Friday, January 31, 2014

There Is KARNA In All of Us, Who Needs Help - Motivation Management Funda - N Raghuraman - 31st January 2014

सबके भीतर एक कर्ण है, जिसे मदद की जरूरत है


मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन 


'महाभारत' महाकाव्य का दृश्य। 'कुरुक्षेत्र के मैदान में कर्ण घायल पड़े हैं, लेकिन उनके दान-पुण्य की वजह से प्राणों ने देह छोडऩे से मना कर दिया है। लहू-लुहान और दर्द से कराह रहे कर्ण की मदद को तब भगवान कृष्ण भिक्षुक के वेष में आकर उनके पूरे पुण्य कर्मों की भिक्षा मांग लेते हैं। कर्ण भी बेझिझक यह दान दे देते हैं और ठीक उसी वक्त प्राण उनका शरीर छोड़ देते हैं।' पर्दा गिरता है। सामने बैठे दर्शक सीटों से खड़े होकर ताली बजाने लगते हैं। केरल और कर्नाटक की सीमा पर मौजूद कुट्टा कस्बे के एक थिएटर का यह दृश्य था। नाटक खत्म होने के बाद भीड़ उस हीरो को घेर लेती है, जिसने कर्ण की भूमिका निभाई थी। काफी देर बाद जब भीड़ छंटी तो मैं भी उससे मिला। वह नाटक मंडली का लीडर था। उसने अपना नाम बताया, 'करथीवरन।' केरल के वायनाड कस्बे का रहने वाला है। हल्की-फुल्की बातचीत के बाद हम दोनों ने एक-दूसरे से विदा ली। 

Source: There Is KARNA In All of Us, Who Needs Help - Motivation Management Funda By 

Another Larger Than Life Hero - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 31st January 2014

एक और लार्जर दैन लाइफ नायक


परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे 

 


फिल्मकार रूपेश पॉल ने थ्री.डी विधा में 'कामसूत्र' का निर्माण किया था और अब वे नरेन्द्र मोदी के जीवन से प्रेरित 'नामो' नामक फिल्म के एक्शन दृश्य के लिए हॉलीवुड के प्रसिद्ध एक्शन दृश्यों के संयोजक जेरेड को अनुबंधित कर रहे हैं। ऐसी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है कि नरेन्द्र मोदी ने कोई 'एक्शन' कभी किया हो, उनका एकमात्र प्रभावी 'एक्शन' उनके भाषण हैं जिनका आधार हमेशा सत्य नहीं होता जैसे सिकंदर का या तक्षशिला का बिहार में होना परंतु एक प्रचारित बात यह है कि उन्होंने प्राकृतिक विपदा से घिरे उत्तराखंड में फंसे हजारों यात्रियों के प्राण बचाए जबकि संकट के उन दिनों सेना के अतिरिक्त कोई वहां पहुंचा नहीं था। 

Source: Another Larger Than Life Hero - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 31st January 2014

Top 10 Blog Posts on Motivation

ज्ञान के फंडे पर २०१३ के टॉप १० (Top 10 Motivation Blog Posts) ब्लॉग पोस्ट 


अपूर्व सक्सैना 



ज्ञान के फंडे की शुरुआत बहुत ही सहज मेरे एक मित्र के सुझाव पर हुई। उनका सुझाव था की क्यूँ न एक ब्लॉग पर हर क्षेत्र के ज्ञान की बातें एक ही जगह समायोजित की जाएँ। पिछले कुछ सालों से मैं भी ब्लॉगिंग के क्षेत्र में अपना हाथ आजमा रहा था , मेरा एक और ब्लॉग मेरे नाम से चल रहा है, इस ब्लॉग पर मैं सामाजिक और राजनैतिक सोच पर अपनी अभिव्यक्ति रखता हूँ।

ज्ञान के फंडे, ब्लॉग शुरू करने के पीछे मेरा एक ही मकसद था और वो था मैनेजमेंट गुरु - एन रघुरामन के मैनेजमेंट फंडो को आप तक पहुंचाना।  मेरी निजी ज़िंदगी में मैं उनके लिखे हुए कॉलम से काफी प्रभावित हुआ जिसने मेरे भविष्य को एक अलग राह दिखाई है, बस तब से मैंने ठान लिया था कि मैं ज़यादा से ज़यादा लोगों तक उनके मैनेजमेंट फंडा कॉलम को पहुंचाऊं। एक रोचक बात जो मैं आप सबसे शेयर करना चाहता हूँ वो है की आज भी मेरे पास करीब दो साल पुराने - उनके कॉलम को संग्रहित करके रखा हुआ है जिसे आप तक पहुंचाने की कोशिश करूंगा।    

मेरे इस ब्लॉग को शुरू हुए अभी कुछ एक नौ महीने ही हुए हैं, आज बैठे बैठे सोचा क्यूँ न आपको मैं सन २०१३ के टॉप १० ब्लॉग पोस्ट्स से अवगत कराऊँ, तो लीजिये ये हैं उन टॉप १० ब्लॉग पोस्ट्स की लिस्ट जिन्हे लोगों ने सबसे ज़यादा पढ़ा है.

ज्ञान के फंडे को स्वीकारने के लिए आप सभी को सहर्ष धन्यवाद, इस ब्लॉग को और कैसे बढ़िया बनाया जा सके इसके लिए आपके सुझावों का इंतज़ार रहेगा। आने वाले कुछ महीनो मैं इसे अन्य टॉपिक्स के रोचक ज्ञान के भण्डार से सजाऊंगा।

१० - Talent To Find Solutions Can Make Or Break Carrier

 ९  -  Go Beyond Your Routine Work And Increase Brand Value

 ८  -  You Alone Can Fight a Big Battle

 ७  -   Honesty Always Gives you Abundantly

  ६ -  KyaZoonga - Your Ticket To Life

 ५ -  Chase Your Dreams Like Crazy, And See The Results 

 ४ -  Garbage is not always a Garbage

 ३ -   Management Funda - N. Raghuraman - Dainik Bhaskar

 २  -  WONOBO - A Tale of Two Brothers from Mumbai to Google Street View

  Pick Up A Career Where You Are The Best   

Thursday, January 30, 2014

There Are Lot Many Things Which Are Not Extra In Life - Motivation Management Funda - N Raghuraman - 29th January 2014

जिंदगी में बहुत सी चीजें अतिरिक्त नहीं होतीं


मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन



फिल्मी कहानी: 

गोवा के मापुसा गांव में एक दंपती के दो बेटे हैं। बड़ा बेटा कनाडा में सैटल हो गया है। वहां उसने एक विदेशी महिला से शादी कर ली है। शादी की खबर देने के बाद से उसने कभी अपने माता-पिता को फोन नहीं किया। छोटा बेटा गोवा में ही पढ़ता है, लेकिन वह हर वक्त लड़कियों के पीछे फिरता रहता है। इस तरह वह घर की इज्जत को मिट्टी में मिला रहा है। इस दंपती के पास पैसे की कोई कमी नहीं है। फिर भी उनकी जिंदगी नर्क बनकर रह गई है। एक दिन बड़ा बेटा कनाडा से गोवा आता है। वह अपनी पत्नी को सभी देखने लायक जगहों पर ले जाता है। घुमाता-फिराता है पर घर नहीं जाता। माता-पिता की खोज-खबर तक नहीं लेता, लेकिन इसी बीच एक जगह उसका पिता से आमना-सामना हो जाता है। वे उसे घर चलने को कहते हैं, वह मना कर देता है। इसके बाद दोनों के बीच जमकर बहस होती है। और बेटा पिता को बुरा-भला कहकर चला जाता है। यह सब जब मां को पता चलता है तो उसे हार्ट अटैक आ जाता है। 

Source: There Are Lot Many Things Which Are Not Extra In Life - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 29th January 2014

Wednesday, January 29, 2014

My Country And Its Onlookers - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 29th January 2014

'ए मेरे वतन के तमाशबीनों....'


परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे


सत्ताईस जनवरी को मुंबई में युद्ध में प्राण देने वाले लोगों की स्मृति में शहीद दिवस आयोजित किया गया और प्रदीप जी का लिखा, सी. रामचंद के संगीत पर लता मंगेशकर के द्वारा पचास वर्ष पूर्व पंडित नेहरू की मौजूदगी में गाए जाने वाले अमर गीत 'ए मेरे वतन के लोगों' की स्वर्ण जयंती मनाई गई और लता जी ने इसे इस बार नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी में गाया परंतु नेहरू और इंदिरा जी की स्मृतियों का उल्लेख भी सादर किया। ज्ञातव्य है कि बडऩगर मध्यप्रदेश में जन्मे कवि प्रदीप ने इस गीत की रॉयल्टी सेना द्वारा संचालित उस संस्था के नाम की थी जो शहीदों की विधवाओं की सेवा करती है परंतु अनेक वर्षों तक संगीत कम्पनी ने एक पैसा भी संस्था को नहीं दिया। कवि प्रदीप की पुत्री मितुल ने अदालत में लंबी लड़ाई लड़ी और अदालत ने कम्पनी को आदेश दिया कि सप्ताह भर में रायल्टी की रकम संस्था को दे और आगे भी देता रहा। मितुल के निस्वार्थ प्रयास से मोटी रकम दी गई परंतु बाद के वर्षों का हिसाब संभवत: नहीं दिया गया। 
Source: My Country And Its Onlookers - Parde Ke Peeche by Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 29th January 2014  

Tuesday, January 28, 2014

Difficult Situations Can Only Be Handled By Specialists - Motivation Management Funda - N Raghuraman - 28th January 2014

मुश्किल हालात से सिर्फ विशेषज्ञ ही बचा सकता है


मैनेजमेंट फंडा - एन रघुरामन



आप अपने बालों से तभी तक प्यार कर सकते हैं जब तक वे आपके सिर पर हैं। लेकिन एक बार वे काट दिए जाते हैं तो आप उन्हें पसंद नहीं करते। यहां तक कि एक बाल भी अगर शर्ट पर चिपका रह जाए तो आप तुरंत उसे हटाना चाहते हैं। यानी यह मानने में किसी को कोई हर्ज नहीं होगा कि कोई भी अपने बैग में कटे हुए बाल लेकर यहां-वहां नहीं जा सकता। या अपने पास रख नहीं सकता। बेंगलुरू के एक पुलिस स्टेशन वालों ने भी उस रोज कुछ इसी तरह की थ्योरी पर सोचा था। दरअसल, वहां दक्षिण अफ्रीकी नागरिक इक्वे बैसिल शिकायत लेकर पहुंचा था। शिकायत ये थी कि उसके घर से किसी ने इंसान के बालों से भरा बैग चुरा लिया है। इस बैग में करीब 40 किलो बाल थे। 
Source: Difficult Situations Can Only Be Handled By Specialists - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 28th January 2014

Hrithik - Kareena Starrer "Shuddhi" Postponed ? Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 28th January 2014

रितिक-करीना की 'शुद्धि' स्थगित?

