कचरे के पूर्ण प्रबंधन से पर्यावरण सुरक्षित होगा
मैनेजमेंट फंडा - एन रघुरामन
हम भारतीय अब भी कागज की रद्दी के बारे में पूरी तरह सचेत नहीं हैं। हालांकि सब जानते हैं कि कागज पेड़ों को काटने के बाद बनाया जाता है। इसके बावजूद हम कागज की बर्बादी रोकने के लिए ज्यादा जागरूक नहीं हैं। और अगर बात किसी शैक्षणिक संस्थान की हो तो वहां कुछ ज्यादा ही कागज बर्बाद होता है। कर्नाटक के मणिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के तीन स्टूडेंट-शशांक तुलस्यान, सिद्धार्थ भसीन और सुमन गर्ग भी इससे परिचित हैं। शशांक और सिद्धार्थ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन इंजीनियरिंग में और सुमन मैकेनिकल इंजीनियरिंग में चौथे साल के स्टूडेंट हैं। तीनों सिर्फ समस्या से परिचित हैं, ऐसा नहीं है। इन्होंने इसका हल निकालने की कोशिश भी की है। इन्होंने रद्दी कागज से पेपर, पेन, पेंसिल बनाना शुरू किया है। शशांक टीम के मुखिया हैं। सबसे पहले इन्होंने अपने कॉलेज कैंपस से ही रद्दी कागज इकट्ठा करना शुरू किया। शुरू-शुरू में इससे पेपर बैग और पेन स्टैंड्स वगैरह बनाए। इस शुरुआती प्रक्रिया में उन्हें लगा कि किसी खास कौशल की जरूरत नहीं है। लिहाजा उनकी टीम उत्साहित नहीं थी।
स्रोत: Effective Garbage Management Will Lead to Safety Of Environment - Management Funda By
N Raghuraman - दैनिक भास्कर 6th November 2013
निजी तौर पर शशांक तो निराश ही हो गए थे। वे कुछ नया करना चाहते थे। ऐसा जो लोगों को ज्यादा अपील करे। उन्होंने रद्दी कागज के पूरे प्रबंधन के बारे में योजना बना डाली। और इस योजना से निकली पेपरट्री क्रिएशंस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड। इस साल अप्रैल में कंपनी रजिस्टर्ड हुई। शशांक इसके मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) और डायरेक्टर हैं, जबकि सिद्धार्थ और सुमन डायरेक्टर। कंपनी को मणिपाल यूनिवर्सिटी टेक्नोलॉजी इंक्यूबेटर (एमयूटीबीटी) का संरक्षण मिला हुआ है। इसमें 21 कर्मचारी काम कर रहे हैं।
कंपनी की स्थापना के बाद इसके डायरेक्टर्स ने शिक्षा के क्षेत्र में काम कर संस्थानों से संपर्क किया। इन संस्थानों से रद्दी कागज इकट्ठा करने का अभियान चलाया। उस रद्दी कागज से दोबारा कागज और पेन, पेंसिल बनाए गए। फिर उन्हीं संस्थानों को सप्लाई कर दिया, जहां से रद्दी जुटाई गई थी। वह भी रियायती दाम पर। पेपरट्री ने अभी अपने इस प्रोजेक्ट का शुरुआती चरण (पायलट प्रोजेक्ट) पूरा किया है, लेकिन नतीजे उत्साहजनक हैं। इसके ग्राहकों में मणिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मणिपाल स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर एंड प्लानिंग और डब्लूएलएस सॉल्यूशंस शामिल हो चुके हैं। अगले छह महीनों में 21 कॉरपोरेट घरानों को इस लिस्ट में शामिल करने लक्ष्य है। देश के अलग-अलग हिस्सों में कंपनी की फ्रैंचाइजी दी जाएंगीं। भविष्य की योजनाओं में रंगीन कागज, पेंसिलें और पेन बनाना भी शामिल है। यही नहीं कंपनी देश
भर में स्कूल, कॉलेजों से संपर्क भी करेगी ताकि वे अपने यहां निकलने वाला रद्दी कागज उसके पास भिजवा सकें। रद्दी कागज के बदले शिक्षण संस्थानों को कंपनी से बने हुए कागज, पेन और पेंसिल दिए जाएंगे। योजना के मुताबिक यह अभियान कर्नाटक, झारखंड, मध्यप्रदेश और पंजाब से शुरू हो सकता है। एमयूटीबीटी के एक राष्ट्रीय स्तर के बिजनेस प्लान कंपीटिशन में पेपरट्री को तीसरा स्थान मिला। ईनाम के तौर पर दो लाख रुपए नकद दिए गए। एक अन्य राष्ट्रीय स्तर के ही ग्रीन बिजनेस प्लान कंपीटिशन में कंपनी को पहला स्थान मिला। यह कंपनी दुनिया की उन 50 कंपनियों में भी शुमार हो चुकी है, जिन्हें शुरुआत में ही बड़े-बड़े ईनाम मिल गए। पेपरट्री के बारे में सबसे खास बात ये है कि वह उसे काम का बना रही है, जिसे लोग बेकार समझकर फेंक देते हैं। कंपनी के उत्पाद पहुंच भी वहीं रहे हैं जहां से रद्दी निकली थी। इस तरह कंपनी दोहरा काम कर रही है। एक तो कचरे को कम कर रही है। दूसरा उसे फिर इस्तेमाल लायक बना रही है। ये दोनों ही तरीके इको सिस्टम (पारिस्थितिकी) में संतुलन बनाए रखने के लिए बेहद जरूरी हैं।
फंडा यह है कि..
ईको सिस्टम तभी संतुलित रह सकता है जब कचरे का पूरी तरह प्रबंधन हो। याद रखिए सिर्फ निस्तारण नहीं, प्रबंधन। इससे लोग पर्यावरण के मुद्दों पर जागरूक होंगे, उनसे जुड़ भी सकेंगे।
स्रोत: Effective Garbage Management Will Lead to Safety Of Environment - Management Funda By
N Raghuraman - दैनिक भास्कर 6th November 2013
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