'दुल्हनिया' और 'धूम' में अंतर
परदे के पीछे - जयप्रकाश चौकसे
जैसे क्रिकेट के आंकड़े अनेक क्रिकेट प्रेमी सहेज कर रखते हैं, वैसे सिनेमा बॉक्स ऑफिस के आंकड़े भी जमा किए जाते हैं। फिल्म इन्फॉर्मेशन नामक पत्रिका के गौतम मूथा ने बताया कि 'धूम तीन' ने मुंबई और उपनगरों में प्रथम सप्ताह में चौदह करोड़ के टिकिट बिके और अठारह वर्ष पूर्व आदित्य चोपड़ा की 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' के बारह करोड़ के टिकिट बिके थे। 'दुल्हनिया' के समय आज से कम मल्टीप्लैक्स थे और टिकिट के दर भी आज से बहुत कम थे। धूम के टिकिट दर अब तक प्रदर्शित फिल्मों से बहुत अधिक थे और पहले तीन दिन के बाद घटाए भी नहीं गए थे जैसे अन्य भव्य फिल्मों के प्रदर्शन के समय किया जाता है। इस तथ्य से स्पष्ट होता है कि 'दुल्हनिया' की दर्शक संख्या 'धूम' से कहीं अधिक थी और इन अठारह वर्षों में आबादी भी बढ़ी है।
Source: Difference Between DDLJ and Dhoom 3 - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 15th January 2014
आज आत्ममुग्ध उद्योग को यह चिंता नहीं सताती कि बढ़ती आय और बढ़ती आबादी के दौर में दर्शक संख्या गिर रही है। मल्टीप्लैक्स के आगमन के बाद कुछ प्रांतों ने अपने एकल सिनेमाघरों को बंद होने दिया जिस कारण फिल्म उद्योग को हानि हुई। मसलन पंजाब में धर्मेन्द्र मार्का फिल्में बहुत सफल होती थीं परंतु एकल सिनेमा के पराभव के बाद वहां ऐसा नहीं होता। कुछ प्रांतों के सिनेमाघर मालिकों ने अपनी सरकारों से रियायत मांगी और सरकारों ने अपनी मनोरंजन कर नीति में परिवर्तन किया जिस कारण उन प्रदेशों का आम आदमी कम खर्च में नई फिल्में एकल सिनेमा में देख सकता है। सरकारों को और अधिक सहूलियतें एकल सिनेमाघरों को देनी चाहिए ताकि कम से कम मनोरंजन क्षेत्र में आम आदमी के समानता प्राप्त हो।
यह सवाल उठ सकता है कि मनोरंजन रोटी कपड़ा और मकान की तरह आवश्यक नहीं है परंतु समाज में अन्याय और असमानता के दौर में मनोरंजन आम आदमी को कुछ राहत तो देता ही है। रोटी, कपड़ा, मकान जैसी प्राथमिकता के अभाव के शूल को मनोरंजन कम कर देता है। मनोरंजन रोटी का स्थान नहीं ले सकता परंतु कोई भूखा नहीं सोये यह संभवत: आत्मकेन्द्रित सरकारों के बस में नहीं और ना ही वह उनकी विचार प्रक्रिया में महत्वपूर्ण है। दरअसल हमारे यहां रोटी, कपड़ा, मकान की इतनी कमी है कि जीवन उपयोगी आवश्यकताओं में हम मनोरंजन का शुमार नहीं कर पाते।
बहरहाल 'दुल्हनिया' और 'धूम' के आंकड़ों से यह भी स्पष्ट होता है कि आधुनिक टेक्नोलॉजी की सहायता से रची धूम में वह संपूर्ण दिल को छूने वाला मनोरंजन नहीं था जो 'दुल्हनिया' में था। फिल्मकारों का झुकाव अब टेक्नोलॉजी की सहायता से अजूबे रचने में अधिक है।
अठारह सौ छियान्वे में रूस में सिनेमा के प्रथम प्रदर्शन के समय इस विद्या के पहले समालोचक मैक्सिम गोर्की ने कहा था कि फिल्म के दृश्य में पानी के फव्वारे का प्रभाव यह था कि उससे बचने के लिए दर्शक नीचे झुक जाते थे परंतु सच तो यह है कि सिनेमा द्वारा हृदय में आई नमी से नहीं बच पाते और टेक्नोलॉजी के प्रलोभन ने फिल्मकारों को इस 'नमी' को पैदा करने के ध्येय से दूर कर दिया है। मूव्हीज को इसलिए मूव्ही नहीं कहते कि उसमें चित्र चलायमान है बल्कि सिनेमाघर में बैठे दर्शक के हृदय में वह भावना जगाता है। सारा खेल संवेदना आधारित है।
धूम में दो हमशक्ल भाइयों के आपसी प्रेम का भावना प्रधान पक्ष था परंतु वह टेक्नोलॉजी के चमत्कारों के सामने गौण स्थान पर था। इसी तरह 'कृश' में भी भावना पक्ष गौण ही रहा इसलिए इन दोनों फिल्मों को छुट्टियों का लाभ और लोकप्रिय सितारों का लाभ भी मिला और वे ढाई सौ करोड़ की आय तक पहुंची परंतु यदि इन फिल्मों का भावना पक्ष इतना गौण नहीं कर दिया होता तो आय का आंकडा़ बहुत अधिक होता है।
जब फिल्म उद्योग आज की तुलना में कमतर तकनीक और साधनों पर आधारित था तब अधिक भावना प्रधान फिल्में बनती थीं परंतु उस दौर का दर्शक भी बहुत सरल व्यक्ति था। फिल्में और दर्शक की रुचियां निरंतर बदलती रहती हैं। फिल्मों की सफलता सीधे सामूहिक अवचेतन से जुड़ी है। जिस तरह यह अवचेतन अपरिभाषित है, उसी तरह मनोरंजन भी स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं है। हर दौर में आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक परिस्थितियों में बदलाव का असर दर्शक पर पड़ता है और उसकी रुचियां भी बदलती हैं परंतु भावना पक्ष किसी न किसी रूप में मौजूद रहता है। आम आदमी बहुत भावुक होता है और उसके सारे निर्णय भावना की लहर तय करती है। अपने भावना प्रधान होने के कारण वह अनेक बार ठगा जाता है।
Source: Difference Between DDLJ and Dhoom 3 - Parde Ke Peeche By Jaiprakash Chouksey - Dainik Bhaskar 15th January 2014
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