शिक्षा और टेक्नोलॉजी के उपयोग के बेंचमार्क बहुत ऊपर हो चुके हैं
मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन
भारत की आबादी में युवाओं की अच्छी-खासी तादाद है। इनमें ऐसे बहुत से युवा हैं जो मानते हैं कि सिर्फ ग्रेजुएशन कर लेने से ही उनकी जीवनशैली बेहतर बनी रह सकती है। इस तरह के युवाओं को यहां बताई जा रही दो रिपोर्ट पर खासतौर पर गौर करना चाहिए। ये रिपोट्र्स उन्हें सोचने पर मजबूर कर देंगी।
पहली रिपोर्ट:
महाराष्ट्र में अपनी तरह का पहला प्रयोग हुआ है। इसके तहत 250 पोस्ट ग्रेजुएट, 2,800 ग्रेजुएट, 125 डिप्लोमा होल्डर और 341 शिक्षित महिलाओं ने ऑटो रिक्शा चलाने का फैसला किया है। उन्होंने अलग-अलग इलाकों के 49 परिवहन कार्यालयों में ऑटो ड्राइवर परमिट के लिए अप्लाई किया है। इससे पहले ऑटो ड्राइवर के तौर पर परमिट के लिए अप्लाई करने वालों में ज्यादातर पढ़ाई बीच में छोड़ देने वाले लोग होते थे। यानी पांचवीं-आठवीं तक पढऩे वाले ही इसमें रुचि दिखाते थे, लेकिन इस साल ऐसे लोगों की संख्या में काफी गिरावट आई।
Source: Benchmark For Education and Technology Usage Has Upped - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 4th March 2014
ये महज 9,560 रह गए हैं, जबकि डिप्लोमा होल्डर या उससे भी आगे की पढ़ाई कर चुके लोगों की संख्या इससे ज्यादा है। करीब 60,000 लोगों को इस बार ऑटो ड्राइवर के तौर पर परमिट जारी किए गए हैं। इनमें 51,150 ऐसे लोग हैं जिनके पास सीनियर सेकंडरी या उससे अधिक की शैक्षणिक योग्यता है। इनका सिलेक्शन लॉटरी सिस्टम के जरिए किया गया है। इनकी ओर से महाराष्ट्र में 15 साल के निवास का प्रमाणपत्र आरटीओ को सौंपे जाते ही इन्हें रेगुलराइज कर दिया जाएगा। और अगले तीन महीने में ये ऑटो ड्राइवर के तौर पर सड़क पर होंगे। यानी महाराष्ट्र में अब लोगों को शिक्षित और अंग्रेजी बोलने वाले बाअदब ऑटो ड्राइवरों की सेवा मिलेगी। जाहिर तौर पर लोगों को ऐसे ड्राइवर पसंद भी आएंगे। क्योंकि हर कोई विनम्र, सभ्य और पढ़े-लिखे लोगों से सेवा लेने को तरजीह देता है।
दूसरी रिपोर्ट:
पंजाब के लुधियाना में उषा दूसरी घरेलू नौकरानियों की तरह ही थी। उन्होंने टैगोर नगर में रहने वाले विमल कुमार के घर काम की तलाश की। और उसे वहां काम मिल भी गया, लेकिन महज तीन दिन के भीतर विमल के घर लूट हो गई। चोरों ने इतनी सफाई से हाथ साफ किया था कि कुछ भी टूट-फूट नहीं हुई, लेकिन पूरी नकदी और बाकी बेशकीमती सामान वे ले उड़े थे। बॉलीवुड की फिल्मों के अंदाज में लूट की वारदात को अंजाम दिया गया। पूरी पुख्ता योजना के साथ। पुलिस के लिए चौंकाने वाली बात ये थी कि वारदात की मास्टरमाइंड विमल के घर की नौकरानी उषा थी। वह लुटेरों के फरार होने से पहले ही भाग निकली थी। ऊषा अपने मोबाइल पर वाट्सएप का इस्तेमाल करती थी।
लूट की घटना को अंजाम देने में भी उसने वाट्सएप की मदद ली। उसने सबसे पहले दरवाजे और तिजोरी की चाबी तलाशी। फिर साबुन में उसके प्रिंट लिए। इस प्रिंट की तस्वीरें वाट्सएप के जरिए अपने सहयोगियों तक पहुंचा दीं। इसकी मदद से लुटेरों ने डुप्लीकेट चाबियां बनवाईं। घर के सदस्यों की गैरमौजूदगी में वहां घुसे। सब सामान बटोरा और पहले की तरह तिजोरी और दरवाजा लॉक करके भाग गए। योजना इतनी तगड़ी थी कि घर के मालिक को पहले दिन तो लूट का पता ही नहीं चला। अगले दिन उन्हें आशंका हुई। तब जाकर राज खुला।
विमल को बताए बिना उषा घर छोड़कर चली गई थी। इस पर उन्हें शक हुआ। उन्होंने कीमती सामान और नकदी वगैरह खंगाली तो पाया कि सब गायब है। तब तुरंत पुलिस को सूचना दी। इन दो रिपोट्र्स का आपस में कोई ताल्लुक नहीं है, लेकिन दोनों में सीख एक सी है। वह ये कि शिक्षा और तकनीक के इस्तेमाल के बेंचमार्क (मापदंड) बहुत ऊंचे हो चुके हैं। पढ़े-लिखे लोग ऑटो चला रहे हैं। और एक नौकरानी तकनीक का इस्तेमाल इस शातिराना ढंग से कर रही है। कड़वा सच है कि देश में सिर्फ 20 फीसदी बच्चे ऐसे हैं जो 12वीं पास करने के बाद ग्रेजुएशन करने की ओर बढ़ते हैं या करते हैं। और दूसरी तरफ मोबाइल कंपनियों का दावा है कि अगले साल तक 90 फीसदी मोबाइल यूजर्स स्मार्ट फोन का इस्तेमाल करने लगेंगे। यानी तकनीक और एप्लीकेशन से जुड़ा कारोबार भी बढ़ेगा।
No comments:
Post a Comment