डॉ. विजयपत सिंघानिया का शंखनाद
परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे
रेमंड और जे.के. ट्रस्ट ग्राम विकास योजना के डॉ. विजयपत सिंघानिया श्रेष्ठि वर्ग के एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने गुब्बारे में बैठकर विश्व रिकॉर्ड बनाया था और लंदन से मुंबई तक भी एक अत्यंत छोटे हवाई जहाज में यात्रा करके कीर्तिमान रचा था। इस क्षेत्र में वे जेआरडी टाटा के बताए साहसी मार्ग पर चले हैं गोयाकि अन्य घनाढ्य व्यक्तियों की तरह उनका जीवन वातानुकूलित कमरों में नहीं बीता है। उनके पास अनेक किस्म के हवाई जहाज उड़ाने का अनुभव है और इस विषय पर उनकी किताब 'एन एंजिल इन कॉकपिट' खूब सराही गई है।
Source: Dr. Vijaypat Singhania's Shankhnaad (Sound of The Conch) - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 10th January 2014
डॉ. विजयपत सिंघानिया एक संवेदनशील व्यक्ति है और ग्रामीण भारत के किसानों तथा कुपोषण से मरते हुए बच्चों के लिए उनके हृदय में अपार करुणा है। अपने ट्रस्ट के माध्यम से उन्होंने इन्टीग्रेटेड लाइवस्टॉक विकास कार्यक्रम के तहत अधिक दूध देने वाली प्रजाति का विकास तथा प्रशिक्षण कार्यक्रम के 4200 केंद्र स्थापित किए हैं। हाल में उन्होंने डेनमार्क से एक अनुबंध किया है जिसके तहत अधिक दूध देने वाली भैंसों की रचना क्रॉस ब्रीडिंग द्वारा की जायेगी। इस कार्यक्रम का उद्देश्य है कि गरीब किसान के पास इतनी क्षमता में दूध देने वाला पशु हो कि वह अपने बच्चों को कुपोषण से बचा सके। साथ ही बचा हुआ दूध बेचकर वह कुछ धन कमा सके।
हर वर्ष वह सामाजिक सोद्देश्यता की दृष्टि से अपना टेबल कैलेंडर प्रकाशित करते हैं। इस वर्ष के टेबल कैलेंडर के कवर पर एक विशालकाय दूध देने वाले पशु के पेट पर भारत का नक्शा बना है। प्रथम पृष्ठ पर उनका संक्षिप्त वक्तव्य है जिसका मूल स्वर यह है कि भारत महान विसंगतियों और विरोधाभासों का देश बन चुका है और अनेक समस्याओं का निवारण आसानी से किया जा सकता है। वे लिखते हैं कि भारत में इतना अन्न उत्पन्न होता है कि विदेश में भी बेचा जाता है परंतु इसी देश में कुपोषण से सबसे अधिक मौतें होती हैं। एक ओर गोडाउन में अनाज सड़ जाता है तो दूसरी ओर जरूरतमंदों तक अनाज नहीं पहुंच पाता। संपन्नता के मध्य भूख का विकराल रूप आप देख सकते हैं।
हमारे देश में 92 करोड़ मोबाइल फोन का उपयोग किया जाता है परंतु हजारों गांव ऐसे हैं जहां बिजली की सुविधा नहीं है। मोबाइल के सेल टॉवर ऐसी ऊर्जा पैदा करते हैं जिससे कैंसर होने की संभावना है और इस विषय पर शोध जारी है। इन टॉवर के निकट रहने वालों को कई बीमारियां हो सकती है ऐसी आशंका अभिव्यक्त की जा चुकी है परंतु शोध द्वारा ठोस सबूत अभी तक नहीं मिले हैं। विजयपत सिंघानिया साहब, यह मोबाइल स्वयं एक सामाजिक बीमारी बन गई है और संवाद के इस साधन के आने के बाद भी मनुष्य की बात मनुष्य तक नहीं पहुंच रही है। दूरियां बढ़ गई है।
डॉ. विजयपत भारत में मौजूद इस विसंगति को रेखांकित करते हैं कि अनगिनत कारें बनाई जाती हैं और आयात भी की जाती हैं जिससे एक संपन्न देश की छवि उभरती है परंतु इसी देश के ग्रामीण क्षेत्र में आज भी परिवहन का मुख्य साधन बैलगाड़ी है और अनेक शहरों में मनुष्यों द्वारा खींचे जाने वाले सायकिल रिक्शा भी हैं। एक तरह कारों की बहुतायत है तो दूसरी ओर आज भी मनुष्य-मनुष्य का भार जानवर की तरह ढोने को बाध्य है।
सिंघानिया साहब को यह बात दु:ख दे रही है कि भारत से हजारों योग्य डॉक्टर विदेश जा रहे हैं परंतु देश में अनगिनत लोगों को बीमार पडऩे पर इलाज करने वाले नहीं मिलते। बिना इलाज मर जाने वालों की संख्या बहुत बड़ी है।
हमारे यहां अनेक करोड़पति हैं और जनता के प्रतिनिधियों में भी करोड़पतियों की संख्या कम नहीं है परंतु आवाम आज भी गरीब है और उसे साफ पानी तक उपलब्ध नहीं है। डॉ. विजयपत लिखते हैं कि शास्त्रों से संविधान तक महिला का गरिमा गान किया जाता है परंतु एक आकलन है कि औसतन प्रतिदिन 700 बलात्कार होते हैं। दरअसल ग्रामीण क्षेत्र के गरीब लोग तो बलात्कार की रिपोर्ट भी दर्ज नहीं करते अन्यथा यथार्थ का भयावह आंकड़ा सबको परेशान कर सकता है। कैलेंडर पर अपने आमुख का स्पष्टीकरण देते हुए सिंघानिया साहब कहते हैं कि लोगों को नींद से जगाना उनका उद्देश्य है।
दरअसल भारत की विसंगतियों और विरोधाभास की जानकारी अनेक लोगों को है परंतु वे आर्थिक असमानता को दूर नहीं करना चाहते क्योंकि इसके बने रहने पर ही अनेक लोगों का व्यवसाय आधारित है। करोड़पतियों के कंगाल देश में श्रेष्ठि वर्ग भी अपने सामाजिक दायित्व को जानता है और प्रयास करने पर एक समानता और स्वतंत्रता आधारित समाज बनाया जा सकता है। अध्यात्मिकता के अहंकार से मुक्ति अनेक व्यवसाय ठप्प कर सकती है। बहरहाल डॉ. विजयपत सिंघानिया को न केवल चिंता है वरन् वे अपने ट्रस्ट के माध्यम से गरीबी और कुपोषण के खिलाफ कार्य भी कर रहे हैं, इसकी बधाई। अपने वातानुकूलित संगमरमर भवनों के जलसाघरों में बैठे मुतमइन लोग समय को नहीं पढ़ पा रहे हैं। सोते को जगाया जा सकता है, सोने का अभिनय करने वालों का क्या कीजिएगा?
Source: Dr. Vijaypat Singhania's Shankhnaad (Sound of The Conch) - Parde Ke Peeche - Jaiprakash Chouksey - 10th January 2014
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