क्या सितारे मृत्यु का विचार करते हैं?
परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे
हॉलीवुड सितारे डस्टिन हॉफमैन की मृत्यु का समाचार सुनकर शाहरुख खान के मुंह से यह निकला कि इतना महान सितारा कैसे मर सकता है। इस तरह की बात टेलीविजन समाचार में देखी। सच है कि शाहरुख खान को सदमा पहुंचा है और दुनिया भर के सिनेमा प्रेमियों को दु:ख हुआ है परंतु वाक्य विन्यास कुछ ऐसा है कि सुपर सितारा कैसे मर सकता है?
मानो वह अमर है। शब्द और वाक्य विन्यास से बेहतर है कि बोलने वाले की नीयत को देखें तो शाहरुख को दु:ख हुआ है परंतु इस पर भी विचार किया जा सकता है कि फिल्म दर फिल्म सैकड़ों को मारने वाला नायक संभवत: अपनी मृत्यु के विचार को अपने मन में आने ही नहीं देता, उनकी फिल्मी छवि अमर-अजर हो सकती है परंतु वे भी सामान्य मनुष्यों की तरह मरते हैं और हम सभी सामान्य आम लोग जानते है, कि मृत्यु अवश्यंभावी है परंतु मृत्यु का विचार सितारों के मन में शायद सबसे बाद में आता है क्योंकि वे अपनी विराट फिल्मी छवि को सत्य मानने लगते हैं। यक्ष के प्रश्न के उत्तर में युधिष्ठिर ने कहा था कि सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि मृत्यु को अवश्यंभावी जानकर भी कोई कभी उसका विचार नहीं करता। संभवत: मृत्यु पर लगातार सोचने का अर्थ है कि मरने के पहले किश्तों में मरते जाना। सरल सा कालातीत सत्य यह है कि केवल नेकी और अच्छाई से ही मृत्यु को जीता जा सकता है फिर आप 'मर कर भी किसी के आंसुओं में मुस्कराएंगे, जीना इसी का नाम है।'
Source: Do Cinestars Think About Death ? Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 4th February 2014
जिस तरह का जीवन हम जीते हैं, उसी भांति मर भी सकते हैं परंतु अनेक बार वह अनायास व असमय भी आ जाती है। हमारे जन्म के साथ ही हमारी मृत्यु भी हमारे शरीर में मौजूद होती है और उसे अपने बुरे कामों से जल और खाद देते हैं तथा जिस दिन वह मृत्यु का वृक्ष हमसे बड़ा हो जाता है, हम प्रक्षेप कर जाते हैं। इस्लामिकलिटरेचर में भी हमजाद अवधारण का तात्पर्य भी यही है कि सारी उम्र मृत्यु हमारे अपने भीतर अवसर का इंतजार करती है। ऋषिकेश मुखर्जी की अमर फिल्म आनंद में भी कुछ बातें जो मूलत: शेक्सपीयर की है कि हम सब जिंदगी के मंच पर पात्र हैं और ऊपरवाले के डोर खींचने पर प्रक्षेप कर जाते हैं।
जीवन की तरह ही मृत्यु भी कोई डुप्लीकेटिंग मशीन नहीं है वरन् विविध है तथा उसका बखान कोई कर नहीं पाता है परंतु इसके प्रयास होते रहते हैं जैसे 'मृत्युशैया पर रिश्तेदारों से घिरा मनुष्य महसूस करता है कि सभी छवियां धूमिल पड़ती जा रही हैं और अंतिम समय साथ रह जाता है युधिष्ठिर का कुत्ता'। ज्ञातव्य है कि युधिष्ठिर को सशरीर स्वर्ग जाने का अवसर था परंतु उन्होंने अपने कुत्ते को साथ ले जाने का आग्रह किया क्योंकि वह कुत्ता उनकी निष्ठा का प्रतीक है और निष्ठाविहीन होकर स्वर्ग जाने का भी कोई अर्थ नहीं है।
राजकपूर दादा फाल्के पुरस्कार ग्रहण करते समय अचेत हुए। पहली बार राष्ट्रपति ने नियम कायदों को ताक पर रखकर स्वयं चलकर उनके निकट जाकर उन्हें सम्मानित किया क्योंकि उन्हें श्वास लेने में कठिनाई हो रही थी। यह तो 'जोकर' के दृश्य के समान मृत्यु है। कोमा में वे एक माह रहे और जीवन-काल में उन्हें अतीत की यादों की जुगाली का शौक था तो कोमावाले दिनों में भी संभवत: वह यादों में तल्लीन थे। 'याद' तो उनकी सृजन प्रक्रिया का हिस्सा थी। 'बरसात' की कथा को ही समसामयिक भ्रष्टाचार और नदियों को प्रदूषण मुक्त करने का विचार जोड़कर 'राम तेरी गंगा मैली' बनाई और 'आवारा' के विचार को पलटकर 'धरम-करम' बनाई। उनकी सारी पुरानी फिल्मों के पाश्र्व संगीत से ही उन्होंने अगली फिल्मों के गीत बनाए।
देव आनंद को विगत में जाना कतई पसंद नहीं था। वे तो फिल्म प्रदर्शन पूर्व ही नई फिल्म के विचार में डूब जाते थे। उन्हें केवल वर्तमान में रहना पसंद था। अत: उन्होंने अपनी मृत्यु को निकट जानकर लंदन जाने का तय किया और लंदन पहुंचने के चंद घंटों बाद ही उनकी मृत्यु हो गई तथा उनकी इच्छा के अनुरूप उनका दाह संस्कार लंदन में ही हुआ क्योंकि उन्हें भारत में अपनी मृत्यु का तमाशा नहीं बनाना था। इस तरह हम देखते हैं कि दो अलग ढंग से जीने वाले दो अलग ढंग से विदा भी हुए। इच्छा मृत्यु का वरदान पाने वाले भीष्म तीरों की सैया पर कई दिनों तक सूर्य के उत्तरायण होने की प्रती्षा करते रहे। यदि अंतिम समय में अम्बा उनसे आग्रह करती कि कम से कम अगले जन्म तो विवाह का आश्वासन दें तो क्या वे सहमति देते और अगर देते तो उनका ब्रहचर्य का व्रत भंग हो जाता? अम्बा ने शिखंडी के रूप में जन्म लिया था और वही उनकी मृत्यु का कारण भी बनी? अब आज के सुपर सितारे जानें कि वे किस तरह मरेंगे।
Source: Do Cinestars Think About Death ? Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 4th February 2014
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