अच्छे और बुरे के घालमेल में अच्छाई ही जीतती है
मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन
इसी पितृपक्ष की बात है। मैं अपने बुजुर्ग अंकल और आंटी को वाराणसी से बेंगलुरू छोड़कर मुंबई लौट रहा था। मेरे साथ गंगा जल का एक पात्र भी था। लेकिन उसे मुंबई तक लाने में मुझे जो परेशानी हुई वह बेहद भयावह थी। मुझे हर एयरपोर्ट पर इसके बारे में सुरक्षा अधिकारियों को सफाई देनी पड़ी। बेंगलुरू से मुंबई के लिए निकलते वक्त एयरपोर्ट पर देखा कि वहां धार्मिक महत्व की चीजों की बड़ी दुकान है। इनमें चंदन से बनी कई चीजें भी हैं। अगरबत्ती भी। तीन सौ अगरबत्तियों का एक पैकेट 225 रुपए में मिल रहा था।
Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 29th October 2013
मेरे भीतर धार्मिक भावना ने जोर मारा और मैंने अगरबत्ती का एक पैकेट खरीद लिया। बिना यह सोचे कि लोगों को एक रुपए से भी कम में अच्छी अगरबत्ती का पैकेट मिल जाता है। दुकान पर चंदन की भीनी-भीनी खुशबू आ रही थी। वहां समझ नहीं आ रहा था कि यह खुशबू मेरे हाथ में मौजूद पैकेट से आ रही है या फिर वहां जल रही अगरबत्ती से या किसी और चीज से। बहरहाल जब मैं मुंबई अपने घर पहुंचा मैंने अपनी बेटी को यात्रा में हुए अनुभव की पूरी कहानी सुनाई। उसे सुनकर अगली पीढ़ी की उस बच्ची का सवाल था, ‘किसी नदी के पानी की दो-चार बूंद पूरे घर को पवित्र कैसे कर सकती है?’ मेरे पास कोई जवाब नहीं था। मैंने कुछ वक्त लिया ताकि मैं उसे कोई ऐसा जवाब दे सकूं जिसे वह आसानी से मान सके। कुछ दिनों बाद मैंने एयरपोर्ट से खरीदे उस चंदन की अगरबत्ती के पैकेट से अगरबत्तियां जलानी शुरू कीं। लेकिन खुशबू किसी में नहीं थी। दुकानदार का दावा झूठा साबित हुआ।
मैंने महसूस किया कि जब भी मैं ये अगरबत्तियां जलाता हूं तो मुझको गुस्सा आने लगता है। आक्रामक हो जाता हूं और निराश भी। शायद इसलिए कि इनके जरिए मुझे ठगा गया था। और यह मुझे उसकी याद दिलाती थीं। इस माहौल में मेरी तथाकथित भक्ति पीछे छूट जाती थी। भगवान के सामने मैं हाथ जोड़कर खड़ा होता था, लेकिन दिमाग में यही चलता कि मुझे दुकानदार ने ठग लिया है। बाहर और भीतर का यह द्वंद्व इतना तेज होता था कि मैं एक मिनट भी ईश्वर का ठीक तरह से ध्यान नहीं कर पा रहा था।
तभी मुझे भारत के पहले गवर्नर जनरल सी. राजगोपालाचारी की एक बात याद आई। इसमें उन्होंने बताया है कि ज्ञान और भक्ति दोनों असल में एक ही हैं। उनके मुताबिक, जब हम पठन-पाठन और जानकारियां हासिल करने के बाद खुद को जागरूक भी करते हैं तो ज्ञान हो जाता है। जैसे ही मुझे यह बात याद आई अगले दिन से मैंने कुछ तब्दीलियां कीं। अब मैं एयरपोर्ट से खरीदी अगरबत्तियों के साथ कुछ वे अगरबत्ती मिलाने लगा जो अमूमन रोज जलाता था। प्रयोग कामयाब रहा। अब अगरबत्तियों से खुशबू आ रही थी। इनकी मदद से अब मुझे अपने ठगे जाने का ख्याल नहीं आ रहा था। मैं पूजा-ध्यान में खुद को ठीक ढंग से लगा पा रहा था। मैं नहीं चाहता था कि सस्ती अगरबत्तियों की वजह से मेरा दिन खराब हो। मेरी शांति मेरे लिए 225 रुपए से भी ज्यादा कीमती थी। उसे मैंने हासिल कर लिया था। और अब मैं अपनी बेटी के सवाल