 

परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे


करण जौहर की 150 करोड़ रुपयों में बनने वाली 'शुद्धि' में रितिक रोशन और करीना कपूर काम करने वाले हैं। यह घोषणा विगत वर्ष हुई थी और योजना के हिसाब से जनवरी 2014 में शूटिंग प्रारंभ होने वाली थी। रितिक को कोई बीमारी थी जिसकी शल्य क्रिया के लिए वह अमेरिका गया था जहां सफलता मिली और उसके बाद उसके और पत्नी सुजैन के अलग होने के समाचार आए। उसकी बीमारी के कारण 'बैंग बैंग' की शूटिंग स्थगित हो गई और अब उसकी प्राथमिकता 'बैंग बैंग' है जिसके स्थगन के कारण कैटरीना कैफ के भी दो महीने बिना काम के निकल गए और अब उसकी प्राथमिकता 'जग्गा जासूस' है जिसमें उसके अंतरंग मित्र रणबीर कपूर न केवल नायक है वरन् निर्माण में भागीदार भी हैं। दुर्घटनाओं और बीमारियों पर किसी का बस नहीं चलता परंतु फिल्म में अनेक कलाकार और तकनीशियनों की डायरी के पन्नों में काट-छांट करके समय कहीं और आंवटित किया जाता है। ज्ञातव्य है कि 'धूम' की शूटिंग के अनेक कारणों से रद्द होने के कारण कैटरीना सन् 2013 में कोई अन्य फिल्म नहीं कर पाई। 

Source: Hrithik - Kareena Starrer "Shuddhi" Postponed ? Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 28th January 2014 

Sunday, January 26, 2014

A Persons Character Is More Important Than Qualification - Management Funda - N Raghuraman - 26th January 2014

योग्यता से ज्यादा जरूरी इंसान का चरित्र


मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन


पहली कहानी: 

बेंगलुरू में 1949 में सर सीवी रमन ने रिसर्च इंस्टीट्यूट स्थापित किया। यहां साइंटिफिक असिस्टेंट के पद के लिए कई लोगों की अर्जियां आईं। कई लोगों ने इंटरव्यू दिए। यह प्रक्रिया खत्म हुई तो रमन ने देखा कि एक आदमी अब भी इंटरव्यू रूम के बाहर इंतजार कर रहा है। उसका इंटरव्यू हो चुका था। और उसे पद के योग्य नहीं पाया गया था। फिर भी वह डटा हुआ था। रमन उसके पास गए। रौबदार आवाज में बोले, 'आप यहां क्या कर रहे हैं? हम आपसे कह चुके हैं कि आपको हम अपनी टीम में शामिल नहीं कर सकते। फिर आप क्यों यहां अपना समय खराब कर रहे है?' 
Source: A Persons Character Is More Important Than Qualification - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 26th January 2014

Saturday, January 25, 2014

Good Results Are Achieved By Doing Good - Management Funda - N Raghuraman - 25th January 2014

अच्छा काम करने से नतीजे भी अच्छे मिलते हैं

 

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन



बॉलीवुड के ग्लैमर के अलावा मुंबई महानगर कई और चीजों के लिए जाना जाता है। इनमें से एक हैं डिब्बेवाले। इन पर देश के आईआईएम से लेकर लंदन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स ने काफी काम किया है। डिब्बेवालों की तरह ही एक और बड़ी वर्कफोर्स है। जो मुंबई के रेलवे स्टेशनों पर दिखाई पड़ती है। अलग पहचान वाले ये लोग बूट पॉलिश करते हैं। करीब एक हजार की संख्या वाले ये लोग नीली वर्दी में चर्चगेट से विरार और सीएसटी से कल्याण तक रेलवे स्टेशनों पर मिल जाएंगे। बूट पॉलिश करके ये हर दिन 100 से 200 रुपए तक कमा लेते हैं। इसके लिए ये सेंट्रल और वेस्टर्न रेलवे को 236 रुपए हर महीने लाइसेंस फीस के रूप में चुकाते हैं। साल 1961 में रेल मंत्री जगजीवन राम ने रेलवे स्टेशनों पर बूट पॉलिश करने वालों को अपने छोटे-छोटे बॉक्स नुमा स्टैंड लगाने की मंजूरी दी थी। इनमें से कई बूट पॉलिश वालों को मैं खुद जानता हूं जिनके बच्चे विदेशों और मुंबई के बड़े अस्पतालों में डॉक्टर हैं। बावजूद इसके यह लोग अपना काम नहीं छोडऩा चाहते। इनका मानना है कि यह काम ही इनकी जिंदगी की नींव है। 

Source: Good Results Are Achieved By Doing Good - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 25th January 2014

John Abraham's Meaningful Cinema - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 25th January 2014

जॉन अब्राहम का सार्थक सिनेमा


परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे


जॉन अब्राहम अभिनेता बनने के पहले जिम में विशेषज्ञ की तरह काम करते थे। महेश भट्ट ने उन्हें सितारा बना दिया। फिल्म जगत में अपने शरीर सौष्ठव के प्रदर्शन के साथ अभिनय का प्रयास भी करते रहे। उनके और बिपाशा बसु के प्रचारित प्रेम प्रकरण ने भी बाजार भाव बढ़ाया। आदित्य चोपड़ा की 'धूम' में मोटर साइकिल सवार चोर की भूमिका ने उन्हें खूब लोकप्रियता प्रदान की। इस तरह जॉन अब्राहम के जो रूप सामने आते रहे, उससे उनके भीतर के सच को कोई जान नहीं पाया। जॉन अब्राहम विचारशील व्यक्ति है और योजनाबद्ध रूप से काम करते हैं। उन्होंने अलग किस्म के सिनेमा के लिए अनुराग कश्यप की 'नो स्मोकिंग' भी की और यही अलग करने का उनका विचार उस समय सामने आया जब उन्होंने 'विकी डोनर' का निर्माण किया। यह अत्यंत मनोरंजक और सामाजिक सोद्देश्यता की फिल्म थी। इसके बाद उन्होंने 'मद्रास कैफे' नामक कमाल की फिल्म का निर्माण किया और उसमें विश्वसनीय अभिनय भी किया। उन्होंने सिद्ध कर दिया कि वह सिर्फ कसरती बदन नहीं, एक विचारशील व्यक्ति हैं और बॉक्स ऑफिस के परे दुबके से छुपे सिनेमा का हिमायती भी हैं और जोखम लेने का दम गुर्दा भी है उनके पास। 
 
Source: John Abraham's Meaningful Cinema - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 25th January 2014

Friday, January 24, 2014

Invest Your Energies For A Big Purpose - Management Funda - N Raghuraman - 24th January 2014

अपनी ऊर्जा का बड़े मकसद के लिए निवेश कीजिए


मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन



पहली कहानी: 

कई देशों में ड्राइवर गाड़ी चलाते हुए उनींदे से रहते हैं। थके रहते हैं। बहुत आम बात है। लेकिन जानलेवा सड़क दुर्घटनाओं का जिक्र करते वक्त कोई भी इस तथ्य पर ध्यान नहीं देता। जबकि अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी सड़क दुर्घटनाओं में हो रही मौतों की बड़ी वजह ड्राइवरों की थकान है। आंकड़े बेहद चिंताजनक हैं। ड्राइवरों को लगता है कि खिड़कियों के कांच खोलकर, कॉफी-चाय पीकर या संगीत सुनकर वे अपनी नींद दूर भगा सकते हैं। थकान कम कर सकते हैं। लेकिन यह सच नहीं है। नींद का कोई विकल्प नहीं है। यानी नींद लेने से ही यह दूर होती है। 

 Source:Invest Your Energies For A Big Purpose - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 24th January 2014

Pain and Sorrows of Neglected Class - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 24th January 2014

एक उपेक्षित वर्ग के दु:ख दर्द

 

परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे


आदित्य चोपड़ा और आमिर खान ने कल रात 'धूम तीन' के अखिल भारतीय प्रदर्शकों को फिल्म की सफलता की दावत दी। उद्योग के इतिहास में पहली बार सिनेमाघर के मालिक और सिनेमाघरों की श्रंखला के बुकिंग एजेंट को निर्माता और सितारे ने दावत दी थी। फिल्म उद्योग का निर्माण पक्ष सदैव ही वितरण एवं प्रदर्शकों के सहयोग को अनदेखा करता रहा है। यह तो दर्शक द्वारा दिए गए धन में अपना निजी धन मिलाकर सिनेमाघर के मालिक निर्माताओं को फिल्म बनते समय पैसा भेजते रहे हैं जिस आर्थिक योगदान ने निर्माण पक्ष को मजबूती दी है और एक तरह से फिल्म ही एकमात्र उद्योग है जिसमें उपभोक्ता की धनराशि से 'प्रोडक्ट' बनता रहा है। अन्य उद्योगों में माल बिकने के बाद मूल्य मय मुनाफे के आता है जबकि सिनेमा उद्योग में फिल्म निर्माण के समय ही आंशिक लागत उपभोक्ता द्वारा सिनेमा मालिकों के माध्यम से निर्माता को मिलती है और यह रिश्ता ही इसे अन्य उद्योगों से अलग भी करता है। 
 
Source: Pain and Sorrows of Neglected Class - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 24th January 2014

Thursday, January 23, 2014

God Will Never Put You In Conditions Where HE Cannot Help You - Motivation Management Funda - N Raghuraman - 23rd January 2014

भगवान आपको कभी ऐसी हालत में नहीं डालते जहां वे आपकी मदद न कर पाएं


मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन


मैंने उन्हें पहली बार 2007 में दिव्य भास्कर कार रैली में अहमदाबाद में देखा। समीर कक्कड़ नाम है उनका। वे 1973 में पैदा हुए। यानी महज 40 साल की उम्र है, लेकिन भीड़ में वे सबसे अलग थे। एक साधारण सी चीज उन्हें दूसरों से अलग कर रही थी। वे अपने पैरों पर खड़े नहीं हो सकते थे। फिर भी कार रैली में हिस्सा लेने आए थे। समीर के नाम कई रिकॉर्ड हैं। उन्हें ढेरों सम्मान मिल चुके हैं। लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में उनका नाम दर्ज है। दुनिया में सबसे ऊंची कार रैली जीतने वाले के तौर पर वल्र्ड अमेजिंग रिकॉर्ड ने उन्हें सर्टिफिकेट भी दिया है। अब ऐसे किसी शख्स से मिलकर आपको नहीं लगता कि जिंदगी के प्रति किसी का भी नजरिया बदल सकता है? बिल्कुल बदल सकता है। समीर शारीरिक तौर पर 80 फीसदी अक्षम हैं। और ऐसे में यह सोचकर किसी को भी अचरज होगा कि वे अपनी स्पोट्र्स कार के गियर कैसे बदलते हैं? एक्सेलरेटर कैसे दबाते हैं? ब्रेक कैसे लगाते हैं? इन सवालों के जवाब का आपको जब तक ओर-छोर भी नहीं सूझेगा, वे आपके सामने से फर्राटा भरते हुए निकल जाएंगे। चाहे मारुति मेगा ट्रीजर हंट हो या कच्छ डेजर्ट कार रैली। जम्मू-कश्मीर टायर मानसून राइड हो या लेह में होने वाली हिमालयन एडवेंचर रैली। राजस्थान में डेजर्ट स्टॉर्म रैली हो या नेपाल, भूटान और भारत में होने वाली ट्राई नेशन एस्केप रैली। हर जगह समीर अपनी मोडिफाइड कार के साथ मुस्कुराते हुए मिल जाएंगे। फिलहाल वे अपनी अगली कार रैली की तैयारी कर रहे हैं।
Source: God Will Never Put You In Conditions Where HE Cannot Help You - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 23rd January 2014 

