किसी की मदद करनी है तो पहले सोच में बदलाव लाएं
मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन
18 साल के एक छात्र को अपनी पढ़ाई की फीस भरने में मुश्किलें आ रही थीं। वह अनाथ था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि पैसे कहां से मांगे। उसने अपने एक दोस्त के साथ मिलकर कैंपस में एक म्यूजिकल कन्सर्ट आयोजित करने का फैसला किया। इससे होने वाली आमदनी से उन्होंने अपनी पढ़ाई का खर्च निकालने की योजना बनाई। दोनों किसी तरह मशहूर पियानोवादक इज्नेसी जे. पाडेरेव्स्की के पास पहुंचे। पाडेरेव्स्की के मैनेजर ने शर्त रख दी कि 2000 डॉलर की फीस मिलने पर ही वे कन्सर्ट में पियानो बजाएंगे। छात्र तैयार हो गए और कन्सर्ट को सफल बनाने के लिए दिन-रात जुट गए। कन्सर्ट का दिन आ गया, लेकिन छात्र पूरे टिकट नहीं बेच पाए। वे 1600 डॉलर ही जमा कर पाए। निराश होकर वे पाडेरेव्स्की के पास पहुंचे और उन्हें अपनी हालत के बारे में बताया। उन्होंने 1600 डॉलर की नकद राशि के साथ 400 डॉलर का चेक पाडेरेव्स्की को दिया, इस वादे के साथ कि जल्द ही उन्हें यह रकम भी मिल जाएगी। लेकिन पाडेरेव्स्की ने इससे साफ इनकार करते हुए चेक फाड़ दिया।
स्रोत : दैनिक भास्कर
नकद राशि लौटा दी और छात्रों से कहा, इसमें से पहले वह रकम निकाल लो जो तुम दोनों ने कन्सर्ट के लिए खर्च किए हैं, फिर अपनी पढ़ाई की फीस भरो और इसके बाद जो रकम बचे, वह मुझे दे देना। दोनों छात्रों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। वे पाडेरेव्स्की को बार-बार धन्यवाद देते हुए वहां से निकल गए। यह बहुत बड़ी बात नहीं थी, दयालुता का एक छोटा उदाहरण भर था। लेकिन इससे पाडेरेव्स्की के अच्छे इंसान होने की बात जरूर सामने आई। वह भला दो इंसानों की मदद क्यों करते जिन्हें वे जानते तक नहीं।
हम सभी जिंदगी में ऐसी परिस्थितियों से दो-चार होते रहते हैं। और हम जैसे अधिकांश लोगों की एक ही प्रतिक्रिया होती है, मैं दूसरों की मदद करूं तो फिर मेरा क्या होगा? वहीं महान लोग सोचते हैं कि जरूरतमंद की मदद हम न करें तो उन्हें कौन देखेगा? पाडेरेव्स्की आगे चलकर पोलैंड के प्रधानमंत्री बने। वे एक महान राजनेता थे, लेकिन विश्व युद्ध के दौरान पोलैंड की हालत खस्ता हो गई। देश की करीब 15 लाख आबादी के पास खाने को कुछ नहीं था। सरकार के पास उनका पेट भरने के लिए पैसे नहीं थे। पाडेरेव्स्की को यह समझ नहीं आ रहा था कि किससे मदद मांगें। फिर उन्होंने अमेरिका के फूड एंड रिलीफ एडमिनिस्ट्रेशन से मदद की अपील की। उस समय फूड एंड रिलीफ एडमिनिस्ट्रेशन के मुखिया हर्बर्ट हूवर थे, जो बाद में अमेरिका के राष्ट्रपति बने। हूवर मदद के लिए राजी हो गए और हजारों टन खाद्य पदार्थ पोलैंड के लोगों के लिए तत्काल रवाना कर दिया गया।