का जवाब देने को भी तैयार था। मैंने उसे बुलाया और बताया कि जब भी अच्छा और बुरा आपस में मिलता है तो अच्छाई की जीत होती है। सामने जल रही अच्छी और बुरी अगरबत्तियां इसका सबूत हैं। अच्छी अगरबत्तियों से निकल रही खुशबू माहौल को शांत और भक्तिमय बना रही है। मेरी बेटी ने हां में सिर हिला दिया। शायद उसे कुछ-कुछ मेरी बात समझ आ चुकी थी। हो सकता है कुछ न भी आई हो। मेरा मानना है कि नई पीढ़ी को अच्छी-बुरी चीजें समझने का मौका देना चाहिए। वे अगर पहले बुरा समझेंगे तो समय के साथ अच्छा भी समझ जाएंगे। अच्छे की अहमियत भी उन्हें समझ आ जाएगी। और सबसे बड़ी चीज उनकी समझ विकसित होती जाएगी। यही अच्छी खबर भी है।
मैंने महसूस किया कि जब भी मैं ये अगरबत्तियां जलाता हूं तो मुझको गुस्सा आने लगता है। आक्रामक हो जाता हूं और निराश भी। शायद इसलिए कि इनके जरिए मुझे ठगा गया था। और यह मुझे उसकी याद दिलाती थीं। इस माहौल में मेरी तथाकथित भक्ति पीछे छूट जाती थी। भगवान के सामने मैं हाथ जोड़कर खड़ा होता था, लेकिन दिमाग में यही चलता कि मुझे दुकानदार ने ठग लिया है। बाहर और भीतर का यह द्वंद्व इतना तेज होता था कि मैं एक मिनट भी ईश्वर का ठीक तरह से ध्यान नहीं कर पा रहा था।
तभी मुझे भारत के पहले गवर्नर जनरल सी. राजगोपालाचारी की एक बात याद आई। इसमें उन्होंने बताया है कि ज्ञान और भक्ति दोनों असल में एक ही हैं। उनके मुताबिक, जब हम पठन-पाठन और जानकारियां हासिल करने के बाद खुद को जागरूक भी करते हैं तो ज्ञान हो जाता है। जैसे ही मुझे यह बात याद आई अगले दिन से मैंने कुछ तब्दीलियां कीं। अब मैं एयरपोर्ट से खरीदी अगरबत्तियों के साथ कुछ वे अगरबत्ती मिलाने लगा जो अमूमन रोज जलाता था। प्रयोग कामयाब रहा। अब अगरबत्तियों से खुशबू आ रही थी। इनकी मदद से अब मुझे अपने ठगे जाने का ख्याल नहीं आ रहा था। मैं पूजा-ध्यान में खुद को ठीक ढंग से लगा पा रहा था। मैं नहीं चाहता था कि सस्ती अगरबत्तियों की वजह से मेरा दिन खराब हो। मेरी शांति मेरे लिए 225 रुपए से भी ज्यादा कीमती थी। उसे मैंने हासिल कर लिया था। और अब मैं अपनी बेटी के सवाल का जवाब देने को भी तैयार था। मैंने उसे बुलाया और बताया कि जब भी अच्छा और बुरा आपस में मिलता है तो अच्छाई की जीत होती है। सामने जल रही अच्छी और बुरी अगरबत्तियां इसका सबूत हैं। अच्छी अगरबत्तियों से निकल रही खुशबू माहौल को शांत और भक्तिमय बना रही है। मेरी बेटी ने हां में सिर हिला दिया। शायद उसे कुछ-कुछ मेरी बात समझ आ चुकी थी। हो सकता है कुछ न भी आई हो। मेरा मानना है कि नई पीढ़ी को अच्छी-बुरी चीजें समझने का मौका देना चाहिए। वे अगर पहले बुरा समझेंगे तो समय के साथ अच्छा भी समझ जाएंगे। अच्छे की अहमियत भी उन्हें समझ आ जाएगी। और सबसे बड़ी चीज उनकी समझ विकसित होती जाएगी। यही अच्छी खबर भी है।
फंडा यह है कि..
बुराई कितनी भी ताकतवर हो, कितनी भी प्रभावी हो, जीत उस पर अच्छाई की ही होगी। आखिरी नतीजे में यही सामने आएगा कि बुराई से अच्छाई ही बेहतर है।
Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 29th October 2013
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