Importance of Umbilical Cord In The Creation of Film Studios - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 23rd January 2014

फिल्म भवन रचना में नाल का महत्व 


परदे के पीछे  - जयप्रकाश चौकसे


जैसे कि पुराने लोग भवन निर्माण के समय जन्म लिए बच्चे की नाल (अम्बिलिकल कार्ड) का एक हिस्सा नींव में इस विश्वास के साथ डालते हैं कि यह भवन आने वाली पीढिय़ों के लिए शुभ होगा और परिवार इसमें सुरक्षित रहेगा। वैसे ही फिल्म की रचना प्रक्रिया में कहीं न कहीं बनाने वालों के विश्वास की नाल भी उसकी नींव में होती है। शांताराम, मेहबूब खान, विमल रॉय, गुरुदत्त और राजकपूर के सिनेमाई भवन की नींव में एक भारतीय सांस्कृतिक नाल का अंश हुआ करता था, इसीलिए आधी सदी बाद भी वे भवन कायम हैं और पर्यटन के केंद्र हैं। 

Source: Importance of Umbilical Cord In The Creation of Film Studios - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 23rd January 2014 

Wednesday, January 22, 2014

Achievements Has Nothing To do With Power and Education - Management Funda - N Raghuraman - 22nd January 2014

उपलब्धियों से कोई लेना-देना नहीं शिक्षा और ताकत का

 

मैनेजमेंट फंडा - एन रघुरामन




पहली कहानी: 
चेन्नई में रहने वाला 18 साल का लड़का वेंकटेश पढ़ाई में बेहद कमजोर है। टीचर्स, माता-पिता और उससे जानने वाले हमेशा उसकी इसके लिए आलोचना करते रहते हैं। ऐसे में अपना ज्यादातर वक्त वह स्कूल के बजाय मरीना बीच पर बिताने लगा। अमेरिका में फ्लोरिडा के बाद दुनिया का दूसरा सबसे लंबा समुद्र तट, मरीना बीच। यह बेहद खतरनाक समुद्र तट है इसलिए क्योंकि यहां किनारे पर लहरें काफी रौद्र रूप में होती हैं। इस समुद्र तट पर गोताखोर (डूबने वालों को बचाने के लिए) की भूमिका निभाने के लिए कोई आसानी से तैयार नहीं होता। ऐसी जगह पर वेंकटेश अनाधिकृत रूप से गोताखोर की भूमिका निभाने लगा। 
Source: Achievements Has Nothing To do With Power and Education - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 22nd January 2014

Jai Ho - Cinematic Manifesto of Aam Aadmi - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 22nd January 2014

जय हो: आम आदमी का सिनेमाई घोषणा पत्र


परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे


सोहल खान निर्देशित सलमान खान अभिनीत 'जय हो' दर्शक को अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के घोषणा-पत्र सी लग सकती है। क्योंकि उसमें नायक संदेश देता है कि हर आम आदमी अपने जीवन में कम से कम तीन जरूरतमंद लोगों की सहायता करे तो अच्छाई की एक विराट श्रंख्ला बन सकती है। हकीकत यह है कि अरविंद के राजनीति में आने के अर्से पहले 2006 में दक्षिण के सुपर सितारे चिरंजीवी ने राजनीति में प्रवेश करने के लिए एक फिल्म को अपने सिनेमाई घोषणा-पत्र की तरह गढ़ा था उसी से प्रेरित है जय हो। उन्होंने युवा लेखक निर्देशक मुरगदास को इस फिल्म के लिए अवसर दिया था- फिल्म का नाम 'स्टालिन' था। ज्ञातव्य है कि इसी मुरगदास ने 'स्टालिन' से 'तपाकी' तक अनेक सफल फिल्में बनाई हैं। आमिर खान अभिनीत 'गजनी' भी उन्हीं की फिल्म थी। यह भी गौरतलब है कुछ वर्ष पूर्व हॉलीवुड की एक कम बजट की दूसरे दर्जे की फिल्म 'पेयिंग फॉरवर्ड' में नायक तीन जरूरतमंदों की सहायता करता है और उनसे कहता है कि शुक्रिया कहने से बेहतर है कि वे भी अपने जीवन में कम से कम तीन मजबूर लोगों की सहायता करें। दरअसल ये तीनों फिल्में आम आदमी को अच्छाई का एक मंच दे रही हैं क्योंकि दुनिया के इतिहास के हर कालखंड में अच्छे लोगों की संख्या बुरे लोगों से ज्यादा ही होती है परंतु वे अपनी अच्छाई में डूबे रहते हैं और उनके पास कोई मंच भी नहीं है। 
 
Source: Jai Ho - Cinematic Manifesto of Aam Aadmi - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 22nd January 2014  

Tuesday, January 21, 2014

Good Ideas Will Vanish If You Haven't Worked On It - Management Funda - N Raghuraman - 21st January 2014

अच्छे आइडिया पर काम नहीं किया तो वे खत्म हो जाएंगे


मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन


तीन साल पहले विवेक व्यास और विमल पोपट अलग-अलग कंपनियों में काम कर रहे थे। खुश थे। फिर उन्होंने राजकोट में एक इंश्योरेंस कंपनी ज्वॉइन कर ली। टेक्निकली बहुत ज्यादा कुछ जानते थे। फिर भी लोगों को सफलतापूर्वक बीमा पॉलिसियां बेच रहे थे। आगे उनकी खास कोई योजना नहीं थी, लेकिन किस्मत ने उनके लिए योजना बना रखी थी। एक रोज वे सड़क किनारे एक दुकान पर समोसे खाने को रुक गए। दुकानदार ने उन्हें अखबार के टुकड़े में रखकर समोसे दिए। खा-पीकर वे हाथ में रखे उस अखबार के टुकड़े को फेंकने ही वाले थे कि उनकी नजर उसमें छपी एक सूचना पर गई। किसी की मौत पर शोक संदेश था वह। 

Source: Good Ideas Will Vanish If You Haven't Worked On It - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 21st January 2014

Return of The 40+ Actresses - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 21st January 2014

चालीस पार नायिकाओं की वापसी


परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे


ऐश्वर्या राय बच्चन अपने प्रिय फिल्मकार मणिरत्नम की अगली फिल्म से अपनी दूसरी पारी शुरू करने जा रही हैं। उनकी पहली पारी भी मणिरत्नम की 'इरूवर' के साथ प्रारंभ हुई थी तथा वे 'गुरु' व 'रावण' भी उनके साथ कर चुकी हैं। संजय लीला भंसाली भी उनके प्रिय फिल्मकार हैं जिनके साथ वे 'हम दिल दे चुके सनम', 'देवदास' तथा 'गुजारिश' कर चुकी हैं। मणिरत्नम की विगत कुछ तमिल में बनी फिल्में असफल रही हैं। इस तरह से ये फिल्म मणिरत्नम एवं ऐश्वर्या दोनों की वापसी कर सकती हैं। ऐश्वर्या की पहली हिंदी फिल्म राहुल रवैल ने निर्देशित की थी परंतु उन्हें सितारा हैसियत संजय लीला भंसाली की सलमान खान अभिनीत फिल्म से मिली थी। 

Source: Return of The 40+ Actresses - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 21st January 2014

Monday, January 20, 2014

Believe It or Not God Can Make You Messiah - Management Funda - N Raghuraman - 20th January 2014

मानो या नहीं लेकिन कभी भगवान आपको मसीहा बना देते है


मैनेजमेंट फंडा - एन रघुरामन


वह सिर्फ 26 साल के हैं। मेडिकल प्रोफेशन में उन्हें आए अभी आठ महीने ही हुए हैं। डॉ. अंचित भटनागर की हम बात कर रहे हैं। मुंबई के जेजे अस्पताल के सर्जरी विभाग से जुड़े हुए हैं। उस रोज वह हिल पार्क सोसायटी में स्थित अपने घर पर आए ही थे। तभी उन्हें पता चला कि उनकी माताजी दिल्ली से आ रही हैं। नजदीकी अलेक्जेंडर ग्राहम बेल रोड पर भारी भीड़ थी। दाऊदी बोहरा समाज के धर्मगुरू सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन को अंतिम विदाई देने ये लोग देश और दुनिया भर से आए हुए थे। सैयदना मोहम्मद का निवास स्थान सैफी महल भी यहीं है। डॉ. अंचित को पता चला तो वे तुरंत मां को सुरक्षित घर लाने के लिए निकल पड़े। वे मां को निकाल ही पाए थे कि अचानक भीड़ में भगदड़ मच गई। अंचित ने देखा कि लोग एक-दूसरे को धक्का दे रहे हैं। चीख चिल्ला रहे थे। जो गिर गए उन्हें कुचलते हुए बचने के लिए यहां-वहां दौड़ रहे हैं। पुलिस भी भीड़ को संभाल नहीं पाई। उसको इतनी भीड़ की उम्मीद नहीं थी। नीचे गिरे हुए लोग जैसे जिंदगी और मौत से संघर्ष कर रहे थे। महिलाओं- बच्चों की हालत सबसे ज्यादा खराब थी। कई बेहोश हो चुके थे। घायल थे। आसपास कोई मेडिकल सुविधा भी नहीं थी।

Source: Believe It or Not God Can Make You Messiah - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 20th January 2014 

What is Left In This World Except For The Eyes - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 20th January 2014

इन आंखों के सिवा दुनिया में क्या रखा है?


परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे


जिन दिनों बिमल राय 'देवदास' की शूटिंग कर रहे थे, उन दिनों दिलीप कुमार ने कहा था कि सुचित्रा सेन अत्यंत समर्पित एवं अनुशासित कलाकार हैं और देवदास के प्रेम दृश्यों में अनुभूति की तीव्रता केवल आंखों के माध्यम से अभिव्यक्त होती है, वे दोनों कभी एक दूसरे को स्पर्श नहीं करते। सुचित्रा सेन अपनी निगाह से उजास फैला सकती थी और अगर वे चाहती तो संभवत: निगाहों से टेबल कुर्सी को अपने स्थान से चलायमान कर सकती थी गोयाकि उन आंखों में जादू था। 'देवदास' के सफल प्रदर्शन के बाद दिलीप कुमार ने यह भी स्वीकार किया कि बंगाली फिल्मों में सुचित्रा सेन और उत्तम कुमार के बीच जो जादुई रसायन था, वह देवदास में नहीं नजर आया। यह सचमुच आश्चर्य की बात है कि कोई दो कलाकारों के बीच एक अदृश्य सेतु बन जाता है जिसका संबंध परदे के परे उनके प्यार से नहीं है। यह केवल कैमरे के सामने ही होता है।
Source: What is Left In This World Except For The Eyes - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 20th January 2014

Saturday, January 18, 2014

To Grab Attention You Have To Look Different - Management Funda - N Raghuraman - 18th January 2014

ध्यान खींचना है तो कुछ अलग दिखना होगा 

 मैनेजमेंट फंडा - एन रघुरामन



 
पहली कहानी: 


देश में रोज हो रहे कंस्ट्रक्शन के काम को इकट्ठा कर दिया जाए। उसका आकलन किया जाए तो पता लगेगा कि भारत में हर साल अमेरिका की शिकागो सिटी के बराबर निर्माण हो जाता है। और इसी बीच यह भी मालूम चलेगा कि देश में हरी-भरी जगहें, पार्क, बच्चों के लिए खेल के मैदान लगातार कम हो रहे हैं। कई शहरों में लंबे-लंबे फ्लाईओवर तो बने हुए हैं। लेकिन उनका बेहतर उपयोग करना अब भी हम लोगों को नहीं आया है। हालांकि कुछ शहरों में फ्लाईओवरों के नीचे पार्किग स्पेस बनाए गए हैं। कहीं-कहीं नगरीय निकायों के ऑफिस बने हैं। मुंबई में ट्रैफिक पुलिस चौकियां भी बनाने की योजना है।लेकिन मुंबई और बेंगलुरू में इस दिशा में कुछ अलग भी हो रहा है। डिजाइन और आर्किटेक्चर के स्टूडेंट्स ने इंटर्नशिप प्रोजेक्ट के तहत यह काम किए हैं। ताकि फ्लाईओवरों का बेहतर इस्तेमाल किया जा सके। न्यूयॉर्क की कोलंबिया यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर का एक प्रोजेक्ट है। इसके तहत बेंगलुरू के आनंद राव सर्किल फ्लाइओवर पर मिनी पार्क और बच्चों के लिए प्लेइंग जोन बनाया गया है। पहले इस जगह पर कचरा फेंका जाता था। अब वेस्ट मटेरियल का ही इस्तेमाल कर खुबसूरत पार्क तैयार कर दिया गया है। इस पार्क और प्लेइंग जोन बनाने में मेहनत भी खुद स्टूडेंट्स ने ही की है। 
 
Source: To Grab Attention You Have To Look Different - Management Funda - N Raghuraman - Bhaskar.com 18th January 2014

Poison of Blue Ribbon and Black Money - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 18th January 2014

नीले फीते का जहर और काला धन

परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे


आज प्रदर्शित 'मिस लवली' की पृष्ठभूमि अश्लील फिल्में बनाने वाला संसार है और इस पर महेश भट्ट दो फिल्में बना चुके हैं। जिस तरह समाज में काले धन का अपना एक साम्राज्य है और पीत पत्रकारिता तथा लगभग अश्लील प्रकाशन भी इसके बाय प्रोडक्ट हैं, उसी तरह अश्लील फिल्मों के साथ ही कुंठाओं को जगाने और उसके बहाने एक बाजार खड़ा होना भी उसके बॉय प्रोडक्ट हैं। इस तरह की कानाफूसी साहित्य संसार में है कि कुछ प्रतिभाशाली लेखकों ने अपनी मुफलिसी के दौर में छद्म नाम से अश्लील उपन्यास लिखे हैं। सिनेमा के संसार में ऐसा कभी नहीं हुआ कि अश्लील फिल्में बनाने वाले ने कभी अपनी दुनिया से तंग आकर एक अच्छी सामाजिक फिल्म बनाने का प्रयास किया हो परंतु सामाजिक फिल्में बनाने वाले कुछ फिल्मकारों ने आर्थिक संकट से मुक्त होने के लिए अपनी फिल्मों में नारी शरीर का प्रदर्शन किया है और एक भ्रष्ट समाज में लचीले सेन्सर को उसकी टूटने की हद तक खींचा है। अभी तक ऐसा कोई गंभीर प्रयास नहीं हुआ कि पूरी तरह अवैध अश्लील फिल्मों के कलाकारों और तकनीशियन के मन पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है। 
 
Source: Poison of Blue Ribbon and Black Money - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 18th January 2014

Friday, January 17, 2014

Lifestyle Can Be Better By Mixing Old And New - Management Funda - N Raghuraman - 17th January 2014

नए पुराने को मिला दें तो जीवन स्तर बेहतर हो सकता है 


मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन



ये सिर्फ दो आइडिया हैं। पहला ये कि उन्हें अच्छा और स्वास्थ्यवर्धक भोजन करने के लिए कहें। और दूसरा कि इमरजेंसी में आधुनिक मेडिकल सुविधा मुहैया कराएं। अगर ये दो चीजें हो जाएं तो गरीबों के मौजूदा हालात बहुत बेहतर हो सकते हैं। लेकिन हम सब जानते हैं कि करने के मुकाबले यह कहना बहुत आसान है। लेकिन दो लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने अपने-अपने तरीकों से यह कर दिखाया है। 

Source: Lifestyle Can Be Better By Mixing Old And New - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 17th January 2014

Karishma - Kareena Production House - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 17th January 2014

करिश्मा-करीना की निर्माण संस्था


परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे


करिश्मा कपूर और करीना कपूर ने भागीदारी में निर्माण संस्था खड़ी की है। इसके तहत केवल मुनाफा कमाने वाली व्यावसायिक फिल्में बनाई जाएंगी। उनके सिनेमाई मैनिफेस्टो में सामाजिक प्रतिबद्धता के लिए कोई स्थान नहीं होगा, गोयाकि उन्होंने अपने दादा राजकपूर के सिनेमा से कोई संबंध नहीं रखा है और सृजन की यह नाल (अम्बिलकल कोर्ड) भी काट दी है। उनके प्रथम कजिन रनबीर कपूर ने पहले ही अनुराग बसु की भागीदारी में 'जग्गा जासूस' का निर्माण प्रारंभ कर दिया है। फिल्म के नाम से ही जाहिर होता है कि ये भी सामाजिक सरोकार के परे केवल मनोरंजन प्रधान फिल्म होगी, जिसके 120 मिनिट में 75 मिनिट का संगीत होगा। इन दोनों की विगत फिल्म 'बर्फी' चार्ली चैपलिन और मूक सिनेमा को आदरांजलि के तौर पर बनाई गई थी। अत: उसका संबंध राजकपूर के सिनेमा से स्वत: ही जुड़ गया था। 

Source: Karishma - Kareena Production House - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar - 17th January 2014

Thursday, January 16, 2014

Keep Your Brand Flexible According to Fresh Trends - Management Funda - N Raghuraman - 16th January 2014

ताजा चलन के हिसाब से अपने ब्रांड में तब्दीली करते रहिए


मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन


फौजा सिंह दुनिया के सबसे बुजुर्ग मैराथन धावक हैं। उन्होंने 2013 में मुंबई मैराथन में हिस्सा लिया था। उस वक्त उन्होंने इस पर नाखुशी जताई थी कि ऐसी प्रतिस्पर्धाओं में सिखों की भागीदारी बहुत कम है। इस असंतोष का सीधा असर ये हुआ कि 2014 की मुंबई मैराथन में 55 सिख हिस्सा लेने जा रहे हैं। पीली पगड़ी में ये लोग 'मुंबई दे सिख' नाम के बैनर तले इस प्रतिस्पर्धा में भाग लेंगे। फौजा सिंह ने मुंबई के बाद पिछले साल ही हांगकांग मैराथन में हिस्सा लिया था। इसके बाद वे रुक गए, क्योंकि उनकी तबीयत अब इसकी इजाजत नहीं देती। उनकी उम्र अब 102 साल हो चुकी है।

Source: Keep Your Brand Flexible According to Fresh Trends - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 16th January 2014

Puppets Show with Strings Attached - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 16th January - 2014

डोर से बंधी कठपुतलियों का तमाशा

परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे


वर्तमान की धुंध से घबराकर उम्र दराज लोगों का मन विगत की यादों में शांति खोजता है। अब हरियाली केवल मन के वृन्दावन में ही बची है क्योंकि बंगाल और केरल को छोड़कर सारे राज्यों की सरकारें कृषि की जमीन बड़ी कंपनियों को उद्योग व टेक्नोलॉजी विकसित करने के नाम पर कम दामों में बेच रही हैं। टेक्नोलॉजी मनुष्य की भूख का इलाज नहीं है। कोई तो बताए कि कितने प्रतिशत जमीन पर खेती की जा रही है। कारों के निर्माण के लिए कौडिय़ों के दाम जमीनें बेची गई, चार राज्यों के चुनाव की कीमत अब जनता सौ रुपए किलो दाल खरीदकर चुका रही है जो दो महीने पहले 80 रुपए किलो थी।

Source: Puppets Show with Strings Attached - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 16th January - 2014

Wednesday, January 15, 2014

Its Not Necessary School / College Dropouts Are Left Behind in Life - Management Funda - N Raghuraman - 15th January 2014

स्कूल/ कॉलेज के ड्रॉप आउट जिंदगी में पीछे रहें जरूरी नहीं


मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन 



सेलिब्रिटी की कहानी:

वह झूठा है। असभ्य है। उसने अपनी उम्र के संबंध में गलत जानकारी दी है। इसलिए बीसीसीआई की इनडोर क्रिकेट अकादमी में उसे नहीं रहना चाहिए। उसे बाहर कर दिया जाना चाहिए। चार साल पहले 2009 में जब उसने हैरिस शील्ड में 439 रन बनाए तो कुछ इसी तरह उसके खिलाफ दलीलें दी गईं। तब वह 15 साल का था। रोज स्कूल नहीं जाता था। इसलिए उसे क्रिकेट के सत्र के बीच ट्यूशन दी जाती थी। लेकिन इन्हीं आलोचनाओं के बीच उसने जूनियर क्रिकेट सीरीज में दक्षिण अफ्रीका के एक गेंदबाज की खूब धुनाई की।

Source: Its Not Necessary School / College Dropouts Are Left Behind in Life - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 15th January 2014  

