काम अगले लेवल पर ले जाएं तो दूसरी चीजें मायने नहीं रखतीं
मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन
वे रामचरित मानस से जुड़ा प्रसंग सुना रही थीं। तभी उन्होंने अपनी आंखें बंद कर लीं। सुनने वालों ने भी ऐसा ही किया। कहानी जारी थी। जटायु कह रहे थे, 'मैंने तभी एक जोर की चीख सुनी। वह सीता थीं। मैं आकाश में ऊंचाई की ओर उड़ा तो दस सिर वाले रावण को देखा। सीता को उस हालत में देखकर मैं बहुत डर गया। मैं सोच नहीं पा रहा था कि सीता के बिछड़ जाने से श्रीराम के दिल पर क्या गुजर रही होगी। उन्हें जब इसका पता चलेगा तो कितने दुखी होंगे। कितने क्रोधित होंगे।' जटायु बता रहे थे, 'मुझे उस वक्त बहुत गुस्सा आया।
Source: Things Do Not Matter If You Take Your Work to Another Level - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 5th March 2014
मैं तेजी से रावण की तरफ लपका ताकि उसे मारकर सीता की रक्षा कर सकूं। मैं जैसे ही रावण के विमान पर पहुंचा, उससे मेरा युद्ध छिड़ गया। मैंने उस पर कई वार किए, लेकिन इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। रावण बहुत बलशाली था और मैं बूढ़ा। जल्द ही थक गया पर हार नहीं मानी। लड़ता रहा क्योंकि मैं उस वक्त सिर्फ श्रीराम के बारे में सोच रहा था। इससे मुझे रावण से मुकाबले की शक्ति मिल रही थी।'
जटायु ने आगे कहा, 'रावण युवा था। ताकतवर भी। उसने तेजी से मुझ पर वार किया। मेरा एक पंख काट दिया। मैं नीचे गिर गया। रावण सीता को लेकर आकाश मार्ग से आगे बढ़ गया। गिरते समय मेरी आंखों में अफसोस के आंसू थे। मैंने सीता से क्षमा मांगी कि मैं उन्हें बचा नहीं सका। उन्होंने मुझे पलटकर देखा। उनकी आंखें मुझसे कह रही थीं कि मैंने उन्हें बचाने के लिए पूरी कोशिश की थी। जमीन पर गिरने के बावजूद मैं खुद से संघर्ष करता रहा। श्रीराम को पुकारता रहा। ताकि वे मेरी पुकार सुनें और जल्द से जल्द मुझ तक पहुंच जाएं।'
जटायु बोले जा रहे थे, 'यम देवता तेजी से मेरी ओर बढ़ रहे थे, लेकिन मुझे श्रीराम को पूरी घटना बतानी थी।
जब श्रीराम-लक्ष्मण मेरे पास आए तो मैने उन्हें पूरा किस्सा सुना दिया। उन्हें दक्षिण की ओर जाने को कहा। मैंने श्रीराम से भी क्षमा मांगी कि मैं सीता की रक्षा नहीं कर सका, लेकिन श्रीराम ने मुझे दिलासा दी। मेरे शरीर को अपने हाथों में लेकर कहा-कोई बात नहीं। इससे मुझे बड़ी राहत मिली। यम देव अब भी मेरे सामने खड़े थे। अब उनके साथ जाने में मुझे कोई हिचक नहीं थी। मैं उनके साथ चल दिया।'
यह कहानी सुनाते-सुनाते उन साध्वी की बंद आंखों से आंसू लुढ़ककर गालों पर आ गए थे। सामने बैठे श्रोताओं की भी यह दशा थी। सुनने वालों में ज्यादातर बुजुर्ग थे। उनके लिए कथा सुनाने वाली वह 34 साल की साध्वी उस वक्त किसी देवदूत से कम नहीं थी। करीब एक हजार लोग थे पांडाल में। लेकिन सन्नाटा ऐसा कि सुई के गिरने की भी आवाज सुनाई दे जाए। हर एक के चेहरे पर भक्ति के भाव साफ नजर आ रहे थे। सब के सब आनंद में मगन थे।
तीन घंटे कथा चली। इस दौरान किसी फोन की कोई घंटी तक नहीं सुनाई दी। पांडाल में बैठे ज्यादातर लोगों ने जटायु की यह कहानी सुन रखी थी, लेकिन उन्हें आज जटायु की जिस अहमियत का पता चला वैसा पहले कभी नहीं हुआ था। आज उन्होंने समझा कि जटायु ने यह जानते हुए भी वह सीता को बचा नहीं पाएंगे, अपनी जान दांव पर लगा दी। यह बोध उन्हें कराया था, विशाखा हरि ने। पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) हैं, लेकिन हरिकथा सुनाने में उनकी मास्टरी है। उन्होंने सीए किया क्योंकि उनके दोस्त यही कर रहे थे।
परिवार ने भी उन पर दबाव बना रखा था। विशाखा ने सीए की परीक्षा पास भी की, लेकिन हरिकथा से उनका लगाव उन्हें अपनी ओर खींच लाया। अब वे यही काम कर रही हैं। अंग्रेजी में भगवान के जीवन से जुड़े प्रसंगों का बखान करती हैं। लंदन, सिंगापुर, दुबई, क्लीवलैंड जैसे दूर देश की कई जगहों पर वे हरिकथा कह चुकी हैं। उन्हें देखकर कोई भी अचरज में पड़ जाता है। जाहिर भी है, वे जो कर रही हैं वह आमतौर पर बुजुर्गों का काम माना जाता है, लेकिन विशाखा ने मिथक तोड़ दिया है।
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