पॉल श्रेडर: शाहरुख नियंत्रण फ्रीक?
परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे
ओपन के लिए निखिल तनेजा को दिए साक्षात्कार में अमेरिका के प्रसिद्ध पटकथा लेखक पॉल श्र्रेडर ने बताया कि उनकी लिखी 'एक्स्ट्रीम सिटी' में लिओनार्डो डी केप्रियो और शाहरुख खान के काम करने की बात थी। बर्लिन में दोनों सितारों ने साथ बैठकर पटकथा सुनी और पसंद की थी। परंतु बात आगे नहीं जा पाई। पॉल श्रेडर का खयाल है कि शाहरुख खान ने जब यह महसूस किया कि इस अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट पर उनका पूरा नियंत्रण संभव नहीं है तो उन्होंने इसके लिए कोई प्रयास नहीं किया। शाहरुख खान के लिए प्रोजेक्ट पर 'पूरा नियंत्रण' उनका हो यह जरूरी है। जबकि अंतरराष्ट्रीय फिल्म में निर्देशक का नियंत्रण होता है। यह भी संभव है कि दोनों सितारों को लगा कि दूसरा पहल करे तो वे आगे बढ़ेंगे। उन्होंने यह भी बताया कि शाहरुख खान की रजामंदी के इंतजार वाले दिनों में वे सलमान खान से मिले थे तथा 'एक्स्ट्रीम सिटी' उसके साथ करना भी चाहते थे परंतु भारत में सितारों के अपने अंहकार हैं। लेखकों को लगा कि सलमान के साथ काम करने पर शाहरुख बुरा मान जाएंगे।
स्रोत: Paul Schrader : Shahrukh A Control Freak ? - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - दैनिक भास्कर 26th November 2013
इसी साक्षात्कार में यह बात भी सामने आई कि सितारों का अपने शरीर को मांसपेशियों का दरिया बनाने के शौक का अभिनय से कोई रिश्ता नहीं, परंतु अमेरिका में भी शरीर सौष्ठव पर बहुत जोर दिया जा रहा है। वे शायद अदृश्य सूत्र से बंधे हैं। यह भी संभव है कि यह कालखंड ही जिम जाकर जिस्म में मछलियां पैदा करने का है। संवेदना से अधिक महत्वूर्ण शरीर सौष्ठव है। खेलकूद के मैदान में पहली सफलता मिलते ही खिलाड़ी महंगे जिम में जाने लगता है और क्रिकेट गेंदबाज की गति जिम जाने के बाद कम हो जाती है।
सफल व्यक्ति प्राय: 'संपूर्ण नियंत्रण' को महत्वपूर्ण मानता है। इस भाव का जन्म इस बात से होता है कि कोई व्यक्ति स्वयं को सबसे बड़ा जानकार मानता है। अन्य के विचारों के साथ सहमत नहीं होना तो ठीक है परंतु अपने विचार अन्य सभी पर लादने की इच्छा का स्वागत नहीं किया जा सकता। राजनीति में यह दृष्टिकोण नेता को तानाशाह बना देता है। कुछ बातें ऐसी होती हैं जिनमें बहस की गुंजाइश नहीं। और आप जानते हैं कि आप सौ फीसदी सही हैं। शत प्रतिशत सही होने के भाव से आप थोड़े उद्दंड से दिखाई पड़ सकते हैं। कन्विक्शन से जन्मा एरोगेंस इसी तरह का होता है। इस बात का 'संपूर्ण नियंत्रण' से कोई संबंध नहीं। कुछ लोग 'कंट्रोल फ्रीक' कहलाते हैं। खेलकूद के क्षेत्र में कोच देखता है कि एक बल्लेबाज शास्त्र के विपरीत एक स्ट्रोक खेलता है। जैसे महेंद्र सिंह धोनी का अत्यंत प्रचारित 'हेलिकॉप्टर शॉट'। तो वह उस खिलाड़ी को शास्त्रीय ढंग से खेलने को नहीं कहता। इस तरह थोड़ी रियायत देने का यह अर्थ नहीं कि शास्त्रीय ढंग गलत है। राहुल द्रविड़ क्रिकेट के शास्त्र के खिलाफ कभी नहीं गए। बीस ओवर के खेल में भी उन्होंने क्रिकेटिंग स्ट्रोक्स ही खेले। अच्छा कोच कभी अपने शिष्य पर 'संपूर्ण नियंत्रण' नहीं चाहता। पारिवारिक रिश्तों में भी यह 'संपूर्ण नियंत्रण' का जुनून दरारें पैदा करता है।
यह संभव है कि संपूर्ण नियंत्रण करने की इच्छा केवल अति आत्मविश्वास न होकर किसी अनजाने भय के कारण है। यह तो तय है कि अन्य पर विश्वास नहीं करना ही 'संपूर्ण नियंत्रण' की व्याधि का कारण है। दरअसल संपूर्ण नियंत्रण की लालसा सामंतवादी प्रवृत्ति है। राजा धरती पर ईश्वर का प्रतिनिधि है। सभी उसके अधीन हैं। इस तरह सत्ता का एक व्यक्ति में केंद्रित हो जाना 'संपूर्ण नियंत्रण' के भाव को ही जन्म देता है। तमाम धर्मों के मठाधीश भी 'संपूर्ण नियंत्रण' ही चाहते हैं। यह विचार स्वतंत्रता और समानता के आदर्श के खिलाफ है। विचारों के विरोध का सम्मान गणतांत्रिक आदर्श है। आज भारत के सभी क्षेत्रों में 'संपूर्ण नियंत्रण' की लालसा हमें विचारहीनता की ओर ले जा रही है। 'संपूर्ण नियंत्रण' की लालसा दूसरों से अधिक दु:ख स्वयं इसे चाहने वाले व्यक्ति को देना है। यह दु:ख की गंगोत्री है। शाहरुख खान का संपूर्ण नियंत्रण प्रेम पूरे समाज की व्याधि का लक्ष मात्र है। इसे अधिक महत्व इसे नहीं दिया जा सकता।
एक्स्ट्रा शॉट...
सलमान खान और शाहरुख खान फिल्म 'करण अर्जुन', 'कुछ-कुछ होता है' और 'हम तुम्हारे हैं सनम' में एकसाथ नजर आए थे।
स्रोत: Paul Schrader : Shahrukh A Control Freak ? - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - दैनिक भास्कर 26th November 2013
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