Difference Between DDLJ and Dhoom 3 - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 15th January 2014

'दुल्हनिया' और 'धूम' में अंतर

परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे 

जैसे क्रिकेट के आंकड़े अनेक क्रिकेट प्रेमी सहेज कर रखते हैं, वैसे सिनेमा बॉक्स ऑफिस के आंकड़े भी जमा किए जाते हैं। फिल्म इन्फॉर्मेशन नामक पत्रिका के गौतम मूथा ने बताया कि 'धूम तीन' ने मुंबई और उपनगरों में प्रथम सप्ताह में चौदह करोड़ के टिकिट बिके और अठारह वर्ष पूर्व आदित्य चोपड़ा की 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' के बारह करोड़ के टिकिट बिके थे। 'दुल्हनिया' के समय आज से कम मल्टीप्लैक्स थे और टिकिट के दर भी आज से बहुत कम थे। धूम के टिकिट दर अब तक प्रदर्शित फिल्मों से बहुत अधिक थे और पहले तीन दिन के बाद घटाए भी नहीं गए थे जैसे अन्य भव्य फिल्मों के प्रदर्शन के समय किया जाता है। इस तथ्य से स्पष्ट होता है कि 'दुल्हनिया' की दर्शक संख्या 'धूम' से कहीं अधिक थी और इन अठारह वर्षों में आबादी भी बढ़ी है। 

Source: Difference Between DDLJ and Dhoom 3 - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 15th January 2014 

Tuesday, January 14, 2014

Understand The Power of A Single Lone Man - Management Funda - N Raghuraman - 14th January 2014

अकेले आदमी की ताकत को भी समझिए

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन 


पहली कहानी: 
 
ओडिशा के भुवनेश्वर में निराकार मल्लिक लिफ्ट एरिगेशन कॉर्पोरेशन में ठेके पर काम करते हैं। वे यहां मोटर पंप ड्राइवर हैं। लेकिन वे एक चीज से व्यथित थे। नजदीकी केंद्रपाड़ा जिले के अलियाहा गांव में लोग बाढ़ और तूफान जैसी प्राकृतिक विपदाओं से जूझ रहे हैं। अलियाहा निराकार का पैतृक गांव है। सिंचाई विभाग में काम करते हुए उनको सिखाया गया था कि ऐसी समस्याओं का स्थायी समाधान है पानी स्रोतों के इर्द-गिर्द पौधे लगाए जाएं। इससे मिट्टी का क्षरण रुकेगा। और पानी को बेकार बहने से रोका जा सकेगा। 
 
Source: Understand The Power of A Single Lone Man - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 14th January 2014 

Thumri Etched In The Subconscious of Indians - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 14th January 2014

भारतीय अवचेतन में बसी ठुमरी

परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे



डेढ़ इश्किया में संगीतकार विशाल भारद्वाज और गीतकार गुलजार ने अपनी फिल्म की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के अनुरूप 'हमरी अटरिया पर आजा रे सांवरिया' का इस्तेमाल किया है परंतु उन्होंने लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह का शुक्रिया अदा नहीं किया है, जिनके दरबार की यह रचना है और ना ही बेगम अख्तर, जिनकी इस साल जन्म शताब्दी मनाई जा रही है, को आदरांजली दी है जिन्होंने इस महान अवधी रचना की अदाएगी कुछ इस दिलकश अंदाज से की है कि अनेक गायकों द्वारा गाये जाने के बाद भी इसे बेगम अख्तर की रचना ही माना जाता है। 
 
Source: Thumri Etched In The Subconscious of Indians - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 14th January 2014   

Monday, January 13, 2014

Portfolio Career - A Good Alternate Career - Management Funda - N Raghuraman - 13th January 2014

पोर्टफोलियो कॅरिअर एक बेहतर विकल्प हो सकता है

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन

कुछ साल पहले जीतेंद्र यादव बिहार से मुंबई आए। उस वक्त उनके खेतों में फसल खराब हो चुकी थी। नौकरी की तलाश थी। मुंबई में पहले से उनके कुछ संपर्क थे। उसके जरिए फायदा मिला। उन्हें शहर में आते ही चौकीदार की नौकरी मिल गई। परिवार के बाकी सदस्य अब पूरी तरह जीतेंद्र की नौकरी से होने वाली कमाई पर निर्भर थे। इस एक कमाई से सबका खर्च चलाना मुश्किल था। इसलिए जीतेंद्र ने दिन के समय में एक नौकरी कर ली। एशियन पेंट्स में वे ठेके पर पेंटिंग का काम करने लगे। इस बीच परिवार के कुछ और सदस्यों को भी नौकरी मिल गई। वे भी मुंबई आ गए। लेकिन जीतेंद्र अपने दोनों काम करते रहे। बल्कि कुछ और काम उन्होंने हाथ में ले लिए थे। इससे उन्हें अतिरिक्त कमाई हो रही थी। एक व्यक्ति कमाई के लिए जब इस तरह कई काम करता है तो इसे पोर्टफोलियो कॅरिअर कहा जाता है। और ऐसे काम करने वाले को पोर्टफोलियो कॅरियरिस्ट। इस तरह का व्यक्ति कभी पूरे समय बंध कर एक नौकरी नहीं करता। भारत में यह चलन अभी ज्यादा पुराना नहीं है। 

Source: Portfolio Career - A Good Alternate Career - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 13th January 2014

Tusshar Kapoor's Horror-Comic Movie - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 13th January 2014

तुषार कपूर की हॉरर-हास्य फिल्म

परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे


तुषार कपूर प्राय: प्रियदर्शन और रोहित शेट्टी की फिल्मों में चरित्र भूमिकाएं करते हैं और कभी टेलीविजन पर किसी कार्यक्रम में निर्णायक मंडल में नजर आते हैं। उनकी छवि धनाढ्य सितारे जीतेन्द्र के पुत्र और सफल एकता के इकलौते भाई की है। आम जनता में उनकी छवि एक सफल परिवार में जन्मे असफल व्यक्ति की है परंतु उसकी अपनी निजता कभी उभर कर सामने नहीं आई। मसलन उसने अपने पिता द्वारा बनाया एक भव्य बहुमंजिला लेने से इंकार कर दिया और कहा कि अपने कमाए कम पैसे पर ही वे जीवन बसर करना चाहते हैं। किसी भी इंसान में इस तरह का स्वाभिमान होना उसके अपने सफल परिवार में सिर उठाकर जीने की तरह है। प्रचारित छवियों से बेहद अलग होता है असल व्यक्ति। 
 
Source: Tusshar Kapoor's Horror-Comic Movie - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar13th January 2014  

Sunday, January 12, 2014

You Can Sell Anything If You Offer Your Customers Something Extra - Management Funda - N Raghuraman - 12th January 2014

ग्राहकों को 'एक्स्ट्रा' देंगे तो आप कुछ भी बेच सकते हैं

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन


गुजरात और महाराष्ट्र की सीमा पर है हिल स्टेशन- सापुतरा। वहां के छोटे-से बाजार पर उसका एकछत्र राज है। हर कोई उससे डरता है। अमरूद या मकई हाथ में पकड़कर वह सीधे ग्राहक की नाक तक ले जाती है। दावे के साथ कहती है -'मार्केट में बेस्ट है।' बेस्ट होते नहीं हैं। लेकिन वह अपने व्यक्तित्व के दम पर ही उन्हें बेच देती है। गुजराती और मराठी बोलने वाले नियमित यात्री उसकी दुकान पर आते हैं। कुछ न कुछ खरीदते हैं। फिर उससे बातें करने लगते हैं। उसकी आवाज कोहरे की सूचना देने वाले सायरन की तरह लगती है। पर्यटकों और उन्हें लुभाने की कोशिश करने वाले टैक्सी ड्राइवरों के शोर में भी सहजता से उसे सुना जा सकता है। कई भाषाएं बोलने वाली यह महिला ऊपर उठी हुई स्ट्रॉ बास्केट में पैर फैलाकर बैठती है। फूलों वाली लेकिन गंदी कॉटन साड़ी पहनती है। पल्लू को संकरे चाबुक की तरह सीने पर लपेटती है। साड़ी को गंदा होने से बचाने के लिए चेक्स वाला गंदा टॉवेल मोटी कमर पर लपेटती है। उसी टॉवेल से वह चाकुओं को साफ करती है, जिनसे फलों को काटती है। मकई के छिलके उतारती है। उसका चेहरा गोल है। एक कप रूपी केक की तरह सूजा हुआ। जब वह ग्राहक का ध्यान खींचने के लिए मुड़ती है तो पहले गर्दन मुड़ती है। बाद में शरीर के बाकी हिस्से। वह सस्ते और भड़कीले रंग के प्लास्टिक टब में अंगूर, अमरूद, मकई, उबले मूंगफली दाने रखती है। एक तरह से अपने आसपास सेमी-सर्कल में। फिर वह अपने कुत्ते को बुलाती है। कुछ बार पुकारने पर एक डरावना नजर आने वाला खरसैला कुत्ता वहां आता है। उसकी आंखों में डर देखा जा सकता है। दुबला-पतला, मरियल और हतोत्साहित नजर आने वाला जानवर। शरीर पर कई जगहों से फर भी गायब है। 
 
Source: You Can Sell Anything If You Offer Your Customers Something Extra - Management Funda By 

Saturday, January 11, 2014

Some People Never Go Wrong In Mathemetics of Life - Management Funda - N Raghuraman - 11th January 2014

कुछ लोग जिंदगी की गणित में गलत नहीं होते

 मैनेजमेंट फंडा  - एन. रघुरामन


वह मैथ टीचर थे। नागपुर के सरस्वती विद्यालय में पढ़ाते थे। चार दशक के उनके कॅरिअर में करीब 50 हजार स्टूडेंट्स उनसे लाभान्वित हुए। अस्सी साल के इस शख्स के अंतिम संस्कार के लिए दो जनवरी को कुछेक लोग ही जुटे थे। कोई पंडित नहीं। रीति-रिवाज नहीं। बस एक असहज शांति जरूर पसरी हुई थी, क्योंकि अंतिम संस्कार नागपुर के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग के डीन के ऑफिस के बाहर हो रहा था। कुछ पेपर बचे साइन करने के लिए। जैसे दिवंगत मनोहर एस. कारखानिस के परिवार वालों ने कागजात पर साइन किए, अंतिम संस्कार की रस्में पूरी हो गईं। हेल्पर स्ट्रेचर पर रखी देह को विभाग के उस हिस्से की ओर धकेल चला, जहां उसे रखा जाना था। 

Source: Some People Never Go Wrong In Mathemetics of Life - Management Funda - N Raghuraman - Dainik Bhaskar 11th January 2014

Memoirs of a Song - Respect and its Language - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 11th January 2014

