नए साल को खुशहाल बनाना हमारे हाथ में है
मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन
हम कब, कैसे और कहां पैदा हों, इसका चुनाव नहीं कर सकते। हमारे माता-पिता कौन हों, यह चुनना भी हमारे बस में नहीं है। कब, कहां और कैसे मरें, यह भी हमारे हाथ में नहीं है। लेकिन हम एक चीज का चुनाव जरूर कर सकते हैं। वह ये कि हम कैसे रहें? और वे लोग जो अपने पसंदीदा तरीके से रहने-जीने का चुनाव करते हैं, वे जिंदगी में निश्चित तौर पर अपने लक्ष्य हासिल कर लेते हैं। आज एक ऐसी ही महिला की कहानी हम बता रहे हैं। उन्होंने जिंदगी को अपने तरीके से जिया। जैसे वह चाहती थीं, वैसे रहीं। जो चाहतीं थीं, वही किया।
Source: New Year Prosperity Is In Our Hands - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 1st January 2014
महाराष्ट्र के बारामती जिले से सात किलोमीटर दूर एक जगह है पिंपली। यहां लता भगवान कारे रहती हैं। खेतिहर मजदूर हैं। वे सिर्फ अपने लिए एक ही चीज नियमित रूप से करती हैं। वह ये कि रोज सुबह घूमने जाती हैं। एक चीज पर उन्हें सबसे ज्यादा यकीन है और वह है धीरज। इरादे की पक्की हैं। जिंदगी के मंच पर उन्होंने कई भूमिकाएं निभाईं। बेटी, पत्नी, मां, दादी, खेतिहर मजदूर। और एक दिन वे यह सब करते हुए दूसरों के लिए मिसाल बन गईं। लता को हाल में ही एक मैराथन दौड़ के मौके पर देखा गया। नौ गज की साड़ी और चप्पल पहने हुए। कई लोग वहां जुटे हुए थे। कोई अपने बच्चों का तो कोई नाती-पोतों का उत्साह बढ़ाने के लिए। कई बस यूं ही बतौर दर्शक। लता को देख लोगों ने यही सोचा कि वे भी यहां ऐसे ही आई हैं। जो उन्हें जानते थे उन्होंने उनसे पूछा भी कि कैसे आईं? कोई खास मकसद? तो लता का जवाब था, 'नहीं, बस यूं ही।' लेकिन थोड़ी ही देर बाद दर्शक और मैराथन के आयोजकों के अचरज का ठिकाना नहीं था। वे सब लता को मैराथन के प्रतिभागियों के बीच खड़ा देख भौंचक थे। पहली बार वे इस तरह के किसी आयोजन में हिस्सा ले रही थीं। अभी दौड़ शुरू हुए कुछ मिनट ही हुए थे कि लता अपने साथ दौड़ रहे एथलीटों से काफी आगे निकल चुकी थीं। उनकी उम्र 61 साल के करीब लेकिन उसे भी वे जैसे पछाड़ रही थीं। पीछे छोड़ रही थीं। नौ गज की साड़ी ने अब भी उन्हें लपेटा हुआ था, लेकिन चप्पलें पैरों का साथ छोड़ चुकी थीं। नंगे पैर वे तेजी से फिनिश लाइन की तरफ बढ़ रही थीं। और जब दौड़ खत्म हुई तो लता विजेता के तौर पर सबके सामने थीं। उन्हें साल 2013 के सबसे तेज मैराथन धावक का खिताब भी दिया गया। लोग अब भी उन्हें अवाक् से देख रहे थे।
जिन खिलाडिय़ों को लता ने दौड़ के शुरू में ही पीछे छोड़ा था वे फिनिश लाइन तक उनसे कई मीटर पीछे रह गए। इनमें ऐसे कई खिलाड़ी थे जो पहले कई बार मैराथन दौड़ में हिस्सा ले चुके थे। उन्होंने इस बार के लिए भी महीनों तैयारी की थी। हर तरह के साधन से संपन्न लेकिन वे अंत तक लता से पार नहीं पा सके। उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि परंपरागत नौ गज की साड़ी नंगे पैर पहली बार दौडऩे वाली कोई बुजुर्ग महिला मैराथन में उन्हें हरा चुकी है। दौड़ से करीब एक सप्ताह पहले लता ने परिवार को अपने फैसले की जानकारी दी थी। उन्होंने बताया कि वे भी मैराथन में हिस्सा ले रही हैं। उनके बेटे ने विरोध किया, लेकिन उसे बाद में लता के इरादे के सामने हार माननी पड़ी। दौड़ की शुरुआत से लेकर अंत तक वे लगातार अपने आप से एक ही बात कह रही थीं कि उन्हें जीतना है। और उन्होंने जीत हासिल कर दिखा भी दिया। इस उपलब्धि के बाद अब लता ने जीवन के लिए अगले लक्ष्य तय कर लिए हैं। उन्होंने फैसला किया है कि वे ऐसी जितनी भी प्रतिस्पर्धाओं में हो सकेगा, हिस्सा लेंगी। उनके इरादे देखकर शायद ही किसी को शक हो कि वह ये लक्ष्य हासिल नहीं कर पाएंगी।
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