हमारा जमाना अभी खत्म नहीं हुआ...
मैनेजमेंट फंडा - एन रघुरामन
लोग अक्सर कहते रहते हैं, 'हमारा जमाना तो खत्म हो गया। हमारा क्या है। अब तो बच्चों का है सब कुछ।' ऐसे लोग इस कहानी को पढऩे के बाद विचार बदल सकते हैं। वह अभी 100 साल के हैं। वे कहते हैं जब तक उन्हें न्याय नहीं मिल जाता और जब तक वे लोगों को जागरूक नहीं कर देते, आखिरी सांस नहीं लेंगे। न्याय मिलने की बात तो समझ आती है, लेकिन जब जागरुकता की बात करते हैं तो पूरे देश के लिए शर्मिंदगी की बात होती है। कैसे? दरअसल, वे टॉयलेट की अहमियत के बारे में ज्यादा से ज्यादा लोगों को जागरूक करना चाहते हैं। इस सिलसिले में उन्होंने एक कंपनी के खिलाफ कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका दायर कर रखी है। उन्होंने तय कर रखा है कि वे हार नहीं मानेंगे।
Source: Our Times is Still Not Finished - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 25th November 2013
यहां बात आर. कपानीपाथी राव की हो रही है। उन्होंने जिस कंपनी के खिलाफ याचिका लगाई है, वे खुद उसके संस्थापकों में से एक हैं। सन् 1937 में यह कंपनी बनी। इसमें वे आज भी सबसे बड़े हिस्सेदार हैं। कंपनी का नाम है, 'मैसूर स्टोनवेयर पाइप्स एंड पॉटरीज लिमिटेड।' यह कर्नाटक की सबसे पुरानी मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों में से एक है। राज्य में 1930 के दशक में प्लेग फैला था। तब उसके बाद इसे मैसूर के तत्कालीन राजा ने शहर को आधुनिक बनाने की जिम्मेदारी सौंपी थी। कंपनी को राजा ने 1937 में ही 188 एकड़ जमीन दान में भी दी। राव का आरोप है कि कंपनी ने 2006 में अवैध रूप से इसमें से 140 एकड़ जमीन बेच दी। राव ने याचिका में बताया है कि इस कंपनी को राजा के प्रयासों से शुरू किया गया। जिस तरह से प्लेग फैला था, उसे देखते हुए शहर में ही नहीं, देश में भी साफ-सफाई की बेहद जरूरत महसूस की गई थी। लोगों ने उस वक्त यह समझ लिया था कि टॉयलेट्स सिर्फ उनके लिए ही नहीं, बल्कि देश के स्वास्थ्य के लिए भी जरूरी हैं। कंपनी को बड़े पैमाने पर ड्रेनेज पाइप और सैनिटरी आइटम्स का निर्माण करने को कहा था। लेकिन कंपनी ने अपनी गतिविधियां राज्य के टुमकुर में खनन की ओर मोड़ दी हैं। यही उनकी लड़ाई की वजह है।
राव कहते हैं कि प्लेग फैलने की उस घटना के 85 साल बाद भी देश में करीब 60 करोड़ लोग खुले शौच करने जाते हैं। यह हमारी कुल आबादी के आधे से भी ज्यादा है। पूरी दुनिया में लगभग 2.5 अरब लोगों के पास टॉयलेट की सुविधा नहीं हैै। दूसरा कोई आविष्कार ऐसा नहीं है जो लोगों के जीवन को इतने बड़े पैमाने पर सुरक्षा देने की क्षमता रखता हो, सिवाय टॉयलेट के। इसके बावजूद हम इसकी उपेक्षा कर रहे हैं। राव मानते हैं कि कंपनी के साथ उनकी कानूनी लड़ाई देश के कई लोगों का ध्यान खींचेगी, क्योंकि वे इतनी अधिक उम्र में भी यह संघर्ष कर रहे हैं। दूसरी तरफ, इस संघर्ष से टॉयलेट की कमी का मसला भी चर्चा का विषय बनेेगा, जिसकी देश को सबसे ज्यादा जरूरत है। इसलिए वे इस लड़ाई को मिशन की तरह लड़ रहे हैं। वे कहते हैं कि पिछले 12 साल से दुनिया भर में 19 नवंबर को विश्व शौचालय दिवस मनाया जा रहा है। लेकिन इस भारी-भरकम आयोजन के बावजूद देश में शौचालयों की संख्या अब तक नहीं बढ़ी।
जब सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक में खनन पर प्रतिबंध लगाया तो राव इस फैसले से सबसे ज्यादा खुश होने वालों में से थे। उनकी लड़ाई भी तो यही है कि उनकी कंपनी को उसके मूल कामकाज की ओर लौटना चाहिए। उन्हें पक्का यकीन है कि उनका समय अभी खत्म नहीं हुआ है। जब तक उन्हें बनाने वाला/पैदा करने वाला उन्हें किसी दूसरे उद्देश्य के लिए नहीं लगा देता, तब तक वे अपना सर्वश्रेष्ठ देते रहेंगे।
फंडा यह है कि …
अगर आपके जीवन में कोई मकसद है तो आप भी केह सकते हैं, "हमारा ज़माना कभी ख़त्म नहीं होता"।
Source: Our Times is Still Not Finished - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 25th November 2013
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