एक जबान एक अदब का स्मृति गीत

परदे के पीछे  - जयप्रकाश चौकसे


अभिषेक चौबे, विशाल भारद्वाज और गुलजार की 'डेढ़ इश्किया' का केंद्रीय पात्र उसकी जबान और वह अदब है जिसे गुजरे जमाना हो गया। आज हिंदुस्तान किस कदर बदल गया है कि पूरी फिल्म अंग्रेजी में सब टाइटिल की गई है। इससे ज्यादा अफसोस की बात और क्या हो सकती है कि एक हिंदुस्तानी फिल्म जो हिंदुस्तानी जबान में ही बनी है वह अंग्रेजी अनुवाद के साथ दिखाई जा रही है। गानों को भी सबटाइटिल के साथ प्रस्तुत किया गया है। क्या हम यह मान लें कि अब इस देश में हिंदी या उर्दू से ज्यादा अंग्रेजी समझी जाती है? जब एक देश अपनी भाषा खो देता है तब यह तय है कि वह अपना चरित्र पहले ही खो चुका है। एक जमाना था जब ईरान पर विदेशी कब्जा था और उन्हें अपनी जबान बोलने की आजादी नहीं थी तब उन्होंने अपने घर में ही दबे स्वर में चोरी छुपे अपनी जबान बोलकर उसे जिंदा रखा। गोवा में 400 साल पहले शिव मंदिर में मूर्ति स्थापना की पूजा के लिए बनारस से कुछ पंडित आए थे जिनमें से कुछ परिवार वहीं बस गए और पुर्तगीज कब्जे के समय वे ईसाई बने परंतु अपने घर में उन्होंने संस्कृत बोलना जारी रखा और इन्हीं में से एक रोडग्रिज वसंत पंडित ने गुलजार की 'माचिस' का निर्माण किया था। 
 
Source: Memoirs of a Song - Respect and its Language - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 11th January 2014  

Friday, January 10, 2014

What You Do Is Your Destiny - Management Funda - N Raghuraman - 10th January 2014

आप जो करते हैं वही आपकी तकदीर है


मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन


कहानी 1: 


दुनिया के सबसे अमीर शख्स बिल गेट्स की पत्नी मिलिंडा गेट्स कुछ लोगों के साथ डिनर कर रही थीं। उनके बगल में एक16 वर्षीय लड़की बैठी थी। इस लड़की का नाम था शिखा पात्रा। बातों बातों में मिलिंडा ने शिखा से पूछा, क्रक्या तुम किस्मत जैसी बातों पर यकीन करती हो। शिखा ने जवाब दिया, मैं जो करती हूं वही मेरी तकदीर या किस्मत है। यह अप्रैल 2013 की बात है। इस मुलाकात के बाद 31 दिसंबर को मिलिंडा ने अपना फेसबुक स्टेट्स अपडेट किया। इसका शीर्षक था वह प्रेरणादायक महिलाएं और लड़कियां जिनसे मैं इस साल मिली। इनमें हिलेरी क्लिंटन, मलाला युसुफजई, क्वीन रैना और शिखा पात्रा शामिल हैं। बकौल मिलिंडा यह वे हैं जिनसे वह काफी प्रभावित हुईं।

Source: What You Do Is Your Destiny - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 10th January 2014

Dr. Vijaypat Singhania's Shankhnaad (Sound of The Conch) - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 10th January 2014

डॉ. विजयपत सिंघानिया का शंखनाद

 परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे


रेमंड और जे.के. ट्रस्ट ग्राम विकास योजना के डॉ. विजयपत सिंघानिया श्रेष्ठि वर्ग के एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने गुब्बारे में बैठकर विश्व रिकॉर्ड बनाया था और लंदन से मुंबई तक भी एक अत्यंत छोटे हवाई जहाज में यात्रा करके कीर्तिमान रचा था। इस क्षेत्र में वे जेआरडी टाटा के बताए साहसी मार्ग पर चले हैं गोयाकि अन्य घनाढ्य व्यक्तियों की तरह उनका जीवन वातानुकूलित कमरों में नहीं बीता है। उनके पास अनेक किस्म के हवाई जहाज उड़ाने का अनुभव है और इस विषय पर उनकी किताब 'एन एंजिल इन कॉकपिट' खूब सराही गई है। 

Source: Dr. Vijaypat Singhania's Shankhnaad (Sound of The Conch) - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 10th January 2014  

Thursday, January 9, 2014

Check Your Facts Before You Protest and then Speak - Management Funda - N Raghuraman - 9th January 2014

विरोध करने से पहले जानिए, फिर बोलिए...

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन 

 

केस स्टडी: 

सुशील शुक्ला मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में स्टूडेंट है। कॉलेज में पढ़ता है। इस साल 31 दिसंबर और एक जनवरी की दरम्यानी रात वह और उसके कुछ दोस्त एक छात्रा को घर छोडऩे गए। इससे पहले उन सभी ने पार्टी की थी। इसमें किसी ने शराब नहीं पी थी। जब वे छात्रा को छोड़कर लौट रहे थे तो उनकी गाड़ी चेकिंग के लिए रोकी गई। सुशील का ड्राइविंग लाइसेंस चेक किया गया और इंश्योरेंस पेपर मांगे गए। उसके पास सभी कागज थे, सिर्फ इंश्योरेंस पेपर नहीं थे। दरअसल, इंश्योरेंस कंपनी से नए कागज मिले ही नहीं थे। मोबाइल पर इंश्योरेंस कंपनी ने एक एसएमएस भेजा था। जिसमें लिखा था कि इंश्यारेंस पॉलिसी रिन्यू हो चुकी है, दस्तावेज जल्द ही उसके पते पर भेज दिए जाएंगे। इसमें पॉलिसी नंबर और तारीख भी बताई गई थी। लेकिन पुलिस वाले कहां मानने चले। उन्होंने सुशील और उसके दोस्तों को खूब बेइज्जत किया। छात्रों का दावा है कि मौके पर मौजूद सब इंस्पेक्टर ने कहा, 'तुम पढ़े-लिखे गंवारों को मैं डंडे दूंगा तो सारी अकल ठिकाने आ जाएगी।' अब इन छात्रों का मुद्दा ये है कि क्या उस सब इंस्पेक्टर को इस तरह किसी को बेइज्जत करने की छूट मिली हुई है? उस दिन के बाद से ये सभी लड़के कई महत्वपूर्ण जगहों पर दस्तक दे चुके हैं। जिम्मेदार अधिकारियों को पत्र लिख रहे हैं। हालांकि अब तक ये सभी इधर-उधर चक्कर ही लगा रहे हैं। उन्हें कोई नतीजा नहीं मिला है। 
 
Source: Check Your Facts Before You Protest and then Speak - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 9th January 2014

Love Episodes of Film Industry and Carrom Board - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 9th January 2014

फिल्म उद्योग के प्रेम प्रकरण और कैरम बोर्ड

परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे


जॉन अब्राहम ने न्यूयॉर्क में अपनी प्रेमिका प्रिया से विवाह कर लिया। जॉन अब्राहम ने शादी विदेश में की क्योंकि वे भारत में मीडिया सर्कस से बचना चाहते थे। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का तो यह हाल है कि सितारों के पालतू भी उन्हें दिख जाएं तो उस तरह का अफसाना बना सकते हैं, मानो सलमान खान और शाहरुख खान के पालतू कुत्ते बैंड स्टैंड पर टकरा गए और इन कुत्तों की सेवा के लिए नियुक्त सेवक भी एक-दूसरे से भिड़ गए। कुत्तों के एक दूसरे पर भौंकने के कारण वहां हजारों की भीड़ जमा हो गई। तमाशबीन सब जगह मौके की तलाश में ऐसे मुस्तैद होते हैं जैसे आखेट पर निकले भूखे शिकारी।

Source: Love Episodes of Film Industry and Carrom Board - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 9th January 2014

Wednesday, January 8, 2014

If you Want to Look Different Then Think New and Afresh - Management Funda - N Raghuraman - 8th January 2014

अलग दिखना है तो कुछ तरोताजा और नया सोचिए

मैनेजमेंट फंडा  - एन. रघुरामन


पहली कहानी: 
 
किसी मंदिर से लोगों को प्रसाद के अलावा क्या मिल सकता है? ये फूल हो सकते हैं, माला या फिर और कोई खाने-पीने की चीज। लेकिन झारखंड के रांची में रातू रोड पर स्थित पहाड़ी मंदिर ने कुछ अलग सोचा है। यहां आने वाले लोगों को जैविक खाद देने का फैसला किया गया है। साथ ही उन्हें मंदिर के आसपास पौधारोपण करने को कहा जाएगा। और वहीं इस खाद का उपयोग करने की ताकीद की जाएगी। जैविक खाद का उत्पादन मंदिर खुद करेगा है। यहां से जो उपयोग हो चुकीं माला-फूल-बेल पत्ती और पूजा के दूसरे पदार्थ निकलते हैं उनसे कंपोस्ट खाद बनाई जाएगी। इस तरह यह मंदिर पहली धार्मिक जगह बन गया है जहां वर्मी कंपोस्ट पर निवेश किया जा रहा है। 
 
Source: If you Want to Look Different Then Think New and Afresh - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 8th January 2014

Market of Nudity and Greed for Market - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 8th January 2014

नग्नता का बाजार और बाजार का लोभ

परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे


आमिर खान और राजकुमार हीरानी की 'पी.के.' में आमिर खान ने एक शॉट निर्वस्त्र होकर दिया है और प्रचार तंत्र इसे फिल्म की एक महत्वपूर्ण घटना बता रहा है मानो पूरा हिन्दुस्तान आमिर खान को नग्न अवस्था में देखने के लिए बेचैन है। यह कितनी अजीब बात है कि तमाम शिखर नायिकाएं न्यूनतम वस्त्रों में अधिकतम समय परदे पर नजर आती हैं, यहां तक कि बर्फ से ढके लोकेशन पर पुरुष तीन पीस का सूट पहने हैं परंतु नायिका को ठंड नहीं लगती, और नायक के शरीर प्रदर्शन को सनसनीखेज माना जा रहा है। लोगों की सोच का आलम यह है कि जब नील नितिन मुकेश या राहुल बोस इस तरह के दृश्य कर चुके हैं तो कोई विशेष प्रचार नहीं हुआ और ना ही वे फिल्में सफल रहीं परंतु शिखर सितारे को छींक आ जाये या वह निर्वस्त्र प्रस्तुत हो रहा हो तो बॉक्स ऑफिस पर सिक्कों की बौछार होगी और कुछ सिक्के सिनेमाघर के परदे तक भी पहुंचेंगे। आम दर्शक किस तरह सितारा ग्रसित हो चुका है कि वह तमाम गैर महत्वपूर्ण बातों को खूब तूल देता है। राजकुमार हीरानी की विगत तीनों फिल्में सामाजिक सोद्देश्यता के साथ मनोरंजन करती थीं और यह बात ही फिल्म देखने के लिए उत्सुकता को जन्म देती है तथा आमिर ने विगत पूरे दशक बहुत सोच समझकर फिल्में चुनीं हैं, अत: उनकी फिल्में बिना किसी प्रचार के भी देखने की उत्सुकता होती है। दरअसल इससे भी अधिक चिंता की बात यह है कि हम गैर जरूरी चीजें खरीदते है और राजनीति में भी अनावश्यक एवं मूर्खतापूर्ण बातें हमें उत्तेजित करती हैं।

