हर सिक्के के दो पहलू होते हैं
यह 1990 की बात है। मौजूदा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तब देश के वित्त मंत्री थे। आर्थिक सुधारों को लेकर अपने दृष्टिकोण के संबंध में सिंह संसद में अपना बजट भाषण दे रहे थे। उसी दिन ठाणो रेलवे स्टेशन पर छह साल का गणोश धांगड़े रेलयात्रियों की भीड़ में अपने कक्षा के अन्य साथियों से बिछड़ गया। वह अकेले गलत ट्रेन में चढ़ गया और दूसरे स्टेशन पहुंच गया। प्लेटफॉर्म पर उसने तीन दिन गुजारे। तभी एक मछुआरे और उसकी पत्नी की नजर उस पर पड़ी। वे गणोश को साथ ले गए। बाद में उस दंपती के बेटे के साथ उसने ट्रेन में भीख मांगना शुरू कर दिया। अभी भीख मांगते हुए गणोश को दूसरा दिन ही था कि एक कार ने सड़क पर उसे टक्कर मार दी। उसे सिर में गंभीर चोट लगी। कुछ लोगों ने उसे सरकारी अस्पताल पहुंचाया। चोट की वजह से उसकी याददाश्त कम हो गई।
Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 23rd October 2013
चार महीने वह अस्पताल में भर्ती रहा, लेकिन उसे देखने कोई नहीं आया। अस्पताल प्रशासन ने उसे वरली में स्थित आनंद केंद्र अनाथालय भेज दिया। अनाथालय पहुंचने के बाद गणोश की पढ़ाई फिर शुरू हो गई। वह खेल में भी बढ़िया था, इसलिए अधिकारियों ने उसे अनाथालय से निकालकर ठाणो के दादोजी कोंडदेव हॉस्टल में शिफ्ट कर दिया। गणोश ने हॉस्टल में रहते हुए ही बारहवीं की परीक्षा पास की। इसके बाद आर्ट कॉलेज में एडमिशन लिया। 2010 में जब फस्र्ट ईयर में था तो वह पुलिस कांस्टेबल भर्ती परीक्षा में पास हो गया। प्रशिक्षण पूरा होते ही ठाणो पुलिस की रिस्पॉन्स टीम में पोस्टिंग मिल गई। इसी साल 26 जुलाई को। एक दिन यूं ही अनौपचारिक बातचीत के दौरान उसके बॉस इंस्पेक्टर श्रीकांत शोंदे ने उससे उसके परिवार के बारे में पूछ लिया। तो उसने उनसे अपनी पूरी आपबीती बता दी। यह भी कि परिवार से जुड़ाव की सिर्फ एक निशानी है। उसके हाथ में मां के नाम का बना टैटू। बाएं हाथ में लिखा हुआ था- मंदा आर. धांगड़े। इंस्पेक्टर ने वह टैटू देखा और उन्होंने गणोश को प्रोत्साहित किया कि वह अपने माता-पिता की तलाश शुरू करे। गणोश अपने साथियों के साथ पहले अनाथालय गया, लेकिन सुराग नहीं मिला। फिर उस इलाके के लोगों से पूछताछ शुरू की। वहां उन्हें एक परिवार मिला जिसका सरनेम धांगड़े था। पूछताछ के बाद गणोश और उसके साथी उस परिवार के पास गए। उस परिवार से गणोश ने पुलिस वाले की तरह सवाल पूछना शुरू कर दिया। पूछा कि क्या उन लोगों का कोई बच्चा गुम हो गया था? क्या उन्हें उस बच्चे की कोई निशानी बता सकते हैं? इसके जवाब में घर की एक बुजुर्ग महिला ने बताया कि हां, बच्चा गुमा था। उसके हाथ में एक टैटू बना हुआ था। इस पर उसका नाम लिखा था। गणोश तुरंत अपने हाथ में बना टैटू उसे दिखाया और उसे देखते हुए उस महिला ने पहचान लिया। मां और बेटे एक-दूसरे के सामने थे। एक भावनात्मक पल। इस मिलन को देखने के बाद हर किसी की आंख नाम थी। गणोश के पिता मेहनत-मजदूरी करते हैं। जबकि उसकी मां घरों में काम करती है। उसकी एक बहन है और दो भाई भी। अपने भाई-बहन से वह पहली बार मिला। अब ठाणो पुलिस कमिश्नर के कार्यालय में तैनात गणोश अपने परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाने को तैयार है।
फंडा यह है कि..
भगवान ने हमें जो कुछ भी दिया है उस हर चीज के दो पहलू होते हैं। लेकिन याद रखें खुशियां या अच्छा वक्त आखिरी में आता है।
Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 23rd October 2013
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