Saturday, January 11, 2014

Some People Never Go Wrong In Mathemetics of Life - Management Funda - N Raghuraman - 11th January 2014

कुछ लोग जिंदगी की गणित में गलत नहीं होते

 मैनेजमेंट फंडा  - एन. रघुरामन


वह मैथ टीचर थे। नागपुर के सरस्वती विद्यालय में पढ़ाते थे। चार दशक के उनके कॅरिअर में करीब 50 हजार स्टूडेंट्स उनसे लाभान्वित हुए। अस्सी साल के इस शख्स के अंतिम संस्कार के लिए दो जनवरी को कुछेक लोग ही जुटे थे। कोई पंडित नहीं। रीति-रिवाज नहीं। बस एक असहज शांति जरूर पसरी हुई थी, क्योंकि अंतिम संस्कार नागपुर के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग के डीन के ऑफिस के बाहर हो रहा था। कुछ पेपर बचे साइन करने के लिए। जैसे दिवंगत मनोहर एस. कारखानिस के परिवार वालों ने कागजात पर साइन किए, अंतिम संस्कार की रस्में पूरी हो गईं। हेल्पर स्ट्रेचर पर रखी देह को विभाग के उस हिस्से की ओर धकेल चला, जहां उसे रखा जाना था। 

Source: Some People Never Go Wrong In Mathemetics of Life - Management Funda - N Raghuraman - Dainik Bhaskar 11th January 2014
 कारखानिस 40 साल तक स्टूडेंट्स को पढ़ाते रहे। लेकिन उनके भीतर का शिक्षक इतने पर भी संतुष्ट नहीं था। मरने पहले से उन्होंने इच्छा जताई थी कि उनकी देह मेडिकल कॉलेज को दान की जाए, ताकि स्टूडेंट्स प्रैक्टिकल कर सकें। उनका बेजान शरीर जिंदगी के बाद भी नौकरी पर था। जो लोग उन्हें जानते थे उनमें से किसी को इस पर अचरज नहीं हुआ कि उन्होंने मेडिकल स्टूडेंट्स की पढ़ाई के लिए अपनी देह दान कर दी। टीचिंग के लिए उनका प्रेम और समर्पण ही ऐसा था। कारखानिस के छात्रों में से एक मैं भी हूं। मैंने 10 साल उस स्कूल में गुजारे जहां वे पढ़ाते थे। मुझे उनके बारे में जो सबसे अहम और पहली चीज याद है वह उनकी खुद पर निर्भरता। उन्होंने कभी मुझे या किसी भी स्टूडेंट को चॉक के टुकड़े लाने के लिए स्टाफ रूम की ओर नहीं दौड़ाया। मुझे जब भी यह काम करने को कहा जाता तो बहुत बुरा लगता। मुझे पसंद नहीं था यह सब। मैं कद में छोटा था। इसलिए सबसे आगे बिठाया जाता था। मेरी बेंच दरवाजे से लगती हुई थी। इसलिए ज्यादातर मुझे ही टीचर्स चॉक लाने के लिए दौड़ा देते थे। खैर, दूसरी चीज जो कारखानिस सर की मुझे याद आती है, वह उनका मुस्कुराता हुआ चेहरा। 

तीसरी बात, हम सबको वे हमेशा सवाल पूछने के लिए प्रोत्साहित करते थे। और पूरे धीरज के साथ एक-एक को जवाब भी देते थे। और चौथी बात, वे कभी शिकायत नहीं करते थे। ऐसा नहीं है कि कारखानिस सर के पास शिकायत के लिए कुछ था ही नहीं। बहुत कुछ था उनके जीवन में जिसकी वे शिकायत कर सकते थे। मध्यप्रदेश के उज्जैन में वे पले-बढ़े थे। घर कहने लिए कोई मकान तक नहीं था उनके पास। माता-पिता भी नहीं थे। बहुत पहले ही गुजर गए थे। परिवार के नाम पर सिर्फ बड़े भाई थे। अपनी पढ़ाई के खर्च का बड़ा हिस्सा भी उन्होंने ख्रुद ही उठाया। अपने पोतों को उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए हार्वर्ड भेजा। और इस सब के बीच पूरे परिवार को कभी बिखरने नहीं दिया। परिवार को एक सूत्र में बांधकर रखने की उनकी क्षमता भी गजब की थी। उनका आत्मनिर्भरता का गुण तो बेहद ही प्रेरक था। कारखानिस सर की बेटी स्मिता मेरे साथ पढ़ती थी। उसने मुझे बताया था कि उन्होंने उम्र के आखिरी दौर में भी किसी से मदद नहीं ली। 

हर रोज सुबह चार बजे घूमने जाते थे। घर में पानी का पंप चालू करना। अपने हाथ से नाश्ता बनाना। बच्चों को सुबह- सुबह पढ़ाना। करीब 50 साल तक उनका यही रुटीन रहा। उनकी पत्नी को 2004 में स्ट्रोक आया। और 2013 में निधन हो गया। स्मिता बताती हैं कि मां के आखिरी पल तक उनके लिए पिता (कारखनीस सर) 
का प्यार कम नहीं हुआ। बीमारी के बाद नौ साल तक उनकी एक ही प्राथमिकता थी, पत्नी का हर वक्त ख्याल 
रखना। इस दौरान भी उन्होंने कभी कोई शिकायत नहीं की। वे पत्नी से कितना प्यार करते थे इसका अंदाजा 
इसी से लग सकता है कि उनकी मौत के तीन महीने बाद ही सर भी दुनिया से विदा ले गए। शायद वे अपने 
पहले प्यार की दूसरी किसी दुनिया में भी देखभाल करते रहना चाहते थे। लेकिन अपने दूसरे प्यार यानी 
स्टूडेंट्स को भी वे छोड़ नहीं सकते थे। इसलिए अपनी देह को यहीं इसी दुनिया में इस दूसरे प्यार के लिए दान 
कर गए।

फंडा यह है कि...

बहुत कम लोगों में सब कुछ स्वीकार करने की इच्छा शक्ति होती है। और जीवन की हर वास्तविकता के साथ तालमेल बिठाने की भी। कारखानिस सर के जैसे लोगों की जगह कभी नहीं भर सकती। यह बेहद मु्किल है। 






































Source: Some People Never Go Wrong In Mathemetics of Life - Management Funda - N Raghuraman - Dainik Bhaskar 11th January 2014

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