मामा मैं स्टार बक्स जाना चाहती हूं, लेकिन पवई या कहीं आसपास नहीं। मुझे तो दक्षिण मुंबई के कोलाबा स्थित स्टार बक्स जाना है। मैं चाहती हूं कि आप मुझे बांद्रा सी लिंक होते हुए और लौटते हुए नए शुरू हुए मुंबई एक्सप्रेस फ्री वे होते हुए ले चलें। त्योहार की छुट्टियों में तीन दिन के लिए घर आई मेरी भानजी का यह आग्रह था या आदेश, मैं नहीं समझ पाया। लेकिन उसकी बात का जवाब दिए बगैर मैं उसके कहे मुताबिक करता रहा। मैं हर मिनट का हिसाब रखता हूं और मुझे यह भी पता है कि स्टार बक्स का स्वाद हर जगह एक जैसा होता है, फिर भी मैंने उसकी बात मान ली। रास्ते भर वह बातें करती रही। अपने दोस्तों के बारे में जो स्कूल की लड़कियों के साथ अजीब व्यवहार करते हैं और कपड़ों के बारे में जो वह पहनना चाहती है, लेकिन मां की डांट के डर से पहन नहीं पाती। इसके अलावा उन चीजों के बारे में बोलती रही जो हमारे परंपरावादी परिवार में अच्छी नहीं समझी जाती। इस बीच वह फोटो भी क्लिक करती रही और हर पांच मिनट में अपना स्टेटस अपडेट करने लगी।
Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 7th October 2013
मौका मिलते ही उसने अमिताभ बच्चन के घर के बड़े दरवाजे की तस्वीर ली, लेकिन चौपाटी बीच के किनारे राजभवन की हरियाली उसे अच्छी नहीं लगी।सी लिंक, लेपार्ड कैफे जहां अजमल कसाब और उसके साथियों ने सबसे पहले गोलीबारी शुरू की थी, गेट वे ऑफ इंडिया, ताज होटल और स्टार बक्स का पहला भारतीय आउटलेट, ये सारी तस्वीरें उसके फेसबुक पेज पर पहुंच गईं। पिछले कुछ सालों से जब भी मेरे भांजे-भांजियां मेरे पास आते हैं, मैं उनसे कभी भी पढ़ाई-लिखाई, स्कूल, क्लास, टीचर जैसी चीजों के बारे में कोई बात नहीं करता।
मैं अच्छी तरह जानता हूं कि घर के बाहर बच्चे इन सब चीजों के बारे में बात करना बिलकुल पसंद नहीं करते। मैंने कई लोगों को देखा है जो बच्चों से मिलकर हैलो करते हैं और फिर मोबाइल में व्यस्त हो जाते हैं। फिर अचानक बच्चों की मौजूदगी की याद आते ही वे पूछने लगते हैं, आप किस क्लास में पढ़ते हो और आपके ग्रेड कैसे आते हैं?
कोई त्योहार हो या परिवार में कोई समारोह हो, बच्चों को ऐसे सवालों के जवाब कई बार देने पड़ते हैं और इसलिए वे ऐसे मौकों पर जाना बिलकुल पसंद नहीं करते। मेरी एक भतीजी ने तो इसके लिए अनोखा तरीका निकाल लिया था। वह एक शादी में आई तो अपने साथ एक प्लेकार्ड लेकर आई, जिस पर उसने अपने पढ़ाई-लिखाई के बारे में सारी बातें लिख कर रखी थी। जैसे ही कोई उससे कुछ पूछता, वह प्लेकार्ड लेकर सामने खड़ी हो जाती। घर या ऑफिस में लोगों से मिलते-जुलते मुझे हमेशा डॉ. माया एंजेलो की याद आती है। मशहूर नॉवेलिस्ट, शिक्षाविद्, नाटककार, इतिहासकार, अभिनेता, फिल्म निर्माता और सिविल राइट्स एक्टिविस्ट माया ने अपनी एक किताब में लिखा है, लोग आपके काम और बातों को याद नहीं रखते, लेकिन आपके साथ जुड़े अनुभवों को हमेशा याद रखते हैं। अफ्रीकी-अमेरिकी क्षेत्र की पारिवारिक परंपराओं और मूल्यों में लेखिका का अटूट विश्वास है। मैं उनकी लिखी दो किताबें आई नो व्हाई द केज्ड बर्ड सिंज्स और ऑल गॉड्स चिल्ड्रन नीड ट्रेवलिंग शूज कभी नहीं भुला सकता। यदि आप भी इन किताबों को पढ़ें तो मेरा पूरा भरोसा है कि चाहे कितना भी कठोर इंसान क्यों ना हो, उसकी आंखों में भी आंसू आ जाएंगे और वह अपने आसपास मौजूद सभी इंसानों को सम्मान की नजरों से देखना लगेगा।
मैं अच्छी तरह जानता हूं कि घर के बाहर बच्चे इन सब चीजों के बारे में बात करना बिलकुल पसंद नहीं करते। मैंने कई लोगों को देखा है जो बच्चों से मिलकर हैलो करते हैं और फिर मोबाइल में व्यस्त हो जाते हैं। फिर अचानक बच्चों की मौजूदगी की याद आते ही वे पूछने लगते हैं, आप किस क्लास में पढ़ते हो और आपके ग्रेड कैसे आते हैं?
कोई त्योहार हो या परिवार में कोई समारोह हो, बच्चों को ऐसे सवालों के जवाब कई बार देने पड़ते हैं और इसलिए वे ऐसे मौकों पर जाना बिलकुल पसंद नहीं करते। मेरी एक भतीजी ने तो इसके लिए अनोखा तरीका निकाल लिया था। वह एक शादी में आई तो अपने साथ एक प्लेकार्ड लेकर आई, जिस पर उसने अपने पढ़ाई-लिखाई के बारे में सारी बातें लिख कर रखी थी। जैसे ही कोई उससे कुछ पूछता, वह प्लेकार्ड लेकर सामने खड़ी हो जाती। घर या ऑफिस में लोगों से मिलते-जुलते मुझे हमेशा डॉ. माया एंजेलो की याद आती है। मशहूर नॉवेलिस्ट, शिक्षाविद्, नाटककार, इतिहासकार, अभिनेता, फिल्म निर्माता और सिविल राइट्स एक्टिविस्ट माया ने अपनी एक किताब में लिखा है, लोग आपके काम और बातों को याद नहीं रखते, लेकिन आपके साथ जुड़े अनुभवों को हमेशा याद रखते हैं। अफ्रीकी-अमेरिकी क्षेत्र की पारिवारिक परंपराओं और मूल्यों में लेखिका का अटूट विश्वास है। मैं उनकी लिखी दो किताबें आई नो व्हाई द केज्ड बर्ड सिंज्स और ऑल गॉड्स चिल्ड्रन नीड ट्रेवलिंग शूज कभी नहीं भुला सकता। यदि आप भी इन किताबों को पढ़ें तो मेरा पूरा भरोसा है कि चाहे कितना भी कठोर इंसान क्यों ना हो, उसकी आंखों में भी आंसू आ जाएंगे और वह अपने आसपास मौजूद सभी इंसानों को सम्मान की नजरों से देखना लगेगा।
फंडा यह है कि..
त्योहारों का समय दोस्तों और सगे-संबंधियों से मिलने का होता है। आप उन्हें अच्छा अनुभव दें तो ऐसे मौके हमेशा के लिए यादगार बनकर रह जाते हैं। आपको नहीं लगता कि हमें इसके लिए कोशिश करनी चाहिए?
Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 7th October 2013
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