Source: Market of Nudity and Greed for Market - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 8th January 2014  

Tuesday, January 7, 2014

Quality Always Scores Above Quantity - Management Funda - N Raghuraman - 7th January 2014

क्वालिटी हमेशा क्वांटिटी से आगे रहती है

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन


महेश रायपुर का रहने वाला है, जबकि रमेश नागपुर से है। दोनों मैकेनिकल इंजीनियर हैं। उन्होंने हर एक्जाम 51 फीसदी अंकों के साथ पास किया। दोनों को दो-दो नौकरियां मिलीं। एक उनके अपने-अपने कॉलेज के प्लेेसमेंट सेल के जरिए। किसी कारण से दोनों को नौकरी छोडऩी पड़ी। दूसरी बार दो-पांच महीने के बाद उन्होंने अपने दम पर नौकरी हासिल की, लेकिन इससे भी उन्हें इस्तीफा देना पड़ा, क्योंकि उन्हें अंदरूनी इलाकों में पोस्टिंग दी गई। आज दोनों मानते हैं कि दुनिया ने उनके साथ ठीक नहीं किया। कम से कम उन्हें नौकरी देने वाली कंपनियों ने तो बिल्कुल भी नहीं।
 
Source: Quality Always Scores Above Quantity - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 7th January 2014

Black Clouds on Roshan Family - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 7th January 2014

रोशन परिवार पर काली घटा

परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे 


क्या नए वर्ष में केवल राजनीतिक कुरुक्षेत्र ही होगा जिसमें तमाम दलों के रथों पर 'विकास' की ध्वजा लहरा रही है और कोई भी आयात किए गए इस 'विनाश' के परिणाम का अध्ययन नहीं करना चाहता? ज्योतिष के जानकार प्रयास कर सकते हैं कि पांडव-कौरव युद्ध के समय ग्रह-नक्षत्रों की क्या दशा थी और कहीं वैसा ही संयोग 2014 में तो नहीं बन रहा है? दरअसल पूरी पृथ्वी के संपूर्ण विनाश की अनेक तिथियां प्रचारित हुईं, परंतु सत्यसिद्ध नहीं हुई। इस तरह की तिथियों का भी बाजार लाभ उठाता है और यह भी संभव है कि वही इन तिथियों के प्रचार का प्रायोजक भी हो। आश्चर्य की बात यह है कि कोई भी राजनीतिक दल अपने चुनावी घोषणा पत्र में पृथ्वी के संरक्षण के लिए किसी योजना को शामिल नहीं कर रहा है। न ही कोई दल भारत की सभी प्रमुख नदियों को जोडऩे की बात कर रहा है। क्योंकि वर्तमान की राजनीति में 'जोडऩा' महत्वपूर्ण नहीं है वरन 'तोडऩे' से सत्ता मिलती है।

Source: Black Clouds on Roshan Family - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 7th January 2014

Monday, January 6, 2014

There Is A Lot Of Similarity In The Success of Human Being And An Oak Tree - Management Funda - N Raghuraman - 6th January 2014

इंसान और ओक के पेड़ की तरक्की में काफी समानता है 

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन 


वह कुछ-कुछ प्रेशर कुकर हालात में बड़ा हुआ था। यानी बहुत ही दबाव वाली स्थितियों में। अपने पिता से बहुत डरता था, लेकिन उन पर उसे भरोसा भी बहुत था। पिता उसके हीरो थे। वह उनकी पूजा करता था। क्यों? क्योंकि कितना भी व्यस्त शेड्यूल हो, जब भी उसे जरूरत पड़ी वे हमेशा मौके पर मौजूद रहे। उन्होंने उसके स्कूल के हर कार्यक्रम को अटेंड किया। यहां तक कि वे उसके स्कूल के हर दोस्त को जानते थे। वास्तव में देखा जाए तो उसके पिता बहुत शानदार इंसान थे। ये बात और है कि वे थोड़े सख्त थे। 

Source: There Is A Lot Of Similarity In The Success of Human Being And An Oak Tree - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 6th January 2014

Suchitra Sen : What Kind Of Liberation From Past - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 6th January 2014

सुचित्रा सेन: अतीत से कैसी मुक्ति? 

 परदे के पीछे  - जयप्रकाश चौकसे


विगत कुछ दिनों से बयासी वर्ष की सुचित्रा सेन अस्पताल में भर्ती हैं। आज का युवा वर्ग उन्हें नहीं जानता, क्योंकि सन् 78 में उन्होंने फिल्में छोड़ी और आज की युवा पीढ़ी उस वक्त पैदा भी नहीं हुई थी। सुचित्रा और उत्तम कुमार की जोड़ी बंगाल में उतनी ही लोकप्रिय थी जितनी शेष भारत में राजकपूर-नरगिस, दिलीपकुमार-मधुबाला या देवआनंद-सुरैया की जोडिय़ां थीं और परदे पर इनके प्रेम दृश्य दर्शकों में उन्माद भर देते थे। उस समय मीडिया में सितारों के बीच 'रसायन' अर्थात 'केमेस्ट्री' उतना लोकप्रिय ढंग नहीं था इश्क को बयां करने का और मजे की बात यह है कि 'केमिस्ट्री' का चलन शरीर प्रदर्शन के युग में हुआ। आज तो 'एनॉटोमी' उजागर की जाती है।
 
Source: Suchitra Sen : What Kind Of Liberation From Past - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 6th January 2014

Sunday, January 5, 2014

Set Your Goals So That You Can Chase It - Management Funda - N Raghuraman - 5th January 2014

लक्ष्य तय कर उसका पीछा करना ही होगा

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन 


अमेरिका के मेम्फिस में रहने वाले चाल्र्स कैमंस विल्सन और डोरोथी ली 1951 में अपने बच्चों के साथ सड़क के रास्ते छुट्टियां बिताने वॉशिंगटन डीसी गए थे। उस समय सड़क किनारे मॉटेल्स में सुविधाएं अच्छी नहीं थीं। इससे वे निराश हो गए। मॉटेल्स कम नहीं थे, लेकिन शुल्क, सुविधाओं, नियम और बच्चों के अतिरिक्त बिस्तर के शुल्क में अंतर था। विल्सन के पांच बच्चे थे। इससे उनकी जेब पर अतिरिक्त दबाव पड़ा। पूरी ट्रिप में वे पत्नी से कहते रहे कि छुट्टियों से लौटते ही वे फैमिली होटल की चेन शुरू करेंगे। पत्नी को लगा कि बिल का भुगतान करते समय पुरुष शिकायतें करते ही हैं। उन्होंने इसे ज्यादा महत्व नहीं दिया और भूल गईं। लेकिन विल्सन संकल्प पर डटे रहे। बार-बार कहते कि ऐसे होटल शुरू करेंगे जो क्वालिटी, रेट और सुविधाओं के लिहाज से विश्वसनीय हों। पत्नी ने एक बार व्यंग्यात्मक अंदाज में पूछ लिया- 'आखिर कितने होटल बनाएंगे आप?' विल्सन ने मुस्कराते हुए जवाब दिया-'400'। पत्नी हंस पड़ी। उन्हें लगा कि हर बच्चे के बिस्तर के लिए 2 डॉलर हर रात चुकाने से विल्सन गुस्से में हैं। विल्सन घर लौटे तो सबसे पहले उन्होंने होटल डिजाइन करने के लिए क्राफ्ट्समैन को बुलाया। उन्हें होटल में एक स्विमिंग पूल जरूर चाहिए था। उन्होंने 1952 में अपने गृहनगर मेम्फिस के बाहरी इलाके में पहला होटल खोला। उन्हें लगा कि एक होटल बनाने में एक साल लगा तो 400 होटल नहीं बना सकेंगे। उन्होंने एक साथ कई जगहों पर काम शुरू कर दिया। 

Source: Set Your Goals So That You Can Chase It - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 5th January 2014

Saturday, January 4, 2014

Madhuri's Ishqiya And Gulaabi Gang - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 4th January 2014

माधुरी की इश्किया और गुलाबी गैंग

 परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे


छयालीस (46) वर्षीय माधुरी दीक्षित नेने आज जितना धन कमा रही हैं उतना धन तो उन्होंने अपने शिखर सितारा दिनों में भी नहीं कमाया। वे एक दशक तक नंबर एक सितारा रही हैं। दरअसल उनके शिखर दिनों में फिल्म उद्योग का अर्थतंत्र अलग था। माधुरी ने सफल पारी के बाद विवाह करके भारत छोड़ दिया था। उनके पति डॉ. नेने अमेरिका में सफल थे। अमेरिका में माधुरी भारतीय शिखर सितारा नहीं वरन् एक औसत अमेरिकन पत्नी की तरह रहीं और घर के सारे कार्य किए। वे एक मध्यम वर्गीय महाराष्ट्रीय परिवार में पलीं और अपने शिखर सितारा दिनों में उसने अपने संस्कार का निर्वाह किया। वे अत्यंत अनुशासित और मेहनती सितारा रहीं। बहरहाल ये उनका निजी मामला है कि उन्होंने भारत आने का निर्णय किया। डॉ. नेने भी यहां एक मेडिकल कॉलेज से जुड़ गए हैं। अपनी दूसरी पारी में उन्होंने अपने पुराने सचिव राकेश नाथ की सेवाएं समाप्त कर दीं और रेशमा शेट्टी की मैट्रिक्स उनका काम देखती है। 
 
Source: Madhuri's Ishqiya And Gulaabi Gang - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 4th January 2014

Friday, January 3, 2014

Sholay - Emergency and Present - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 3rd January 2014

