भूतनाथ की वापसी में सितारों की भीड़
परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे
बी .आर. फिल्म्स एवं भूषण कुमार की अमिताभ बच्चन अभिनीत 'भूतनाथ रिटर्नस' का शीघ्र प्रदर्शन होने जा रहा है। ज्ञातव्य है कि यह विगत फिल्म की अगली कड़ी है जिसमें कैलाशनाथ की आत्मा की मुक्ति हेतु एक यज्ञ उनके पोते ने किया था। इस भाग में वह मुक्त आत्मा लौटती है तथा गरीबों की दारुण दशा देखकर चुनाव लडऩे का निश्चय करती है। अत: एक तानाशाह, दुष्ट नेता के खिलाफ एक भूत चुनाव लड़ रहा है और अजूबों के लिए सदियों से आतुर आम जनता इस कौतुक को देखने के लिए आती है। भूत की आम सभाओं की भारी भीड़, जो कैमरे की ट्रिक नहीं है जैसा कि हम वर्तमान में देख रहे हैं, से स्थापित दुष्ट तानाशाह नेता घबरा जाता है और येनकेन प्रकारेण चुनाव जीतना चाहता है। उस नेता को चुनाव लडऩे का अनुभव है और वह गणतंत्र के इस खेल का खिलाड़ी है परंतु उसने कभी भूत के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ा है। वह हताश है।
Source: Multitude of Stars in Bhootnath Returns - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 7th March 2014
ज्ञातव्य है कि भूतनाथ की पहली कड़ी में शाहरुख खान ने एक पात्र अभिनीत किया था और उसी का एक्सटेंशन इस फिल्म में है, परंतु रनवीर कपूर ने भी अतिथि भूमिका अभिनीत की है और फिल्म में वे अपने सितारा रूप में ही प्रस्तुत हैं। अप्रेल ग्यारह को इस फिल्म का प्रदर्शन हो रहा है और चुनाव प्रक्रिया उस समय जारी रहेगी, अत: फिल्म अत्यंत समसामयिक बन चुकी है। निर्माता का मूल उद्देश्य बच्चों के मनोरंजन के रूप में इसे बनाना था परंतु एक भूत का चुनाव लडऩा उसे सभी वर्ग के दर्शकों के लिए आकर्षक सिद्ध कर सकती है। क्या उस लोक में भी मृत आत्माओं के संसार में चुनाव होते है? क्या स्वर्ग में कभी उर्वशी और इंद्र के बीच चुनाव संग्राम होता है?
हाल ही में एकता कपूर के जोधा अकबर सीरियल में हरम के शिखर पद के लिए चुनाव लड़ा जा रहा है और यह जंग रुकिया बनाम जोधा है तथा चुनाव में धर्म के इस्तेमाल के लिए रुकिया बेगम श्रीकृष्ण की मूर्तियां हिंदु दासियों के कक्ष में रखवा देती हैं ताकि मुस्लिम बेगमों के बीच जोधा मुगल हरम में हिंदुत्व की लहर के आरोप में फंस जाए परंतु इंसाफ पसंद धर्म निरपेक्ष अकबर रुकियों को डांट लगाते हैं। स्वर्ग और नर्क में चुनाव की कल्पना को हरिशंकर परसांई बखूबी लिखते और गौरतलब यह है कि यह धरती पर ही स्वर्ग और नर्क है तथा यहां चुनाव के महंगे खेल में साधन संपन्न व्यक्ति प्रचार की आंधी चला सकता है। यह भी याद आता है कि श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद वाले चुनाव में अपने बाल सखा राजीव के आग्रह पर अमिताभ बच्चन चुनावी जीत हासिल कर चुके हैं और बोफोर्स कांड की काजल की डिबिया से बेदाग भी निकले हैं। इस फिल्म में चुनाव के दृश्य करते समय उन्हें अपने जीवन के यथार्थ के चुनाव की याद अवश्य आई होगी।
जाने क्या रहस्य है कि नेहरू गांधी परिवार के साथ दशकों की नजदीकी के बाद दोनों परिवारों में अलगाव हो चुका है और आज मोदी के गुजरात के पर्यटन प्रचार विभाग की फिल्मों में काम कर रहे है। बार-बार दुहाई दी जाती है कि गुजरात सर्वश्रेष्ठ है और वहां गांधी तथा पटेल जैसे नेता जन्मे हैं और सुविधाजनक ढंग से यह भुला दिया जाता है कि मोहम्मद अली जिना भी गुजरात में जन्मे थे। बहरहाल सारी क्षेत्रियता महज चुनाव लडऩे के लिए रची गई है और भारत विविधता में एकता का देश है। स्वयं मोदी जी अपनी रची क्षेत्रियता से मुक्त होकर अब भारत को अपने विज्ञापनों में तरजीह दे रहे हैं।
दरअसल एक भूत का चुनाव लडऩा प्रतीकों से भरे महाकाव्य को जन्म दे सकता है। निदा फाजली, कुमार अंबुज, विष्णु खरे, पवन करण इत्यादि प्रयास कर सकते हैं। भारत के चुनावों में अनेक नेता किसी न किसी औद्योगिक घराने के साधनों से उसके हितों के संरक्षण के लिए चुनाव लड़ते आ रहे हैं और इस मायने में वे भूतिया प्रतिनिधि ही है और संसद में बैठे अनेक लोग वुड़ी एलेन जैसे फिल्मकार को कंकाल ही नजर आ सकते है। भारत की समाजवादी अर्थ व्यवस्था को भ्रष्टाचार द्वारा समाप्त करके पूंजीवाद का अब तक का अपरोक्ष प्रतिनिधित्व इस चुनाव के बाद अपने सच्चे स्वरूप में उजागर होगा।
बहरहाल उत्सव प्रेमी अवाम के लिए चुनावी त्योहार के मौसम इस फिल्म से भी मनोरंजन प्राप्त हो सकता है। गरीब शोषित दलित वर्ग को किसी चुनाव से न्याय नहीं मिल सकता। सारे धार्मिक व राजनीतिक उत्सव केवल बीस प्रतिशत को धिक रोशनी देते है तथा अस्सी प्रतिशत का अंधेरा और स्याह होता है। आश्चर्य है कि महानतम कवि कबीर ने लिखा था 'ये मुर्दों का गांव'।
Source: Multitude of Stars in Bhootnath Returns - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 7th March 2014
No comments:
Post a Comment