वक्त निकलने पर ही होता है कुछ खोने का अहसास
मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन
चूहा तो बस चूहा ही है। सुनने में यह अच्छा लगता है। लेकिन अगर पता लगे कि ट्रेन के एसी कोच में बर्थ के नीचे रखे आपके बैग के आसपास एक चुहिया दो बच्चों के साथ उछल-कूद कर रही है, तो? तब शायद आपको अच्छा न लगे। उस युवक को भी अच्छा नहीं लग रहा था। और वह ट्रेन की चादर को ठोकते हुए यहां-वहां कूद रहा था। वाकया तब का है, जब मैं मध्यप्रदेश में अपने दोस्त के बेटे की शादी में हिस्सा लेने के लिए इंटरसिटी एक्सप्रेस से इंदौर से शिवपुरी जा रहा था। मैंने आसपास मौजूद सभी लोगों को शांत करने के लिए कहा, 'यह एक सामान्य चूहा ही तो है।' इस पर पास खड़ी महिला तपाक से बोली, 'आप तो ऐसे कह रहे हैं, जैसे पेड़ पर कोई कौआ बैठा हो। और ये अभी उड़ जाने वाला है।' उस महिला की बात सुनकर मैं चुप हो गया। अपनी किताब उठाई और पढऩे लगा। अचानक मुझे अपनी मां की एक बात याद आई। वे कहती हैं, 'आपको अच्छी किताब की अहमियत तब तक पता नहीं चलेगी, जब तक आप बुरी किताब नहीं पढ़ लेते। मैं समझ गया कि ज्यादातर लोगों में चूहे से डर क्यों है। शायद इसलिए क्योंकि यह जीव अक्सर जानलेवा बीमारियों का वाहक बनता है। तभी एक महिला आई और बताने लगी कि उसके पड़ोसी के घर नवजात बच्चा हुआ था। उसके पैर की अंगुलियों को चूहे ने कुतर लिया। अगले ही दिन उन लोगों को प्लेन से अपने बच्चे को दिल्ली ले जाना पड़ा। ऑपरेशन कराने के लिए।
Source: The Feeling of Loosing Is Felt Only When The Time Goes By - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 20th November 2013
वह महिला उस युवती को नसीहत देने लगी, जिसकी गोद में 60 दिन का प्यारा सा बच्चा था। भयभीत सी उस युवती ने तुरंत अपनी मां को फोन लगाया और पूरा किस्सा बता डाला। युवती की मां भी घबरा गई। वह कुछ कहती इससे पहले ही उस युवक ने, जो ट्रेन की चादर ठोक रहा था, इशारा किया। वह युवती की मां से बात करना चाह रहा था। युवती ने फोन उस युवक को पकड़ा दिया। वह दूसरी तरफ मौजूद युवती की मां से कहने लगा, 'एम्सटर्डम में एक व्यक्ति ने अपने मकान में खास इंतजाम किए हैं। इस तरह के कि कोई भी चूहा उस मकान में घुस नहीं सकता। रेलवे को भी ट्रेनों में ऐसे इंतजाम करने चाहिए।' सामने बैठी युवती झुंझला गई और बोली, 'एम्सटर्डम में क्या हो रहा है, क्या नहीं, इससे किसी को क्या लेना-देना।' उसने फोन युवक से छीन लिया था। इधर, चुहिया और उसके बच्चे अपनी कारस्तानी में लगे हुए थे। उस युवती ने भी अपने बच्चे के साथ ऊपर की बर्थ पकड़ ली थी। एक अन्य यात्री से उसने अपनी बर्थ बदली थी। यात्रियों की तैयारी देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वे किसी युद्ध का सामना करने जा रहे हों। अगले आधा घंटे में तरह-तरह के किस्से-कहानियां सुनने-सुनाने का दौर शुरू हो गया। लेकिन चूहा उन कहानियों में नहीं था। एक-दूसरे से परिचय। विजिटिंग कार्ड का आदान-प्रदान। एक-दूसरे के फोन नंबर्स लेना-देना। यही सब चल रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे कोच में हर यात्री मौजूदा स्थिति का आनंद ले रहा है। ट्रेनों से जुड़े गंभीर मसलों-जैसे गंदे टॉयलेट, पानी का लीकेज, खराब बिस्तर आदि को सब भूल चुके थे। इसी बीच ट्रेन अपने गंतव्य तक पहुंच गई। लोग उतरकर अपने-अपने स्थानों की ओर चल दिए। जिस समस्या का उन्होंने सामना किया, उसकी शिकायत करने की फुर्सत और शायद ऊर्जा भी, किसी में नहीं थी। मैं जानता हूं कि 'कॉमेडी नाइट्स विद कपिल' और इसमें गुत्थी और पलक जैसे चरित्र बेहद लोकप्रिय क्यों हैं? इसलिए कि इस तरह के शो और इसमें काम करने वाले किरदार हमें तुरत-फुरत हंसने का मौका देते हैं। हालांकि, यह भी सच है कि इन कार्यक्रमों के जरिए हमें बौद्धिक जुगाली करने के लिए कोई सामग्री नहीं मिलती।
फंडा यह है कि...
जब तक आप कोई खराब किताब न पढ़ें, अच्छी किताब की अहमियत समझ नहीं आती। ऐसे ही जब तक आपको वक्त बर्बाद करने का अनुभव नहीं होगा, आपको समझ नहीं आएगा कि आपने क्या खोया।
Source: The Feeling of Loosing Is Felt Only When The Time Goes By - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 20th November 2013
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