गुलाब गैंग और अशोक वाटिका के फूल
परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे
'गुलाब गैंग' उत्तरप्रदेश की सत्य घटना और यथार्थ पात्रों से प्रेरित फिल्म है जिसमें व्यावसायिक तड़का लगाकर माधुरी दीक्षित नेने तथा जूही चावला मेहता के साथ बनाया गया है और दोनों महिलाएं इस फिल्म के प्रचार में जी जान से जुटी हैं। खबर यह भी है कि यथार्थ की महिला ने फिल्म में अपने प्रस्तुतीकरण पर आपत्ति उठाई है। यह प्रकरण याद दिलाता है कि शेखर कपूर ने फूलन देवी के जीवन पर आधारित 'बैंडिट क्वीन' नामक फिल्म बनाई थी जिसके यथार्थवादी प्रस्तुतीकरण ने हंगामा खड़ा कर दिया था और इसमें प्रस्तुत सामूहिक दुष्कर्म के दृश्यों पर बवाल मचा था।
Source: Gulaab Gang and Flowers of Ashok Vatika - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 4th March 2014
इस विवाद से त्रस्त फूलन देवी ने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था और उनका कहना था कि यह फिल्म उनके जीवन का मनगढ़ंत चित्रण करती है, अत: इसे प्रतिबंधित किया जाये। निर्माता बॉबी बेदी का दावा था कि उन्होंने निर्माण पूर्व फूलन देवी को धन देकर उनकी जीवनी के फिल्म अधिकार खरीदे हैं। न्यायालय के फैसले का सार कुछ इस तरह था कि शेखर कपूर का संस्करण सही है और उसे प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता गोयाकि यथार्थ में घटनास्थल पर मौजूद व्यक्ति के बयान से अधिक विश्वसनीय फिल्मकार का संस्करण है। इसका अर्थ यह भी है कि कथावाचक पात्र से अधिक विश्वसनीय है।
यह कहा जाता है कि महाराष्ट्र के एक संत अपनी राम-कथा कहने के कारण अत्यंत लोकप्रिय थे और अनगिनत लोग उनसे राम कथा सुनकर प्रभावित हुए हैं। दंत-कथा यह है कि कथावाचक की लोकप्रियता के कारण स्वयं श्री हनुमान एक आम आदमी के स्वरूप में कथा सुनने पधारे। उस दिन कथा वाचक अशोक वाटिका का प्रकरण सुना रहा था। उसने कहा कि वाटिका में चारों ओर श्वेत रंग के फूल खिले थे और माता सीता अत्यंत अवसाद की दशा में वृक्ष के नीचे बैठी थीं। श्रोता के रूप में बैठे हनुमान जी ने विरोध किया कि वाटिका में लाल रंग के फूल थे परंतु कथा वाचक ने इस विरोध को नजरअंदाज करके अपनी कथा जारी रखी और सफेद फूल विवरण में कायम रहे तो श्री हनुमान अपने असली रूप में प्रकट हुए तथा उन्होंने कथा वाचक से कहा कि उस समय वे वृक्ष की डाल पर बैठे सब कुछ देख रहे थे और फूल निश्चय ही लाल रंग के थे।
कथा वाचक ने उन्हें प्रणाम किया और अपना वृतांत सुनाना न केवल जारी रखा, वरन् फूलों को सफेद ही कहा तो रुष्ट होकर हनुमान जी सीधे राम के पास पहुंचे और लोकप्रिय कथावाचक की त्रुटि पर अपनी नाराजगी अभिव्यक्त की। श्री राम ने मुस्कराकर कहा कि आपको सीता का दु:ख देखकर रावण पर क्रोध आया और क्रोध के कारण आपकी आंखों में खून उतर आया जिस कारण सफेद फूल आपको लाल नजर आए। सार स्पष्ट होता है कि कथावाचक कभी गलतबयानी नहीं करता और मौका-ए-वारदात पर मौजूद व्यक्ति गलत हो सकता है।
इस दंत कथा के साथ ही न्यायालय भी पुष्टि करता है कि कथा-वाचक सत्य वचन बोलता है। पात्र अपनी भावनाओं और पूर्वग्रहों से प्रभावित हो सकता है अर्थात कथा वाचक की तटस्थता संदेह के परे है। फूलन देवी का विरोध और गुलाब गैंग की संचालक का विरोध कोई अर्थ नहीं रखता। इसी तरह अकीरा कुरोसावा की फिल्म में भी चार चश्मदीद गवाह एक ही घटना के अपने-अपने संस्मरण सुनाते हैं तो लगता है कि चार घटनाएं घटी है। ज्ञातव्य है कि चौथे दशक में बनी एक फिल्म में एक पत्नी न्यायालय में पति की हिंसा के खिलाफ मुकदमा दर्ज करती है और न्यायाधीश उसे कहते हैं कि पति को मारने का ही नहीं बेचने का भी हक है। यह बात गुलामी के दिनों की है। वह महिला अपनी जैसी अन्याय भोगती महिलाओं का दल बनाती है, वे सब अस्त्र शस्त्र चलाना सीखती हैं और अन्यायी पुरुषों को दंडित करती है। कथाएं भी घाटियों में लगाई गई आवाज की तरह लौट-लौट आती हैं।
किसी भी काल खंड में सत्य को देख पाना और उस पर अमल करना आसान नहीं रहा होगा परंतु आज धुंध और कोहरे पहले से कहीं अधिक हैं। हमारे स्वाधीन भारत में संविधान में किए गए सुधार और कुछ नए कानूनों को उस फूलप्रूफ ढंग से नहीं किया गया है जिस परफेक्शन से अंग्रेजों ने नियम गढ़े थे। इस कारण कुछ निरपराध मासूम लोग दंडित हो रहे हैं, मसलन दहेज विरोधी नियम में पति के रिश्तेदार को सुस्पष्ट ढंग से परिभाषित नहीं किया गया है। बहरहाल यह कितने आश्चर्य की बात है कि इतिहास और आख्यान से अधिक सारगर्भित दंत कथाएं हैं, लोक कथएं हैं।
Source: Gulaab Gang and Flowers of Ashok Vatika - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 4th March 2014
No comments:
Post a Comment