Wednesday, October 16, 2013

रोजगार देने वाले बनेंगे या उसे तलाशने वाले - मैनेजमेंट फंडा - एन रघुरामन - 16th October 2013

निजी क्षेत्र की इक्विटी कंपनी एपैक्स पार्टनर्स ने आईआईटी के चार पूर्व छात्रों की बनाई कंपनी ग्लोबल लॉजिक का 420 मिलियन डॉलर यानी 2,578 करोड़ रुपए में अधिग्रहण किया। इस तरह अपैक्स पार्टनर्स इस साल भारत में अधिग्रहण करने वाली सबसे बड़ी कंपनी बन गई। 108 बिलियन डॉलर वाले भारत के आउटसोर्सिग उद्योगों में इस कंपनी का यह दूसरा बड़ा सौदा है। दो साल पहले इसी कंपनी की मदद से आईगेट कॉर्प ने 1.2 बिलियन डॉलर में पाटनी कम्प्यूटर को खरीदा था। ग्लोबल लॉजिक के संस्थापक राजुल गर्ग, संजय सिंह, मनोज अग्रवाल और तरुण उपाध्याय हैं। इस कंपनी की प्रतिद्वंद्विता सिम्फनी टेक्नोलॉजी और परसिस्टेंट सिस्टम्स से है। ये आउटसोर्सड प्रोडक्ट डेवलपमेंट या अनुसंधान व विकास के क्षेत्र में काम कर रही है। ग्लोबल लॉजिक कंपनी तकनीक में महारत रखने वाले भारतीय उद्यमों द्वारा बनाए गए अलग तरह के हाइब्रिड बिजनेस मॉडल का एक उदाहरण है। यह कंपनी कैलिफोर्निया से काम करती है। इसके भारत, यूक्रेन और अर्जेटीना में बड़े डेवलपमेंटल सेंटर्स हैं। कंपनी 2001 में बनी। तब इसका नाम था इंडस लॉजिक। बाद में इसका नाम बदलकर ग्लोबल लॉजिक हुआ।

Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 16th October 2013
इसी साल की शुरुआत में ऑनलाइन बस टिकिटिंग सर्विस रेडबस को इबिबो ग्रुप ने खरीद लिया। रेडबस की स्थापना फणिंद्र सामा और चरण पद्मराजू ने की थी। इबिबो ग्रुप दक्षिण अफ्रीका की नेस्पर्स की सहायक कंपनी है। इसी तरह पुणो के कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के बी.टेक तृतीय वर्ष के छात्र शाश्वत प्रधान, मयूर मोरे, विकेश बदलानी और अन्य ने मिलकर पिछले साल रीफोकस लैंस की स्थापना की। यह कंपनी ऑगमेंटेड रिएलिटी टेक्नोलॉजी और थ्रीडी गेम डेवलपमेंट के लिए बनाई गई है। तीन लोगों की इस टीम ने अपने ग्रेजुएशन से पहले ही 30 एप्स और गेम बना डाले। यह टीम कैंपस से बाहर एप्प डेवलपमेंट करती है। यह डिकोडिंगटेक डॉट कॉम नामक ब्लॉग भी चलाती है। पिछले साल पिंपरी चिंचवड कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से पासआउट हुए समाधान वाघ ने भी डीबीएम इन्फोटेक शुरू की ताकि अपने खास तरह के उत्पादों को ऑनलाइन बढ़ावा देने के लिए छोटे उद्योगों की मदद की जा सके। देश के कई हिस्सों में मौजूद तकनीकी कॉलेजों के कैंपस में पढ़ रहे छात्र उद्यमशीलता के ऐसे ही विचारों से भरे हैं। मनोरंजन के विकल्प, ऑनलाइन शॉपिंग और कस्टमाइज्ड टी-शर्ट जैसी चीजों के लिए एप्लिकेशंस इसका उदाहरण है। पिछले कुछ वर्षो से प्लेसमेंट की स्थिति ठीक नहीं है। ऐसे में उद्यमिता को बढ़ावा मिल रहा है।

इंजीनियरिंग के संस्थान भी नए विचारों को बढ़ावा देने के लिए केंद्र स्थापित कर रहे हैं। तकनीकी पाठच्यक्रमों में पढ़ने वाले विद्यार्थी रोजगार ढूंढ़ने वालों के बजाय रोजगार के अवसर निर्मित करने वालों की भूमिका अपना रहे हैं। इसके चलते संस्थान भी बुनियादी सेवाएं, प्रयोगशालाएं और संपर्क जैसी शुरुआती मदद विद्यार्थियों को दे रहे हैं। कोचिंग और कॅरियर मार्गदर्शन देने वाले संस्थानों पर ध्यान केंद्रित करने की विद्यार्थियों की मानसिकता में परिवर्तन आ रहा है। वे उत्पादों को ढूंढ़ने और उसका व्यावसायिक उत्पादन करने पर ध्यान दे रहे हैं। तकनीक के क्षेत्र में रोजगार की मांग और उसके अवसरों की पूर्ति में असंतुलन है। इस वजह से विद्यार्थी इनोवेशन पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। अधिकतर विद्यार्थी कुछ ‘अलग’ कर अपनी रुचि का काम करना चाहते हैं। बाजार में उतार-चढ़ाव देखे जा रहे हैं। इसके बावजूद शुरुआती संघर्ष के बाद छोटे उद्यम अच्छा काम कर रहे हैं।

फंडा यह है कि..

आप अपनी भूमिका कहां देखते हैं? रोजगार ढूंढ़ने वाले के तौर पर या रोजगार के अवसर बनाने वाले के रूप में। फैसला आपको करना है।














Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 16th October 2013

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