योग्यता से ज्यादा जरूरी इंसान का चरित्र
मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन
पहली कहानी:
बेंगलुरू में 1949 में सर सीवी रमन ने रिसर्च इंस्टीट्यूट स्थापित किया। यहां साइंटिफिक असिस्टेंट के पद के लिए कई लोगों की अर्जियां आईं। कई लोगों ने इंटरव्यू दिए। यह प्रक्रिया खत्म हुई तो रमन ने देखा कि एक आदमी अब भी इंटरव्यू रूम के बाहर इंतजार कर रहा है। उसका इंटरव्यू हो चुका था। और उसे पद के योग्य नहीं पाया गया था। फिर भी वह डटा हुआ था। रमन उसके पास गए। रौबदार आवाज में बोले, 'आप यहां क्या कर रहे हैं? हम आपसे कह चुके हैं कि आपको हम अपनी टीम में शामिल नहीं कर सकते। फिर आप क्यों यहां अपना समय खराब कर रहे है?'
Source: A Persons Character Is More Important Than Qualification - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 26th January 2014
उस आदमी ने जवाब दिया, 'सर मैं जानता हूं कि मेरा सिलेक्शन नहीं हो सकता। इसीलिए मैं यहां आपके संस्थान की ओर से मुझे दिया गया यात्रा खर्च लौटाने आया हूं।' रमन के अचरज का ठिकाना नहीं था। उन्होंने उस युवक के कंधे पर हाथ रखा। उसे अपने ऑफिस में ले गए। दो मिनट सन्नाटा छाया रहा। फिर रमन उस युवक से बोले, 'तुम्हारा सिलेक्शन हो चुका है।' वे आगे बोले, 'मेरे लिए यह मायने नहीं रखता कि तुम्हारी फिजिक्स कमजोर है। वह तो मैं तुम्हें सिखा दूंगा। मेरे लिए यह ज्यादा मायने रखता है कि तुम एक चरित्रवान व्यक्ति हो।'
दूसरी कहानी:
पंडित गोविंद वल्लभ पंत उत्तराखंड के अग्रणी नेता थे। आजाद भारत में वे संयुक्त उत्तरप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री थे। केंद्र में 1955 से 61 के बीच वे गृहमंत्री भी रहे। उनकी एक आदत बहुत खास थी। वे हमेशा अपने सरकारी और निजी खर्च का हिसाब-किताब अलग रखते थे। इस बात का हमेशा ध्यान रखते थे कि परिवार के सदस्यों और खुद उन पर होने वाला खर्च उन्हीं की कमाई से हो। एक बार किसी सरकारी बैठक में सर्व किए गए चाय-नाश्ते के बिल पर उन्होंने दस्तखत करने से मना कर दिया। दलील दी कि बैठक के लिए इसका प्रावधान ही नहीं था। और यह बिल भी कितना? छह और 12 आने। उन्होंने अपनी जेब से पर्स निकाला। उसमें से बिल के पैसे निकालकर स्टाफ को थमा दिए। कहा, 'यह पैसा लो और बिल का भुगतान कर दो। सरकार के पैसों से यह बिल भुगतान करने की इजाजत मैं नहीं दे सकता।'
तीसरी कहानी:
चंद्रगुप्त के प्रधानमंत्री थे चाणक्य। एक बार चीन से कोई दूत उनसे मिलने आया। वह 'फिलॉसफी और पॉलीटिक्स' पर बात करना चाहता था। वह दूत राजसी जीवनशैली वाला था। कुछ अहंकारी भी। उसने चाणक्य से मिलने का समय मांगा। आग्रह किया कि वह उनके (चाणक्य के) घर पर रात के समय मिलना चाहता है। वह चाणक्य की झोपड़ी में पहुंच गया। उसने देखा कि चाणक्य उस समय दीए की रोशनी में जमीन पर बैठकर कुछ लिख रहे हैं। वह भौंचक रह गया। यह सोचकर कि राज्य का प्रधानमंत्री इस स्थिति में क्यों है?उसके दिमाग में सवालों की उधेड़बुन चल रही थी। तभी चाणक्य उठे और उस दूत का उन्होंने बड़े सम्मान से स्वागत किया। पास में पीढ़े पर बिठाया और एक बड़ा दीया जला लिया। कुछ देर बाद जब यह खत्म हुई तो चाणक्य ने फिर बड़ा दीया शांत कर दिया। वही छोटा सा दीया जला लिया। उस दूत ने चाणक्य से इसका कारण पूछा। चाणक्य ने बड़ी सहजता से जवाब दिया, 'आप जब आए तो मैं अपना निजी काम कर रहा था। इसलिए मैंने अपना खुद का दीया जला रखा था। लेकिन जब आपसे बातचीत की तो यह सरकार से जुड़े काम का हिस्सा थी। इसलिए सरकार की ओर से दिया बड़ा दीया जला दिया। अब जब बातचीत खत्म हो चुकी है तो मैंने फिर अपना दीया जला लिया।'
फंडा यह है कि...
लोगों को अक्सर उनकी योग्यता से जाना जाता है। लेकिन योग्यता से ज्यादा बड़ा गुण चरित्र है। हमें हमारे चरित्र से बड़ी पहचान मिलती है।
Source: A Persons Character Is More Important Than Qualification - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 26th January 2014
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