'शोले'- आपात काल और वर्तमान 

परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे

 
यह एक इत्तेफ़ाक़ की बात है कि रमेश सिप्पी की 'शोले' का प्रदर्शन 1975 में आपात-काल के दरमियान हुआ और उसका थ्रीडी संस्करण अघोषित आपात काल जैसी राजनीतिक उथल-पथल के समय हो रहा है। देश में परिवर्तन का दौर है। इस फिल्म की प्रेरणा सलीम-जावेद को दर्जन भर फिल्मों से मिली है। दरअसल कुरोसोवा की जापानी फिल्म 'सेवन समुराई' ने पूरे विश्व सिनेमा को एक नया विचार दिया और सभी ने उस पर फिल्में बनाई। मसलन सेवन मेगनीफीसेंट मैन इत्यादि। इन सभी प्रेरित फिल्मों ने मूल के निर्देशक कुरोसोवा का आधार विचार अनदेखा किया है। उनकी रचना के 'गांव' को वे सभ्य समाज का प्रतीक मानते हैं और बर्बर डाकू असभ्यता का प्रतीक है तथा सात जांबाज समुराई सभ्यता के हाशिये पर खड़े वे लोग हैं जिन्होंने सभ्य संसार के नियम तोड़े हैं। सभ्य गांव पर जब वे अपनी लड़ाई लडऩे के लिए कानून तोडऩे वाले सात जांबाजों को आमंत्रण देते हैं परंतु युद्ध समाप्त होने पर और डाकुओं की पराजय के बाद वे हाशिये पर खड़े लोगों से कोई संबंध नहीं रखना चाहते हैं। उनकी अवहेलना भी करते हैं। डाकुओं से लंबी लड़ाई के दरमियान गांव की गोरी का एक जांबाज के साथ इश्क हो जाता है। परंतु अंतिम दृश्य में वह गोरी जांबाज से पल्ला छुड़ाते हुए अपने फसल बोने के काम में लग जाती है। यह दृश्य बरसात में फिल्माया गया है। पूरा गांव खेतों में चावल की बोनी कर रहा है। ज्ञातव्य है कि जापान की समुराई परंपरा अत्यंत प्राचीन है और समुराई को किसी सामंत या जमींदार समान व्यक्ति का प्राश्रय प्राप्त नहीं, वह समुराई में प्रस्तुत सातों समुराई ऐसे ही लोग हैं। उन्हें कोई सामाजिक वर्ग स्वीकार नहीं करता। 
 
Source: Sholay - Emergency and Present - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 3rd January 2014

It Is Better To Start Early The Habit Of Saving - Management Funda - N Raghuraman - 3rd January 2014

बचत की आदत जितनी जल्द शुरू हो उतना अच्छा 

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन 


कर्नाटक में मेंगलोर के एक गांव में हनुमंता कोटी और उसके आठ सदस्यों वाला परिवार रहता था। परिवार में उनकी पत्नी, पांच बेटियां और दो बेटे हैं। गांव में काम नहीं था इसलिए यह परिवार 1990 के दशक के शुरुआती सालों में मेंगलोर आ गया। यहां ये लोग मजदूरी करने लगे। गांव से शहर की ओर आने के दौरान सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा परिवार के छोटे बच्चे मंजूनाथ पर। वह सात साल का था। दूसरी कक्षा में पढ़ता था और गंभीरता से पढ़ाई करना चाहता था। मंजूनाथ मेंगलोर पहुंचा तो वहां कई शहरी बच्चों को स्कूल जाते देखा। खुद को रोक नहीं पाया। वह भी उनके साथ हो लिया। कक्षा में तब तक बैठता रहा जब तक उसे पकड़ा नहीं गया। स्कूल में जो खाना मिलता उसे वह खुद तो खाता ही घर के दूसरे सदस्यों के लिए भी ले आता। वह सरकारी स्कूल था। एक दिन उसे स्कूल की टीचर मैरी ने पकड़ लिया। उन्होंने उससे जब पूछताछ की तो वे झुंझलाने के बजाय प्रभावित हो गईं। मंजूनाथ को अपनी उम्र के हिसाब से काफी जानकारी थी। पढ़ाई में उसकी रुचि देख टीचर मैरी ने उसमें खास दिलचस्पी दिखाई। 

Source: It Is Better To Start Early The Habit Of Saving - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 3rd January 2014

Thursday, January 2, 2014

Shahrukh Khan In Double Role - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 2nd January 2014

शाहरुख खान दिखेंगे दोहरी भूमिका में 

परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे 


शाहरुख खान ने फरहान अख्तर के साथ दो नायक वाली फिल्म को कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया है और आदित्य चोपड़ा की मनीष शर्मा निर्देशित 'फैन' प्रारंभ करने का फैसला किया है। अत: इस वर्ष उनकी फराह निर्देशित 'हैप्पी न्यू ईयर' और दिसबंर में आदित्य चोपड़ा की फैन प्रदर्शित होगी। क्रिसमस छुट्टियों का जो लाभ विगत वर्ष 'धूम-3' को मिला, इस वर्ष वहीं लाभ 'फैन' को मिलेगा। एक और समानता यह है कि 'धूम-3' की तरह 'फैन' भी नायक की दोहरी भूमिकाएं हैं परन्तु 'धूम-3' में यह बात प्रदर्शन तक छुपाई गई थी। सुना है कि इसमें' में एक भूमिका शाहरुख पैंतालीस वर्षीय सुपर सितारे का हम शक्ल है परन्तु यह जुड़वा भाईयों की कहानी नहीं है। ज्ञातव्य है कि मनीष शर्मा ने आदित्य चोपड़ा के लिए 'बैंड, बाजा, बारात' बनाई थी। प्रशंसक को लेकर पहल बार एक भव्य फिल्म बन रही है। चार दशक पूर्व इरविंग वैलेस नामक अमेरिकन लेखक ने 'फैन क्लब' नामक उपन्यास लिखा था जिसमें चार प्रशंसक मिलकर अपनी प्रिय नायिका का अपहरण कर लते हैं। 
 
Source: Shahrukh Khan In Double Role - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 2nd January 2014

If You Want To Succeed Fast Then Do Not Fall In Same Situation - Management Funda - N Raghuraman - 2nd January 2014

तेज तरक्की करनी है तो एक जैसे हालात में न पड़ें 

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन 


आपसे एक सवाल। दुनिया के तीन सबसे अच्छे निवेशक और व्यावसायिक रणनीतिकारों के नाम बताइए? इसके जवाब में ज्यादातर लोग शुरू के दो नाम वारेट बफेट और सैम वाल्टन के लेंगे। लेकिन तीसरे का नाम बता पाना शायद मुश्किल हो। यह वैसा ही जैसे कि आप पहली बार चांद पर उतरे इंसान का नाम तो बता दें। नील आर्मस्ट्रांग। लेकिन उस दूसरे शख्स का नाम शायद न बता पाएं जो नील के साथ ही चांद पर उतरे थे। वे थे बज एल्ड्रिन। इन दोनों के साथ तीसरे व्यक्ति थे माइकल कॉलिन्स। जिस वक्त 20 जुलाई 1969 को नील और एल्ड्रिन चांद पर उतरे, कॉलिन्स अंतरिक्ष यान की कमान संभाल रहे थे। 

Source: If You Want To Succeed Fast Then Do Not Fall In Same Situation - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 2nd January 2014 

Wednesday, January 1, 2014

Independent Thinking And Creation Of Opportunities - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 1st January 2014

स्वतंत्र सोच और सृजन को अवसर 

परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे 


विगत वर्ष अधिकांश समय 2014 की बातें होती रहीं, होने वाले चुनाव का आकलन किया जाता रहा, भीषण प्रचार तंत्र ने ऐसे अंधड़ को जन्म दिया मानो 2014 चुनाव के बाद देश का भाग्य बदल जाएगा और नेपथ्य से सफेद घोड़े पर सवार कोई 'अवतार' आ जाएगा। सारांश यह कि 2013 को समाप्त होने के पहले ही बार-बार मारा गया और ऐसा भ्रम रचा गया मानो 2013 कभी कहीं था ही नहीं और हजारों वर्ष प्राचीन भारत की नई कुंडली और पंचांग 2014 में रचा जाएगा। संभवत: यह घृणा तेरह के आंकड़े से है। कई इमारतों में बारह के बाद वाले माले को चौदहवां माला कहते है और लिफ्ट में तेरह का बटन भी नहीं होता। न जाने कैसे और क्यों तेरह को अशुभ मान लिया गया। अमेरिका थर्टीन-द हॉरर नामक फिल्म भी बनी। आम बातचीत में 'तीन तिगाड़ा, तेरह काम बिगाड़ा' जैसे जुमले प्रयुक्त होते हैं। कुछ हवाई जहाजों में तेरह नम्बर की सीट या पंक्ति नहीं होती। जाने कैसे सामूहिक अवचेतन में अंधविश्वास जम जाते है और कमोबेश यही 2013 के साथ भी किया गया। यहां तक कि चार विधानसभाओं को भी 2014 का रिहर्सल बताया गया जबकि इनकी जमा जोड़ सीटें संसद की मात्र 57 सीटों के बराबर होती है परन्तु 2013 में ही दिल्ली में राजनीतिक अजूबा घटा। सन् 2013 में ऐसा कुछ घटा है कि उसे काल्पनिक काल खंड मान लें। इस वर्ष इतने झूठ इतने व्यापक पैमाने पर बोले गए हैं कि सत्य काल्पनिक सा हो गया। इस वर्ष झूठा इतिहास तथा कपोल कल्पित भूगोल भी बखाने गए। 1952 में स्वर्गवासी हुए व्यक्ति को 1930 में ही मरा बताया गया और जाने किसका अर्थीकलश कहां से कौन लाया। इन सब बातों के बीच आम आदमी के दल ने दिल्ली में चमत्कार रचा। जो अरविंद केजरीवाल राजनीतिक मसखरा लग रहा था, उसने शीला दीक्षित को पराजित किया और गैर व्यावहारिक सी लगने वाली बातें और घोषणाएं दिल्ली वालों को सत्य लगीं। दरअसल जिस 2013 को 2014 के चुनावी सामरिक महत्व के कारण गैर मौजूद वर्ष बनाने की कुचेष्टा हो रही थी, उसे अरविंद केजरीवाल और साथियों ने भारतीय राजनीति में एक अजूबा रचकर 2013 की सार्थकता को सिद्ध कर दिया। 

Source: Independent Thinking And Creation Of Opportunities - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 1st January 2014

New Year Prosperity Is In Our Hands - Management Funda - N Raghuraman - 1st January 2014

नए साल को खुशहाल बनाना हमारे हाथ में है 

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन


हम कब, कैसे और कहां पैदा हों, इसका चुनाव नहीं कर सकते। हमारे माता-पिता कौन हों, यह चुनना भी हमारे बस में नहीं है। कब, कहां और कैसे मरें, यह भी हमारे हाथ में नहीं है। लेकिन हम एक चीज का चुनाव जरूर कर सकते हैं। वह ये कि हम कैसे रहें? और वे लोग जो अपने पसंदीदा तरीके से रहने-जीने का चुनाव करते हैं, वे जिंदगी में निश्चित तौर पर अपने लक्ष्य हासिल कर लेते हैं। आज एक ऐसी ही महिला की कहानी हम बता रहे हैं। उन्होंने जिंदगी को अपने तरीके से जिया। जैसे वह चाहती थीं, वैसे रहीं। जो चाहतीं थीं, वही किया।

Source: New Year Prosperity Is In Our Hands - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 1st January 2014