Monday, October 21, 2013

Be Sensitive to Others Feelings - Management Funda - N Raghuraman - 21st October 2013

 दूसरों के जज्बात के लिए संवेदनशील होकर देखें..

 मैनेजमेंट फंडा - एन रघुरामन


जगह मुंबई एयरपोर्ट, समय: सुबह 5:30 बजे। सिक्योरिटी क्लियरेंस की लाइन पर एक यात्री सुरक्षाकर्मी के सामने जोर-जोर से किसी बात पर चिल्ला रहा था। बैगेज टैग के लिए। सुरक्षाकर्मी ने जवाब दिया, ‘बैगेज टैग लगाना हमारा काम नहीं। हम सर्फ उन लोगों की मदद करते हैं जो शारीरिक रूप से सक्षम नहीं होते। आपका व्यवहार हमें उससे भी रोक देगा।’ यात्री ने जवाब, ‘यह आपकी इच्छा है।’ वह आगे बढ़ गया, लेकिन इस बहस ने उस सुरक्षाकर्मी का दिन खराब कर दिया। वह अगले यात्रियों से बड़ी रुखाई से पेश आ रहा था। मेरी बारी आई तो मैंने सबसे पहले उस जवान की सख्ती के लिए उसकी तारीफ की। फिर उससे कहा कि एक यात्री की वजह से वह अपना दिन क्यूं खराब कर रहा है। उसके चेहरे पर मुस्कान तैर गई। जगह: एयरपोर्ट का प्रतीक्षालय। यहां न्यूज पेपर के सात स्टैंड हैं। हर एक में आठ रैक हैं। सिर्फ एक में दो दिन पुराना बिजनेस अखबार पड़ा है। करीब 17 यात्री न्यूज पेपर स्टैंड के पास आते हैं। 


 Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 21st October 2013

वहां पड़ा हुआ इकलौता अखबार उठाकर उस पर छपी तारीख देखते हैं। फिर उसे निराशा के साथ वापस रख देते हैं। लेकिन इनमें से किसी ने भी उस पुराने अखबार को रद्दी की टोकरी में डालने की जहमत नहीं उठाई। यह देखकर मैं उठा। उस अखबार को उठाकर मैं कूड़ेदान में डालने ही वाला था कि एक बुजुर्ग सज्जन लपककर मेरे पास आए और मुझसे वह अखबार लेने लगे। मैंने उन्हें बताया कि यह पुराना अखबार है। तब वे मुस्कुराकर बोले, ‘कोई बात नहीं मैंने उस दिन का अखबार पढ़ा नहीं है। और फिर पुराना अखबार 12 रुपए किलो के हिसाब से बिकता भी तो है।’ मैं हैरान था कि ये जनाब एयरपोर्ट से रद्दी अखबार अपने घर ले जाएंगे।

जगह: बोर्डिग गेट। अभी अनाउंसमेंट हुए दो-तीन सेकेंड ही हुए थे कि लोग लाइन में लग गए। जैसे एयरलाइन कुछ मुफ्त में बांटने वाली हो। मुझे आज तक समझ नहीं आया कि लोग आखिर इतनी जल्दी में क्यों होते हैं। मैं देख रहा था कि एयरलाइन का कर्मचारी सुरक्षाकर्मी को गेट खोलने के लिए कह रहा था। पुलिस की महिला जवान कुछ दूरी पर पानी पी रही थी। मैं उसकी आंखों के भाव पढ़ पा रहा था। वह जैसे उस कर्मचारी से कह रही हो, ‘इतना शोर क्यों कर रहे हो। क्या मुझे पानी पीते हुए भी तुमसे देखा नहीं जाता। ज्यादा हल्ला किया तो मैं फ्लाइट लेट करा दूंगी।’ एयरलाइन का कर्मचारी चुपचाप इंतजार करता रहा, क्योंकि गेट की चाबी सुरक्षाकर्मी के पास थी। वह कुछ भी गड़बड़ करता तो फ्लाइट का लेट होना तय था। उसे और उसकी टीम के लिए समय पर सब काम सही ढंग से कर देने का मतलब था, एयरलाइन की ओर से अतिरिक्त भुगतान। इसलिए वह सुरक्षा स्टाफ से कोई पंगा नहीं लेना चाहता था।

जगह: एयरपोर्ट की बस। एक महिला के साथ युवा प्रोफेशनल मेरे आगे खड़ा है। हमारे सिर के ऊपर रॉड में रबर के छह हैंडल्स लटक रहे हैं। उनमें से तीन उस युवक ने ही पकड़ रखे हैं। जबकि उसके साथ वाली महिला ने युवक की भुजाओं को ही हैंडल की तरह थाम रखा है। दोनों इसी स्थिति में खुश हैं। लेकिन वह यह नहीं समझ पाया कि लोग हैंडल उस वक्त ढूंढ़ते हैं, जब बस चल देती है। जैसे ही बस आगे बढ़ी, उसमें झटका लगा। लोगों ने खुद को संभालने के लिए हैंडल पकड़ने चाहे। कुछ को मिले और कुछ को नहीं। जिन्हें नहीं मिले वे उस युवक-युवती को तीखी नजरों से देख रहे थे। एक व्यक्ति बस के झटके से उस युवती के ऊपर गिर ही पड़ा। उस बेचारे ने तो युवती से माफी मांग ली, लेकिन तीन हैंडल पकड़े जनाब के चेहरे पर तब भी अफसोस की शिकन तक नहीं थी।

फंडा यह है कि..

अगर हम दूसरों के जज्बात की तरफ थोड़े संवेदनशील हो जाएं तो जिंदगी कितनी आसान और खुशहाल हो जाती है। इससे मतभेद भी मिट जाते हैं।
























 Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 21st October 2013

No comments:

Post a Comment