Thursday, October 17, 2013

It Is Important To Stay Connected With Past - Management Funda - N Raghuraman - 17th October 2013


पहली कहानी: डॉ. कार्ल फ्रॉस्ट ख्यात इंडस्ट्रियल साइकोलॉजिस्ट और लेखक हैं। 1960 के दशक की बात है। वे नाइजीरिया के एक उपनगरीय इलाके में रहते थे, जहां उस वक्त बिजली बस आई ही थी। गांव के उस घर में एक बल्ब हुआ करता था और उसे तरक्की की निशानी समझा जाता था। रात के समय फ्रॉस्ट और उनके परिवार को खासी परेशानी होती थी। आसपास के कई परिवारों के लोग उनके घर आकर बैठ जाते थे। अचरज से यह देखने के लिए कि बल्ब आखिर जलता कैसे है? फ्रॉस्ट के मुताबिक बिजली के बल्ब ने एक और दिक्कत खड़ी कर दी थी। आदिवासी पहले रात को आग जलाकर नाचते-गाते थे। बड़े-बुजुर्ग वहां छोटों को कहानियां सुनाते थे। लेकिन बिजली आने के बाद वे बल्ब को देखते ही बैठे रहते थे। 
 Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 17th October 2013
दूसरी कहानी: आजकल आप जब कोई चीज फेसबुक पर पोस्ट करते हैं तो निश्चित रूप से यही चाहते हैं कि लोग उसे पढ़ंे/देखें। उसकी तारीफ करें। उसे आगे बढ़ाएं। और जब आपके सर्किल से जुड़े लोग सचमुच उस पोस्ट को ‘लाइक’ करते हैं तो आपको अच्छा भी लगता है। लोग इन दिनों फेसबुक पर ज्यादा से ज्यादा टाइम खर्च करते हैं। इसकी वजह यह है कि हमारा दिमाग बहुत जल्द इस किस्म की चीजों का आदी हो जाता है। खास तौर पर उस वक्त जब लोग आपके स्टेटस को, पोस्ट को लाइक करते हैं तो आपको मजा आने लगता है। दिमाग का यही हिस्सा उस वक्त भी हमें ‘फील गुड’ का अहसास कराता है जब हम अच्छा खाते हैं। अच्छा पहनते हैं। दरअसल दिमाग का यही कोना है जो अपनी ओर की गई तारीफों के प्रति अधिक संवेदनशील और सक्रिय होता है। फेसबुक जैसी साइटों पर जो खुशी मिलती है उसकी वजह भी इसी तरह की तारीफें आदि हैं। चूंकि इन साइटों पर यह प्रक्रिया लगातार चलती रहती है इसलिए यह कभी-कभार मिलने वाले उपहारों आदि से ज्यादा खुशी देती है। और इसीलिए इन साइटों पर सक्रिय रहने वाले अधिकतर लोग इसके आदी भी हो जाते हैं। अगर फेसबुक यूजर्स के पैटर्न को गौर से देखें तो साफ पता चल जाएगा कि ज्यादातर लोग अपनी पोस्ट के लिए किसी ‘परफेक्ट कमेंट’ के इंतजार में रहते हैं। उसे तलाशते रहते हैं क्योंकि यह उनकी पोस्ट पर ज्यादा से ज्यादा लाइक्स मिलने की गारंटी होता है।
मैं ऐसे कई फेसबुक यूजर्स को जानता हूं जो असल जीवन के अपने दोस्तों के बजाय फेसबुक फ्रेंड्स पर ज्यादा भरोसा करते हैं। कहने का मतलब यह है कि जिस तरह से 60 के दशक में बल्ब ने हमारे परिवारों से कहानी सुनाने वालों को छीना था अब नए दौर में वही काम फेसबुक जैसा सोशल मीडिया कर रहा है। फेसबुक पर ही एक पोस्ट मैंने हाल में ही देखी। इसमें काटरून कैरेक्टर कह रहा है, ‘कल रात इंटरनेट नहीं चल रहा था। मैंने अपना वक्त परिवार वालों के साथ बिताया। भले लोग हैं यार वो!’ इस पोस्ट से आप हालात का अंदाजा लगा सकते हैं। यानी, हर परिवार, कॉलेज, संगठन, संस्थान को आज कहानी सुनाने वालों की जरूरत है। क्योंकि अगर सुनने की आदत खत्म हो गई तो इतिहास के कई संदर्भ पीछे छूट जाएंगे। और मूल्यों की वह शिक्षा भी जो शायद सिर्फ दादी-नानी की कहानियों के जरिए ही मिलती है। ये दो कहानियां बताती हैं कि नई पीढ़ी से किस्से-कहानियों के जरिए जुड़े रहने की क्या और कितनी अहमियत है। दरअसल, इन्हीं किस्से-कहानियों के जरिए लिखित-अलिखित इतिहास पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ता है। अगर हम एक-दूसरे के साथ मिलें-बैठें नहीं। कुछ कहें-सुनें नहीं तो एक दिन यह भी भूल बैठेंगे कि हम आखिर हैं कौन? हमारी पहचान क्या है? हमारा मूल कहां है? मानव सभ्यता धीरे-धीरे अलग-थलग पड़ने लगेगी और यहीं से परेशानियां भी शुरू होने लग जाएंगी। 

फंडा यह है कि..


किस्सागोई करने वाले हर कदम पर महत्वपूर्ण हैं। चाहे वह घर-परिवार हो या बड़ी कॉरपोरेट कंपनी। उसके बिना अतीत से हमारी गर्भनाल टूट जाएगी। हम अपने कल को भूल जाएंगे।




















Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 17th October 2013

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