Saturday, March 1, 2014

You Can Start A Business With Cycle Too - Management Funda - N Raghuraman - 1st March 2014

आप साइकिल से भी बिजनेस शुरू कर सकते हैं 


मैनेजमेंट फंडा - एन रघुरामन



निरंथ बीमाना आईआईएम लखनऊ से हैं। उन्होंने बेंगलुरू के आर्मी पब्लिक स्कूल से भी पढ़ाई की है। यहां राजीव सिंह उनके साथी थे। स्कूल में पढ़ाई के दौरान करीब 14 साल तक ये दोनों साइकिल से ही आया-जाया करते थे। निरंथ का आगे चलकर शॉर्ट सर्विस कमीशन के जरिए आर्मी में चयन हो गया। आर्मी में उनका कार्यकाल पूरा हुआ तो वे घर लौट आए। 

राजीव भी कुछ समय इन्वेस्टमेंट बैंकर के तौर पर काम करने के बाद घर आ गए। अब ये दोनों फिर साइकिल पर थे। लेकिन अबकी बार ये शहर को काफी नजदीक से देख-परख रहे थे। और इस कवायद ने उन्हें एक बड़ा बिजनेस आइडिया दे दिया। 

Source: You Can Start A Business With Cycle Too - Management Funda By  N Raghuraman - Dainik Bhaskar 1st March 2014  

 उन्होंने देखा कि लोग किसी कॉफी शॉप में अपना चश्मा भूल आने की वजह से खुद को कोस रहे हैं। या फिर किसी मीटिंग प्वाइंट पर पेन ड्राइव छोड़ आने की वजह से। ऐसे ही कोई लाइब्रेरी में डीवीडी या किताबें वापस करना भूल रहा है तो कोई ऑफिस में लंच करना। कभी कोई समय पर चैक जमा कराना भूल गया तो कहीं किसी मौके पर अपने ब्वॉय या गर्लफ्रेंड को गुलदस्ता भिजवाने की याद नहीं रही। और नहीं तो लोग ट्रैफिक में फंस गए तो भी खुद को कोस रहे हैं कि वे समय पर घर से क्यों नहीं निकले। 

ऐसे लोगों को देख निरंथ और राजीव का दिमाग चलना शुरू हुआ। एक पार्क में बैठकर उन्होंने इस पर विचार किया। दो महीने पहले इन दोनों ने साइकिलिंग मैसेंजर सर्विस शुरू की। एक ऐसा बिजनेस आइडिया जिसमें ज्यादा लोगों को रोजगार मिलने की संभावना है। इसे छोटे शहरों और कस्बों में भी चलाया जा सकता है, क्योंकि वहां साइकिलिंग ज्यादा आसान है। ट्रैफिक और जाम से थक चुके लोगों की मदद के लिए यह एक तरह की कुरियर सर्विस है। 

इसमें पांच किलोमीटर के दायरे में 100 ग्राम तक के वजन की चीजों की डिलीवरी की सुविधा दी जाती है। इसके एवज में पैसे लिए जाते हैं, सिर्फ 70 रुपए। यह सुविधा दे रही निरंथ व राजीव की कंपनी का नाम है, साइक्लेरसिटी। और महज दो महीने में लोगों को इसकी अहमियत समझ आ चुकी है। लोग समझ चुके हैं कि साइक्लेरसिटी उनके लिए क्या-कुछ कर सकती है। उन्हें पता चल गया है कि ये कोई साधारण कुरियर सर्विस नहीं है। बल्कि एक सुविधा है, जिसके तहत उन्हें उनकी जरूरत की कोई भी चीज महज एक घंटे में डिलीवर की जा सकती है। फिर चाहे वह घर में भूल गया लंच बॉक्स हो। कहीं किसी जगह छूट गया पेन ड्राइव, चश्मा, आईपॉड, कोई अहम दस्तावेज हो। ब्वॉय या गर्लफ्रेंड को मौके पर गुलदस्ता भेजना हो या इसी तरह का कोई दूसरा काम कराना हो। यहां तक कि लोग किसी खास रेस्टोरेंट से अपने लिए खाना मंगवाने के लिए भी इस सर्विस का इस्तेमाल कर रहे हैं। कंपनी का काम लगातार बढ़ता जा रहा है।

दो महीने के भीतर कंपनी के डिलीवर मैन की संख्या 12 हो चुकी है। इनमें से हरेक रोज करीब 50 किलोमीटर का सफर तय कर ऑर्डर्स की डिलीवर करता है। साइक्लेरसिटी के लोगों के जरिए खाना मंगवाने वालों की संख्या भी बढ़ रही है। क्योंकि ये डिलीवरी मैन ट्रैफिक को मात देते हैं। इन्हें सिग्नल पर रुकना नहीं पड़ता। जाम में भी नहीं फंसते। इससे ये लोग अपने ग्राहकों को जल्दी और गर्म खाना पहुंचाने में कामयाब होते हैं। कभी-कभी तो ये रिले रनर की तरह काम करते हैं। चूंकि हर साइकिलिस्ट का दायरा पांच किलोमीटर तय है। ऐसे में अगर डिलीवरी इससे ज्यादा दूर पहुंचाना है तो दो या फिर तीन साइकिलिस्ट लगते हैं। निर्धारित दूरी के बाद पहला साइकिलिस्ट दूसरे को और दूसरा आगे जाकर तीसरे को डिलीवरी देता है। फिर वह ऑर्डर देने वाली पहुंचती है। ऐसे में निश्चित रूप से सर्विस की फीस बढ़ जाती है। 

यूरोप के कई देशों में भी इसी तरह का काम होता है। लेकिन वहां इसका अंदाज जुदा होता है। सिंगापुर में मैसेंजर्स ज्यादातर यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स होते हैं। लेकिन भारत में साइक्लेरसिटी ने इस काम के लिए गरीब और पिछड़े समुदाय के लोगों को भर्ती किया है। इनमें ज्यादातर 22 साल की उम्र के लड़के हैं। 

यूं तो कंपनी सामान की डिलीवरी के लिए चार घंटे का समय मांगती है। लेकिन अक्सर डिलीवरी इससे पहले ही हो जाती है। कंपनी का आइडिया जरूरतमंद युवाओं केे लिए रोजगार के ज्यादा से ज्यादा अवसर मुहैया कराना है। साथ ही बिजनेस का एक ऐसा मॉडल स्थापित करना भी, जिसे छोटे शहरों और कस्बों में आसानी से लागू किया जा सके। 


फंडा यह है कि...

अगर आपका बिजनेस आइडिया बड़ा है तो आप उसे साइकिल से भी शुरू कर सकते हैं।


Management Funda - N Raghuraman


































Source: You Can Start A Business With Cycle Too - Management Funda - N Raghuraman - Dainik Bhaskar 1st March 2014  

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