पोलैंड को एक बड़ी विपदा से निजात मिल गई और पाडेरेव्स्की राहत महसूस कर रहे थे। उन्होंने हूवर से व्यक्तिगत रूप से मिलकर उनका धन्यवाद करने का निर्णय किया। हूवर से मिलकर पाडेरेव्स्की ने जैसे ही उन्हें शुक्रिया कहा, हूवर ने उन्हें बीच में ही रोककर कहा, आपको मुझे धन्यवाद देने की कोई जरूरत नहीं है। आपको शायद याद नहीं हो, लेकिन सालों पहले आपने दो छात्रों को कॉलेज की पढ़ाई में मदद की थी। उनमें से एक मैं था। यह सुनकर कुछ पलों के लिए तो पाडेरेव्स्की के मुंह से कोई आवाज ही नहीं निकली। उनकी तंद्रा तब टूटी जब तालियों की गड़गड़ाहट की आवाज चरम पर पहुंच गई। उन्हें इस बात का थोड़ा भी अंदाजा नहीं था कि जिन दो गरीब छात्रों की मदद करके वह भूल चुके थे, राष्ट्रीय संकट की हालत में वे उनकी मदद करेंगे। वे पोडियम से उतरे और हूवर के पास जाकर उन्हें कसकर गले लगा लिया।
हम सभी जिंदगी में ऐसी परिस्थितियों से दो-चार होते रहते हैं। और हम जैसे अधिकांश लोगों की एक ही प्रतिक्रिया होती है, मैं दूसरों की मदद करूं तो फिर मेरा क्या होगा? वहीं महान लोग सोचते हैं कि जरूरतमंद की मदद हम न करें तो उन्हें कौन देखेगा? पाडेरेव्स्की आगे चलकर पोलैंड के प्रधानमंत्री बने। वे एक महान राजनेता थे, लेकिन विश्व युद्ध के दौरान पोलैंड की हालत खस्ता हो गई। देश की करीब 15 लाख आबादी के पास खाने को कुछ नहीं था। सरकार के पास उनका पेट भरने के लिए पैसे नहीं थे। पाडेरेव्स्की को यह समझ नहीं आ रहा था कि किससे मदद मांगें। फिर उन्होंने अमेरिका के फूड एंड रिलीफ एडमिनिस्ट्रेशन से मदद की अपील की। उस समय फूड एंड रिलीफ एडमिनिस्ट्रेशन के मुखिया हर्बर्ट हूवर थे, जो बाद में अमेरिका के राष्ट्रपति बने। हूवर मदद के लिए राजी हो गए और हजारों टन खाद्य पदार्थ पोलैंड के लोगों के लिए तत्काल रवाना कर दिया गया।
पोलैंड को एक बड़ी विपदा से निजात मिल गई और पाडेरेव्स्की राहत महसूस कर रहे थे। उन्होंने हूवर से व्यक्तिगत रूप से मिलकर उनका धन्यवाद करने का निर्णय किया। हूवर से मिलकर पाडेरेव्स्की ने जैसे ही उन्हें शुक्रिया कहा, हूवर ने उन्हें बीच में ही रोककर कहा, आपको मुझे धन्यवाद देने की कोई जरूरत नहीं है। आपको शायद याद नहीं हो, लेकिन सालों पहले आपने दो छात्रों को कॉलेज की पढ़ाई में मदद की थी। उनमें से एक मैं था। यह सुनकर कुछ पलों के लिए तो पाडेरेव्स्की के मुंह से कोई आवाज ही नहीं निकली। उनकी तंद्रा तब टूटी जब तालियों की गड़गड़ाहट की आवाज चरम पर पहुंच गई। उन्हें इस बात का थोड़ा भी अंदाजा नहीं था कि जिन दो गरीब छात्रों की मदद करके वह भूल चुके थे, राष्ट्रीय संकट की हालत में वे उनकी मदद करेंगे। वे पोडियम से उतरे और हूवर के पास जाकर उन्हें कसकर गले लगा लिया।
फंडा यह है कि..
यदि हम वास्तव में किसी दूसरे इंसान या समाज की मदद करना चाहते हैं तो इसके लिए सबसे पहले हमें अपनी सोच बदलनी होगी। हमें खुद से यह पूछना होगा कि ‘यदि हम उनकी मदद न करें तो उनका क्या होगा?’
स्रोत : दैनिक भास्कर
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