लालच से कभी कोई फायदा नहीं होता
मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन
कोलकाता के मदनमोहन पाल की पत्नी महामाया के पास शहर के 178-रासबिहारी एवेन्यू में करीब 3,600 वर्गफीट का एक प्लॉट था। साल 2008 में उन्होंने यह प्लॉट जूता बनाने वाली कंपनी श्रीलैदर्स को बेचने का फैसला किया।
प्लॉट खरीदने के बाद कंपनी ने सभी तरह की परमीशन लीं और प्लॉट के एक हिस्से में खुदाई शुरू कर दी। खुदाई के दौरान मजदूरों को जमीन के नीचे लकड़ी के तीन संदूक दबे मिले। पूरे इलाके में आनन-फानन में ही यह खबर फैल गई। पाल तक भी पहुंची। अगले ही दिन उन्होंने संदूकों पर अपना दावा ठोक दिया।
हर संदूक करीब 1,000 किलोग्राम वजनी था। पाल को लगा कि इनमें जरूर खजाना छिपाकर रखा गया होगा। जूता कंपनी भी इन पर दावा कर रही थी। इस लड़ाई के बीच शहर में अटकलबाजियों का बाजार गर्म हो गया। अटकलें खजाने के आकलन के इर्द-गिर्द थीं।
Source: Greed Never Benefits - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 23rd June 2014
दावा किया जा रहा था कि संदूक तीन सदी पुराने हैं। इनमें किसी काल्पनिक खजाने को लेकर भी सबके अपने-अपने दावे थे। इसी बीच संदूक पुलिस ने जब्त कर लिए। और पाल व जूता कंपनी की लड़ाई कोर्ट पहुंच गई। लेकिन वहां भी तारीख पर तारीख। छह साल तक मुकदमेबाजी चलती रही।
हर निकलते साल के साथ दोनों पक्षों की पेशानी पर चिंता की लकीरें गहरी होती जा रही थीं। कानूनी लड़ाई में पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा था। दोनों तरफ से कहा जा रहा था कि संदूकों पर पहला हक उनका है। आखिर फैसले का दिन आ गया।
अलीपुर सिविल कोर्ट ने पुलिस को संदूक खोलने का आदेश दिया। इस दौरान एएसआई (आर्कियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया) और जीएसआई (जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) के अधिकारी भी रहें। संदूक खोले जाने के दौरान पाल और जूता कंपनी के प्रतिनिधियों को भी मौजूद रहने को कहा गया।
कोर्ट के आदेश में यह साफ था कि संदूकों में मिली सामग्री के आधार पर उनके मालिकाना हक के बारे में फैसला किया जाएगा।
बहरहाल, पिछले सोमवार को इस कहानी का क्लाइमैक्स सामने आया। गरियाघाट पुलिस स्टेशन में सभी पक्षों की मौजूदगी में संदूक खोले जाने थे। या कहिए कि तोड़े जाने थे। संदूकों पर धातु की मोटी परत चढ़ाई गई थी। इसलिए पहले-पहल पुलिस ने अपने स्तर पर संदूकों में दरार कर उन्हें खोलने की कोशिश की।
लेकिन सफलता नहीं मिली तो फायर डिपार्टमेंट की टीम को बुलाया गया। उनसे कहा गया कि गैस कटर साथ में लेकर आएं। पुलिस थाने में इस मौके पर जबर्दस्त भीड़ हो गई थी। हालांकि थाने की बाउंड्री वॉल को नीली शीट लगाकर दो फीट तक ऊंचा कर दिया गया था। मेन गेट पर भी इसी तरह की शीट लगा दी गई थी। ताकि भीतर क्या चल रहा है, यह नजर न आए।
फिर भी बड़ी संख्या में लोग गेट और बाउंड्री वॉल पर टंगे हुए थे। भीतर झांक रहे थे। हर कोई 'खजाने' की एक झलक पाने को बेताब हो रहा था। पुलिस वालों में भी उत्सुकता थी। वे भी सब काम छोड़कर इसी पर नजर गड़ाए थे कि संदूकों में आखिर निकलता क्या है। थाना तमाशबीनों का अड्डा बना हुआ था।
हर शख्स अंदाज लगा रहा था कि संदूकों में सोना-चांदी, हीरा-जवाहरात होगा। या कोई अन्य बेशकीमती चीज। और इसी सब के बीच पहला संदूक खोल लिया गया। हर निगाह उसकी तरफ जा टिकी।
लेकिन यह क्या? संदूक के भीतर भी आठ बॉक्स? उन्हें भी खोला तो मिली कनाडा से लाई गई खास किस्म की नीडल्स।
फिर दूसरा संदूक खुला तो उसमें धूल और गर्द के अलावा कुछ नहीं मिला।
अब तक थाने से भीड़ काफी हद तक छंट गई थी। कुछ इक्के-दुक्के 'आशावान' ही बचे थे। आखिर में तीसरा संदूक खुला तो उसमें निकला कटा-फटा लैटरहैड।
और हां, आखिरी संदूक में कुछ रकम भी निकली। यही कोई चार-पांच रुपए। ये भी बहुत करीने से प्लास्टिक के कवर से लपेटे गए थे। लिफाफे पर 18 सितंबर 1969 की तारीख पड़ी हुई थी।
अब तक थाना पूरी तरह खाली हो चुका था। पुलिस वाले भी अपने-अपने काम में लग गए थे। और एक-दो जवान बिना किसी सिक्योरिटी गार्ड के ही संदूकों से निकला 'खजाना' लेकर कोर्ट के लिए रवाना हो चुके थे।
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