Thursday, October 24, 2013

What's your Strategy to Counter the Competitive Crowd ? - Management Funda - N Raghuraman - 24th October 2013

प्रतिस्पर्धियों की भीड़ में आपकी रणनीति क्या है?

मैनेजमेंट फंडा - एन.  रघुरामन

आप जब भी कुछ नया करना चाहते हैं तो क्या बिल गेट्स के बारे में सोचते हैं? या फिर सिलिकॉन वैली, इन्फोसिस, स्टीव जॉब्स? और कुछ नहीं तो किसी टेक्नोसेवी दोस्त के बारे में ही? ज्यादातर लोग शायद ऐसा सोचते होंगे। लेकिन सच ये है कि उदयपुर में झील किनारे एक कुर्सी की दुकान लगाने वाले नाई और हरियाणा के अंबाला में पानी-पुरी बेचने वाले के पास भी ढेरों आइडिया होते हैं। ऐसे आइडिया जो ग्राहकों की उम्मीद के करीब होते हैं। मिसाल मौजूद हैं। उदयपुर में झील किनारे नाई की दुकान है। सिर्फ एक कुर्सी वाली दुकान। नाम है, ‘लेक व्यू सैलून।’ इस दुकान को चलाने वाला कभी खाली नहीं बैठता। चेतक सर्कल पर स्थित मयूर ब्यूटी सैलून चलाने वाला नाई शहर के बड़े पार्लरों में जाता रहता है। ताकि खुद को नई तकनीक से अपडेट करता रहे। ऐसे ही अंबाला में गैलेक्सी मॉल के पीछे तरफ श्रीराम चाट भंडार है। जब तक दुकान खुली रहती है, यहां भीड़ कम नहीं होती। इसके गोलगप्पे काफी मशहूर हैं। एक प्लेट में सात गोलगप्पे मिलते हैं। हर एक में वही मसाला। लेकिन पानी अलग-अलग। लोगों की पसंद के मुताबिक, किसी के लिए जीरे का तो किसी को पुदीने वाला। कब किसका नंबर आएगा इसकी जानकारी बोर्ड पर लगाई जाती है। उसके हिसाब से गोलगप्पे सर्व किए जाते हैं। 

Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 24th October 2013

 
इसी तरह दिल्ली-चंडीगढ़ हाइवे पर ड्राइव करते हुए आपको एक के बाद एक कई ढाबे नजर आएंगे। इन ढाबों के बाहर इक्का-दुक्का कारें भी खड़ी नजर आ जाती हैं। इससे पता चलता है कि इनका बिजनेस औसत ही चल रहा है। लेकिन इन्हीं ढाबों की भीड़ में सोनीपत के पास एक है सुखदेव ढाबा। आप किसी भी वक्त वहां पहुंचें, आसानी से आपको कार पार्क करने के लिए जगह नहीं मिलेगी। कोई भी टेबल खाली नहीं दिखेगी न ही कोई कर्मचारी निठल्ला बैठा मिलेगा। ढाबा हमेशा पैक रहता है। चौबीसों घंटे हाई-वे से गुजरने वाले लोग यहां आते हैं। रुकते हैं। कुछ खाते-पीते हैं। ढाबे पर सिक्योरिटी गार्ड भी है। वह आपको आपकी कार पार्क करने और फिर निकालने में हमेशा मदद करता है। इससे उसको हर शिफ्ट में करीब 500 रुपए टिप के तौर पर मिल जाते हैं। इस ढाबे पर अगर आप शनिवार-रविवार को पहुंच गए तो खाने के लिए आपको एक घंटे तक इंतजार करना पड़ सकता है। शायद सुखदेव ढाबा ग्राहकों की जरूरतों को ठीक तरह से समझता है। उसे ज्यादा बेहतर तरीके से लागू कर पाता है। यही वजह है कि हर सीजन में ढाबा अपनी पूरी क्षमता तक भरा रहता है। जबकि दूसरे ढाबे औसतन 35 फीसदी तक ही भर पाते हैं। मैंने कई ग्राहकों से जानना चाहा, ‘आखिर सुखदेव ही क्यों?’ सबका एक ही जवाब, ‘खाना अच्छा है।’ लोग चाहे कसौली जा रहे हों, चंडीगढ़ या दिल्ली। इस ढाबे के खाने की क्वालिटी और स्वाद हर किसी को पसंद आता है। और सालों साल तक फिर वे लोग इस ढाबे से जुड़े रहते हैं।

चंडीगढ़ के सेक्टर-22 में दस साल पहले तक वीराना नजर आता था। लेकिन अब यहां हर रात दिवाली जैसी होती है। ठीक वैसे ही जैसे हरिवंश राय बच्चन ने अपनी रचना ‘मधुशाला’ में जिक्र किया है। वजह है यहां मौजूद अरोमा होटल। इसके मालिकों की सोच और कोशिशों के बाद यहां आज होटल के ग्राउंड फ्लोर पर दुनिया के नामी ब्रांड के खान-पान काउंटर खुले हुए हैं। अरबों रुपए के वर्जिन ग्रुप ने अपनी कारोबारी यात्रा एक स्टूडेंट मैगजीन से शुरू की थी। उसमें भी पहले ज्यादातर हिप्पियों के बारे में छपा करता था। इस ग्रुप ने शुरू से अपने ग्राहकों की जरूरतों को समझा। और सिर्फ वही पेश किया जो उनकी मांग थी। अपेक्षा थी। यानी इन सब कहानियों का एकमात्र सारांश। दुनिया हो या अपने शहर का सफल कारोबारी। सबने अपने ग्राहकों ही जरूरतों को पहचाना, समझा और फिर उसी के हिसाब से चीजें पेश कीं।


फंडा यह है कि..

अगर आप एक उद्यमी हैं और छोटा कारोबार कर रहे हैं तो आपको रणनीति बनानी होगी। कैसे आप प्रतिस्पर्धा में टिके रहें। कैसे भीड़ से खुद को अलग रखें। नए-नए प्रयोग भी करते रहें।





















Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 24th October 2013

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