Thursday, June 12, 2014

Fun n Frolic at Educational Campuses - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 12th June 2014

शिक्षा परिसर की मौजमस्ती

 

परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे


नए चमकीले भारत में होने वाले परिवर्तन और आबादी के चालीस प्रतिशत युवा लोगों को समझने में कुछ हद तक सहायता स्कूल एवं कॉलेज के परिसर में होने वाली हलचल से मालूम की जा सकती है। विगत दो दशकों से कॉलेज कैम्पस अनेक फिल्मों का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है, परंतु फिल्मों में प्रस्तुत परिसर यथार्थ से कोसों दूर उसी वृहत फंतासी का हिस्सा है जिससे आज खूब बेचा जा रहा है। 

करण जौहर को यह खुशफहमी है कि उनकी फिल्म 'स्टूडेंट ऑफ द इयर' एक महान फिल्म है और युवा अवचेतन का प्रतिनिधित्व करती है। इस फिल्म में दिखाए शिक्षा संस्थान जैसा कोई भव्य परिसर विश्व के किसी भी शिक्षा संस्थान का नहीं हो सकता। भव्यता को जौहर महानता समझते हैं और उनका मानस तथा सिनेमा में भव्यता के प्रति घोर सम्मान मूर्ख बालक की जिद की तरह है। उनकी फिल्म में एक भी दृश्य कक्षा का नहीं है। 


Source:  Fun n Frolic at Educational Campuses - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 12th June 2014
सारे विद्यार्थी बदन उघाड़े कैम्पस में घूमते हैं और मुख्य पात्रों ने नारी पात्रों से अधिक देह प्रदर्शन किया है। उनका कॉलेज परिसर एक वृहत तालाब की तरह है जिससे पात्रों के बदन में मसल्स की मछलियां तैरती रहती है और छात्राएं मछली पकडऩे का कांटा या जाल बिछाए रहती हैं तथा प्राचार्य की रुचि भी खेल प्रशिक्षक के गठीले बदन में है और वह अपने सेक्स चयन को छुपाता भी नहीं है।

यह मुमकिन है कि सारी वाहियात बातों को हिम्मत से झेल लिया जाता, परंतु वृद्ध प्राचार्य मृत्यु के क्षण भी अपनी अलग सी रुचि में डूबा है। उस पवित्र क्षण का यह निरादर असहनीय रहा। बहरहाल उनकी सभी फिल्मों के शिक्षा परिसर ऐसे ही रहे हैं।

आज यथार्थ जीवन के शिक्षा परिसर एक अलग तरंग पर थिरकते हैं। गौरतलब यह भी है कि पाकिस्तानी सीरियलों में प्रस्तुत शिक्षा परिसरों में भी युवा सपने, भय और महत्वाकांक्षा वैसे ही विद्यमान हैं जैसे भारतीय परिसरों में हैं। सभी जगह अनजान बेचैनी है, आक्रोश है परंतु यह समानता है कि सारी ऊर्जा किसी नए समाज को जन्म देने की नहीं वरन खुद के लिए बेहतर नौकरी और सुविधा वाले जीवन के लिए है तथा इसी का प्रतिनिधित्व करता है रणबीर कपूर का 'ये जवानी है दीवानी' का संवाद कि 'पच्चीस में नौकरी , 26 में बंगला और 27 में छोकरी'।

जून के महीने में आकाश में जितने बादल नहीं छाते उससे ज्यादा भीड़ शिक्षा परिसरों में होती है और नामी संस्थाओं में दाखिला पाना अब एक युद्ध की तरह हो चुका है जिसमें छात्र का सारा परिवार शामिल है। आर्थिक उदारवाद के बाद शिक्षा एक नए लाभ कमाने वाले उद्योग के रूप में उभरी है जिसमें अब कुछ अंतरराष्ट्रीय 'ब्रान्ड' उभर आए हैं।

अस्पतालों और पांच सितारा होटलों से अधिक लाभ शिक्षा उद्योग में मिलता है जिसका सार यह निकलता है कि बाजार शासित युग में सफलता के मंत्र को जपने वाली पीढिय़ां रची जा रही हैं और यह शिक्षा केवल श्रेष्ठी वर्ग या हाल ही में समृद्ध हुए उच्च मध्यम वर्ग के लिए है।

किसान, जवान और दलित वर्ग के साधारण आय या गरीब परिवारों के बच्चों के लिए यह सुविधा उपलब्ध नहीं है। चमकीले भारत का क्षेत्र शनै: शनै: इंच दो इंच बढ़ता जा रहा है और सदियों से उपेक्षित वर्ग अब अपने को और असहाय महसूस करता है।

शिक्षा उद्योग की ये भव्य संगमरमरी अट्टालिकाएं सफलता मंत्र से वशीभूत एवं जीवन मूल्यों से दूर कमोबेश रोबोट की तरह कुशलता रखने वाले लोग बना रही हैं?। यह सच है कि कार्य कुशलता खूब मांजी जा रही है।

कवि कुमार अंबुज की ताजा कविता 'कुशलता की हद' की अंतिम पंक्ति है 'कुशलता की हद है कि फिर एक दिन एक फूल को, क्रेन से उठाया जाता है' महात्मा गांधी के कथन कि वे शिक्षा संस्थाएं मृत समान है  जो व्यावहारिक जीवन को सुचारुरूप से जीते हुए आदर्श जीवन मूल्यों के निर्वाह का पाठ नहीं पढ़ातीं पर भालचंद्र पेंढारकर ने 1922 में 'वंदेमातरम आश्रम' नामक फिल्म बनाई थी और उसी के सार को परिवर्धित रूप में हमने हीरानी की 'थ्री इडियट्स ' में देखा।


Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey







































Source:  Fun n Frolic at Educational Campuses - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 12th June 2014

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