सावधान, बिजनेस प्रतिस्पर्धी आपके इर्द-गिर्द ही हैं
मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन
हैदराबाद के रहने वाले आदित्य कुमार साइबर कैफे का बिजनेस करते हैं। बिजनेस कुछ ठीक नहीं चल रहा था। आदित्य परेशान थे। वे एक भविष्यवक्ता के पास गए। उसने कहा कि वह अपने नाम की स्पेलिंग में एक 'ए' और जोड़ लें, इससे उनके बिजनेस में तरक्की होने लगेगी। आदित्य ने अपने नाम की स्पेलिंग बदल ली। यह 2003 की बात है।
इत्तेफाक से भविष्यवक्ता की बात सही निकल गई। आदित्य का बिजनेस अच्छा चल पड़ा। उन्होंने बिजनेस बढ़ाना शुरू कर दिया। उन जगहों पर भी सेंटर खोल लिए, जहां युवा आबादी ज्यादा थी। इन सेंटरों पर दर्जनों नए कम्प्यूटर लगा दिए। देखभाल के लिए नए लड़के रखे। ये लड़के कम्प्यूटर के बड़े जानकार नहीं थे पर सेंटरों का काम तो देख सकते थे। आदित्य रोज शाम सभी सेंटरों पर पहुंचते। लॉग बुक चेक करते और आमदनी लेकर घर चले जाते।
Source: Beware ! Your Business Competitors are Around - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 25th June 2014
10 साल यही सिलसिला चला। लेकिन 2014 में बिजनेस 40 फीसदी नीचे चला गया। ज्यादातर ग्राहकों के पास अब स्मार्टफोन था। फोन ऐसे तमाम काम कर रहा था, जिसके लिए उन्हें साइबर कैफे जाने की जरूरत महसूस होती थी। ऐसे में वे साइबर कैफे क्यों जाते? इसके चलते आदित्य को अब तक अपने तीन सेंटर बंद करने पड़े हैं।
आदित्य ने कई युवाओं से पूछा कि आखिर उन्होंने उनके साइबर कैफे में आना बंद क्यों कर दिया? सबका एक जवाब, 'हमारी जरूरत के सब काम स्मार्टफोन कर सकता है। इंटरनेट सर्फिंग, दोस्तों से चैटिंग, गेमिंग और ऑनलाइन मीटिंग सब कुछ इसके जरिए हो जाता है। जबकि साइबर कैफे में हमें अपनी बारी इंतजार करना पड़ता है। तमाम डिटेल भरना पड़ते हैं। फिर नंबर आता है। तो हम वहां क्यों जाएं।'
आदित्य क्या, साइबर कैफे की चेन चलाने वाली सिफी और आइवे जैसी बड़ी कंपनियां भी इन दिनों भारी नुकसान उठा रही हैं। टीसीएस (टाटा कंसल्टेंसी सर्विस) का एक अध्ययन बताता है कि युवा अब साइबर कैफे का रुख नहीं कर रहे हैं और इसकी एकमात्र वजह हैं-स्मार्टफोन, जिन्होंने इंटरनेट को हर किसी की जेब में पहुंचा दिया है। जल्द ही मेट्रो शहरों में साइबर कैफे पूरी तरह बंद हो जाएंगे।
आदित्य ने अपने बिजनेस में कुछ बदलाव भी किए हैं। मसलन, अब वे अपने दो सेंटरों पर प्रिंटिंग, स्कैनिंग, ऑनलाइन टिकटिंग, टेक्स्ट व फोटो एडिटिंग, टैक्स की ई-फाइलिंग वगैरह करने लगे हैं। ई-गवर्नमेंट से संबंधित काम भी। लेकिन इसके बावजूद उन्हें ग्राहक नहीं मिल रहे हैं। स्मार्टफोन का प्रभाव ऐसा है कि चेन्नई की लोकप्रिय 'जंक्शन साइबर कैफे चेन' भी आज घाटे में चली गई है।
साल 2003-04 में जंक्शन के कोलकाता में 27 साइबर कैफे थे। आज सिर्फ तीन बचे हैं। कोडैक की कहानी याद कीजिए। अमेरिका के रोचेस्टर शहर की इस कंपनी को बड़ा गुमान था। इस पर कि दुनिया में शायद ही ऐसा कोई हो जो साल में कम से कम एक बार उसके कैमरे इस्तेमाल न करता हो। लेकिन आगे चलकर हुआ क्या?
मोबाइल पर कैमरा आते ही कोडैक का गुमान छिन्न-भिन्न हो गया। इसी तरह जब वीडियो आया तो रेडियो पीछे रह गया। सीडी ने ऑडियो-वीडियो टेप को खत्म कर दिया। डिजिटाइज्ड म्यूजिक ने सीडी को पीछे छोड़ दिया है। और मोबाइल फोन में तो यह सभी चीजें हैं।
यह छोटा सा खिलौना लैंडलाइन फोन को लगभग खत्म ही कर चुका है। साइबर कैफे पर इसका प्रकोप जारी है। आगे और पता नहीं क्या-क्या इससे पिछड़ता जाएगा।
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