किसी सवाल को गलत नहीं कहा जा सकता
मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन
अर्जुन (नाम बदल दिया गया है क्योंकि वह विकलांग है।) को उस वक्त बहुत दिक्कत होती थी जब टीचर उसे अपने पास बुलाते। उससे कहते कि वह बाकी क्लास को संबोधित करे। उस दौरान वह अपने जूतों के फीते भी ठीक ढंग से नहीं बांध पाता था। सवाल-जवाब के पूरे सेशन में भी उसके सवालों को 'गलत' करार दे दिया जाता। उन्हें सिलेबस से बाहर का माना जाता। लेकिन कुछ टीचर थे जो उसे सवाल पूछने के लिए हमेशा प्रोत्साहित करते। वे मानते थे कि कथित 'गलत सवाल-जवाबों' से भी कई बार शानदार आइडिया मिलते हैं।
शायद इसीलिए फाइनल सेमेस्टर में उसने बड़ा बिजनेस आइडिया दिया। उससे टीचर ने उसके बिजनेस प्रोजेक्ट आइिया के बारे में पूछा था। उसने जवाब दिया, 'एक ऐसा जूता डिजाइन करना चाहता हूं, जिसमें फीते बांधने की जरूरत ही न पड़े।'
Source: A Question Cannot Be Termed As Wrong - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 3rd February 2014
देश में 2001 तक करीब 2.19 करोड़ लोग किसी न किसी रूप में विकलांग थे। साल 2011 तक संख्या बढ़कर 2.68 करोड़ हो गई। और इस साल यानी 2013 के अंत तक तीन करोड़ के करीब। ये आंकड़ा ऑस्ट्रेलिया की आबादी के आसपास है। या शायद उससे भी कहीं ज्यादा।
लेकिन इसके बावजूद देश में एक भी ऐसा शू स्टोर नहीं है, जहां खास विकलांगों के लिए जूते मिलते हों। कोई फैशन शोरूम्स ऐसा नहीं मिलेगा जहां रैम्प होता हो या एक ऐसा ट्रायल रूम, जहां व्हीलचेयर के साथ जाया जा सके। लेकिन दूसरे देशों में ऐसा नहीं है। अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप के कई देशों में एडाप्टिव क्लॉथिंग बिल्कुल आम है। एडाप्टिव क्लॉथिंग यानी विकलांगों के लिए उनकी जरूरत के मुताबिक खास किस्म की ड्रेसेस। यही नहीं वहां के शोरूम्स में उनके रैम्प और व्हीलचेयर फ्रेंडली चेंजिंग रूम की सुविधा भी होती है।
इन समस्याओं के मद्देनजर अर्जुन और उसकी 35 सदस्यों वाली टीम ने शहर के कुछ अन्य विकलांगों को बुलाया। उनसे उनकी समस्याएं जानीं। खासकर कपड़ों-जूतों आदि से संबंधित। लोगों ने जो समस्याएं बताईं, उससे अर्जुन और उसकी टीम को बिजनेस आइडिया मिला। इसके जरिए शारीरिक रूप से सक्षम एक बड़ी आबादी को सुविधा दी जा सकती थी। ये स्टूडेंट्स नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन डिजाइन (एनआईएफटी) चेन्नई के हैं। इन्होंने ऐसी शर्ट बनाई है, जिसे टी-शर्ट की तरह उतारा व पहना जा सकता है।
यह शर्ट उन लोगों के लिए है, जिन्हें बटन लगाने में मुश्किल होती है। इसी तरह ऐसा पैंट बनाया जिसमें बटन या जिप लगाने की जरूरत ही न पड़े। इसमें कमर में पीछे की ओर इलास्टिक बैंड दिया गया है।
बेल्ट बांधने में भी कई लोगों को मुश्किल होती है। इसलिए पैंट के साथ ही बैल्ट जैसे लुक वाला एक बकल व हुक लगा दिया गया। फिलहाल ये कपड़े परीक्षण के दौर में हैं। इसके बाद इन्हें मई में एनआईएफटी के फैशन शो में प्रदर्शित किया जाएगा। एनआईएफटी के स्टूडेंट्स के साथ इस आइडिया पर एबिलिटी फाउंडेशन भी काम कर रहा है।
एक देश जहां लोग सही-गलत सवालों और जवाबों के फेर में ही उलझे रहते हैं, वहां एक तरह से क्रिएटिविटी को खत्म ही किया जाता है। और इसीलिए जब क्रिएटिविटी के मसले पर अगर हमसे किसी का नाम पूछा जाए तो डॉ. सीवी रमन का नाम ही याद आता है। जिन्होंने अपने काम और रचनात्मकता क बल पर नोबेल पुरस्कार जीता। और लगता है कि अगले 200 साल तक भी हम डॉ. रमन का नाम ही लेते रहेंगे। क्योंकि हमारे यहां क्रिएटिविटी को प्रोत्साहन देने का आम चलन ही नहीं है।
फंडा यह है कि...
सवाल कभी सही-गलत नहीं होते। उनकी इस तरह की कोई पहचान नहीं होती। उनके या तो जवाब दिए जा सकते हैं या उन्हें बिना जवाब दिए छोड़ा जा सकता है। यानी अगर आप लोगों को सवाल पूछने के लिए प्रोत्साहित करेंगे तो इससे क्रिएटिविटी को भी बढ़ावा मिलेगा।
Source: A Question Cannot Be Termed As Wrong - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 3rd February 2014
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