दिल से कुछ चाहो तो पूरी कायनात मदद करती है
मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन
चार अप्रैल 2013, सुबह 6.30 बजे। महाराष्ट्र में मुंबई के ठाणे उपनगरीय इलाके में एक बिल्डिंग अचानक भरभराकर ढह गई। इसमें करीब 150 परिवार रहते थे। इलाके में इस तरह की यह सबसे बड़ी घटना थी। लगभग 74 लोग इसमें मारे गए। करीब 100 से ज्यादा लोग घायल हुए। इनमें से ही एक पांच साल की बच्ची थी। नाम था संध्या ठाकुर।
वह चमत्कारिक रूप से इस घटना से बच गई। पूरे 36 घंटे बाद उसे इमारत के मलबे से सही-सलामत बाहर निकाला गया। संध्या को चोटें लगीथीं, लेकिन बहुत मामूली। उसके माता-पिता और छह भाई-बहन थे। सभी को पहले लापता बताया गया। फिर बाद में सरकारी अफसरों ने उन सबको मरा हुआ घोषित कर दिया। संध्या को दिमागी तौर पर तगड़ा सदमा लगा था। तब से ही उसे उस इमारत हादसे के प्रतीक के तौर पर देखा जाने लगा। हादसे के तुरंत बाद उसको सियॉन हॉस्पिटल ले जाया गया था।
Source: If You Desire any thing from Heart then even Universe Helps You Out - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 7th March 2014
धीरे-धीरे उसकी हालत में सुधार हुआ। जख्म भर रहे थे, लेकिन आंखों से आंसू सूख नहीं रहे थे। सवाल भी लगातार रिस रहे थे। डॉक्टरों, नर्सों, पुलिस वालों से लगातार वह पूछे जा रही थी। मीडिया के फोटो पत्रकारों ने हर एंगल से उसके चेहरे को कैमरे में कैद किया। और खबर लिखने वाले पत्रकारों ने उसके हर सवाल के जवाब खंगालने की कोशिश की। घटना के बाद 23 दिन तक वह लड़की और उसके सवाल मीडिया की सुर्खियों में छाए रहे।
अस्पताल की एक नर्स वीणा कडले से इलाज के दौरान संध्या काफी घुलमिल गई। बल्कि वह तो मीडिया के लिए इस बच्ची की प्रवक्ता जैसी हो गई थी। अस्पताल वालों ने भी इस स्थिति को समझा और संध्या की पूरी जिम्मेदारी वीणा को ही दे दी। वीणा और संध्या के बीच यह रिश्ता 'पहली नजर के प्यार' जैसा था।
दोनों के बीच दिनों-दिन संबंध गहरे होते गए। और इतने गहरे हो गए कि अस्पताल में आखिरी हफ्ते तक संध्या ने वीणा को 'मां' कहना शुरू कर दिया। अब संध्या का इलाज पूरा हो चुका था। लेकिन एक सवाल अब भी लाइलाज था कि अस्पताल से छुट्टी के बाद वह कहां जाएगी? तब सरकार आगे आई और उस बच्ची को चिल्ड्रन्स होम भिजवा दिया। लेकिन वीणा और संध्या के बीच भावनात्मक संबंध खत्म नहीं हुआ।
उस रोज जब संध्या की अस्पताल से छुट्टी हुई और उसे चिल्ड्रन्स होम भेजा गया, वीणा रात भर सो नहीं सकीं। संध्या के मुंह से निकला 'मां' शब्द उसके कानों में लगातार गूंज रहा था। उनके कोई बच्चा भी नहीं था। इसलिए भी उनको लग रहा था कि संध्या उनके जीवन की वह खाली जगह भर सकती है। और तभी वीणा और उनके पति ने संध्या को गोद लेने का फैसला कर लिया। उन्होंने चिल्ड्रन्स होम में जाकर इसके लिए एप्लीकेशन भी लगा दी। लेकिन कई महीनों तक इस पर विचार ही नहीं हुआ। चिल्ड्रन्स होम के प्रबंधन को आपत्ति थी। उसका तर्क था कि वह ये कैसे मान ले कि बच्ची का कोई रिश्तेदार नहीं है।
इधर, वीणा और उनके पति सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे थे ताकि संध्या को गोद लेने की उन्हें अनुमति मिल जाए। पुलिस ने भी मदद की। उसने फॉरेंसिक लैब से कहा कि वह जल्द से जल्द डीएनए रिपोर्ट दे दे, क्योंकि बच्ची का भविष्य दांव पर लगा हुआ है। बाकी सरकारी ऑफिसों से भी जल्द कार्यवाही करने के लिए कहा गया। सभी ने इस केस को प्राथमिकता पर लिया।
और आखिरकार पिछले शनिवार को पुलिस के पास हर डिपार्टमेंट से हरी झंडी आ गई। उसने भी चाइल्ड वेलफेयर कमेटी को लिख दिया कि बच्ची को गोद देने में कोई आपत्ति नहीं है। उसे वीणा कड़ले को गोद दिया जा सकता है। वीणा और उनके पति भाग्येश के लिए यह बड़ी खुशी की खबर थी। उन्होंने पिछले 10 महीने से अपने घर के एक कमरे को खिलौनों से सजा रखा था। वे संध्या के घर आने के इंतजार में थे, जो अब खत्म होने वाला है।
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