Tuesday, January 7, 2014

Quality Always Scores Above Quantity - Management Funda - N Raghuraman - 7th January 2014

क्वालिटी हमेशा क्वांटिटी से आगे रहती है

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन


महेश रायपुर का रहने वाला है, जबकि रमेश नागपुर से है। दोनों मैकेनिकल इंजीनियर हैं। उन्होंने हर एक्जाम 51 फीसदी अंकों के साथ पास किया। दोनों को दो-दो नौकरियां मिलीं। एक उनके अपने-अपने कॉलेज के प्लेेसमेंट सेल के जरिए। किसी कारण से दोनों को नौकरी छोडऩी पड़ी। दूसरी बार दो-पांच महीने के बाद उन्होंने अपने दम पर नौकरी हासिल की, लेकिन इससे भी उन्हें इस्तीफा देना पड़ा, क्योंकि उन्हें अंदरूनी इलाकों में पोस्टिंग दी गई। आज दोनों मानते हैं कि दुनिया ने उनके साथ ठीक नहीं किया। कम से कम उन्हें नौकरी देने वाली कंपनियों ने तो बिल्कुल भी नहीं।
 
Source: Quality Always Scores Above Quantity - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 7th January 2014

जब पड़ताल हुई तो उन्होंने माना कि प्रैक्टिकल एक्जाम के अंकों में उन लोगों ने छेड़छाड़ की थी। उन्हें गलत तरीके से आगे बढ़ाया गया था। यह भी माना कि कक्षा में उनकी अनुपस्थिति का मामला एक्जाम में रोड़ा न बने इसलिए उसमें भी उन्होंने धांधली की। हालांकि दोनों का यह भी दावा है कि थ्योरी की परीक्षा को पास करने के लिए उन्होंने खूब मेहनत की थी, लेकिन गड़बडिय़ां उनकी मेहनत पर भारी रहीं। महेश और रमेश उन छात्रों को रिप्रेजेंट करते हैं जो कॉलेज जाते तो डिग्री-डिप्लोमा लेने के लिए हैं, लेकिन पढ़ाई को गंभीरता से नहीं लेते। संभवत: इन दोनों को भविष्य में कोई न कोई नौकरी मिल जाए। फिलहाल तो ये चिंता और तनाव में जी रहे हैं। गुजरात में एक यूनिवर्सिटी है, जिसने इस तरह के स्टूडेंट्स को अच्छे ढंग से समझा है। यह है-गुजरात टेक्निकल यूनिवर्सिटी। पिछले हफ्ते इसने तय किया कि यूनिवर्सिटी से मान्यता प्राप्त सभी कॉलेजों में प्रैक्टिकल एग्जाम बाहर के विशेषज्ञों के सामने होंगे। सभी कोर्सेस के आठों सेमेस्टर में यही व्यवस्था लागू रहेगी। पहले आखिरी दो सेमेस्टर में यह लागू थी। इससे शुरुआती छह सेमेस्टर में गड़बड़ आकलन की संभावना बनी रहती थी। चूंकि अक्सर प्रैक्टिकल एक्जाम ठीक ढंग से नहीं होते, इसलिए कुछ कॉलेज अपने स्टूडेंट्स को इनमें पूरे-पूरे नंबर भी दे देते हैं। इस तरह विसंगति पैदा हो जाती है। दूसरे कॉलेजों के पढ़ाकू बच्चे अक्सर इस वजह से मेरिट में पीछे रह जाते हैं। इसे लेकर शिकायतें आ रही थीं। इसके बाद इस यूनिवर्सिटी ने नए नियम बनाए। इनके मुताबिक अब कुल 100 में से प्रैक्टिकल एग्जाम के 50 नंबर होंगे। पहले सिर्फ 10 ही होते थे। औद्योगिक क्षेत्र की ओर से भी प्रैक्टिकल एग्जाम की गुणवत्ता बढ़ाने पर जोर है। क्योंकि पास होने वाले स्टूडेंट्स किताबी जानकारियों के मामले में तो अच्छे होते हैं, लेकिन उनमें प्रैक्टिकल नॉलेज बहुत कम होती है। इसके मद्देनजर ये परिवर्तन काबिले गौर हैं। यहां तक कि एमबीए स्टूडेंट्स को भी दूसरे कॉलेजों के स्टूडेंट्स के साथ मिलकर प्रजेंटेशन बनाने को कहा जा रहा है। पहले एक ही कॉलेज के स्टूडेंट्स आपस में गु्रप बनाकर प्रोजेक्ट बनाते थे। इससे भी गड़बड़ी की संभावना बनी रहती थी। इंडिया इन्फ्रास्ट्रक्चर रिपोर्ट के मुताबिक, 2007 में केंद्र सरकार ने स्कूलों में दाखिले बढ़ाने के लिए 12,238 करोड़ रुपए आवंटित किया, जबकि 736 करोड़ रुपए स्कूलों में शिक्षा की क्लालिटी बेहतर करने के लिए रखे गए। साल 2011 में दाखिले बढ़ाने को दी जाने वाली राशि 21,393 रुपए हो गई, जबकि क्वालिटी बेहतर करने के लिए दी गई रकम 2,032 करोड़ रुपए। इसका पॉजिटिव पहलू देखें तो यह है कि भारत अब कह सकता है कि वह यूनाइटेड नेशंस के मिलेनियम डेवलपमेंट गोल के लिए प्रतिबद्ध है। इस अभियान के तहत स्कूलों में दाखिले बढ़ाने पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। और निगेटिव पहलू ये है कि अब देशभर में और ज्यादा रमेश-सुरेश पैदा होंगे। यानी बच्चे किसी तरह परीक्षाएं तो पास कर लेंगे लेकिन उन्हें नौकरी मिलना मुश्किल होगी। नौकरी मिल भी गई तो उसमें टिके रहना मुश्किल होगा। और अगर नौकरी देने वालों से पूछा जाएगा तो वे कहेंगे बच्चों में प्रतिभा नहीं है। इससे खुद कंपनियों की तरक्की भी रुक रही है। यह सब इसलिए हो रहा है या होगा कि हम क्वालिटी एजुकेशन पर अब भी ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे हैं। 
 
 

फंडा यह है कि...

क्वालिटी और क्वांटिटी का आपस में कोई मुकाबला नहीं। जब भी इन दोनों को साथ खड़ा किया जाएगा। दोनों को तौला जाएगा तो पलड़ा क्वालिटी का ही भारी रहेगा।

 

































Source: Quality Always Scores Above Quantity - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 7th January 2014 

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