कचरे की व्यवस्था और व्यवस्था का कचरा
परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे
आमिर खान ने अपने कार्यक्रम 'सत्यमेव जयते' के दूसरे सत्र के तीसरे इतवार को कचरे की समस्या को प्रस्तुत किया। उनके शोध विभाग ने कड़ा परिश्रम किया था और सच तो यह है कि कचरे का विषय उठाना ही प्रशंसनीय है। किसी मुंबई निवासी को नहीं ज्ञात था कि मुंबई पालिका प्रतिवर्ष 2300 करोड़ रुपए मात्र एकत्रित कचरे को शहर से दूर डम्पिंग मैदान पर डालने में खर्च करती है और हजारों टन कचरे के पहाड़ बन जाते हैं, गोयाकि धरती की गंदगी आसमान से सवाल कर रही है।
कुछ महानगरों ने विदेशों से कचरे को जलाने के लिए बड़े इनसिनेरटर खरीदे हैं परन्तु वे ज्ञानी अफसर यह तथ्य नहीं जानते कि पश्चिम के कचरे में खाली बोतलें, प्लास्टिक के डिब्बे और बैटरियां इत्यादि होते हैं, जबकि भारत में 'गीले कचरे' का प्रतिशत 'सूखे कचरे' से कहीं अधिक होता है और यह 'गीला कचरा' बायोगैस बनाने के काम आ सकता है और इससे बनाई गई खाद हजारों एकड़ बंजर पड़ी जमीन को उपजाऊ बना सकती है। यह खाद केमिकल खाद की तरह हानिकारक नहीं है, वरन् जमीन की उर्वरकता को बढ़ाते हुए उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचाती। 'गीले कचरे' का अर्थ है हमारा बचा-खुचा खाना, फलों के छिलके और सब्जियों के डंठल इत्यादि जबकि 'सूखे कचरे'का अर्थ प्लास्टिक, कांच पॉलीथीन की थैलियां इत्यादि होता है।
Source: Garbage Disposal System and System's Garbage - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 19th March 2014
आमिर खान के कार्यक्रम में भाभा संस्थान के एक अधिकारी ने बताया कि मात्र बत्तीस हजार रुपए में वे कचरे से बायोगैस बनाने के उपकरण व प्रक्रिया संचालन विधि बेचते हैं। यह राशि किसी भी संस्था के लिए मामूली रकम है। दरअसल महानगरों के कचरे से इतनी बायोगैस बनाई जा सकती है कि महानगर के घरों में काम आ सकती है। कुछ संस्थाओं ने इस तरह की पहल भी की है। एक विशेषज्ञ ने बताया कि कचरे की व्यवस्था के नाम पर बड़े भूखंड ठेकेदार को दिए जाते हैं, साथ ही उसे इसके लिए मोटी रकम भी दी जाती और वह ठेकेदार कुछ नहीं करके भी धन कमा रहा है। उनका कहना था कि सभी नगरों की पालिकाओं द्वारा किया गया खर्च संभवत: भारत का सबसे बड़ा स्कैम है। धन्य हैं भारतवासी जो इस तरह के मामलों से धन कमा लेते हैं। लाखों कर्मचारी इस कार्य के लिए नियत हैं। एक प्राइवेट कंपनी ने साफ-सुथरे कपड़े पहनी महिलाओं की नियुक्ति की है कचरा एकत्रित करने के लिए। कचरे से ऊर्जा का उत्पादन ही पर्यावरण की रक्षा कर सकता है।
एयरपोर्ट के नजदीक डम्पिंग ग्राउंड की अनुमति नहीं है, क्योंकि कचरे के पहाड़ों पर भोजन की तलाश में आए पक्षी हवाई जहाज को हानि पहुंचा सकते हैं। इसका सबसे भयावह पक्ष यह है कि इन कचरों के पहाड़ पर वर्षा होती है, धूप पड़ती है और इन कारणों से रासायनिक प्रक्रिया के कारण आसपास के वातावरण में जहरीली गैस फैल जाती है। निवासियों को भांति-भांति की बीमारियां हो जाती हैं। जब उन्होंने फ्लैट खरीदा था तब उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी कि चंद किलोमीटर पर डम्पिंग ग्राउंड बनाया जाएगा।
हमने परिचय की नकल करते हुए 'यूज एंड थ्रो' जीवन शैली को अपनाया है। हम ऐसी चीजें खरीदते हैं जिनका उपयोग केवल एक बार किया जाता है। यह जीवन शैली ढेरों कचरे का जन्म देती है। दरअसल यह केवल सुविधाजनक जीवन शैली नहीं है जिसमें हम इस्तेमाल करके चीजें फेंक देते हैं, वरन् यही बात हमारे रिश्तों में आ जाती है। मित्र का इस्तेमाल करो और उससे किनारा काट लो, इतना ही नहीं यही दृष्टिकोण परिवार के भीतर भी आ जाता है और बुजुर्गों के लिए घरों में अब जगह नहीं मिल रही है।
यह कितनी चौंकाने वाली बात है कि हर छोटी आदत, हर छोटी सुविधा कालांतर में अवचेतन का हिस्सा बन जाती है और 'यूज एंड थ्रो' लाइटट, बॉल पैन इत्यादि फैलकर रिश्तों में और घरों में घुस जाते हैं तथा राजनीतिक दल भी बुजुर्गों को हाशिया में फेंक देते हैं। आमिर खान अन्य सितारों से अलग है और सामाजिक सौदेश्यता उसकी विचार शैली का अंग है। व्यवस्था में चुनावों के बाद कभी 'गीला कचरा' आता है कभी 'सूखा कचरा' आता है।
Source: Garbage Disposal System and System's Garbage - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 19th March 2014
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