किसी विषय को बेहतर तरीके से जानना चाहते हैं तो निबंध लिखिए
मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन
अगर आपसे कोई बांस पर निबंध लिखने को कहे और आप इस चुनौती को स्वीकार करने को तैयार हैं तो यह आर्टिकल न पढ़ें। इसके बजाय पहले अपने विचारों पर आधारित निबंध लिख डालें। फिर इसे पढ़ें। इसके बाद तुलना करें।
बांस विकास का वाहन हो सकता है, क्योंकि हरा-भरा रहना व दृढ़ता इसकी खासियत है। कहा जाता है कि बांस की एक नाल से ही इतनी ऑक्सीजन पैदा होती है, जितनी किसी कोजिंदगी भर काम आ सकती है। दुनियाभर में बांस की करीब 1,750 प्रजातियां बताई जाती हैं। आज भी विश्व की आबादी का पांचवां हिस्सा, बांस का इस्तेमाल कंस्ट्रक्शन के काम में करता है। पूरी दुनिया में 2015 तक बांस का बाजार एक लाख करोड़ का हो जाएगा, ऐसा अनुमान है। भारत दुनिया में बांस का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। चीन का नंबर पहला है।
Source: If You Want To Know More About A Subject Then Write An Esaay - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 3rd March 2014
हालांकि भारत के कुल वन क्षेत्र में बांस की हिस्सेदारी 12.8 फीसदी है। लेकिन कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में इसका हिस्सा कितना है, इसका अभी ठीक-ठीक पता लगाया जाना है। बांस के इस्तेमाल से बने मकान कितने मजबूत होते हैं, इसका अंदाजा टीपू सुल्तान के किले के आसपास मौजूद मकानों से लग सकता है। आज 75 साल बाद भी इनकी मजबूती पर कोई सवाल नहीं है।
देश में सबसे ज्यादा बांस उत्तर-पूर्व में होता है, करीब 28 फीसदी। इसके बाद मध्यप्रदेश का नंबर आता है। यहां करीब 20 फीसदी बांस का उत्पादन होता है। भारत में बांस की लगभग 175 किस्में मौजूद हैं और बांस का काम करने वालों में मेंढर समुदाय को सबसे बेहतर माना जाता है। असम में आज से 100 पहले तो मकान बांस से ही बनाए जाते थे। विशेषज्ञों को आज भी लगता है कि बांस मकान बनाने के लिए कंक्रीट का बढिय़ा विकल्प हो सकता है। इससे मकान निर्माण की लागत 40 फीसदी तक कम हो सकती है। अभी मकानों के निर्माण में स्टील और लकड़ी का इस्तेमाल काफी होता है। बांस को विकल्प के तौर पर उपयोग करने से इन दोनों चीजों का इस्तेमाल 70 फीसदी तक कम हो सकता है।
कंस्ट्रक्शन में उपयोग के लिए बांस तैयार होने में महज चार साल लगते हैं। यह एकदम रेडी टू यूज होता है। अभी बांस को वन उत्पाद माना जाता है। अगर केंद्र सरकार हरी झंडी दे तो किसान इसे खेतों में भी उगा सकते हैं।
ऐसा हुआ तो मकान निर्माण उद्योग को अच्छी मात्रा में एक मटेरियल मिल सकेगा। दुनिया के कई देशों ने इस बात को स्वीकार किया है कि आने वाली पीढ़ी के लिहाज से बांस ग्रीनेस्ट मटेरियल है। यानी इसके उपयोग से पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता। बांस बेहद हल्का होता है और सुरक्षित भी। ऐसी जगहों पर जहां भूकंप आने का खतरा होता है, वहां के लिए भी इसे सुरक्षित माना जाता है।
बांस को दीवारों, बीम, कॉलम, दरवाजों, खिड़कियों और फर्नीचर आदि में इस्तेमाल किया जा रहा है। यहां तक कि विंड एनर्जी के उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले पंखों की ब्लेड भी बांस से बनाई जा रही हैं। करीब 2,500 किस्म की चीजों में बांस का इस्तेमाल होता है।
बांस के मुद्दों पर विचार के लिए भारत में कई संस्थाएं हैं। इनमें बैंबू सोसायटी ऑफ इंडिया, इंस्टीट्यूट ऑफ वुड साइंस एंड टेक्नोलॉजी, नेशनल बैम्बू मिशन और इंडियन प्लाइवुड इंडस्ट्रीज रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट प्रमुख हैं। ये संस्थाएं लगातार कोशिश में हैं, समाज में इस मुद्दे पर जागरूकता लाने के लिए। इन्हीं कोशिशों के तहत भारत में हाल ही में इंटरनेशनल बैम्बू कॉनक्लेव एंड एक्सपो-2014 का आयोजन हुआ है।
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