानी वीरेंद्र और सुनीता गंगेले व मामा वीके गंगेले के साथ रह रही है। सृष्टि को बे्रल लिपि भी आती है। इसी की मदद से वह स्कूल में अपने नोट्स तैयार करती है। सृष्टि के मामा ने उसे एक लो-विजन डिवाइस लाकर दी है। ताकि वह किताब-कॉपियों में लिखे हुए को पढ़ सके। लेकिन इसके जरिए भी वह एक घंटे से ज्यादा पढ़ नहीं पाती थी। तब उसके मामा, नाना या नानी उसे नोट्स पढ़कर सुनाते हैं। तब तक जब तक कि उसे पाठ याद न हो जाए। इस तरह उसने रोज चार-पांच घंटे पढ़ाई की। बोर्ड परीक्षाओं की तैयारी की। फिर एक लेखक की मदद से बोर्ड परीक्षा में बैठी। नतीजा ये कि 2013 की एमपीबोर्ड परीक्षा में वह प्रदेश में चौथे स्थान पर रही।
Source: Inability Or Circumstances Cannot Be A Hurdle To Success - Motivation Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 4th February 2014
हालात की कहानी:
मध्यप्रदेश के ही बैतूल जिले में रहती है पूनम घोरे। देश के सबसे व्यस्त भोपाल-नागपुर रेलवे ट्रैक के किनारे बसी जयप्रकाश झुग्गी बस्ती में। जिस झुग्गी में पूनम रहती है, वह 20गुणा10 से ज्यादा बड़ी नहीं होगी। यही नहीं बगल के रेलवे ट्रैक से रोज करीब 140 ट्रेनें गुजरती हैं। हाइवे भी नजदीक से ही गुजरता है। वहां से आने-जाने वाली गाडिय़ों का लगातार होने वाला शोर-शराबा अलग। झुग्गी के हालात, हल्ला-गुल्ला, वायु प्रदूषण के बीच क्या कोई ध्यान एकाग्र कर सकेगा?
लेकिन पूनम ने इस सबके बावजूद हर रोज छह-सात घंटे पढ़ाई की। मन लगाकर। बिजली कटौती और विपरीत मौसम ने भी उसे विचलित नहीं किया। उसके पिता गनपति किडनी के मरीज हैं। इसलिए वे कोई काम नहीं कर पाते। घर का खर्च मां प्रमिला के काम के बल पर चलता है। वह पहले घरों में झाड़ू-पोंछा का काम करती थी। अब स्थानीय आंगनबाड़ी में काम करने लगी है। कुल आमदनी 4,000 रुपए ही होती है। इसी रकम से घर का और पूनम की पढ़ाई-लिखाई का खर्च चलता है। इसके बावजूद पूनम ने पढ़ाई नहीं छोड़ी। एक के बाद एक परीक्षाएं पास करती गई। और किसी भी परीक्षा में उसके 90 फीसदी से कम नंबर नहीं आए। पेंटिंग में उसकी खास रुचि रही। ऐसे ही एक पेंटिंग कॉम्पटीशन में जिले के एसपी ललित शाक्यवर जज थे। यह बच्ची इस कॉम्पटीशन में भी अव्वल रही। एसपी उससे बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने उसे हर महीने 1,000 रुपए की मदद की घोषणा कर दी। वहां से उसे बैतूल में जिले के स्कूल ऑफ एक्सिलेंस में भी भिजवा दिया।
अब पूनम उसी स्कूल के हॉस्टल में रह रही थी। यहीं रहते हुए उसने 2013 के 10वीं बोर्ड एक्जाम की तैयारी की। जब नतीजा आया तो पूनम मध्यप्रदेश एजुकेशन बोर्ड की मैरिट लिस्ट में टॉप पर थी। उसने 600 में 587 नंबर हासिल किए थे।... ये तो सिर्फ दो उदाहरण हैं। इनकी तरह और भी कई प्रतिभाएं हैं। जिन्होंने अक्षमता और हालात को मात दी। आने वाले एक्जाम सीजन में ऐसे लोग हमारे रोल मॉडल होने चाहिए। इन्हें सामने रखकर अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
Source: Inability Or Circumstances Cannot Be A Hurdle To Success - Motivation Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 4th February 2014
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