Saturday, June 28, 2014

The Results Are More Fruitful If Punishment is Effective Rather than Strict - Inspirational and Motivational Story in Management Funda - N Raghuraman - 28th June 2014

Have you ever felt dejected and helpless when in spite of giving the best world class education to your child, he / she has the habit of lying to you on your face. Probably you have encountered such instances many at times, isn't it? 

N Raghuraman in his funda tells us a
true, inspiring and motivating story of Arun Gandhi, who is the grandson of Mahatma Gandhi and Son of Manilal Gandhi. In one of his addresses on "Non-Violence in Parenting" at the Puerto Rico University, Arun Gandhi recalled how he had lied to his father and was ashamed of doing it, as his father instead of meeting out a violent punishment to him chose to punish himself by walking 18 miles back home despite having a car.

In his own words Arun Gandhi says,"I often think about that episode and wonder, if he had punished me the way we punish our children, whether I would have learned a lesson at all. I don't think so. I would have suffered the punishment and gone on doing the same thing. But this single non-violent action was so powerful that it is still as if it happened yesterday. That is the power of non-violence."

This story truly inspires us and motivate many of us to bring about change in bringing up our children and bring about self improvement in them.  

 

सजा सख्त से ज्यादा प्रभावी हो तो स्थायी असर दिखाती है


मैनेजमेंट फंडा  -  एन. रघुरामन 

 

दक्षिण अफ्रीका के डरबन से करीब 24 किलोमीटर दूर इनाडा शहर के बाहरी इलाके में स्थित है फोनिक्स सैटलमेंट। इस संस्था की स्थापना महात्मा गांधी ने 1904 में की थी। अब इसे ट्रस्ट का रूप दे दिया गया है। गांधी जी के दूसरे पुत्र मणिलाल और उनकी पत्नी सुशीला 1917 में दक्षिण अफ्रीका लौट आए। ताकि गांधी जी के सिद्धांतों के अनुसार ट्रस्ट का संचालन और देखभाल कर सकें। 

मणिलाल और सुशीला का बेटा अरुण और दो बेटियां अक्सर शहर जाने के चक्कर में रहते थे। ताकि वे वहां अपने दोस्तों से मेल-मुलाकात कर सकें या फिल्म देख सकें। अरुण जब 16 साल के थे तो एक दिन उनके पिता ने उनसे कहा कि शहर चलना है। वहां कोई कॉन्फ्रेंस थी। इसमें मणिलाल को हिस्सा लेना था। अरुण से उन्होंने कहा कि वह उन्हें कार से कॉन्फ्रेंस हॉल तक छोड़ दे। दिनभर की कॉन्फ्रेंस थी। लिहाजा, उन्होंने अरुण से कहा कि इस बीच कार की सर्विस करा ले।

Source: The Results Are More Fruitful If Punishment is Effective Rather than Strict - Management Funda - N Raghuraman - Dainik Bhaskar 28th June 2014

मां ने भी अरुण को किराने के सामान की सूची थमा दी। कुछ और काम भी बता दिए। शहर जाने का मौका मिल रहा था। इसलिए अरुण ने किसी भी काम के लिए मना नहीं किया। सुबह पिता को लेकर शहर के लिए निकले। उन्हें कॉन्फ्रेंस हॉल में छोड़ा। पिता ने अरुण से कहा शाम ठीक पांच बजे उन्हें यहीं से पिकअप कर ले। अरुण ने कहा, 'ठीक है' और तुरंत वहां से निकल गए। किराने का सामान लिया। जल्दी से दूसरे काम निपटाए। कार सर्विसिंग के लिए डाली और थिएटर में घुस गए। 

दरअसल, फिल्म देखने की योजना अरुण ने घर में ही बना ली थी। जॉन वायने की कोई इंग्लिश मूवी थी। फिल्म देखते हुए अरुण को वक्त का ख्याल ही नहीं रहा। शाम करीब 5.30 बजे घड़ी पर नजर पड़ी तो ध्यान आया कि पिता जी इंतजार कर रहे होंगे। दौड़े-भागे गैराज पहुंचे। कार उठाई और कॉन्फ्रेंस हॉल की तरफ चल पड़े। वहां पहुंचे तो देखा कि पिता जी गेट पर इंतजार कर रहे हैं। छह बज चुके थे। कार रुकते ही पिता ने सवाल किया, 'देर क्यों हुई?' कोई जवाब नहीं सूझा। 

अरुण ने झूठ बोल दिया, 'कार की सर्विसिंग नहीं हो पाई थी।' उन्हें पता नहीं था कि उनके पिता जी ने पहले ही गैराज पर फोन कर लिया था। अरुण का झूठ पकड़ा गया था। मणिलाल को इससे बहुत दुख हुआ। उन्होंने बेटे से कहा, 'मेरी परवरिश में कहीं न कहीं जरूर कोई गड़बड़ रह गई। इसीलिए तुम्हें इतना भी भरोसा नहीं कि मुझसे सच बोल सको। इसलिए अब मैं घर तक पैदल जाऊंगा। ताकि रास्ते भर यह विचार कर सकूं आखिर कहां मुझसे गलती हुई।' इतना कहकर मणिलाल पैदल ही शहर से घर की तरफ चल दिए। 

साढ़े पांच घंटे की दूरी थी। अंधेरा होने लगा था। अरुण काफी परेशान हो गए। पिता के पीछे धीरे-धीरे कार चलाते हुए वे भी हो लिए। उन्हें पता था कि उनके झूठ से पिता जी के मन को गहरी चोट लगी है। उन्होंने उसी वक्त तय कर लिया कि चाहे जैसे भी हालात हों वे अब कभी झूठ नहीं बोलेंगे।....यह किस्सा खुद अरुण ने दक्षिण अफ्रीका की प्यूर्टो रिको यूनिवर्सिटी में हुए एक कार्यक्रम के दौरान सुनाया था। 

फिर उन्होंने एक मौजूं मसला भी उछाला। 

उन्होंने कहा, 'अक्सर उस वाकये को याद करके मैं सोचता हूं कि अगर मेरे पिता जी ने मुझे सजा दी होती तो क्या होता? हम अपने बच्चों को सजा देते हैं, वैसा उन्होंने भी किया होता तो क्या मैं कोई सीख ले पाता? शायद नहीं। मैं सजा काट लेता और शायद फिर वैसी ही गलती करता।'

...अरुण की बात आज भी काबिले गौर है। 

सोचिए, बच्चे को सबक देने का जो तरीका मणिलाल ने अपनाया, उससे उनका 16 साल का बेटा हमेशा के लिए सुधर गया। तो क्या हम बच्चों को सही दिशा देने के लिए ऐसे ही तौर-तरीके नहीं अपना सकते। 


फंडा यह है कि...

 

सजा हमेशा सख्त हो, यह जरूरी नहीं। लेकिन प्रभावी हो यह उतना ही जरूरी है। तरीका कोई भी हो, प्रभावी सजा हमेशा और स्थायी असर दिखाती है। 

 

Inspirational and Motivational Stories - Management Funda - N Raghuraman

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Source: The Results Are More Fruitful If Punishment is Effective Rather than Strict - Management Funda - N Raghuraman - Dainik Bhaskar 28th June 2014

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