मिल-जुलकर पहाड़ भी धकेला जा सकता है
मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन
पहली समस्या:
पुणे को देश में
शिक्षा के बड़े केंद्र के तौर पर जाना जाता है। यहां देश भर के अलग-अलग
हिस्सों से बच्चे आते हैं, लेकिन इस शहर की एक अलग समस्या है। यहां बच्चे
आत्महत्या बहुत करते हैं? इसके पीछे वजहें वही आम हैं। अकेलापन, परीक्षाओं
का तनाव, घर का खाना न मिलने से परेशानी, ब्वॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड का
एक-दूसरे में से किसी को छोड़ देना। अच्छे नंबर लाने की माता-पिता की
अपेक्षाओं पर खरा न उतरना आदि-आदि। तो आखिर इस समस्या का हल क्या है?
समाधान:
समस्या का समाधान भी बच्चों ने ही निकाला। उन्होंने सोचा कि
एक ही शहर के बच्चे एक-दूसरे की मदद करें, तो तस्वीर बदल सकती है। लिहाजा
शहर में ऐसे कई समूह बन गए। मसलन- केरल समाज, मराठवाड़ा वारियर्स, खानदेश
गाइज (इसमें धुले, जलगांव, नंदूरबार क्षेत्र के बच्चे है ) आदि। इन समूहों
के बच्चे एक-दूसरे के खालीपन को भरने में लगे हैं, ताकि किसी को घर की याद
न सताए। कोई तनाव या निराशा का शिकार न हो जाए। एक-दूसरे के बारे में
जानने-समझने के लिए व्हाट्सएप ग्रुप बनाना। मिलना-जुलना। बाहर घूमने जाना।
साथ में ग्रुप बनाकर पढऩा। एक-दूसरे की मदद करना। नए शहर में पेश आने वाली
परेशानियों को मिलकर हल करना। ये ग्रुप अपने स्थानीय त्यौहारों को भी मिलकर
मनाते हैं। लड़कियां आम तौर पर बेहद इमोशनल और संवेदनशील होती हैं। उन्हें
सपोर्ट की भी ज्यादा जरूरत होती है। उनकी जरूरतों के लिहाज से भी ये ग्रुप
बहुत मददगार साबित हो रहे हैं। क्योंकि इन ग्रुप्स में एक से बैकग्राउंड
वाले लड़के-लड़कियां होते हैं। एक सी भाषा बोलते हैं। खान-पान के तौर-तरीके
भी एक जैसे होते हैं।
सोर्स: Collective Effort Can Even Move a Mountain - Management Funda By N Raghuraman - दैनिक भास्कर 22nd November 2013
दूसरी समस्या:
मुंबई का फोर्ट इलाका
बिजनेस का अग्रणी केंद्र है। इसी इलाके में स्थित है बोहरा बाजार। इस कदर
गंदा है यह इलाका कि नगर निगम के पुराने से पुराने सफाईकर्मी भी यहां आने
से कतराते हैं। संकरी गलियां, डिब्बों सरीखे मकान, प्लास्टिक की थैलियां,
किचन से निकला कचरा, कांच के टुकड़े। इलाके में करीब 600 इमारतें हैं। यहां
रहने वालों के लिए खिड़कियों से बाहर कचरा फेंकते रहना आम बात है।
समाधान:
छह लोगों ने मिलकर पहल की और इस इलाके में रहने वालों को एक
नई परंपरा से परिचित कराया। पहले लोग घर की खिड़कियों से कचरा फेंकने में
कोई बुराई नहीं देखते थे, लेकिन छह लोगों की इस टीम ने उनकी सोच और
तौर-तरीके को बदलने का बीड़ा उठाया। उन्हें घरों से कचरा न फेंकने के लिए
राजी किया। आस-पड़ोस में खुद सफाई करने के लिए प्रेरित किया। अभियान चलाया।
कचरा उठाने वाले निजी सफाईकर्मियों की सेवाएं लेने के लिए राजी किया। नगर
निगम के सफाईकर्मियों को भी मजबूर किया कि वे इलाके की गलियों की रोज सफाई
करें। कुछ महीने पहले ही यह प्रयास शुरू हुआ और उसके नतीजे भी नजर आने लगे
हैं। करीब 10 गलियां कचरे के ढेर से पूरी तरह मुक्त कराई जा चुकी हैं। यहां
की नालियां भी नजर आने लगी हैं। इस ग्रुप के सदस्य घर-घर जाकर अपने अभियान
में लोगों को शामिल करने की कवायद कर रहे है । इन सदस्यों के मुताबिक यह
अभियान जारी रहेगा, जब तक सभी 150 गलियां पूरी तरह साफ-सुथरी नहीं हो
जातीं। पहले इन गलियों में डस्टबिन तक नहीं होते थे। या कहिए डस्टबिन होना
किसी सपने जैसा था, लेकिन आजकल साफ-सुथरी हो चुकी गलियों में फ्लॉवर पॉट तक
नजर आ जाते हैं।
ये दो समस्याएं ऐसी हैं जो किसी भी शहर में आम
हो सकती हैं और हर जगह इन्हें किसी न किसी कारण से नजरअंदाज कर देने का चलन
भी उतना ही आम होता है, लेकिन लोगों ने एक साथ आकर इन समस्याओं का खुद ही
हल ढूंढकर एक मिसाल कायम की है।
फंडा यह है कि...
दुनिया में ऐसी कोई समस्या नहीं है जो मिलकर हल न की जा सकती हो। शायद इसीलिए पुराने लोग कह भी गए हैं, 'मिलजुलकर पहाड़ भी धकेला जा सकता है।
सोर्स: Collective Effort Can Even Move a Mountain - Management Funda By N Raghuraman - दैनिक भास्कर 22nd November 2013
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